घर परिवार और बच्चे-१७
शब्दों की बात करें तो हिंसा का दायरा बहुत व्यापक है किंतु यहां हिंसा हमारा विषय नहीं है बल्कि हम बच्चों के साथ व्यवहार में हिंसा पर चर्चा करना चाहते हैं किंतु वास्तविकता यह है कि बच्चों के साथ हिंसा का दायरा भी बहुत व्यापक है और बच्चों के साथ हिंसा में केवल उनकी पिटाई करना और उन्हें घायल करना ही नहीं है बल्कि यह सब तो उनके साथ हिंसक व्यवहार के चिन्ह मात्र हैं।
बाल मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चों की अनदेखी करना और उन्हें किसी काम पर मजबूर करना भी हिंसा है क्योंकि इससे उनके मन मस्तिष्क पर गहरे घाव लगते हैं जिसका प्रभाव उनके पूरे जीवन पर पड़ता है। बच्चों को सज़ा देने के लिए या उन्हें सिखाने के लिए उनकी पिटाई और प्रशिक्षण में कठोर होना अलग अलग विषय है किंतु बच्चों को यह समझाना कि उनका कोई महत्व नहीं है या यह कि वह मूर्ख हैं या उनकी अनदेखी करना भी बच्चों के साथ हिंसक व्यवहारों की श्रेणी में आता है भले ही उनके चिन्ह मारपीट की तरह, उनके शरीर पर नज़र नहीं आते।
बहुत से लोगों का यह ख्याल होता है जब तक शारीरिक तौर पर बच्चे को मारा पीटा न जाए तब तक हिंसा नहीं होती किंतु यह गलत धारणा है और जहां तक बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार की बात है तो यह एक आम धारणा है कि अधिक पढ़े लिखे और धनी परिवारों में एसा नहीं होता किंतु यह भी गलत है और बच्चों के साथ हिंसा समाज के हर स्तर में नज़र आती है किंतु सवाल यह है कि क्या एक पिता अपनी संतान को सही रास्ता दिखाने के लिए यदि कठोर व्यवहार अपनाता है और उसके ही भले के लिए उसे कभी कभी मारता भी है तो क्या यह हिंसा के दायरे में आता है? क्योंकि वह तो अपनी संतान का भला चाहता है और उसकी भलाई के लिए भी एसा करता है।
इस संदर्भ में सब से बुनियादी बात तो यह है कि बच्चों के मारने पीटने से सिर्फ उन्हें शारीरिक रूप से नुक़सान ही पहुंचता है और यही नहीं इसके बड़े नकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी उन पर पड़ते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जब बच्चे की पिटाई होती है तो वह स्वंय को असहाय महसूस करता है और इस प्रकार से घृणा व आक्रोश उसके मन में घर कर जाता है और यदि सही समय पर उसके मन में सुलगने वाली घृणा व आक्रोश की इस आग को बुझाया न जाए तो भविष्य में क्रोध, असुरक्षा, निराशा, ईर्ष्या, घृणा और आत्मविश्वास के अभाव जैसी मानसिक समस्याओं से वह ग्रस्त हो सकता है।
शिक्षा व प्रशिक्षण के दौरान जिन बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार अपनाया जाता है उनमें अपने निकटम परिजनों और विशेषकर माता पिता पर विश्वास की भावना ख़त्म हो जाती है और एसा बच्चा किसी भी अन्य पर विश्वास नहीं करता जिससे उसके सामाजिक संबंधों को भारी आघात पहुंचता है और इस से बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि कोई बच्चा अपने माता पिता पर विश्वास खो दे। क्योंकि माता पिता पर विश्वास खोने की दशा में, उसके लिए पूरी दुनिया में कोई भी विश्वस्नीय नहीं रह जाता। इस लिए यदि कोई बच्चा हिंसा का शिकार होता है तो उसके मन में लगे घाव पर तुंरत मरहम रखना और उसका विश्वास जीतना चाहिए और विशेषकर माता पिता का यह परम कर्तव्य है।
वास्तव में बच्चों को यह अनुमान ही नहीं होता कि उनकी कौन सी हरकत से मां बाप को गुस्सा आएगा और यह कि कौन से काम से कितना गुस्सा आएगा। कभी कभी तो उन्हें यह भी नहीं मालूम होता कि उनके किसी काम से माता पिता को इतना गुस्सा आ जाएगा कि वह उसकी पिटाई भी शुरु कर देंगे। एसे बच्चे की जब पिटाई होती है तो वह पीड़ा और आश्चर्य में डूब जाता है और उसकी समझ में नहीं आता कि उसे क्यों इस प्रकार से मारा जा रहा है। यह बच्चे की मनोदशा के लिए अत्याधिक घातक है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि बच्चे के दंडित करना जरूरी हो तो उसके आयु और भावनाओं का