Jul १२, २०१६ १६:०३ Asia/Kolkata

अगर कोई अंतरिक्ष से धरती को देखे तो उसे धरती नीले रंग का पानी से भरा गृह नज़र आएगी।

इस धरती की लगभग 71 फ़ीसद से ज़्यादा सतह पर पानी फैला हुआ है। इसी प्रकार ज़मीन पर लगभग 1अरब 36 करोड़ घन किलोमीटर पानी मौजूद है। ज़मीन पर मौजूद इस पानी का लगभग 97.5 प्रतिशत पानी समुद्रों व खारी झीलों पर आधारित है।

सिर्फ़ 2.5 प्रतिशत पानी मीठा है। इस मीठे पानी का 0.3 प्रतिशत भाग नदियों से हासिल होता है जबकि मीठे पानी का 30.8 प्रतिशत भाग भूमिगत स्रोत पर आधारित है। इसी प्रकार इस मीठे पानी का 68.9 फ़ीसद पानी ग्लेशियर और पहाड़ों पर हमेशा जमी रहने वाली बर्फ़ पर आधारित है। इसलिए पानी के सीमित स्रोतों के मद्देनज़र, उसे जीवन का बहुत ही अहम तत्व समझना चाहिए जो धरती के सभी प्राणियों के लिए महत्व की दृष्टि से हवा के बाद दूसरे स्थान पर है। पानी का इंसान के स्वास्थ्य, जीवन, उसकी आबादी के बढ़ने-घटने में विभिन्न प्रकार से योगदान है। पानी देशों के आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक विकास में मदद करता है।

 

संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने ‘जीवन के लिए पानी के दस साल के कार्यक्रम का निष्कर्ष’ शीर्षक के तहत ताजिकिस्तान की राजधानी दोशंबा में जून 2015 के शुरु में आयोजित कान्फ़्रेंस के उद्घाटन भाषण में, इंसान के जीवन में पानी की अहमियत का उल्लेख किया। उन्होंने कहा, “पानी जीवन है, पानी स्वास्थ्य है, पानी मानवी प्रतिष्ठा है। पानी इंसान का अधिकार है। हमारे अस्तित्व के लिए पानी से ज़्यादा महत्वपूर्ण कोई चीज़ नहीं है।”

        

सच्चाई भी यही है ज़मीन पर जीवन को बाक़ी रखने के ज़रूरी स्रोतों में पानी भी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार, हर इंसान को हर दिन 20 से 50 लीटर स्वच्छ पानी की ज़रूरत है जिसे वह पीने, खाना पकाने और सफ़ाई के लिए इस्तेमाल करे। किन्तु इस समय दुनिया में 1 अरब लोगों की या दूसरे शब्दों में से हर सात में से एक व्यक्ति की स्वच्छ पानी तक स्थाई रूप से पहुंच नहीं है। दुनिया में हर दिन पांच साल से कम उम्र के 5000 बच्चों की दूषित पानी व बुरी स्वास्थ्य स्थिति के कारण मौत हो जाती है। प्रदूषण के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चेतावनियां दर्शाती हैं कि दुनिया के 46 देशों की 2.7 अरब से ज़्यादा आबादी पानी की कमी के संकट का सामना कर रही है।

 

 इस संकट का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। दुनिया के कुछ क्षेत्रों में पानी की कमी का संकट इतना ख़तरनाक है कि इन क्षेत्रों के लोग जब सुबह उठते हैं तो उनकी सबसे पहली चिंता किसी तरह स्वच्छ व पीने योग्य पानी की प्राप्ति होती है। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, जिसके कारण पानी, बर्फ़ जैसी आसमान से मिलने वाली चीज़ों के मिलने की प्रक्रिया बदल गयी है, पानी की कमी का संकट और गहरा सकता है।

 

 हर अगले साल इंसान अधिक से अधिक प्यासा होता जाएगा और कृषि व उद्योग के लिए पानी की मांग बढ़ती जाएगी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के अनुसार, अगले 10 साल में दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में 1.8 अरब लोग पानी के सीमित स्रोत के साथ जीवन बिताने पर मजबूर होंगे कि इसमें से 2 तिहाई लोगों को तो पानी की भीषण कमी के संकट का सामना होगा। 

