Jul २०, २०१६ १५:२९ Asia/Kolkata

बच्चों की सही परवरिश के लिए जिस प्रकार उन्हें अच्छे कामों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए उसी तरह उन्हें ग़लत कामों से रोकने के लिए तार्किक शैली अपनायी जानी चाहिए।

हमने इस बिंदु को भी विस्तृत रूप से बयान किया था कि प्रोत्साहन और प्रतिफल के बाद, चेतावनी और हल्का फुलका दंड बच्चों के पालन-पोषण में काफ़ी प्रभावी होता है।

 

बच्चों के सही पालन-पोषण के लिए एक और महत्वपूर्ण शैली उनका भरोसा और विश्वास हासिल करना है। जैसा कि हमने उल्लेख किया था, बच्चों की परवरिश द्वारा हम उन्हें अनुशासित और सभ्य बनाना चाहते हैं, इसलिए प्रशिक्षक से प्रेम और उस पर भरोसा इस उद्देश्य की प्राप्ति में सबसे प्रभावशाली भूमिका निभा सकता है। जैसा कि कहा जाता है, दिल से निकली हुई बात दिल पर असर करती है। बच्चों की परवरिश में अगर भावनात्मक ऊषमा शामिल नहीं है तो वह उस वृक्ष की भांति है जिसकी जड़ें ज़मीन में नहीं हैं।

 

मां-बाप को चाहिए कि सच्चाई, सच्चे व्यवहार, वादों को पूरा करके और धोखे एवं पाखंड से बचकर अपने बच्चों का विश्वास प्राप्त करें। मां-बाप का एक दूसरे के प्रति व्यवहार भी बच्चों का विश्वास हासिल करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। परस्पर सम्मान द्वारा दोनों ही बच्चों का भरोसा प्राप्त कर सकते हैं।   

    

ब्रिटिश दार्शनिक बर्ट्रेंड रसेल के अनुसार, जो लोग बच्चे के साथ सही व्यवहार करते हैं, उन्हें उसका प्रतिफल भी प्राप्त होता है। इस प्रकार से कि उन पर बच्चे का विश्वास बढ़ता है। बच्चों में प्राकृतिक रूप से यह रुझान पाया जाता है कि वे आपकी बात को स्वीकार करें।

 

रसेल लिखते हैं कि एक दिन मेरे बेटे ने नदी में नहाने का आग्रह किया। मैंने उसे ऐसा करने से रोका और कहा कि नदी में नोकीले पत्थर हैं जिससे तुम्हारे पैर घायल हो सकते हैं। लेकिन उसका आग्रह बहुत अधिक था और उसे नोकीले पत्थरों के बारे में संदेह था। मैं नदी में उतरा और एक पत्थर निकाल कर लाया और उसकी तेज़ धार उसे दिखाई, वह पूर्ण रूप से आश्वस्त हो गया। अब अगर यहीं मैं उसे नदी में नहाने से रोकने के लिए मनघड़त रूप से पत्थरों का बहाना बनाता तो मेरे ऊपर उसका भरोसा समाप्त हो जाता। वास्तव में अगर मुझे पत्थर का कोई टुकड़ा नहीं मिलता तो मैं मजबूर होता कि उसे पानी में नहाने और खेलने की अनुमति प्रदान करूं। इस प्रकार की स्थिति में जब भी मैं उससे कुछ कहता था तो अपनी बात के लिए दलील पेश करता था, धीरे धीरे मेरे ऊपर उसे पूर्ण विश्वास हो गया और वह फिर मेरी किसी भी बात पर शक नहीं करता था।

 

मां-बाप को चाहिए कि अपने दिशा-निर्देशों विशेष रूप से ऐसी स्थिति में जब उनका निर्देश किसी ऐसे कार्य से संबंधित है जो बच्चे की रूची के विपरीत है, तार्किक और प्रमाण के साथ अपनी बात कहें और बच्चे की समझ के स्तर का ख़याल रखें। इस प्रकार, आपकी बात का विरोध करने बजाए बच्चा आप पर भरोसा करने लगेगा और उसे इस बात का एहसास नहीं होगा कि बाप मुझ पर आदेश चला रहा है और अपनी मनमानी करने पर मजबूर कर रहा है।

 

यह बिंदु ध्यान योग्य है कि तानाशाही अंदाज़ अपनाने और बच्चों को ज़बरदस्ती अपना आज्ञाकारी बनाने से उनकी सही परवरिश में कोई सहायता नहीं मिल सकती। इसलिए कि जितना भी हम पालन-पोषण में तानाशाही अंदाज़ अपनायेंगे, वास्तव में आंतरिक पोलन-पोषण से उतना ही दूर होते चले यायेंगे। इस प्रकार से पोलन-पोषण करने का अर्थ है, वास्तविक पालन-पोषण से दूर हो जाना।

