Jul १९, २०१६ १५:४५ Asia/Kolkata

बच्चों को दिया गया प्यार और स्नेह हर उस चीज़ से अधिक मूल्यवान होता है कि जो एक परिवार उन्हें उपलब्ध करा सकता है।

बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के विशेषज्ञों का कहना है कि प्यार और स्नेह बच्चों को तो प्रभावित करता ही है, बड़ों को भी उसी तरह प्रभावित करता है। यहां तक कि जानवरों और वनस्पतियों में भी मोहब्ब्त का उल्लेखनीय प्रभाव होता है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रचार प्रसार में पैग़म्बरे इस्लाम की इतनी महान सफ़लता का रहस्य भी मोहब्बत और सदाचरण में छुपा हुआ है। प्रेम और स्नेह का सर्वश्रेष्ठ रूप हमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आचरण में देखने को मिलता है।

 

इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम से सबसे अधिक लोग उनके सदाचरण और सच्चाई से प्रभावित होते थे। इसलिए हमें बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और परवरिश में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस आचरण का अनुसरण करना चाहिए ताकि अपने उद्देश्य में सफलता को सुनिश्चित बना सकें।

 

बच्चों की सही परवरिश में मां की ममता और उसके स्नेह का उल्लेख करते हुए हमने कहा था कि इंसान इस दुनिया में सबसे अधिक अपनी मां से निकट होता है और उसके व्यक्तित्व पर सबसे गहरा प्रभाव भी मां का ही होता है। इस बीच बच्चों के जीवन में बाप के प्रेम और स्नेह की अपनी विशेष भूमिका होती है। मां की मोहब्बत अगर परिवार के सदस्यों को एक माला की भांति एक दूसरे से जोड़े रखती है तो बाप का प्रेम उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है।

     

बच्चों के व्यक्तित्व पर मां और बाप दोनों का ही गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन बच्चों पर दोनों के प्रेम व स्नेह और भावनात्मक रिश्तों का अलग अलग प्रभाव होता है। दोनों में से किसी एक के प्रेम व स्नेह के अभाव की किसी भी चीज़ से क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती और यह ख़ुद भी एक दूसरे का विकल्प नहीं बन सकते।

 

बच्चों की सही परवरिश में बाप की भूमिका भी उतनी ही अहम होती है कि जितनी एक मां की भूमिका अहम होती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के भावनात्मक और बौद्धिक विकास में बाप का भूमिका अद्वितीय होती है। वर्ल्ड ऑफ़ चाइल्ड साइकॉलॉजी पत्रिका में एरिक एरिक्सन ने एक लेख में लिखा है कि मां और बाप की मोहब्बत में गुणात्मक अंतर होता है। बच्चों की परवरिश में बाप की भूमिका का कोई विकल्प नहीं है।

 

बाप का अस्तित्व बच्चों को एक विशेष प्रकार के एहसास का अनुभव कराता है। मनोवैज्ञानिक डा. काईल प्रयूट का कहना है कि बाप बच्चों के साथ अलग प्रकार से संबंध स्थापित करता है और उन्हें प्रभावित करता है। जन्म के आठवें सप्ताह में शिशु मां और बाप के प्यार और स्नेह के बीच अंतर कर सकता है। यह विविधता, अपने आप में, बच्चों को पारस्परिक प्रभाव और रिश्तों का समृद्ध अनुभव प्रदान करती है। बच्चे इससे अवगत हों या न हों, लेकिन वे अपने इस अनुभव से यह बात सीख रहे होते हैं कि परुष और महिलाएं जीवन की सच्चाईयों का विभिन्न तरीक़ों से सामना करते हैं। उनके विकास के लिए यह समझ और अनुभव बहुत महत्वपूर्ण है।

 

बाप बच्चों के साथ अलग ढंग से खेलते और उन्हें प्रभावित करते हैं। वे उन्हें गुदगुदी करते हैं, उनके साथ कुश्ती लड़ते हैं। वे अपने बच्चों को हवा में उछालते हैं और खेलते हुए उन्हें डराने के लिए उनका पीछा करते हैं।

 

पिता के मामलों के विशेषज्ञ जॉन स्नेरी का कहना है कि जो बच्चे बाप के साथ बड़े होते हैं, वे सीखते हैं कि शारीरिक हिंसा अस्वीकार्य है। जब उनसे कहा जाता है कि “बस अब बहुत हो गया” तो वे आत्म निंयत्रण सीखते हैं। लड़के और लड़कियां दोनों ही आक्रमता और विनम्रता के बीच सही संतुलन बनाना सीखते हैं।

