Sep २५, २०१६ ०९:२० Asia/Kolkata
  • 24 सितंबर 2016 को फ़्रांसीसी राष्ट्रपति फ़्रांसवा ओलांद शेल्टर एंड ओरियनटेशन सेंटर देखने के बाद प्रेस कान्फ़्रेंस करते हुए
    24 सितंबर 2016 को फ़्रांसीसी राष्ट्रपति फ़्रांसवा ओलांद शेल्टर एंड ओरियनटेशन सेंटर देखने के बाद प्रेस कान्फ़्रेंस करते हुए

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने कैले शहर में स्थित शरणार्थी शिविर को ख़त्म करने और इस देश में इस तरह के किसी भी प्रतिष्ठान की स्थापना की योजना पर रोक लगाने का संकल्प लिया है।

फ़्रांसवा ओलांद ने कैले के निकट स्थित ‘जंगल’ के नाम से कुख्यात कैंप के दौरे पर जाने से दो दिन पहले शनिवार को यह बात कही। इस कैंप में 7000 से 10000 के बीच शरणार्थी रहते हैं। फ़्रांसीसी राष्ट्रपति के इस क़दम से जंगल कैंप से कम से कम 1000 नाबालिग़ बच्चों को अपना प्रबंध ख़ुद करना पड़ेगा।

उन्होंने यह कहते हुए, “फ्रांस में कोई कैंप नहीं होगा” संकल्प लिया कि इस कैंप को पूरी तरह से ख़त्म कर देंगे और शरणार्थियों के लिए देश में ओरियनटेशन और रिसेप्शन सेंटर बनाए जाएंगे।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति ने कहा कि जो लोग शरण के अधिकार के लिए अर्ज़ी दाख़िल करेंगे हम उनका मानवीय व सम्मानीय सत्कार करेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिन लोगों के शरण का आवेदन क़ुबूल नहीं होगा उन्हें देश से बाहर जाना होगा। यह वे नियम हैं जिसे वे लोग जानते हैं।

फ़्रांसवा ओलांद ने कहा कि उनका देश 2016 के अंत तक अतिरिक्त 80000 शरणार्थियों को जगह देगा।

कैले शरणार्थी कैंप (फ़ाइल फ़ोटो)

 

इस बीच यूरोप में शरणार्थियों के प्रवेश को सीमित करने के उद्देश्य से कई यूरोपीय देशों के राष्ट्राध्यक्षों की ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में शिखर बैठक हुयी। यह बैठक ऑस्ट्रिया के चांसलर क्रिस्टियर कर्न ने बुलायी थी जिसमें जर्मनी, यूनान और हंग्री सहित दस देशों के नेताओं ने भाग लिया। इस बैठक के बाद हंग्री के प्रधान मंत्री विक्टर ओर्बन ने यह सुझाव दिया कि लीबिया के तट पर शरणार्थियों के लिए बड़ा शहर बनाया जाए जिसका लक्ष्य अफ़्रीक़ी देशों से आने वाले शरणार्थियों के लिए प्रॉसेसिंग करना होगा।

ज्ञात रहे इन दिनों अफ़्रीक़ा और मध्यपूर्व के संकटग्रस्त क्षेत्रों में ख़ास तौर पर सीरिया से शरणार्थी बड़ी संख्या में यूरोप जा रहे हैं जो यूरोप के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है।

बहुत से पर्यवेक्षक पलायन की इस प्रक्रिया के लिए यूरोप के शक्तिशाली देशों को ज़िम्मेदार मानते हैं। उनका कहना कि यूरोपीय शक्तियों की नीतियों के कारण हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में आतंकवाद और युद्ध की आग भड़की है, जिसके नतीजे में लोग घर छोड़ कर जाने पर मजबूर हैं।

 

 

 

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