   

पानी में कमी के कारण दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में खाद्य पदार्थ व ऊर्जा के उत्पादन में कमी आएगी। इसके नतीजे में सरकारों के सामने चुनौतियां बढ़ जाएंगी। पानी के बारे में अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञ एलेक्सांद्र कोस्टवा ने अभी हाल में ‘वॉटर पॉलिटिक्स’ नामक मैग्ज़ीन में इस सच्चाई की ओर इशारा करते हुए लिखा, “पानी की कमी के कारण भविष्य में दुनिया में आर्थिक विकास प्रभावित होगा और बहुत सी राजनैतिक अस्थिरता व चुनौतियों को जन्म देगा। जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी का संकट और हर नए साल उसका प्रभाव बढ़ता जाएगा। जीवन के लिए ज़रूरी पदार्थ इतना अहम है कि तेल का स्थान भी ले सकता है।

 

2025 तक दुनिया की आधी से ज़्यादा आबादी को पीने के पानी की कमी का सामना होगा जबकि 2050 तक दुनिया की 75 फ़ीसद आबादी को पीने के पानी के संकट का सामना होगा। कुछ विशेषज्ञ पानी को 21वीं सदी का तेल कह रहे हैं। शायद यह कहना पूरी तरह सही न हो किन्तु एक बात स्पष्ट है कि भविष्य में पानी तक पहुंच का दुनिया में आर्थिक विकास व सरकारों की राजनीति में निर्णायक रोल होगा।”

 

इससे पहले फ़ॉरेन पॉलिसी मैग्ज़ीन में समीक्षक  ने अपने लेख में जलवायु परिवर्तन और पानी की समस्या को विभिन्न राष्ट्रों के सामने आगामी संकट बताते हुए लिखा, “आतंकवादी गुट दाइश का विषय भूल जाइये। अगला संकट पानी की कमी का संकट है जिसके कारण देश आपस में एक दूसरे से लड़ेंगे। बहुत सी समस्याओं के कारण विभिन्न देशों के बीच विवाद व झड़प हुयी हैं किन्तु निकट भविष्य जिस समस्या के कारण सरकारों के बीव तनाव बढ़ जाएगा वह पानी की कमी का संकट है। इस संकट के कारण संभव है नई जंगों की आग भड़क उठे।”

शेन हैरिस ने अपने लेख में एक स्थान पर पूर्वी अफ़्रीक़ा में पानी की कमी के संकट का उल्लेख करते हुए लिखा है, “इस देश में सूखे के कारण सोमालिया के विभिन्न क़बीलों के बीच ख़तरनाक विवाद ने सिर उठाया।” साक्ष्यों से पता चलता है कि पानी के विषय पर तनाव व मतभेद शुरु हो चुका हैं। मिसाल के तौर पर 2 साल पहले मिस्र और इथियोपिया में नील नदी के पानी के बटवारे को लेकर इतने गहरे मतभेद सामने आए कि दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प होने का ख़तरा मंडराने लगा था। जॉर्डन की सरकार के सामने पानी की कमी की समस्या का सामना है। जॉर्डन की सरकार ने सचेत किया है कि पानी के लिए जंग हो सकती है। रिपोर्टों से पता चलता है कि ज़ायोनी शासन फ़िलिस्तीनियों की तुलना में तीन गुना जलस्रोत का इस्तेमाल करता है।

यही कारण है कि पानी के  स्रोत के इस्तेमाल को लेकर स्वशासित फ़िलिस्तीनी प्रशासन और इस्राईल के बीच निरंतर मतभेद बना हुआ है। तुर्की, सीरिया और इराक़ के बीच जलस्रोत के संबंध में मतभेद पाए जाते हैं। हाइड्रोपॉलिटिक के माहिरों का मानना है कि तुर्की द्वारा सीरिया के विरोधियों का समर्थन व बश्शार असद की सरकार को गिराने के लिए प्रयास का एक कारण, दजला और फ़ुरात नदी के पानी के बटवारे को लेकर विवाद है। सीरिया पानी के संबंध में कई बार तुर्की पर दबाव डालने के लिए राजनैतिक हथकंडे अपना चुका है।

