तेल की मंडियां अलजीरिया बैठक के परिणाम की प्रतीक्षा में
ओपेक के सदस्य व तेल पैदा करने वाले अन्य बड़े देश, 26 से 28 सितम्बर तक अलजीरिया में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा सम्मेलन के अवसर पर एक बैठक आयोजित करेंगे।
अलजीरिया सम्मेलन के अवसर पर समाचारिक सूत्रों ने बताया है कि सऊदी अरब ने तेल की पैदावार में कमी के लिए अपनी तैयारी की घोषणा की है लेकिन इसके लिए यह शर्त रखी है कि ईरान भी अपनी तेल की पैदावार को न बढ़ाए। गत जून में तेल की मांग में वृद्धि के बाद सऊदी अरब ने अपने तेल का उत्पादन बढ़ा दिया था और जुलाई में उसकी तेल की पैदावार एक करोड़ साढ़े छः लाख बैरल प्रति दिन के रिकार्ड आंकड़े तक पहुंच गई थी लेकिन फिर अगस्त में उसमें कुछ कमी आ गई। सऊदी अरब ने जनवरी से लेकर मई के दौरान औसतन एक करोड़ दो लाख बैरल प्रति दिन तेल का उत्पादन किया जिसके चलते तेल के मूल्य में काफ़ी गिरावट आई। जून 2014 में प्रति बैरल तेल की क़ीमत 115 डाॅलर थी जो अब घट कर 50 से 30 डाॅलर के बीच आ गई है। इस समय तेल पैदा करने वाले बहुत से देशों को आर्थिक संकट का सामना है और रियाज़ तथा फ़ार्स की खाड़ी में उसके घटक भी अपने ख़र्चों को कम करने पर विवश हुए हैं।
अलजीरिया में तेल उत्पादक देशों की अनौपचारिक बैठक एक प्रकार से इस प्रकार की चुनौतियों से निपटने का एक प्रयास है लेकिन एेसा लगता नहीं कि सभी देश एक नया फ़ैसला करने के लिए तैयार हैं और ओपेक में अब भी अलग- अलग स्वर सुनाई देते हैं। आज हर कोई यही सवाल पूछता हुआ नज़र आता है कि ओपेक ने अपने तेल की पैदावार में बढ़ोतरी क्यों की? और स्वाभाविक रूप से इस सवाल का जवाब सऊदी अरब को ही देना चाहिए। उसने ईरान व रूस की अर्थ व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाने के लिए तेल के उत्पादन में अंधाधुंध वृद्धि कर दी थी और उसका ख़मियाज़ा आज सबसे अधिक उसी को भुगतना पड़ रहा है। अलबत्ता घाटे को जहां पर भी रोक दिया जाए, बेहतर होता है इस लिए तेल उत्पादक देशों को अलजीरिया बैठक में इसके लिए गंभीर रूप से क़दम उठाना चाहिए, लेकिन क्या ओपेक के सदस्य देश इसके लिए तैयार हैं? यह एक बुनियादी सवाल है जिसका जवाब कुछ ही दिन में सामने आ जाएगा। (HN)