घर परिवार और बच्चे-१५
एक पिता अपने बच्चों पर परोक्ष रूप से जो महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है, वह है उसके अपनी पत्नी और बच्चों की मां से संबंधों का स्तर और गुणवत्ता।
एक ऐसा पिता कि जिसके अपने बच्चों की मां से संबंध अच्छे होते हैं और बर्ताव अच्छा होता है तो वह अपने बच्चों के साथ अधिक समय बिताता है और उनके बच्चे मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ होते हैं। इसी प्रकार, एक मां कि जो अपने बच्चों के पिता की ओर से मज़बूत रिश्ते का अनुभव करती है, वह एक बेहतर मां की भूमिका निभाती है। वास्तव में दोनों के बीच के संबंधों का बच्चों की परवरिश और उनके विकास पर प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार, वे अधिक ज़िम्मेदारी का एहसास करते हैं, अधिक प्रभावी भूमिका निभाते हैं और अपने शिशु के साथ अधिक आत्मविश्वास के साथ व्यवहार करते हैं। शरारती बच्चों के साथ बर्ताव में वे अधिक आत्मनिर्भर होते हैं और व्यस्क बच्चों को सलाह देने और उनका भावनात्मक समर्थन करने में अधिक आत्मविश्वास का प्रदर्शन करते हैं। मां और बाप के बीच सकारात्मक रिश्तों का एक सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह होता है कि बच्चों के लिए उनका यह व्यवहार आदर्श बन जाता है। जो पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों की मां के साथ सम्मानजनक व्यवहार करते हैं और अपने मतभेदों का तार्किक एवं उचित ढंग से समाधान निकालते हैं तो वे वास्तव में अपने बच्चों को महिलाओं के साथ व्यवहार का सही तरीक़ा सिखाते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि ऐसे वातावरण में बड़े होने वाले बच्चे अधिक सामाजिक होते हैं और वे बचपन से ही अच्छा जीवन व्यतीत करते हैं।
स्कूली बच्चों पर किए गए एक शोध के परिणामों से पता चलता है कि जिन बच्चों के अपने पिता से अच्छे संबंध थे, उनमें अवसाद की संभावना कम पायी गई और झूठ बोलना और दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करना जैसी बुराईयों की संभावना भी अन्य बच्चों की तुलना में कम थी, बल्कि उनमें समाज के हित में काम करने की भावना अधिक थी। इस शोध से यह भी साबित हुआ कि पिता की छत्रछाया में जीवन बिताने वाले लड़कों के स्कूल के व्यवहार में समस्याएं कम पायी गईं और लड़कियों में अधिक आत्म सम्मान देखने में आया। इसके अलावा अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि जो बच्चे अपने पिता के साथ रहते हैं, वे मानसिक और शारीरिक रूप से अधिक स्वस्थ होते हैं। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि पिता अपने बच्चों के विकास और स्वास्थ्य पर शक्तिशाली और सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।
यहां हम पिताओं के लिए विशेषकर ऐसे पिताओं के लिए कि जो बच्चों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते, उनके व्यवहार में परिवर्तन के लिए पांच क़दमों का उल्लेख कर रहे हैं।
पहला क़दम, पिता को अपने बच्चों के पालन पोषण में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। कुछ लोग यह ग़लत धारणा रखते हैं कि यह काम केवल मां का होता है। पिता को चाहिए कि वह अपने बच्चों को आत्म सम्मान सिखाए और उन्हें यह आभास करवाए कि वह उनके लिए प्यारे और महत्वपूर्ण हैं। इससे बच्चों विशेषकर लड़कों को इस बात की ज़रूरत महसूस नहीं होगी कि वे अपने पिता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कुछ अलग हटकर करें।
दूसरा यह है कि पिता को बच्चों के अनुशासन के प्रति सावधानी बरतने की ज़रूरत है। बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए व्यवहारिक रूप से आदर्श पेश करना उन्हें आदेश देने से कहीं अधिक प्रभावी है। शोधकर्ताओं का मानना है कि बच्चों को अनुशासन सिखाना एक कठिन प्रक्रिया है, जो व्यवहारिक आदर्श पेश करके आसान बनाई जा सकती है।
