इज़राइल को इन्टरनेश्नल फ़्लोटीला 'अल-समूद' से डर क्यों लगता है?
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पार्सटुडी: गज़ा की नाकाबंदी तोड़ने के लिए वैश्विक 'अल-समूद' बेड़े के करीब पहुंचने के साथ ही, इजरायल ने उन्हें सैन्य कार्रवाई और जहाजों को जब्त करने की धमकी दी है।
(last modified 2025-10-02T09:18:15+00:00 )
Sep ३०, २०२५ १७:१० Asia/Kolkata
  • इन्टरनेश्नल फ़्लोटीला \'अल-समूद\'
    इन्टरनेश्नल फ़्लोटीला \'अल-समूद\'

पार्सटुडी: गज़ा की नाकाबंदी तोड़ने के लिए वैश्विक 'अल-समूद' बेड़े के करीब पहुंचने के साथ ही, इजरायल ने उन्हें सैन्य कार्रवाई और जहाजों को जब्त करने की धमकी दी है।

ऐसे दिनों में जब गज़ा अभी भी एक क्रूर और अवैध नाकाबंदी में है, इन्टरनेश्नलन 'अल-समूद' फ़्लोटीला इस नाकाबंदी को तोड़ने और शोषित फिलिस्तीनी लोगों तक मानवीय सहायता पहुंचाने के उद्देश्य से क्षेत्र के पानी के करीब पहुंच गया है। इस नागरिक और अंतरराष्ट्रीय पहल को ज़ायोनी शासन की तीव्र और धमकी भरी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है, एक ऐसा शासन जिसने एक बार फिर दिखाया कि उसे न केवल सैन्य प्रतिरोध, बल्कि नागरिक और मानवीय प्रतिरोध से भी डर लगता है।

 

'अल-समूद' फ़्लोटीला ने जिसमें लगभग 50 जहाज और नावें शामिल हैं और 40 देशों के 500 से अधिक एक्टिविस्ट इसमें शामिल हैं, स्पेन के तटों से अपनी यात्रा शुरू की और अब गज़ा से लगभग 600 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह काफिला मानवीय सहायता ले जा रहा है जिसमें गज़ा के घिरे लोगों के लिए भोजन, दवाएं और आवश्यक सामान शामिल हैं।

 

ऐसी स्थिति में जब मार्च से गज़ा में प्रवेश मार्ग बंद हैं और किसी भी मानवीय सहायता के प्रवेश में इजरायल रुकावटें डाल रहा है, यह बेड़ा फिलस्तीनी लोगों के साथ वैश्विक एकजुटता और क़ब्ज़ाधारी शासन की अमानवीय नीतियों के विरोध का प्रतीक है।

इस कार्रवाई के जवाब में, ज़ायोनी शासन ने अपनी नौसेना की कमांडो इकाई "शायतेत 13" को सतर्क कर दिया है और धमकी दी है कि अगर बेड़ा गज़ा के पानी में दाखिल हुआ तो जहाजों को ज़ब्त करने के लिए सैन्य कार्रवाई की जाएगी। यह धमकी ऐसे समय में दी जा रही है जब "अल-समूद" बेड़े के जहाज पूरी तरह से ग़ैर-सैन्य हैं और शांति कार्यकर्ताओं को ले जा रहे हैं। इज़राइली मीडिया ने रिपोर्ट दी है कि इस सैन्य इकाई ने हाल के दिनों में समुद्र में जहाजों को ज़ब्त करने के लिए मैदानी अभ्यास किए हैं, एक कदम जो इस नागरिक पहल से निपटने में शासन की गंभीरता को दर्शाता है।

 

सैन्य धमकियों के अलावा, ज़ायोनी शासन ने अन्य सुरक्षा उपायों को भी अपनी कार्ययोजना में शामिल किया है। ज़ायोनी मीडिया "वाला" ने रिपोर्ट दी है कि इजरायल के कई अस्पतालों में अलर्ट स्तर बढ़ा दिया गया है और "अल-समूद" बेड़े के साथ टकराव के दौरान, खासकर "योम किप्पुर" की छुट्टियों को देखते हुए, संघर्ष और मानवीय हताहतों की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता। यह कदम नागरिक एक्टिविस्ट के साथ हिंसक टकराव के लिए शासन की तैयारी को दर्शाता है, एक ऐसा टकराव जिसके वैश्विक स्तर पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।

 

लेकिन ज़ायोनी शासन एक मानवीय और नागरिक पहल से इतना डर क्यों रहा है? इसका जवाब इस शासन की प्रकृति और उसकी नीतियों में खोजना होगा। इजरायल वर्षों से सैन्य, मीडिया और राजनयिक उपकरणों का उपयोग करके वैश्विक स्तर पर अपनी एक वैध छवि पेश करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन "अल-समूद" बेड़े जैसी पहलें इस छवि को चुनौती देती हैं। यूरोप, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका सहित विभिन्न देशों के एक्टिविस्ट की मौजूदगी इजरायल के अपराधों के खिलाफ वैश्विक विवेक की जागृति को दर्शाती है। यह बेड़ा न केवल मानवीय सहायता, बल्कि एकजुटता, विरोध और नागरिक प्रतिरोध का संदेश लेकर चल रहा है, एक ऐसा संदेश जिससे ज़ायोनी शासन डरता है।

पिछले अनुभवों ने भी यही दिखाया है कि इजरायल मानवीय सहायता को रोकने के लिए हर उपकरण का उपयोग करता है। हाल के महीनों में "मदलीन" और "हंजाले" जहाजों की जब्ती इस दमनकारी नीति का एक उदाहरण है। उन मामलों में भी, शासन ने बल प्रयोग करके गज़ा के लोगों तक सहायता पहुंचने से रोका और एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया। अब ऐसा लगता है कि एक समान परिदृश्य दोहराया जा रहा है, अंतर केवल इतना है कि "अल-समूद" बेड़े को व्यापक समर्थन प्राप्त है और इसने वैश्विक मीडिया का ध्यान आकर्षित किया है।

 

वास्तव में, "अल-समूद" फ़्लोटीला, अंतिम परिणाम की परवाह किए बिना, गज़ा के मुद्दे को एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में लाने और कब्जाधारी शासन के वास्तविक चेहरे को उजागर करने में सफल रहा है।

 

निश्चित रूप से, इजरायल की "अल-समूद" बेड़े के खिलाफ धमकी ताकत की स्थिति से नहीं, बल्कि कमजोरी और डर की स्थिति से आती है। एक शासन जो एक घिरे हुए क्षेत्र में भोजन और दवा ले जाने वाले कुछ जहाजों के प्रवेश से डरता है, ने दिखा दिया है कि उसने अपनी वैधता मानवाधिकारों पर नहीं, बल्कि बल और दमन पर स्थापित की है। "अल-समूद" बेड़ा, अपने अभियान के माध्यम से, न केवल गज़ा में मानवीय सहायता पहुंचा रहा है, बल्कि वैश्विक विवेक को जगा रहा है और पीड़ितों की आवाज दुनिया तक पहुंचा रहा है। यह आंदोलन, अंतिम परिणाम की परवाह किए बिना, कब्जे और अत्याचार के खिलाफ वैश्विक नागरिक प्रतिरोध के इतिहास में एक चमकदार बिंदु होगा। (AK)

 

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