Aug २८, २०१६ १५:४९ Asia/Kolkata

पानी, मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक है।

 जल के बिना जीवन की कल्पना असंभव है। जल के अभाव में कोई भी जीव इस धरती पर जीवित नहीं रह सकता।  जल के इस महत्व के बावजूद देखने में यह आ रहा है कि दिन प्रतिदिन पानी दूषित होता जा रहा है।  पानी में अनेक प्रकार के गंदे और विशैले तत्व मिल गए हैं।  इन तत्वों के कारण उपलब्ध जल हमारे स्वास्थय के लिए हानिकारक हो चुका है।  मानव जीवन के लिए न केवल जल की आवश्यकता है बल्कि उसे शुद्ध जल की ज़रूरत है। अशुद्ध या प्रदूषित जल से नाना प्रकार की बीमारियां जन्म लेती हैं।  चिकित्सकों का कहना है कि दूषित जल से उत्पन्न बीमरिया बहुत तेज़ी से फैल रही हैं जिनसे सबसे अधिक नुक़सान बच्चों को होता है।  जल को प्रदूषित करने में चीन पहले स्थान पर है जबकि इस मामले में अमरीका का दूसरे स्थान पर विराजमान है।

प्रकृति की आश्चर्यचकित करने वाली बातों में से एक यह है कि धरती के भीतर ऐसी क्षमता पाई जाती है कि वह पानी के बहुत से ज़हरीले पदार्थों को स्वयं ही नष्ट कर देती है।  विशेषज्ञों का कहना है कि शोध से यह पता चला है कि धरती की ऊपरी सतह से लेकर उसकी निचली सतह तक कुछ ऐसी परतें हैं जो स्वयं ही जल के दूषित पदार्यों को नष्ट करती रहती हैं।  यह कार्य स्वचलित ढंग से शताब्दियों से होता आ रहा है।  इस प्रकार धरती शताब्दियों से मानव जाति के लिए स्वच्छ जल उपलब्ध कराती आ रही है।  खेद की बात यह है कि हम लोगों ने अर्थात मानव ने अपनी अनुचित कार्यवाहियों से इस प्रकृतिक प्रक्रिया को गहरा आघात पहुंचाया है।  इस प्रकार यदि देखा जाए तो पता चलेगा कि मानव ने स्वयं ही जल को प्रदूषित करने वाले कार्य किये हैं।  वर्तमान समय में पानी में अनेक प्रकार के गंदे और दूषित पदार्थ मिल चुके हैं जैसे नालों की गंदगी, सड़े गले पदार्थ, कीटनाकशक पदार्थ, रासायनिक खाद या प्लास्टिक आदि।  इन चीज़
 के पानी में मिलने से इस समय बहुत से क्षेत्रों का पानी पीने योग्य नहीं रहा है।

शोध से यह पता चलता है कि वर्तमान समय में विश्व के महानगरों में दूषित जल की समस्या तेज़ी से बढ़ रही है।  विशेषज्ञ कहते हैं कि नदियों, समुद्रों, झरनों यहां तक कि पहाड़ों में जमी बर्फ़ से पिघलने वाला पानी भी दूषित हो चुका है।  वे दूषित पदार्थ जो पानी में मिल गए हैं और जिनके पानी से अलग करने के लिए विशेष तकनीक की आवश्यकता है वह इतनी अधिक मंहगी है कि यह विकसित देशों के लिए भी मंहगी सिद्ध हो रही है।  इस तकनीक को कहा जाता है।  यही कारण है कि विश्व की सरकारें, इस बात का प्रयास कर रही हैं कि पानी को बैकटीरिया मुक्त बनाने के लिए क्लोरीन का प्रयोग किया जाए ताकि वह कम से कम पीने के योग्य तो हो सके।  हालांकि इससे मुख्य समस्या का समाधान नहीं होता।

