Feb १६, २०१६ १५:१६ Asia/Kolkata
  • एक परिवार में मां को बहुत अधिक सम्मान हासिल है।
    एक परिवार में मां को बहुत अधिक सम्मान हासिल है।

इस्लाम धर्म ने भी बच्चों की परवरिश में मोहब्बत और प्रेम की भूमिका को बहुत अहम क़रार दिया है।

हमने उल्लेख किया था कि बच्चों की सही परवरिश में जो सबसे अधिक प्रभावी शैली है वह है उनके साथ प्यारभरा और स्नेहपूर्ण व्यवहार। बच्चों को दिया गया प्यार और स्नेह हर उस चीज़ से अधिक मूल्यवान होता है कि जो एक परिवार उन्हें उपलब्ध करा सकता है। जीवन केवल कड़े और सख़्त सिद्धांतों पर आगे नहीं बढ़ सकता। जीवन में रंग भरने और उसमें आत्मा डालने के लिए प्यार की ऊष्मा ज़रूरी है। आदेश और सिद्धांतों वाला परिवार कि जहां प्रेम का अभाव हो लक्ष्यहीन है। परिवार के सदस्यों को अगर कोई चीज़ आपस में जोड़कर रख सकती है तो भावनात्मक रिश्ता और प्यार है।

 

इस्लाम धर्म ने भी बच्चों की परवरिश में मोहब्बत और प्रेम की भूमिका को बहुत अहम क़रार दिया है।

 

घर में प्रेम और स्नेह का वातावरण उत्पन्न करने में मां और बाप दोनों की ही भूमिका महत्वपूर्ण होती है, लेकिन बच्चों पर दोनों के प्रेम व स्नेह और भावनात्मक रिश्तों का अलग अलग प्रभाव होता है। दोनों में से किसी एक के प्रेम व स्नेह के अभाव की किसी भी चीज़ से क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती और यह ख़ुद भी एक दूसरे का विकल्प नहीं बन सकते।

शिशु अपने जीवन में जिस चीज़ से सबसे पहले परिचित होता है उस हस्ती का नाम है मां। मां ही वह हस्ती है कि जो उसे जीवन और विश्व से परिचित कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जीवन के बारे में आगे चलकर बच्चे का जो दृष्टिकोण बनेगा वह काफ़ी हद तक मां पर ही निर्भर करता है। बच्चे का व्यवहार, धर्म और समाज के प्रति उसका दृष्टिकोण और जीवन के बारे में उसकी धारणा मां के व्यक्तित्व पर ही निर्भर करती है। हालांकि बड़े होकर निश्चित रूप से उसके दृष्टिकोणों में परिवर्तन आता है और जीवन के अनेक आयामों के प्रति वह ख़ुद अपना दृष्टिकोण क़ायम करता है, लेकिन जीवन के आरम्भिक वर्षों में उसके व्यक्तित्व पर मां के व्यक्तित्व और दृष्टिकोणों की जो छाप पड़ती है, उसका असर अतिंम सांसों तक उसके मन पर रहता है।

 

 

चूंकि मां बच्चे के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण हस्ती होती है, इसलिए उसकी दृष्टि में वह एक पवित्र हस्ती होती है। उसका आचरण और व्यवहार बच्चे के लिए आदर्श होता है। कहा जाता है कि एक मां 100 प्रशिक्षकों से बेहतर होती है। उसकी भावनात्मक ख़ूबियां और कमज़ोरियां बच्चे के लिए उदाहरण होती हैं जिसका वह पालन करता है।

एक परिवार में मां को बहुत अधिक सम्मान हासिल है। बच्चों को मां का सम्मान और उसके आदेशों का पालन करना चाहिए। ईश्वरीय पुस्तक क़ुरान ने मां और बाप के अधिकारों का उल्लेख किया है। हालांकि अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम ने मां के साथ भलाई और उसकी सेवा करने की अत्यधिक सिफ़ारिश की है, यहां तक कि बाप से भी अधिक। एक बार एक व्यक्ति पैग़म्बरे इस्लाम से उपदेश लेने आया कि उसे किस के साथ भलाई करना चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उससे कहा कि अपनी मां की सेवा करो और उसके साथ भलाई करो। उस व्यक्ति ने तीन बार यही सवाल किया और पैग़म्बरे इस्लाम ने यही जवाब दिया। चौथी बार पैग़म्बरे इस्लाम ने उससे पिता के साथ भलाई करने के लिए कहा।

