Aug २८, २०१६ १६:०१ Asia/Kolkata

पानी एक अनोखी ईश्वरीय अनुकंपा है।

पानी जीवन का स्रोत है और उसके बिना जीवन की कोई कल्पना नहीं है। पानी के इस महत्व की ओर आसमानी धर्मों में भी संकेत किया गया है। धार्मिक शिक्षाओं में पानी को व्यर्थ न करने पर काफ़ी बल दिया गया है। उदाहरण स्वरूप, क़ुरान की कई आयतों में पानी को इंसान के बाद ईश्वर की सबसे महत्वपूर्ण रचना बताया गया है और जीवन दाता की उसकी विशेषता की ओर संकेत किया गया है।

सूरए मुरासलात की 27वीं आयत में ईश्वर कहता है, हमने हर जानदार चीज़ को पानी से पैदा किया है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज इंसान ने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न कर दी हैं कि दुनिया को पानी की कमी का सामना है। इंटरनेश्नल वाटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि आज इंसानों की गतिविधियां दुनिया में 98 प्रतिशत पानी की कमी का कारण हैं और केवल 2 प्रतिशत की कमी अन्य कारणों से है। इंसान ने आज पानी को प्रदूषित करके और उसे फ़ालतू बहाकर, वैश्विक संकट को जन्म दिया है। इस संकट का प्रभाव किसी एक देश तक सीमित नहीं है। ज़मीन में पानी की सतह प्रतिदिन नीचे जा रही है। ज़मीन के भीतर पानी के भंडार में दिन प्रतिदिन तेज़ी से कमी हो रही है।

अध्ययनों से हासिल होने वाले परिणामों के मुताबिक़, हर वह देश जहां उपल्बध पानी का औसत 1700 घन मीटर से कम है, वहां स्थिति ख़तरनाक है। अगर किसी देश में एक साल मेंप्रति व्यक्ति 1000 से भी कम घन मीटर पानी होगा तो उस देश को पानी की कमी का सामना है। इन आंकड़ों के आधार पर राष्ट्र संघ ने 1990 में विश्व में उपलब्ध पानी की स्थिति का जायज़ा लिया, जिससे स्पष्ट हुआ कि 28 देशों को कि जिनकी आबादी 33 करोड़ 5 लाख है, पानी की कमी का सामना है। इन आंकड़ों में अब वृद्धि हो चुकी है। कहा जा रहा है कि 2025 तक विश्व में यह संख्या बढ़कर 50 तक हो जाएगी।

यही कारण है कि वर्ल्ड वाइड फंड फ़ॉर नेचर ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में समस्त देशों से अपील की कि पानी के इस्तेमाल में कमी करें। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि विश्व के समृद्ध देशों को भी पानी की कमी का सामना है। ऑस्ट्रेलिया के शहर सिडनी और अमरीका के शहर बॉस्टन समेत विश्व के कुछ शहरों में पानी का इस्तेमाल इतना अधिक है कि उसकी भरपाई संभव नहीं है।

इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि लंदन जैसे महानगरों में पानी की सप्लाई वाले पाइपों से प्रतिदिन टपकने वाले पानी से 300 स्वीमिंग पूल भर सकते हैं। इस संस्था ने विकसित देशों से मांग की है कि पानी की पुरानी पड़ जाने वाली सप्लाई लाईनों का पुनर्निमाण करके और पानी को प्रदूषित होने से बचाकर अन्य देशों के लिए आदर्श प्रस्तुत करें। अंतरराष्ट्रीय शोध संस्थानों एवं पर्यावरण संस्थानों ने चेतावनी दी है कि विकासशील देशों में पानी इस्तेमाल करने के 50 पूर्व पुराने तरीक़े को जारी रखना संभव नहीं है और इसमें पुनर्विचार की ज़रूरत है। विकासशील देशों में सिंचाई की उस शैली को अपनाया जाना चाहिए जिसमें पानी के कम ख़र्च में उत्पादन अधिक होता है। इसी प्रकार ऐसे अनाज की फ़सल बोयी जा सकती है जो अधिक स्थिर होती है, जिससे पानी के स्रोतों को पुनर्जीवित करने में सहायता मिले।

पर्यावरण के विशेषज्ञों का मानना है कि पानी के संकट में बड़े बांधों का निर्माण भी एक महत्वपूर्ण कारण है। बड़े बांध वह होते हैं, जिनकी ऊंचाई 15 मीटर से अधिक होती है। अब तक दुनिया में ऐसे 40 हज़ार बांध बन चुके हैं और अन्य 45 हज़ार पर काम चल रहा है।

विशाल बांधों के निर्माण से अनेक गांव तबाह हो जाते हैं और हज़ारों इंसान बेघर हो जाते हैं। इसी प्रकार इलाक़े की जलवायु भी परिवर्तित हो जाती है। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, विशाल बांधों के निर्माण के कारण, पिछले 50 वर्षों में गांवों में रहने वाले 8 करोड़ लोग बेघर हो गए हैं। उदाहरण स्वरूप, सूडान में मरवा बांध के निर्माण के कारण 50 हज़ार से अधिक लोग बेघर हो गए, जो नील नदी के किनारे खेती किया करते थे।

