Jul २०, २०१६ १४:३३ Asia/Kolkata

 प्राकृतिक रूप से समस्त इंसानों को जहां उनके अच्छे कार्यों के लिए प्रतिफल एवं प्रोत्साहन की ज़रूरत होती है, वहीं उन्हें बुराई से रोकने के लिए सज़ा का भय भी ज़रूरी है।

बच्चों के प्रोत्साहन के लिए अपनायी जाने वाली सही शैली की समीक्षा करते हुए हमने इस बात की चर्चा शुरू की थी के इस संदर्भ में हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। पहले बिंदु का उल्लेख करते हुए हमने कहा था कि अच्छे और सकारात्मक कार्यों के लिए हमें बच्चों का जमकर प्रोत्साहन करना चाहिए।

2.       इस संदर्भ में दूसरा बिंदु यह है कि बच्चों को अच्छे और सकारात्मक कार्यों के लिए सरप्राइज़ देना चाहिए और उन्हें यह जताया जाना चाहिए कि हमने तुम्हारे इस अच्छे काम को देखा है। दर्भाग्यवश कुछ मां-बाप ऐसे होते हैं कि उन्हें बच्चों के कामों से कोई लेना-देना नहीं होता, लेकिन जहां उनसे कोई ग़लती हुई तुरंत उन्हें फटकार लगाना शुरू कर देते हैं। आप ज़रा सोचिए कि एक बच्चा अपने साथियों के साथ खेल में व्यस्त है, लेकिन उसके मां-बाप उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देते, हालांकि जैसे ही उससे कोई ग़लती होती है तुरंत उसे डांटना और फटकारना शुरू कर देते हैं। वास्त में बच्चों के साथ इसके विपरीत व्यवहार किया जाना चाहिए। जहां तक संभव हो सके ग़लतियों को अनदेखा किजा जाना चाहिए और अच्छे कामों के लिए तुरंत उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप अगर आप देख रहे हैं कि आपका बच्चा अपने खिलौनों को व्यवस्थित करने में व्यस्त है तो शाबाश कहकर उसकी सराहना कीजिए।

 

3.       सराहना एक सीमा में और काम के अनुसार होनी चाहिए। अगर सराहना एक सीमा में और उचित नहीं होगी तो उसके गंभीर परिणाम निकल सकते हैं। अगर आपके बच्चे ने अच्छा काम अंजाम दिया है और आप उसकी सराहना करना चाहते हैं और उसका उत्साह बढ़ाना चाहते हैं तो इस बात को ध्यान में रखिए कि इस काम के लिए कितनी सराहना या इनाम उचित रहेगा। जैसा कि हमने पहले भी संकेत किया था कि अगर काम और सराहना में कोई समानता नहीं होगी और सराहना अत्यधिक की जाएगी तो बच्चा लालची हो जाएगा। उदाहरण स्वरूप, जो मां-बाप अपने बच्चों से पढ़ाई में बेहतर करने की आशा करते हैं और चाहते हैं कि उनके बच्चे परीक्षा में सबसे अच्छा करें तो वे उनसे अजीबो ग़रीब वादे करने लगते हैं। जैसे कि अगर तुमने यह परीक्षा पास कर ली तो हम तुम्हें सबसे मंहगी बाइक दिलायेंगे या अच्छी कार ख़रीदवायेंगे। निश्चित रूप से दोनों कामों में कोई समानता नहीं है। आप सोचिए कि आपका बच्चा आपके इस वादे के बाद पढ़ाई में ख़ूब मेहनत करता है और परीक्षा में सफल हो जाता है और आप उसके लिए गाड़ी ख़रीदते हैं। लेकिन उसके बाद अच्छे कामों के लिए सरहाना करने के लिए आपको इनाम में वृद्धि करना होगी, क्योंकि आपका बच्चा अब उससे अधिक की आशा करता है। मौखिक प्रोत्साहन एवं सराहना में भी मां-बाप को एक सीमा का ख़याल रखना चाहिए। अगर बच्चा अपना होमवर्क समय पर कर रहा है तो ज़रूर उसकी सराहना कीजिए। लेकिन यह कहना कि तुम अद्भुत और अद्वितीय हो, अवास्तविक और अत्यधिक है।

 

4.       सरहाना और इनाम में विविधता होनी चाहिए। अगर आप हमेशा एक ही तरीक़े से बच्चे की सराहना कर रहे हैं तो यह आपके लिए दर्दे सर बन सकता है। कभी उसे गोद में उठाईए और चूमिए। कभी बातों से उसका उत्साह बढ़ाईए, कभी उसके लिए इनाम ख़रीदिए, कभी उसे पार्क या उसकी पसंदीदा जगह ले जाईए, कभी उसके लिए उसका पंसदीदा भोजन तैयार करिए, कभी उसके लिए कोई सुविधा उपलब्ध कराईए और कभी उसके साथ खेलिए। अगर आपकी सराहना में विविधता होगी तो बच्चे को किसी एक चीज़ की आदत नहीं पड़ेगी और वह उस पर निर्भर नहीं होगा। उदाहरण स्वरूप, आप उसकी सराहना के लिए हमेशा उसका पसंदीदा खाना ख़रीदते या तैयार करते हैं, तो वह पेटू हो जाएगा। अगर हमेशा खिलौने ख़रीदेंगे तो वह लालची हो जाएगा और अगर हमेशा सैर सपाटे के लिए ले जायेंगे तो वह घर से बाहर रहने का आदी हो जाएगा और हमेशा बाहर ले जाने के लिए कहेगा। दुर्भाग्य से, कई लोग ऐसे होते हैं कि जो एक ही प्रकार से सराहना करते हैं। इस प्रकार सराहना प्रभावहीन होकर रह जाती है। विशेष रूप से इस बात का ध्यान रखें कि आपकी सराहना पैसों पर निर्भर न हो। बहुत से मां-बाप समय की कमी या और किसी कारण से बच्चों को हमेशा पैसे थमा देते हैं। वास्तव में इस प्रकार वे अपने बच्चे को लालची बना रहे होते हैं।