मां के सम्मान को ज़ाहिर करने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स) की यह प्रसिद्ध हदीस ही काफ़ी है कि मांओं के क़दमों के नीचे जन्नत है। एक महिला पैग़म्बरे इस्लाम (स) की सेवा में उपस्थित हुई और पूछा कि क्यों महिलाओं के लिए जेहाद अनिवार्य नहीं किया गया। उसने कहा कि उसे इस बात की चिंता है कि महिलाओं को ईश्वर के मार्ग में लड़कर शहीद होने जैसे महान पुरस्कार की प्राप्ति से क्यों वंचित रखा गया है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, एक महिला उस समय से ईश्वर के मार्ग में जेहाद शुरू करती है कि जब वह गर्भवती होती है, शिशु को जन्म देती है, और उसका यह जेहाद शिशु को दूध पिलाने तक जारी रहता है। अगर इस दौरान उसकी मौत हो जाएगी तो उसे शहीद का स्थान प्राप्त होगा। एक संस्कारी बच्चे की परवरिश और उसका पालन पोषण अति पुण्य कार्यों में से एक है। यह ऐसा पुण्य है कि जो इंसान की मौत के बाद भी जारी रहता है।

सूरए लुक़मान की 14वीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “और हमने इंसान से अपने मां-बाप का अधिकार पहचानने की सिफ़ारिश की है, उसकी मां ने कठिनाईयों पर कठिनाईयां सहन करके उसे अपने पेट में रखा और दो साल तक उसे दूध पिलाया। मेरा और अपने मां-बाप का आभार व्यक्त कर।

सूरए एहक़ाफ़ की 15वीं आयत में उल्लेख है कि हमने इंसान को उसके अपने मां-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करने की सिफ़ारिश की, उसकी मां ने बहुत ही कठिनाईयां सहन करके उसे पेट में रखा और बहुत ही पीड़ा सहन करके उसे जन्म दिया।

दोनों ही आयतों में हालांकि मां और बाप दोनों का उल्लेख है, लेकिन मां की महान ज़िम्मेदारी और विशेषता का मुख्य रूप से उल्लेख किया गया है। इन विशेषताओं के दृष्टिगत इंसान प्राकृतिक रूप से मां से अधिक भावनात्मक लगाव रखता है और उसके व्यक्तित्व पर मां का प्रभाव भी अधिक होता है।

 

 

हाल ही में शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के चित्रों से यह पता लगाया है कि मां की ममता की छाया में बड़े होने वाले बच्चों में हिप्पोकैम्पस या मानव के मस्तिष्क का एक प्रमुख भाग विकसित होता है। जिन बच्चों को मां की ममता प्राप्त होती है उनका हिप्पोकैम्पस दूसरे बच्चों की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक विकसित होता है। शोधों से अच्छी एवं व्यापक याददाश्त और स्वस्थ हिप्पोकैम्पस के बीच संबंध साबित हुआ है।

मां की ममता और उसका प्यार अनुदाहरणीय है। संतान बच्ची हो या बूढ़ी, सवस्थ हो या विकलांग, अवज्ञाकारी हो या आज्ञाकारी मां को बेहद प्यारी होती है। मां का प्यार घर और परिवार में ख़ुशियां लाता है और बच्चे मां के कारण ख़ुद को घर से जुड़ा हुआ पाते हैं।

एक मां अगर अपनी भूमिका नहीं निभाती है तो वह बच्चों पर बहुत ही घातक प्रभाव छोड़ती है। अगर एक मां अपने बच्चों को आवश्यकता अनुसार प्यार और समय उपलब्ध नहीं करा रही है तो बच्चा अपनी पूरी क्षमताओं के साथ बड़ा नहीं होगा। इसलिए मां को चाहिए कि वह ममता और स्नेह का सहारा लेकर अपने बच्चों को जीवन की ऊंच नींच से अवगत कराए। लेकिन आधुनिक काल में मां के प्राकृतिक स्वरूप में बड़े बदलाव लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक समाज में उसके सामने नौकरी और कैरियर को घर और परिवार से कहीं अधिक महत्वपूर्ण बनाकर पेश किया जा रहा है। विशेष रूप से पश्चिमी समाज में बड़ी संख्या में असफ़ल वैवाहिक जीवन और तलाक़ की दर अधिक होने के दृष्टिगत अधिकांश माताओं के कांधों पर जहां बच्चों के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी होती है, वहीं उनपर घर से बाहर जाकर नौकरी करने और आय अर्जित करने का दबाव भी होता है। एक समय में यह समस्त ज़िम्मेदारियां संभालना न केवल महिलाओं बल्कि किसी भी इंसान के लिए कठिन है। इसलिए अगर हम अपने बच्चों और आने वाली नस्लों की सही परवरिश करना चाहते हैं और एक ख़ुशहाल परिवार की मनोकामना रखते हैं तो परिवार में मां और बाप को अपनी अपनी प्राकृतिक ज़िम्मेदारियां निभानी होंगी।

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