हम और पर्यावरण-5
तालाब को वेटलैंड या आर्द्रभूमि भी कहा जाता है।
तालाब के बारे में विभिन्न प्रकार की परिभाषाएं पाई जाती हैं। इसके बारे में प्रचलित परिभाषा, इस प्रकार है कि आर्द्रभूमि उस क्षेत्र को कहा जाता है जहां जल या तो पूरे साल जमा रहता हो या साल के अधिकांश महीनों में पाया जाता हो। इस प्रकार आर्द्रभूमि के अन्तर्गत झीलें, पोखरे, तालाब दलदली क्षेत्र और एसे क्षेत्र आते हैं जहां पर कम गहराई का पानी पूरे साल या साल के कुछ महीनों तक मौजूद रहता हो।
रामसर कन्वेंशन के अनुसार इस समय संसार में 2186 आर्द्रक्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। इस प्रकार धरती का 209 मिलयन हेक्टर क्षेत्र, आर्दक्षेत्रों के रूप में मौजूद है। ब्रिटेन में 170, मैक्सिको में 142, स्पेन में 74, स्वीडन में 66, और आस्ट्रेलिया में 65 आर्दक्षेत्र हैं जिन्हें तालाब भी कहा जाता है। वर्तमान समय में सबसे अधिक आर्द्रक्षेत्र कनाडा में हैं। वहां पर 130 हज़ार वर्गकिलोमीटर में तालाब पाए जाते हैं। भारत में आद्रक्षेत्रों की संख्या 26 बताई गई है। इस्लामी गणतंत्र ईरान में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के 22 आर्द्रक्षेत्र हैं। रामसर अन्तर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के अनुसार किसी भी आर्द्रक्षेत्र के पंजीकरण की शर्त यह है कि वहां पर कम से कम बीस हज़ार पलायनकर्ता पक्षी शरण लेते हों।
धरती का छह प्रतिशत भाग, आर्द्रभूमि के रूप में मौजूद है। वास्तव में आद्रभूमि का अर्थ होता है नमी या दलदली क्षेत्र। ऐसा क्षेत्र जहां पर भरपूर नमी पाई जाती हो। इसकी एक विशेषता यह भी है कि यहां पर या तो पूरे साल या फिर साल के अधिकांश समय तक जल मौजूद रहता हो। कहते हैं कि आर्द्रक्षेत्र, प्रकृति के चमत्कार हैं जो जलपक्षियों, जल में रहने वाले जीव जंतुओं और वनस्पतियों के साथ ही साथ मनुष्यों की भी सुरक्षा उपलब्ध करते हैं।
आर्दक्षेत्रों में वनस्पतियों और जीव जंतुओं की उपस्थिति से, जहां इस क्षेत्र की सुन्दरता में चार चांद लग जाते हैं वहीं पर्यावरण की दृष्टि से इसके कई लाभ हैं। अपने भीतर पाए जाने वाले लाभों के कारण आर्दक्षेत्र, मानवजाति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। वास्तविकता यह है कि आर्द्रभूमि, नदी, झील या किसी बड़े तालाब का नमीवाला क्षेत्र होती है जहां पर भरपूर नमी पाई जाती है। नमीवाली इस भूमि के भीतर मनुष्यों, जानवरों, पक्षियों और वनस्पतियों के लिए कई प्रकार के लाभ छिपे हुए हैं। उदाहरण स्वरूप विश्व में मछलियों की बीस हज़ार प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें 40 प्रतिशत से अधिक प्रजातियां आर्द्रक्षेत्रों में रहती हैं। मीठेपानी वाले आर्द्रक्षेत्र, लाखों मछलियों के अंडे देने का सुरक्षित स्थल होते हैं जहां पर बहुत बड़ी संख्या में मछलियां पाई जाती हैं। विभिन्न प्रकार की मछलियों के प्रजनन के लिए यह उपयुक्त स्थल होता है।