 

बाप का प्यार बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करता है। आप किसी मैदान या पार्क में जाकर मां-बाप की बातों पर ध्यान दीजिए। आप सुनेंगे कि बाप, थोड़ा और तेज़ झूला झूलने या थोड़ा और ऊपर चढ़ने, साइकल थोड़ी और तेज़ चलाने, बॉल को थोड़ा और तेज़ फ़ेंकने के लिए कह रहे होंगे, जबकि माताएं हमेशा बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित होंगी।

 

बच्चों की देखभाल और परवरिश की इन दोनों शैलियों में से केवल कोई भी एक शैली स्वयं हानिकारक हो सकती है। पहली शैली के बारे में कहा जा सकता है कि इसमें परिणामों की चिंता किए बिना जोखिम उठाने के लिए प्रेरणा दिलाना है। दूसरी शैली में जोखिम उठाने से रोकना है, जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों में स्वाधीनता और आत्मविश्वास की भावना का अभाव हो सकता है। लेकिन दोनों शैलियां अगर एक साथ अपनायी जायेंगी तो बच्चे सुरक्षित रहने के साथ साथ अपने अनुभव में वृद्धि करेंगे और उनमें आत्मविश्वास की भावना मज़बूत होगी।

 

बाप बच्चों से अलग ढंग से संपर्क स्थापित करते हैं। शोध से पता चला है कि बच्चों के साथ बातचीत करते समय, मां और बाप दोनों के अंदाज़ में अंतर होता है। माताएं सरल शब्दों का प्रयोग करती हैं और बच्चों के स्तर की बात करती हैं। बाप बच्चों से बात करते समय अपनी बात में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं करते। मां की शैली तुरंत संपर्क स्थापित करने की क्षमता का विकास करती है, जबकि बाप की शैली बच्चे के सामने यह चुनौती पेश करती है कि वह अपनी शब्दावली और भाषाई कौशल में विस्तार करे।

 

पिता एक अलग ढंग से अनुशासन सिखाता है। शिक्षा विशेषज्ञ कैरौल गिलिगन का कहना है कि बाप, न्याय, पारदर्शिता और क़ानूनों पर आधारित ज़िम्मेदारियों पर बल देते हैं, जबकि माताएं भावनात्मकता पर आधारित हमदर्दी, सुरक्षा और सहयोग पर ज़ोर देती हैं। बाप व्यवस्थित ढंग से और कड़ाई से नियमों को लागू करने पर बल देते हैं और बच्चों को सही और ग़लत के परिणामों की शिक्षा देते हैं, जबकि मां दया, हमदर्दी और आशा की भावना उत्पन्न करती है। यह शैलियां भी एक दूसरे से मिलकर ही प्रभावी होती हैं और पूर्ण संतुलन स्थापित करती हैं।

 

बाप बच्चों को असली दुनिया में प्रवेश करने के लिए तैयार करते हैं। बच्चे सीखते हैं कि बाप के विचार और व्यवहार के दूरगामी परिणाम होते हैं। उदाहरण स्वरूप, मां की तुलना में बाप बच्चों से अधिक स्पष्टता से कह देते हैं कि वे अगर दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करेंगे तो बच्चे उनके साथ खेलना पसंद नहीं करेंगे। अगर वे स्कूल में अच्छी तरह पढ़ाई नहीं करेंगे तो उन्हें अच्छे कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा। इस प्रकार, बाप बच्चों को वास्तविकता का सामना करने और दुनिया की कठिनाईयों से रूबरू होने के लिए तैयार करता है।

 

जो लड़के बाप की छत्रछाया में बड़े होते हैं वे तुलनात्मक रूप से कम हिंसक होते हैं। वे अपने बाप से सीखते हैं कि अपनी शक्ति और बल का सकारात्मक तरीक़े से कैसे प्रयोग करें। समाज शास्त्री डेविड पोपीनोए का कहना है कि बाप, घर में एक पुरुष के अस्तित्व से कहीं अधिक अपनी उपस्थिति का आभास कराता है। बाप के अपने बच्चों के साथ रहने और उनकी परवरिश में अपनी भूमिका निभाने से बच्चों पर जो लाभदायक सार्थक प्रभाव पड़ता है उसका स्थान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं ले सकता।