तीसरे यह कि पिताओं को अपने क्रोध, अवसाद, असुरक्षा की भावना और तनाव पर निंयत्रण करना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की स्थिति में पिता अपने बच्चों के साथ दुर्व्यवहार कर सकता है। इस स्थिति पर निंयत्रण करने के लिए पिता को आध्यात्मिक और धार्मिक मूल्यों का सहारा लेना चाहिए।
चौथे यह कि पिता को अपनी पत्नी के साथ संबंधों पर विशेष ध्यान और महत्व देना चाहिए। जैसा कि हमने कहा था जो पति अपनी पत्निय का सम्मान, महत्व और प्यार देता है, वे भी अपने बच्चों के साथ अच्छा बर्ताव करती हैं और उनकी उपेक्षा नहीं करतीं।
अंततः पिताओं को अपने बच्चों को आत्म सम्मान सिखाना चाहिए। बच्चों को बताया जाना चाहिए कि वे किस प्रकार अपना सम्मान करें और निजता को महत्व दें।
बच्चों की सही परवरिश के लिए सबसे प्रभावशाली शैली उनके साथ प्यार और स्नेहपूर्ण व्यवहार है। बच्चों को मोहब्बत और प्यार से जो बात समझाई जा सकती है वह हिंसात्मक व्यवहार और भय उत्पन्न करके नहीं सिखाई जा सकती। अब यहां यह सवाल उठता है कि बच्चों के साथ प्यार और स्नेह प्रकट करने के लिए कौन सी शैली अपनायी जानी चाहिए और किस तरह मां-बाप अपने प्यार और स्नेह में संतुलत बनाकर रख सकते हैं।
बच्चों के प्रति प्यार और स्नेह प्रकट करने के तरीक़े उनकी आयु के अनुसार, विभिन्न होते हैं। जब बच्चे बहुत छोटे होते हैं तो उन्हें छाती से लगाना और चूमना बहुत महत्वपूर्ण होता है। एक शिशु के सकारात्मक विकास के लिए शारीरिक प्यार का प्रदर्शन बहुत ज़रूरी है। इस वायु में प्राप्त होने वाले प्यार और स्नेह का प्रभाव इंसान के बचपने और पूरी उम्र में बाक़ी रहता है। छोटे बच्चों के लिए शारीरिक रूप से प्यार और स्नेह का प्रदर्शन प्यार प्रकट करने का सबसे प्रभावी तरीक़ा है। जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, प्यार और स्नेह के प्रदर्शन के तरीक़ों में परिवर्तन होता है और उसकी कुछ सीमाएं होती है। हालांकि इस दौरान भी फ़िज़िकल टच या बच्चों को छूना और उन्हें सीने से लगाना बहुत महत्व रखता है, लेकिन यह प्यार के प्रदर्शन की प्रमुख शैली नहीं रहती। इस आयु में बच्चे की ज़रूरतों और इच्छाओं में विस्तार होता है। उसकी इच्छाओं और ज़रूरतों पर ध्यान केन्द्रित करना, निरंतर उससे बात करना, उसे क़िस्से और कहानियों की किताबें पढ़कर सुनाना, उसके होमवर्क में रूची लेना, उसके साथ खेलना, उसकी भाषा में बात करना सब बच्चों से प्यार के इज़हार के तरीक़े हैं।
प्यार का चमदार स्वरूप एक हल्की सी मुस्कराहट, कोमल स्वर, धैर्य रखने वाले कान और अपनेपन का इज़हार करने वाली निगाहों में छलकता है। मां-बाप की भरपूर तवज्जोह बच्चे को यह याद दिलाती है कि उससे प्यार किया जा रहा है और यह उसका प्रमाण है।
बड़े बच्चे अपने दोस्त बनाते हैं और यह दोस्त उनके लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। बच्चों के दोस्तों को महत्व देना अपने बच्चों से प्यार के प्रदर्शन का एक अच्छा तरीक़ा है। सामान्य तौर पर मां-बाप नियमित कामजाक जैसे कि साफ़ सफ़ाई, उन्हें भोजन कराना, स्कूल के लिए उन्हें तैयार करना, उनके साथ बातचीत करना आदि के अलावा जब वे अपने बच्चों की ओर व्यवहारिक ध्यान देते हैं, तो बच्चे आभास करते हैं कि उनसे मोहब्बत की जा रही है और उन्हें महत्व दिया जा रहा है।
व्यवहारिक ध्यान अच्छा और बुरा अर्थात सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार का हो सकता है। जब बच्चे उचित रूप से व्यवहार करते हैं तो हम उनकी ओर ध्यान देते हैं और अपने इस ध्यान से यह संदेश देते हैं कि वे अपने इस व्यवहार को भविष्य में भी जारी रखें। लेकिन जब वे उचित व्यवहार नहीं करते हैं तो उनकी ओर हम ध्यान देकर यह संदेश देना चाहते हैं कि उन्हें अपने व्यवहार में सुधार करना चाहिए। इस स्थिति में अगर हम उन्हें सज़ा दें, डाट फटकार लगाएं और उन्हें झिड़कें तो हमारा यह ध्यान नकारात्मक रूप धारण कर लेगा।