 

अच्छा व्यवहार भी भरोसा हासिल करने का एक महत्वपूर्ण तरीक़ा है। बच्चों का भरोसा कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जो अपनी इच्छा के अनुसार हासिल किया जा सके, बल्कि वह ख़ुद जिस व्यवहार का अपने पिता की ओर से अनुभव करता है, उसे अपने लिए आधार बनाता है और यही व्यवहार बाप पर उसके भरोसे का आधार बनता है।

 

मां-बाप की कथनी और करनी में अंतर भी बच्चों में उनके प्रति संदेह पैदा करता है। बच्चा जब इस प्रकार के व्यवहार का अनुभव करता है तो वह नतीजे पर पहुंचता है कि ज़रूरी नहीं है मां-बाप सही कह रहे या कर रहे हों, इसलिए उनका पालन करना आवश्यक नहीं है। मां-बाप के लिए अनिवार्य है कि बच्चों के सामने दोहरापन न अपनायें और झूठ से बचें। इस मामले में मां-बाप को बच्चों की आयु को लेकर मुग़ालते में नहीं रहना चाहिए। इसलिए दोहरापन और झूठ जितना बड़े बच्चों को प्रभावित करता है उससे कहीं अधिक छोटे बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे जितना अपने कानों से सुनकर सीखते हैं, उससे कहीं अधिक अपनी आँखों से देखकर सीखते हैं।

 

बच्चों में अनुसरण करने और बड़ों को आदर्श क़रार देने का रुझान बहुत शक्तिशाली होता है। इसलिए बड़ों का नैतिक गुणों से सुसज्जित होना और बुराईयों से दूर रहना और भी ज़रूरी हो जाता है। 

 

पारिवारिक झगड़ों में अगर बाप का पक्ष सही भी होता है तो अक्सर, बच्चे मां का समर्थन करते हैं। यही कारण है कि रोज़ रोज़ के घरेलू झगड़े धीरे धीरे बाप और बच्चों के बीच खाई चौड़ी कर देते हैं। परिणाम स्वरूप, पिता पर बच्चों का विश्वास कम हो जाता है। जो पिता अपने बच्चों के साथ आदर्श संबंध रखना चाहते हैं, उन्हें चाहिए कि धैर्य और सब्र से काम लें और अपने बच्चों की मां के साथ हिंसा और दुर्व्यवहार से बचें। इसलिए कि मां बच्चे के लिए एक ऐसी सम्मानजनक हस्ती होती है कि वह चाहता है हर कोई उसका सम्मान करे। बच्चे अपनी मां का दुख और दर्द नहीं देख सकते। जो कोई भी उनकी मां को दुख पहुंचाता है, वे उससे नफ़रत करने लगते हैं, यहां तक कि अगर वह व्यक्ति बाप ही क्यों न हो।

 

दुनिया में कितने ही ऐसे बाप हैं, जो अपने बच्चों को हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध कराते हैं और स्वयं कठिनाई सहन करते हैं, लेकिन बच्चे उनके प्रति उस प्रकार की भावना नहीं रखते जैसी होनी चाहिए। वास्तव में अपनी मां के साथ दर्व्यवहार और हिंसा के कारण बाप के प्रति बच्चों में दुर्भावना उत्पन्न हो जाती है।

 

इस्लामी शिक्षाओं में उल्लेख है कि बाप पर बच्चों के अधिकारों में से एक यह है कि वह उनकी मां को सुविधा में रखे और उसका सम्मान करे। यहां ध्यान योग्य बिंदु यह है कि इस्लाम मां के सम्मान को बच्चों का अधिकार मानता है। मां के अधिकारों के सम्मान की बच्चों की परवरिश और बाप के साथ उनके संबंधों में अहम भूमिका होती है।

 

इस संदर्भ में हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, जो व्यक्ति नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभालता है, उसे दूसरों के दिशा निर्देशन से पहले स्वयं अपना दिशा निर्देशन करना चाहिए और ज़बान से दूसरों के प्रशिक्षण से पहले स्वयं उस पर अमल करना चाहिए।

 

इसी प्रकार, बाप पर बच्चों का भरोसा जगाने में मां की बहुत अहम भूमिका होती है। अपने बच्चों के बाप के प्रति मां का व्यवहार और पक्ष बाप पर विश्वास करने और न करने में अहम होता है। मां बच्चों के सामने अपने पति का सम्मान करके इस विश्वास में वृद्धि कर सकती है।