घर परिवार और बच्चे 14

बच्चों को दिया गया प्यार और स्नेह हर उस चीज़ से अधिक मूल्यवान होता है कि जो एक परिवार उन्हें उपलब्ध करा सकता है। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के विशेषज्ञों का कहना है कि प्यार और स्नेह बच्चों को तो प्रभावित करता ही है, बड़ों को भी उसी तरह प्रभावित करता है। यहां तक कि जानवरों और वनस्पतियों में भी मोहब्ब्त का उल्लेखनीय प्रभाव होता है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम के प्रचार प्रसार में पैग़म्बरे इस्लाम की इतनी महान सफ़लता का रहस्य भी मोहब्बत और सदाचरण में छुपा हुआ है। प्रेम और स्नेह का सर्वश्रेष्ठ रूप हमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) के आचरण में देखने को मिलता है।

 

इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम से सबसे अधिक लोग उनके सदाचरण और सच्चाई से प्रभावित होते थे। इसलिए हमें बच्चों की शिक्षा-दीक्षा और परवरिश में पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस आचरण का अनुसरण करना चाहिए ताकि अपने उद्देश्य में सफलता को सुनिश्चित बना सकें।

 

बच्चों की सही परवरिश में मां की ममता और उसके स्नेह का उल्लेख करते हुए हमने कहा था कि इंसान इस दुनिया में सबसे अधिक अपनी मां से निकट होता है और उसके व्यक्तित्व पर सबसे गहरा प्रभाव भी मां का ही होता है। इस बीच बच्चों के जीवन में बाप के प्रेम और स्नेह की अपनी विशेष भूमिका होती है। मां की मोहब्बत अगर परिवार के सदस्यों को एक माला की भांति एक दूसरे से जोड़े रखती है तो बाप का प्रेम उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है।

     

बच्चों के व्यक्तित्व पर मां और बाप दोनों का ही गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन बच्चों पर दोनों के प्रेम व स्नेह और भावनात्मक रिश्तों का अलग अलग प्रभाव होता है। दोनों में से किसी एक के प्रेम व स्नेह के अभाव की किसी भी चीज़ से क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती और यह ख़ुद भी एक दूसरे का विकल्प नहीं बन सकते।

 

बच्चों की सही परवरिश में बाप की भूमिका भी उतनी ही अहम होती है कि जितनी एक मां की भूमिका अहम होती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों के भावनात्मक और बौद्धिक विकास में बाप का भूमिका अद्वितीय होती है। वर्ल्ड ऑफ़ चाइल्ड साइकॉलॉजी पत्रिका में एरिक एरिक्सन ने एक लेख में लिखा है कि मां और बाप की मोहब्बत में गुणात्मक अंतर होता है। बच्चों की परवरिश में बाप की भूमिका का कोई विकल्प नहीं है।

 

बाप का अस्तित्व बच्चों को एक विशेष प्रकार के एहसास का अनुभव कराता है। मनोवैज्ञानिक डा. काईल प्रयूट का कहना है कि बाप बच्चों के साथ अलग प्रकार से संबंध स्थापित करता है और उन्हें प्रभावित करता है। जन्म के आठवें सप्ताह में शिशु मां और बाप के प्यार और स्नेह के बीच अंतर कर सकता है। यह विविधता, अपने आप में, बच्चों को पारस्परिक प्रभाव और रिश्तों का समृद्ध अनुभव प्रदान करती है। बच्चे इससे अवगत हों या न हों, लेकिन वे अपने इस अनुभव से यह बात सीख रहे होते हैं कि परुष और महिलाएं जीवन की सच्चाईयों का विभिन्न तरीक़ों से सामना करते हैं। उनके विकास के लिए यह समझ और अनुभव बहुत महत्वपूर्ण है।

 

बाप बच्चों के साथ अलग ढंग से खेलते और उन्हें प्रभावित करते हैं। वे उन्हें गुदगुदी करते हैं, उनके साथ कुश्ती लड़ते हैं। वे अपने बच्चों को हवा में उछालते हैं और खेलते हुए उन्हें डराने के लिए उनका पीछा करते हैं।

 

पिता के मामलों के विशेषज्ञ जॉन स्नेरी का कहना है कि जो बच्चे बाप के साथ बड़े होते हैं, वे सीखते हैं कि शारीरिक हिंसा अस्वीकार्य है। जब उनसे कहा जाता है कि “बस अब बहुत हो गया” तो वे आत्म निंयत्रण सीखते हैं। लड़के और लड़कियां दोनों ही आक्रमता और विनम्रता के बीच सही संतुलन बनाना सीखते हैं।

