फ़्रांस, तुर्की के बढ़ते प्रभाव से इतना अधिक परेशान क्यों है?
कुछ साल पहले तक पर्यवेक्षक तुर्की और फ्रांस के बीच सहयोग को कूटनीतिक की एक बेहतर मिसाल बता रहे थे, लेकिन अब हर दूसरे दिन फ्रांसीसी अधिकारी, भूमध्य सागर और लीबिया में तुर्की की नीतियों की निंदा करते हुए नज़र आ रहे हैं।
ऐसा क्यों है?
विश्लेषकों का कहना है कि तुर्की, अपने पर फैला रहा है और यह बात फ़्रांस ही क्या किसी भी यूरोपीय देश को पसंद नहीं है।
जब आप किसी भी तुर्क अधिकारी से फ़्रांस के क्रोध के बारे में सवाल करेंगे तो वह तुरंत, भूमध्य सागर और लीबिया में अंकारा की नीतियों का उल्लेख करेगा। इसके लिए वह ऐसे किसी बच्चे की मिसाल देते हैं, जिसका किसी ने खिलौना छीन लिया हो या वह खो गया हो।
फ़्रांस के ग़ुस्से का कारण, केवल लीबिया नहीं, बल्कि सीरिया भी है। पिछले साल जब अंकारा ने उत्तरी सीरिया में अमरीकी समर्थन प्राप्त कुर्द मिलिशिया वाईपीजी के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान शुरू किया तो फ़्रांस ने इसका बढ़चढ़कर विरोध किया।
हालांकि इससे पहले यही फ़्रांस, दुनिया भर से तुर्की के रास्ते सीरिया में दाइश के साथ लड़ने के लिए जाने वाले आतंकवादियों के मुद्दे पर न केवल ख़ामोश था, बल्कि अंकारा की सराहना कर रहा था।
सीरिया, पेरिस का पूर्व औपनिवेशिक देश है और वह इस पर अपना निंयत्रण बनाए रखने का प्रयास करता रहा है। उत्तरी सीरिया में तुर्की की ग़ैर क़ानूनी सैन्य कार्यवाही का पेरिस और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने कड़ा विरोध किया।
वहीं तुर्क अधिकारियों का कहना है कि तुर्की-रूस सहमति के कारण, वाईपीजी का समर्थन करने वाला फ़्रांस, नक़्शे से ही ग़ायब हो गया और यही पेरिस की झुंझलाहट का कारण है।
तुर्क अधिकारियों का आरोप है कि अंकारा के साथ अपना हिसाब-किताब बराबर करने के लिए पेरिस, नाटो का इस्तेमाल कर रहा है।
वहीं, रूस का विरोध करने वाला नाटो सदस्य फ़्रांस, लीबिया में रूस के सैन्य हस्तक्षेप का स्वागत कर रहा है।
तुर्की के एक अधिकारी का कहना था कि फ़्रांस ने भूमध्य सागर में रूस के लिए प्रवेश द्वार खोला है। यह अजीब बात है कि फ़्रांस, रूस के साथ सहयोग कर रहा है जिसे नाटो अपने लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझता है।
फ़्रांस का मानना है कि लीबिया में राष्ट्र संघ द्वारा मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय संधि की सरकार (जीएनए) का समर्थन करके तुर्की, लीबिया पर लगे हथियारों के प्रतिबंध का उल्लंघन कर रहा है।
पेरिस ने कई धमकी दी है कि तुर्की, लीबिया में एक ख़तरनाक खेल में कूद पड़ा है, जिसने इस साल के शुरू में त्रिपोली को पश्चिम समर्थित जनरल ख़लीफ़ा हफ़्तर की फ़ोर्स के 14 महीनों से जारी हमलों से मुक्ति दिलाई थी।
लेकिन सच्चाई यह है कि फ़्रांस, केवल लीबिया में तुर्की के हस्तक्षेप को लेकर क्रोधित नहीं है, बल्कि पेरिस का आरोप है कि अंकारा, फ़्रांसीसी समाज में हस्तक्षेप बढ़ा रहा है।
फ़्रांसीसी अधिकारियों का मानना है कि तुर्की की सत्ताधारी पार्टी एकेपी और मुस्लिम ब्रदरहुड के बीच के रिश्तों से पेरिस असहज महसूस करता है।
सिर्फ़ फ़्रांस ही नहीं, बल्कि अरब जगत में सऊदी अरब, यूएई और मिस्र भी मुस्लिम ब्रदरहुड और तुर्क सरकार के बीच के रिश्तों को अपने लिए गंभीर ख़तरा समझ रहे हैं। यही वजह है कि वह किसी भी तरह तुर्की के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहते हैं। msm