हम और पर्यावरण-7
औद्योगिक क्रांति और प्रगति व विकास की चाह ने इंसान की ज़िंदगी को ऐसा बना दिया कि उसने पर्यावरण और प्राकृतिक स्रोतों की सीमित्ता को बुला दिया किन्तु साठ के दशम के अंत में राशल कारसन ने “ख़ामोश बसंत” नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने मज़बूत क़लम से उस समय अमरीका में पर्यावरण की स्थिति का बेहतरीन चित्रण पेश किया।
यद्यपि कारसन ने अपनी पुस्तक में ज़हरीले पदार्यकों दफ़न करने के वनस्पतियों पर प्रभाव और उसके रोक टोक प्रयोग से होने वाले ख़तरों की ओर संकेत किया था।
यही इशारा प्रकृति में रुचि रखने वालों के लिए काफ़ी था किन्तु तब से बहुत से लोग पर्यावरण और इसकी रक्षा के बारे में बहुत अधिक संवेदनशील हो गये। इनमें से कुछ पूरी गंभीरता के साथ पर्यावरण को हुए नुक़सान की भरपायी के लिए बहुत प्रयास किया। इस काल में अंतर्राष्ट्रीय हल्क़ों में पर्यावरण के बारे में चर्चा पूरी गंभीरता से पेश की गयी और इस प्रकार पर्यावरण के क्षेत्र में पहला अंतर्राष्ट्रीय समझौता हुआ। रोचक बात यह है कि यह समझौता तालाब के बारे में था और ईरान की तत्कालीन सरकार इसकी संस्थापक थी।
दा रामसर कन्वेन्शन आन दा वेट लैंड नामक समझौता, दुनिया में प्रकृति की रक्षा पर बल देने वाला सबसे प्राचीन समझौता है। यह समझौता दूसरी फ़रवरी 1971 में ईरान के रामसर शहर में हुआ था और इसी शहर के नाम के इस कन्वेन्शन का नाम पड़ा। यद्यपि इस कन्वेन्शन का औपचारिक नाम अंतर्राष्ट्रीय तालाब कन्वेशन विशेषकर जलचर पक्षियों की शरणस्थली के रूप तालाब या संक्षिप्त में इसका नाम तालाब कन्वेशन है किन्तु सामान्य रूप से यह रामसर कन्वेन्शन के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस बैठक के बाद एक घोषणापत्र तैयार किया गया जिसमें सरकारों से कहा गया है कि वह तालाबों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण सुझाव पेश करें।
सामान्य रूप से कन्वेन्शन आरंभ में सुझाव कार्यक्रम होते हैं और हर कार्यक्रम में सरकारों की आरंभिक उपस्थिति स्वेच्छा से होती है किन्तु यदि सरकारों की संख्या निर्धारित सीमा से अधिक हो जाती है तो यह सुझाव कार्यक्रम, अनिवार्य कार्यक्रम में परिवर्तित हो जाता है। रामसर कन्वेन्शन के लिए भी यही प्रक्रिया है। वर्ष 1975 में जब तत्कालीन यूनान सरकार ने रामसर कन्वेन्शन पर हस्ताक्षर करके देशों को इसका सदस्य बनाया तो इस कन्वेन्शन पर अमल आवश्यक और अनिवार्य हो गया। इस आधार पर वर्ष 1975 में होने वाले कन्वेन्शन ने क़ानूनी आयाम धारण कर लिया और इस कन्वेन्शन का मुख्यालय स्वीटज़रलैंड के शहर गुलन्ड में खोला गया।
यह समझौता 160 सदस्य देशों को इस बात पर बाध्य करता है कि वे अंतर्राष्ट्रीय महत्व के साथ तालाबों की रक्षा करें और उनका निर्धारण करें। वर्ष 2008 के आंकड़ों के आधार पर 2008 से अब तक लगभग 16 करोड़ हेक्टेयर के क्षेत्रफल वाली 1700 साइटें पूरी दुनिया मे इस कन्वेन्शन में पंजीकृत हुईं। यह कन्वेन्शन, तालाबों की तार्किक रक्षा और उससे भरपूर ढंग से लाभ उठाने विशेषकर जलचरों की शरण स्थली बनाने के लिए भूमि प्रशस्त करने पर बल देता है। अलबत्ता पिछले वर्षों के दौरान इस कन्वेन्शन के दृष्टिकोणों में विस्तार हुआ जिनमें तालाबों की रक्षा, उनसे भरपूर लाभ उठाने तथा तालाबों के स्थाई प्रयोग इत्यादि शामिल हैं। रामसर कन्वेन्शन, तालाबों को एकोसिस्टम के स्थान पर मानते हैं जो पर्यावरण की रक्षा और मानवीय समाज के कल्याण के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