आर्द्रक्षेत्र, जलपक्षियों के सुरक्षित स्थल होते हैं। यहां पर नाना प्रकार के पक्षी शरण लेते हैं। आर्द्रक्षेत्रों को प्रवासी पक्षियों का अतिमहत्वपूर्ण स्थल माना जाता है। वेटलैंड या आर्द्रक्षेत्र जहां कुछ पक्षियों के लिए स्थाई शरणस्थल हैं वहीं कुछ अन्य जीवों के लिए खाद्य सामग्री के यह अस्थाई स्थल हैं। ईरान में अधिकतर आर्द्रक्षेत्र, अन्य क्षेत्रों की तरह पलायनकर्ता पक्षियों का शरणस्थल हैं जहां जाड़ों में भी पक्षी आते हैं। इन क्षेत्रों में पक्षियों की उपस्थिति से जहां सुन्दर दृश्य उत्पन्न होते हैं वहीं पर यह आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का कहना है कि आर्द्रक्षेत्रों में पलायनकर्ता पक्षियों की उपस्थिति, बहुत सी बीमारियों और वनस्पतियों में लगने वाली कई प्रकार की बीमारियों को रोकने का कारण बनती है। आर्द्रक्षेत्रों में जो लाखों पक्षी मौजूद होते हैं उनकी बीट, खाद का काम करती है जो रासायनिक खाद की तुलना में बहुत अधिक लाभदायक होती है। इसके अतिरिक्त इन पक्षियों की उपस्थिति, कई प्रकार के कीड़े मकोड़ों की समाप्ति का कारण बनती है जिससे पर्यावरण की दृष्टि से वह क्षेत्र सुरक्षित हो जाता है।
आर्द्रभूमियां, जैविक विविधता की दृष्टि से बहुत समृद्ध होती हैं। बहुत से विशेषज्ञ इनकों पर्यावरण की शहरग भी कहते हैं। जलवायु को संतुलित रखने, बाढ को रोकने, नदी और समुद्रों की तटरेखा को सुरधित बनाने और जलकटाव को रोकने आदि जैसे कामों में आर्द्रभूमियों की विशेष भूमिका होती है। पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि जंगलों की तुलना में आर्द्रभूमि या वेटलैंड का महत्व 10 बराबर है जबकि खेती योग्य भूमि की तुलना में इसका महत्व 200 बराबर होता है।
वनस्पतियों और पक्षियों के शरणस्थल होने के अतिरिक्त वेटलैंड का जैविक विविधता के संरक्षण में भी विशेष योगदान है। उदाहरण स्वरूप चावल एसा अनाज है जो पानी में ही पैदा होता है। यह विश्व के लाखों ही नहीं बल्कि करोड़ों लोगों के खाने की आपूर्ति करता है। इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र मछली पालन के लिए भी बहुत उपयुक्त हैं जिसके लिए आर्द्रक्षेत्रों का सुरक्षित होना आवश्यक है। कहा जाता है कि जितनी मछलियां पूरे विश्व में लोगों के लिए उपलब्ध कराई जाती हैं उनमें से एक तिहाई, आद्रक्षेत्रों से ही आती हैं। इसके अतिरिक्त लकड़ी, ऊर्जा और विभिन्न प्रकार की वनस्पतियां भी आर्द्रक्षेत्रों में पाई जाती हैं जो इसके आर्थिक महत्व को बताती हैं। वर्तमान समय में अर्थशास्त्री और वैज्ञानिक, वेटलैंड सहित अन्य एकोसिस्टम के आर्थिक महत्व के बारे में गंभीरता से अध्ययन कर रहे हैं। कुछ अध्ययनों से पता चला है कि एकोसिस्टम से प्रतिवर्ष लगभग 33 ट्रिलियन डालर के मूल्य की सेवाएं प्राप्त की जा सकती हैं जिनमें से वेटलैंड से लगभग 5 ट्रिलियन डालर की सेवाएं अर्जित की जा सकती हैं। जिन विशेषज्ञों ने केवल आद्रक्षेत्रों या वेटलैंड के ही बारे में अध्धयन किये हैं उनका कहना है कि इनका महत्व किसी भी स्थिति में तेल के कुओं या सोने की खदानों से कम नहीं है।