 

5.       बच्चों की सराहना करते समय उन्हें दिए जाने वाले वादों के प्रति सजग रहना चाहिए। बच्चों से हर काम के लिए वादा नहीं करना चाहिए। उदाहरण स्वरूप, अगर तुम अपना भोजन खाओगे तो तुम्हें पार्क लेकर जायेंगे, अगर मेहमानदारी में सुशील रहोगे तो तुम्हें आइस्क्रीम ख़रीद कर देंगे और अपना खिलौना अगर अपने छोटे भाई को दोगे तो तुम्हारे लिए कल नया खिलौना ख़रीदकर लायेंगे। सराहना के उद्देश्य से किए जाने वाले वादे अगर पूर्ण रूप से पूरे किए जा रहे हैं तो बच्चा बनिया बन जाएगा। कहते हैं कि एक पिता ने अपने बच्चे से कहा कि अगर तुम अपने हाथों को धोओगे तुम्हें 10 रूपय दूंगा। अगर हाथों और पैरों को एक साथ धोओगे तो 20 रूपय दूंगा। बच्चे ने कहा कि पिताजी अगर मैं स्नान कर लूं तो कितने देंगे। जहां तक संभव हो सके बच्चों से वादा करने के बजाए उनकी सराहना के लिए उन्हें इनाम दें, लेकिन इनाम के रूप में उन्हें पैसे देने से बचें।

6.       सराहना करते समय इस बिंदु को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि सराहना या प्रोत्साहन तुरंत किया जाना चाहिए। इसलिए कि सराहना से हमारा उद्देश्य बच्चे में अच्छे कार्यों की आदत डालना है। वास्तव में सराहना का अर्थ अच्छे व्यवहार को मज़बूती प्रदान करना है। अच्छे काम और उसकी सराहना में जितना कम अंतर होगा उतना ही अधिक व्यवहार में मज़बूती आएगी और सराहना प्रभावशाली होगी। लेकिन अंतर जितना अधिक होगा उतना ही अधिक सराहना की भूमिका कमज़ोर पड़ती जाएगी। आप कहीं मेहमान बनकर जाते हैं और आपका बच्चा मेज़बान के यहां बहुत अच्छा व्यवहार करता है, आप अपने घर वापस लौटकर तुरंत अपनी ख़ुशी का इज़हार करिए और इनाम के रूप में आधा घंटे उसके साथ मन लगाकर खेलिए, जितना जल्दी ऐसा करेंगे उतना ही उसका परिणाम अच्छा निकलेगा। लेकिन अगर आपका बच्चा आज घर के कामों में आपका हाथ बटाता है और आप एक महीने बाद उसकी पसंदीदा कोई चीज़ ख़रीदते हैं तो यह बहुत प्रभावशाली नहीं होगा। आप चाहे जितना भी उसे आश्वस्त करने का प्रयास करें।

 

7.       सराहना तुलनात्मक नहीं होनी चाहिए। हमेशा इस बिंदु का ख़याल रखें कि कदापि अन्य बच्चों से तुलना करते हुए अपने बच्चे की सराहना न करें। कभी भी इस प्रकार की बात न कहें कि शाबाश, तुम अपने परिवार या दोस्तों में सबसे अधिक सभ्य एवं सुशील हो, अपने समस्त सहपाठियों से अधिक नम्बर लेकर आए हो, शाबाश तुम अन्य बच्चों से अधिक ज़िम्मेदार हो। इस प्रकार की सराहना हमेशा बच्चों को मानसिक तुलना की स्थिति में रखती है और उसमें वर्चस्व की भावना को मज़बूत बनाकर अंह पैदा करती है। अगर बच्चों की तुलना करके ही उनकी सराहना करनी है तो स्वयं उनके अतीत से ही उनकी तुलना करनी चाहिए। उदाहरण स्वरूप, कहा जा सकता है कि शाबाश, पिछले महीने की तुलना में अब तुम अधिक मन लगाकर पढ़ाई कर रहे हो, विगत की तुलना में अब तुम्हारा व्यवहार बहुत अच्छा और सराहनीय है।

 

8.       सराहना स्पष्ट रूप में होनी चाहिए। बच्चे के सामने स्पष्ट करना चाहिए कि उसका कौन सा व्यवहार आपको पंसद है और किस व्यवहार के लिए आप उसकी सराहना कर रहे हैं। यह कहना कि शाबाश, आज तुम बहुत अच्छे बच्चे बने रहे, किसी भी प्रकार से लाभदायक नहीं है और अच्छे काम के लिए प्रभावशाली प्रोत्साहन नहीं है। बहुत ही स्पष्ट रूप से बच्चे से कहिए कि किस काम के लिए आप उसकी सराहना कर रहे हैं।

 

9.       अन्य बच्चों की उपस्थिति में आपकी सराहना बहुत संतुलित होनी चाहिए। इसके अलावा इनाम के रूप में ख़तरनाक चीज़ें ख़रीदकर देने और ख़तरनाक कामों की अनुमति देने से बचना चाहिए।