ख्याल रखते हुए उसे उसकी प्रवृत्ति के अनुसार दंड दिया जाना चाहिए और इसके साथ सब से महत्वपूर्ण यह कि उसे बहुत अच्छी तरह मालूम होना चाहिए कि उसे दंड क्यों दिया जा रहा है किंतु विशेषज्ञ बच्चों की शिक्षा व प्रशिक्षा में प्रेमपूर्वक व तार्किक व्यवहार को एकमात्र प्रभावशाली मार्ग मानते हैं और सख्ती करना किसी भी रूप में बच्चों की शिक्षा दीक्षा में एक प्रभावशाली व उपयोगी मार्ग नहीं हो सकता। यदि कोई बच्चा वास्तव में शरारती है और घर वालों और आस पास रहने वालों तथा अपने स्कूल सब को परेशान करता है तो उसे ठीक करने का मार्ग भी कड़ाई और हिंसा नहीं है।
यदि कोई बच्चा शरारती है तो सब से पहले तो उसके कारणों पर विचार करना चाहिए। वास्तव में बच्चों में शरारत के बहुत से कारण होते हैं। बहुत से बच्चे माता पिता की ओर से स्नेह व प्रेम से वंचित रहते हैं या फिर उनकी बहुत सी शारीरिक व मानसिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती। इसी प्रकार घर में माता पिता के मध्य लड़ाई झगड़ा भी बच्चों को शरारती बनाता है। इसी प्रकार बच्चे के मन में हीन भावना जितना अधिक पैदा होगी वह उसे शरारती बनाएगी क्योंकि इस दशा में वह अपना महत्व दर्शाने के लिए शरारत करता है ताकि लोगों का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो।
बच्चों में शरारत का एक कारण यह भी होता है कि उन्हें अपनी भावनाएं प्रकट करने का उचित अवसर नहीं मिलता या फिर उन्हें पड़ोसियों और घर वालों के मध्य स्वीकार नहीं किया जाता अर्थात उन पर भरोसा नहीं किया जाता। इसी प्रकार बच्चे अपनी प्रगति की राह में रुकावटों और अन्य लोगों से जलन के कारण भी शरारत करते हैं। वह बच्चे जिनके माता पिता एक दूसरे से अलग हो गये हैं वह भी असुरक्षा के आभास के कारण शरारत करते हैं और कभी कभी बच्चे कड़े और कठोर नियमों से तंग आकर भी शरारत करने लगते हैं। इसी प्रकार बच्चे आस पास के बच्चों और मोहल्ले घर के वातावरण से भी शरारत सीखते हैं ।
इस प्रकार से हम देखते हैं कि बच्चों में शरारत के बहुत से कारण होते हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हमने किया इस लिए शरारत पर बच्चों के साथ हिंसक व्यवहार अपनाने के बजाए, उनकी शरारत का मुख्य कारण तलाश करना चाहिए और जब सही कारण का पता चल जाए तो फिर उसके हिसाब से रवैया अपनाया जाना चाहिए। विशेषज्ञों के अनुसार इस पूरी प्रक्रिया में बच्चे के आत्मसम्मान की रक्षा की जानी चाहिए और भविष्य में बच्चे के सामने लड़ने झगड़ने से बचना चाहिए। इसी प्रकार शरारत से दूर करने के लिए माता पिता को चाहिए कि बच्चे को डांटने के बजाए उसे समझाएं और यदि वह कोई अच्छा काम करता है तो उस पर उसकी तारीफ करें और उसे इनाम भी दें।
अपने शरारती बच्चे की शरारत छुड़ाने के लिए चीखने चिल्लाने से कुछ नहीं होता बल्कि इसके स्थान पर बच्चे की मांगों और इच्छाओं का सम्मान किया जाना चाहिए और उसे उक्तेजित करने और गुस्सा दिलाने से बचना चाहिए और सब से महत्वपूर्ण बात यह कि स्वंय को आदर्श के रूप में पेश करना चाहिए। माता पिता को अपने शरारती बच्चे की भी बातें गौर से सुननी चाहिए और उसे जहां तक संभव हो, एसे खेलों में व्यस्त करने का प्रयास करना चाहिए जिसमें कई बच्चे शामिल होते हों।
इस प्रकार के कुछ तरीकों से बच्चों की शरारत खत्म की जा सकती है। याद रखें माता पिता एक बच्चे की नज़र में उसका सब से बड़ा सहारा होते है और जब उन्ही की ओर से पीड़ा पहुंचती है तो उसका भरोसा टूट जाता है जो उसके लिए बहुत घातक होता है इस लिए बच्चों के प्रशिक्षण के दौरान आवश्यकता इस बात की है कि आप बच्चों के हर काम को उसकी नज़र से देखें और यह जरूर ध्यान दें कि वह अपने इस काम के बारे में क्या सोचता है। शरारत पर बच्चे की पिटाई करके आप अपना गुस्सा शांत करते हैं किंतु अपने गुस्से की यह आग, अपने बच्चे के अस्तित्व में भर देते हैं जो भविष्य में उसके सामाजिक व पारिवारिक जीवन को भस्म कर सकती है।