वेटलैंड के महत्व की ओर संकेत करते हुए “ब्रोलियो फ़्रीरादी सूज़ा दियाज़” ने कहा है कि एकोसिस्टम के महत्वपूर्ण स्रोतों में से एक वेटलैंड या आर्द्रक्षेत्र भी हैं। यह बात उन्होंने 2 फरवरी सन 2015 को “आर्द्रक्षेत्र” विश्व दिवस के अवसर पर अपने संदेश में कही थी। जितने भी एकोसिस्टम हैं उनमें से आर्द्रक्षेत्रों को सबसे महत्वपूर्ण सिस्टम कहा जाता है। मीठे पानी को उपलब्ध कराने और पानी में मौजूद पदार्थों को उनसे दूर करने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। वेटलैंड से विश्व के लोगों की खाद्य आवश्यकता के लगभग 20 प्रतिशत पदार्थों की आपूर्ति होती है। आर्द्रभूमि, बाढ जैसी समस्या को रोकने में भी भूमिका निभाती है। साथ ही यह समुद्री तूफान और आंधी के प्रभाव को सहन करके उसे कम करने की भी क्षमता रखती है। यह पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों को भी रोकती है और जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में सक्षम है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वेटलैंड या आर्द्रभूमियां, धरती पर महान ईश्वर की महत्वपूर्ण अनुकंपाए हैं।
यहां पर यह बात बड़े खेद के साथ कहनी पड़ रही है कि मनुष्य, आर्द्रक्षेत्रों का सीमा से अधिक प्रयोग करके पर्यावरण को दूषित कर रहे हैं। आद्रक्षेत्रों के प्रदूषित होने से इन क्षेत्रों के जीव जंतुओं के जीवन के लिए ख़तरे उत्पन्न हो गए हैं। मनुष्य की इस सोच ने भी वेटलैंड्स को भारी क्षति पहुंचाई है कि अधिकांश लोग यह समझते हैं कि यह धरती का अनुपयोगी भाग हैं। तालाबों को सुखाने, उनको खेती योग्य भूमि में परिवर्तित करने या इन क्षेत्रों में औद्योगिक कार्य आरंभ करने से न केवल आर्द्रक्षेत्रों को क्षति पहुंची है बल्कि इससे मानव को भी बहुत नुक़सान पहुंचा है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि सन 1900 से अबतक लगभग 64 प्रतिशत आर्द्रक्षेत्र, समाप्त हो चुके हैं और यह प्रक्रिया अब भी जारी है।
वर्तमान समय में मानव द्वारा प्रकृति में हस्तक्षेप से प्राकृतिक स्रोत नष्ट हो रहे हैं, वन जीवन समाप्त होता जा रहा है, वनस्पतियों और विभिन्न प्रकार के जीव-जंतुओं की प्रजातियां समाप्त हो रही हैं और धरती पर मौजूद जीवों का जीवन ख़तरे में पड़ चुका है। तालाबों या आर्द्रक्षेत्रों का विनाश केवल विकासशील देशों से विशेष नहीं है बल्कि विकसित देशों में भी कृषि की भूमि को बढ़ाकर तालाबों को नष्ट किया जा रहा है। हालांकि इस बीच कुछ देश एसे भी हैं जिन्होंने वेटलैंड की उपयोगिता के दृष्टिगत उनकी सुरक्षा के लिए विशेष क़दम उठाए हैं। उदाहरण स्वरूप जापान ने अपने “कूशीरो” नामक अन्तर्राष्ट्रीय वेटलैंड को पुनर्जीवित किया है जिसे कृषि की भूमि में बदल दिया गया था। जापान ने इस वेटलैंड के निकट एक अन्तर्राष्ट्रीय केन्द्र खोलकर इसे संसार के लिए लाभदायक आर्द्रक्षेत्र में बदल दिया है। लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि विश्व के अन्य क्षेत्रों में आर्द्रभूमियां तेज़ी से नष्ट होती जा रही हैं जिनकी सुरक्षा के लिए गंभीर क़दम उठाए जाने की आवश्यकता है।