मानवाधिकार संगठनों का आरोप है कि बड़ी उद्योग कंपनियों के हितों के लिए यह बांध बनाए जाते हैं और वही इतनी बड़ी संख्या में लोगों के बेघर होने का कारण हैं। चीन का बड़ा बांध कि जो 100 मीटर से भी अधिक ऊंचा है, विश्व में जलवायु परिवर्तन का कारण बना है। इस बांध के निर्माण के लिए न केवल मूल्यवान जंगल और खेती की ज़मीन पानी में डूब गई, बल्कि उसमें जमा होने वाली पानी की बड़ी मात्रा के कारण, विभिन्न नदियां सूख गई हैं। यही कारण है कि पिछले 50 वर्षों में इस बड़ी परियोजना से जो अपेक्षाएं थीं, वह पूरी नहीं हो सकीं।

पर्यावरण के क्षेत्र में सबसे बड़ी संस्था वर्ल्ड वाइड फ़ंड फ़ॉर नेचर ने भी पानी की 7 परियोजनाओं का अध्ययन किया। इसमें सबसे लम्बी परियोजना स्पेन में है। इस परियोजना में 5 बांधों के पानी को दक्षिण में 300 किलोमीटर दूर तक ले जाया जाता है। इस रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि इन परियोजनाओं में से किसी का लाभदायक होने की दृष्टि से गंभीर अध्ययन नहीं किया गया है। स्पेन में स्थानांतरण के मार्ग में जो पानी बर्बाद होता है, उससे इस परियोजना का कोई व्यवहारिक लाभ नहीं है। यहां तक कि इस मार्ग में पड़ने वाले इलाक़ों को 2006 में सूखे का सामना करना पड़ा और उन्हें आपात भंडारों का इस्तेमाल करना पड़ा। इस स्थिति में जिन लोगों को पर्यावरण से संबंधित समस्याओं के कारण, अपना घर बार छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा, उनकी संख्या युद्ध के कारण बेघर होने वाले लोगों की संख्या से अधिक है। प्रवासन के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन की रिपोर्टों से पता चलता है कि जलवायु की ख़राब परिस्थितियों के कारण अपना घर बार छोड़कर दूसरे इलाक़ों में जाने के लिए मजबूर लोगों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। रेड क्रीसेंट ने भी अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि वर्तमान समय में दुनिया भर में पर्यावरण के कारण बेघर होने वालों की संख्या 2 करोड़ 50 लाख है। राष्ट्र संघ के महासचिव बान कीमून ने पानी के विश्व दिवस पर भाषण देते हुए कहा था कि प्राकृतिक आपदाओं से होने वाला आर्थिक नुक़सान अब प्रति वर्ष 300 अरब डॉलर तक पहुंच गया है और कहा जा सकता है कि भविष्य में इसमें काफ़ी वृद्धि होगी। उन्होंने आगे कहा, आज दुनिया की 40 फ़ीसद आबादी ऐसे इलाक़ों में रह रही है, जहां पानी की बहुत कमी है और ऐसा अनुमान है कि 2050 तक जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया में बेघर होने वालों की संख्या 1 अरब तक पहुंच जाएगी।

हमारी यह दुनिया किस प्रकार इस संकट का समाधान निकाल सकती है और युद्ध एवं टकराव के बिना क्या कोई तार्किक हल निकाला जा सकता है? विशेषज्ञों ने इसके हल के लिए कुछ प्रस्ताव रखे हैं।

पहले यह कि सरकारों को पानी के बारे में अपने इस दृष्टिकोण में बदलाव करना चाहिए कि पानी एक समाप्त न होने वाला स्रोत है। यह सही है कि विभिन्न देशों में पानी की कमी है, लेकिन कुछ अवसरों पर यह कमी सरकारों की ग़लत आर्थिक नीतियों के कारण है। पानी के स्रोतों का सही इस्तेमाल और कृषि एवं उद्योग जैसे क्षेत्रों में सही तकनीक के प्रयोग से उसका प्रभावी इस्तेमाल इस कमी को पूरा कर सकता है।

इसके अलावा, देशों को पानी के संयुक्त स्रोतों से लाभ उठाने का एक पक्षीय फ़ैसला नहीं करना चाहिए। पानी के स्रोतों और नदियों या भूमिगत पानी के भंडार में कोई भी बुनियादी परिवर्तन आपसी समझ और बातचीत द्वारा होना चाहिए न कि बल के आधार पर।

सरकारों को कि पानी की समस्या के संबंध में क्षेत्रीय सहयोग में सीमाओं से ऊपर उठकर सहयोग करना चाहिए। नदियों एवं संयुक्त स्रोतों से पानी के इस्तेमाल से संबंधित परियोजनाओं का निर्माण इस सहयोग को मज़बूत करने में सहायता कर सकता है। इसके लिए देशों के नेताओं की सक्रिय भागीदारी और इस विषय से संबंधित वार्ताओं में भाग लेने से पड़ोसी देशों के अंतरराष्ट्रीय सहयोग में वृद्धि होगी।

पानी के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग के लिए राजनीतिक एवं आर्थिक निवेश पर सबसे स्पष्ट तर्क क़ुरान की यह आयत है, हमने पानी से समस्त जानदारों को जीवन प्रदान किया है। विश्व समुदाय को जीवन को स्थिर बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर से ऊपर उठकर क़दम उठाना चाहिए।