संयुक्त राष्ट्रसंघ की यूएनडीपी संस्था ने पेयजल तक सब लोगों की पहुंच को उनका अधिकार बताया है।  राष्ट्रसंघ के पूर्व महासचिव कूफी अनान ने सन 2001 में स्वच्छ जल तक लोगों की पहुंच को उनका मूलभूत अधिकार बताया था।  उन्होंने कहा था कि दूषित जल से न केवल मनुष्य बल्कि पूरे समाज के स्वास्थ्य को क्षति पहुंचती है।  कूफ़ी अनान का कहना था कि जल को दूषित करना, मानवता के अपमान के समान है।

सर्वेक्षणों से पता चलता है कि इस समय विश्व में लोगों के मरने का एक महत्वपूर्ण कारक, दूषित जल है।  दूषित जल के प्रयोग से प्रतिदिन लगभग 14000 लोग मर जाते हैं।  दूषित जल के सेवन से उत्पन्न बीमारियों से हर साल 50 लाख से अधिक लोग काल के गाल में समा रहे हैं।  विशेषज्ञों का कहना है कि इस समय संसार में एक अरब से अधिक लोगों की पहुंच, स्वच्छ पेयजल तक नहीं है।  इसी प्रकार प्रतिवर्ष लगभग 2 अरब लोग दूषित जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियों में ग्रस्त होते जा रहे हैं।  खेद की बात यह है कि दूषित जल के प्रयोग से प्रतिदिन लगभग पांच हज़ार बच्चे काल के गाले में समा जाते हैं।  भारत में दूषित जल के प्रयोग के कारण प्रतिदिन एक हज़ार से अधिक बच्चे, क़ै और दस्त जैसी बीमारियों का शिकार बनते हैं।  चीन के लगभग 90 प्रतिशत नगर, दूषित जल की समस्या झेल रहे हैं।  इस प्रकार वहां लगभग 50 करोड़ लोग स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं।

विश्व स्वास्थय संगठन का मानना है कि इस समय लोगों को जो बीमारियां हो रही हैं उनमें से हर दस बीमारी में से एक, दूषित जल के कारण हो रही है।  दुनिया में मरने वाले लोगों में से 6 प्रतिशत लोग दूषित जल के कुप्रभावों से मरते हैं।  विशव स्वास्थ संगठन के अनुसार दूषित जल से जन्म लेने वाली बीमारियों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और इससे कुछ एसी भी बीमारियां जन्म लेती हैं जो बहुत हानिकारक होती हैं।  डब्लूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में मरने वाले लोगों में केवल एक प्रतिशत की मौत का कारण दूषित पानी होता है जबकि विकासशील देशों में यह बारह से तेइस प्रतिशत तक है।