इसके अलावा भारत--पाकिस्तान के बीच इंडस नदी के पानी के बटवारे पर मतभेद हैं। चीन, नेपाल, भारत और बांग्लादेश के बीच हिमालिया पर्वत श्रंख्ला से निकलने वाली नदियों को अपने अपने नाम करने के विषय पर मतभेद हैं। इनमें से हर एक देश इन नदियों से ज़्यादा से ज़्यादा पानी हासिल करना चाहता है। इन नदियों से लगभग 50 करोड़  लोगों की पानी की ज़रूरत पूरी होती है।

 

मध्य एशिया में उज़्बेकिस्तान, क़ज़्ज़ाक़िस्तान, क़िरक़ीज़िस्तान और ताजिकिस्तान के बीच आपस में आमू दरया और सीर दरया के पानी के बटवारे को लेकर विवाद है। इसी प्रकार अरल सी में गिरने वाली कुछ और नदियों के पानी के बटवारे पर विवाद है।

 

दक्षिण अमरीका में अर्जन्टिना और उरुग्वे के बीच पलात नदी के पानी के बटवारे को लेकर विवाद इतना गहरा गया है कि दोनों देश  इस विषय को लेकर हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय पहुंच गए। यह ऐसी स्थिति में है कि अमरीका और मैक्सिको के बीच रियो ग्रैन्ड और कोलोराडो  नदियों के पानी के बटवारे को लेकर मतभेद बाक़ी हैं।

अफ़्रीक़ा महाद्वीप में बोट्स्वाना, मोज़ाम्बिक, ज़ाम्बिया और ज़िम्बाब्वे के बीच एक संयुक्त नदी के पानी को लेकर विवाद है। इसी प्रकार सेनेगल और मोरिटानिया के बीच दोनों देशों के संयुक्त जल स्रोत पर नियंत्रण को लेकर विवाद है।  

        

ईरानी राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी ने 2014 में न्यूयॉर्क में जलवायु परिवर्तन के संबंध में शिखर बैठक के दौरान अपने भाषण में इस वास्तविकता पर बल देते हुए कहा, “हर वह स्रोत जिसकी इंसान को ज़रूरत है, अगर उसमें कमी आएगी तो यह स्थिति विवाद, झड़प या जंग का कारण बन सकती है।” इस सच्चाई का इंकार नहीं किया जा सकता।

 

इसलिए भविष्य में दुनिया के सामने सबसे अहम विषय पानी की कमी का विषय होगा। यही कारण है कि इस क्षेत्र में कंपनियां पूंजिनिवेश कर रही हैं। मिसाल के तौर पर ब्रिटेन के सामने पानी की कमी का संकट है और वह ऐसी पाइप लाइन बिछाने के बारे में सोच रहा है जिसके ज़रिए स्कॉटलैंड से इंग्लैंड पानी ला सके। तुर्की भी इसी तरह की योजना रखता है जिसके तहत वह मध्य यूरोप और साइप्रस, यूनान, मिस्र और माल्टा को पानी बेचने के बारे में सोच रहा है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में उन देशों की स्थिति बेहतर होगी जो पानी की आपूर्ति अपने बल पर कर सकते हैं। जो देश आने वाले दशकों में पानी को एक व्यापारिक वस्तु के रूप में इस्तेमाल करेंगे वे इस ईश्वरीय अनुकंपा से अधिक से अधिक फ़ायदा कमाएंगे। अलबत्ता इस संदर्भ में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दिखायी है।

 

उनका कहना है कि हवा की तरह पानी के लिए भी किसी तरह का पैसा नहीं लिया जाना चाहिए। बहुत सी सरकारें भी इस बात पर बल देती हैं कि पानी इंसान के मूल अधिकार में है। इसके संदर्भ में संपत्ति की तरह दृष्टिकोण नहीं अपनाया जा सकता क्योंकि पानी से रोकना, जीवन के अधिकार से वंचित करने जैसा है।