 

बाप का प्यार बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करता है। आप किसी मैदान या पार्क में जाकर मां-बाप की बातों पर ध्यान दीजिए। आप सुनेंगे कि बाप, थोड़ा और तेज़ झूला झूलने या थोड़ा और ऊपर चढ़ने, साइकल थोड़ी और तेज़ चलाने, बॉल को थोड़ा और तेज़ फ़ेंकने के लिए कह रहे होंगे, जबकि माताएं हमेशा बच्चों की सुरक्षा के लिए चिंतित होंगी।

 

बच्चों की देखभाल और परवरिश की इन दोनों शैलियों में से केवल कोई भी एक शैली स्वयं हानिकारक हो सकती है। पहली शैली के बारे में कहा जा सकता है कि इसमें परिणामों की चिंता किए बिना जोखिम उठाने के लिए प्रेरणा दिलाना है। दूसरी शैली में जोखिम उठाने से रोकना है, जिसके परिणाम स्वरूप बच्चों में स्वाधीनता और आत्मविश्वास की भावना का अभाव हो सकता है। लेकिन दोनों शैलियां अगर एक साथ अपनायी जायेंगी तो बच्चे सुरक्षित रहने के साथ साथ अपने अनुभव में वृद्धि करेंगे और उनमें आत्मविश्वास की भावना मज़बूत होगी।

 

बाप बच्चों से अलग ढंग से संपर्क स्थापित करते हैं। शोध से पता चला है कि बच्चों के साथ बातचीत करते समय, मां और बाप दोनों के अंदाज़ में अंतर होता है। माताएं सरल शब्दों का प्रयोग करती हैं और बच्चों के स्तर की बात करती हैं। बाप बच्चों से बात करते समय अपनी बात में कोई ख़ास परिवर्तन नहीं करते। मां की शैली तुरंत संपर्क स्थापित करने की क्षमता का विकास करती है, जबकि बाप की शैली बच्चे के सामने यह चुनौती पेश करती है कि वह अपनी शब्दावली और भाषाई कौशल में विस्तार करे।

 

पिता एक अलग ढंग से अनुशासन सिखाता है। शिक्षा विशेषज्ञ कैरौल गिलिगन का कहना है कि बाप, न्याय, पारदर्शिता और क़ानूनों पर आधारित ज़िम्मेदारियों पर बल देते हैं, जबकि माताएं भावनात्मकता पर आधारित हमदर्दी, सुरक्षा और सहयोग पर ज़ोर देती हैं। बाप व्यवस्थित ढंग से और कड़ाई से नियमों को लागू करने पर बल देते हैं और बच्चों को सही और ग़लत के परिणामों की शिक्षा देते हैं, जबकि मां दया, हमदर्दी और आशा की भावना उत्पन्न करती है। यह शैलियां भी एक दूसरे से मिलकर ही प्रभावी होती हैं और पूर्ण संतुलन स्थापित करती हैं।

 

बाप बच्चों को असली दुनिया में प्रवेश करने के लिए तैयार करते हैं। बच्चे सीखते हैं कि बाप के विचार और व्यवहार के दूरगामी परिणाम होते हैं। उदाहरण स्वरूप, मां की तुलना में बाप बच्चों से अधिक स्पष्टता से कह देते हैं कि वे अगर दूसरों के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करेंगे तो बच्चे उनके साथ खेलना पसंद नहीं करेंगे। अगर वे स्कूल में अच्छी तरह पढ़ाई नहीं करेंगे तो उन्हें अच्छे कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिलेगा। इस प्रकार, बाप बच्चों को वास्तविकता का सामना करने और दुनिया की कठिनाईयों से रूबरू होने के लिए तैयार करता है।

 

जो लड़के बाप की छत्रछाया में बड़े होते हैं वे तुलनात्मक रूप से कम हिंसक होते हैं। वे अपने बाप से सीखते हैं कि अपनी शक्ति और बल का सकारात्मक तरीक़े से कैसे प्रयोग करें। समाज शास्त्री डेविड पोपीनोए का कहना है कि बाप, घर में एक पुरुष के अस्तित्व से कहीं अधिक अपनी उपस्थिति का आभास कराता है। बाप के अपने बच्चों के साथ रहने और उनकी परवरिश में अपनी भूमिका निभाने से बच्चों पर जो लाभदायक सार्थक प्रभाव पड़ता है उसका स्थान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं ले सकता।