औद्योगिक नगरों में जल को प्रदूषित करने का सबसे महत्वपूर्ण कारक, पानी में “नाइट्रेट” के अनुपात का बढ़ जाना है।  पानी में नाइट्रेट के अनुपात के बढ़ने के कुछ प्रमुख कारण है जैसे औद्योगिक कचरे, रासायनिक उर्वरकों या जानवरों के गोबर आदि से बनी खाद का ज़मीन के भीतर प्रविष्ट होना।  यही कारण है कि शुष्क और कम वर्षा वाले देशों में, जहां पर पीने का लगभग 80 से 95 प्रतिशत तक पानी भूमिगत जलस्रोतों से प्राप्त होता है, पानी में नाइट्रेट का अनुपात बहुत अधिक है।  विशेषज्ञों का कहना है कि नाइट्रेट की उपस्थिति के पानी पर बहुत बुरे प्रभाव पड़ते हैं चाहे वह ज़मीन की ऊपरी सतह पर हो या फिर निचली सतह पर।  वास्तव में नाइट्रेट में तेज़ी से वृद्धि, से मनुष्य के स्वास्थ्य और वनस्पतियों के जीवन पर बुरा असर पड़ता है।  इस बात की भी संभावना व्यक्त की जाती है कि नाइट्रेट, कैंसर जैसी बीमारी के आरंभ होने का भी कारण बनता है।  विशेष बात यह है कि नाइट्रेट, पानी में घुल जाता है और उसके बाद उसे पानी से अलग करना बहुत कठिन होता है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि वर्तमान समय में विश्व में वह क्षेत्र जो नाइट्रेट से सर्वाधिक प्रभावित है वह फ़िलिस्तीन में ग़ज़्ज़ा पट्टी है।  इस बात की पुष्टि जर्मनी और फ़िलिस्तीनी विशेषज्ञों ने लंबे संयुक्त शोध के बाद की है।  इस संयुक्त शोध की रिपोर्ट में कहा गया है कि ग़ज़्ज़ा पट्टी वाले क्षेत्र से जितने भी सैंप्ल लिए गए उनमें से 90 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा सामान्य से 2 से 8 बराबर पाई गई।  यह सारे सैंप्ल, ग़ज़्ज़ा के भूमिगत जल से लिए गए।  सन 2001 से 2007 के बीच ग़ज़्ज़ा में पानी के कुओं से लिए गए 165 नमूनों की जांच के बाद पता चला कि केवल 13 नमूनों के अतिरिक्त बाक़ी सभी नमूनों में नाइट्रेट की मात्रा सामान्य से कहीं अधिक है।

ग़ज़्ज़ा वासियों के पीने का पानी अधिकतर भूमिगत स्रोतों से ही उपलब्ध होता है।  विशेषज्ञों के अनुसार ग़ज़्ज़ा में पैदा होने वाले 640 बच्चों पर जब शोध किया गया तो पता चला कि इनमें आधे से अधिक बच्चों में नाइट्रेट के लक्ष्ण पाए गए।  ग़ज़्ज़ा पट्टी, फ़िलिस्तीन का वह क्षेत्र जिसका परिवेष्टन इस्राईल ने कई वर्षों से कर रखा है।  यहां पर हर वर्गकिलोमीटर में 2600 लोग रहते हैं।  ग़ज़्ज़ा को दुनिया की सबसे घनी आबादी वाला क्षेत्र कहा जाता है।  परिवेष्टन के कारण ग़ज़्ज़ावासियों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएं नहीं मिल पातीं और यहां पर बहुत से बीमार लोग दवाओं की कमी के कारण मरने पर विवश हैं।

हालांकि पानी के दूषित होने का मामला केवल विकासशील देशों से विशेष नहीं है बल्कि बहुत से विकसित देशों को भी इस समस्या का सामना है।  यूरोपीय देशों में से 15 देशों ने अपने यहां के भूमिगत जल स्रोत में नाइट्रेट की उपस्थिति को स्वीकार किया है।  इन देशों में इस समस्या का मुख्य कारण रासायनिक खाद का अंधाधुंध प्रयोग है।  उदाहरण स्वरूप बेल्जियम में पांच हज़ार कुओं में से 29 प्रतिशत कुओं के पानी में प्रति लीटर नाइट्रेट की उपस्थिति 50 मिलिग्राम थी।  पूर्वी एवं केन्द्रीय योरोप के देशों में भी भूमिगत जल नाइट्रेट से प्रभावित पाया गया। 

जो बात निश्चित रूप में कही जा सकती है वह यह है कि पर्यावरण की सुरक्षा, विशेषकर जल स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाने के लिए बहुत ही सटीक प्रबंधन की आवश्यकता है।  इस प्रकार जल में विलय हो चुके पदार्थों को निकालने के बाद प्रकृति को इस बात की अनुमति दी जाए कि वह प्राकृतिक ढंग से अपने चक्र को चलाते हुए उसे स्वच्छा बनाए।  किंतु यहां पर प्रश्न यह उठता है कि अधिक से अधिक की चाह रखने वाला या दूसरे शब्दो। में आज का लोभी मनुष्य क्या प्रकृति को इस बात की अनुमति देगा?