रामसर कन्वेन्शन में एक भूमिका और 12 अनुच्छेद शामिल हैं। यह कन्वेन्शन ऐसा वातावरण उत्पन्न करता है जिसके द्वारा सरकारें अपने तालाबों की रक्षा में भाग ले सकते हैं और परामर्श ले सकते हैं। उदाहरण स्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ में इस कन्वेन्शन के लिए बनाए गये कोष के माध्यम से अपने तालाबों की रक्षा के लिए ऋण ले सकते हैं या अन्य सदस्य देशों के अनुभवों से लाभ उठा सकते हैं और वैज्ञानिक परामर्श से लाभ उठा सकते हैं। इस कन्वेन्शन में इसी प्रकार दुनिया के प्रसिद्ध तालाबों की सूची शामिल की गयी है। इस कन्वेन्शन में शामिल पक्षों की ज़िम्मेदारी है कि वह अपनी धरती के महत्वपूर्ण तालाबों को निर्धारित करे और तालाबों की रक्षा और उसके सुधार के लिए मानचित्र व योजनाएं प्रस्तुत करें और उसे लागू या उसे लागू करने को सरल बनाएं जो उसकी रक्षा और उससे लाभ उठाने के लिए लाभदायक हो। इसी प्रकार सही प्रबंधन द्वारा तालाबों से संबंधित जलचरों की संख्या बढ़ाने प्रयास करना चाहिए और तालाबों की रक्षा तथा तालाब के आसपास के जलचरों की रक्षा के लिए भूमि प्रशस्त हो।
वह सूची जिसमें दुनिया के प्रसिद्ध तालाबों को पंजीकृत कराया जाता है उसे लिस्ट या रामसर साइट कहते हैं। रामसर साइट में एक तालाब को पंजीकृत करने के लिए विशेष शर्त है। एकोलोजी, जानवरों की पहचान, वनस्पतियों की पहचान और हाइड्रोलोजिक की दृष्टि से तालाब विशेष स्थान पर स्थित होना चाहिए। उदाहरण स्वरूप एक अद्भुत व अद्वितीय एकोसिस्टम का प्रतिनिधि होना चाहिए, या यह कि एक क्षेत्र के पर्यावरण विविधता को बाक़ी रखने किसी विशेष महत्त्व का स्वामी हो। अलबत्ता तालाब के विस्तार की रामसर की लिस्ट में पंजीकृत होने के लिए कोई अधिक महत्व नहीं हैं। कुछ ऐसे भी तालाब हैं जो कई हज़ार हेक्टेयर में फैले हुए हैं किन्तु इस साइट में पंजीकृत नहीं हैं। जबकि कुछ तालाब जिनका क्षेत्रफल केवल हज़ार मीटर है, रामसर लिस्ट में पंजीकृत हैं।
इस आधार पर इस संबंध में जो सबसे महत्वपूर्ण है, क्षेत्र पर तालाब का प्रभाव और क्षेत्र के एकोसिस्टम में उसका महत्व है। यदि कुछ पंजीकृत तालाब, युद्ध, त्रासदी, पर्यावरण, सूखापन और सही प्रयोग जैसी स्थिति के कारण ख़तरे का सामना करते हैं, मांट्रो नामक दूसरी सूचि में पंजीकृत होते हैं और रामसर कन्वेनश्न का कार्यालय सदस्य सरकारों से मांग करता है कि वे वैज्ञानिक व वित्तीय सहायता द्वारा उन देशों की सहायता करें जिनके तालाब ख़तरों का सामना कर रहे हैं ताकि उनके तालाबों की रक्षा की जा सके।
यद्यपि रामसर कन्वेन्शन ने तालाबों की रक्षा में महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की किन्तु अब भी विश्व के बहुत से तालाब विनाश की कगार पर हैं। रामसर कन्वेनशन के महासचिव क्रिस्टोफ़र ब्रिग्स ने इस कन्वेन्शन की 12वीं बैठक में एक साल में दुनिया के एक प्रतिशत तालाबों के विनाश की सूचना दी और कहा कि अन्य प्राकृतिक एकोसिस्टम की तबाही की तुलना में, दुनिया में तालाबों की तबाही का स्तर चिंताजनक है और यदि इस संबंध में कन्वेन्शन के सदस्य देशों की ओर से तालाबों की रक्षा के लिए गंभीर प्रयास न हुए तो दुनिया के बहुत से लोगों की प्रगति की प्रक्रिया प्रभावित होगी। वर्ष 2012 के आरंभ तक घोषित आंकड़ों के आधार पर 27 देशों के 48 तालाबों को रामसर कन्वेन्शन की मोन्ट्रो सूची में शामिल किया गया है। इस सूची के आधार पर यूनान के सात तालाब, ईरान के छह तालाब और चेक गणराज्य के 4 तालाब मोन्ट्रो तालाब की सूची में हैं। इस प्रकार बीस देशों के 32 तालाबों को उनके तालाबों की एकोलोजिक स्थिति के कारण इस सूची से निकाल दिया गया।
इस बात के दृष्टिगत कि रामसर कन्वेन्शन ने तालाबों की रक्षा के संबंध में नये मार्ग प्रशस्त किए हैं, किन्तु वास्तविकता यह है कि रक्षा और सुरक्षा, इस कन्वेन्शन की महत्वपूर्ण उपलब्धियां हैं जिसकी परिधि में दुनिया के समस्त देशों को प्रयास करना चाहिए ताकि पर्यावरण के समस्त कन्वेन्शनों, नियमों, प्रतिबद्धताओं, पत्रों और सहमतियों पर पूरी सख़्ती के साथ कार्यवाही हो सके। हर समझौते की शक्ति, उसके सबसे कमज़ोर सदस्य के अनुसार होती है। रामसर कन्वेन्शन भी इस नियम से अलग नहीं है। अगर यह तय हो जाए कि दुनिया में तबाही की कगार पर पहुंचने वाले तालाबों की रक्षा की जाए, वर्तमान सदस्यों को इस कन्वेन्शन पर प्रतिबद्धता के लिए अधिक कार्यवाही करनी चाहिए और अधिकतर देशों को अविलंब इस कन्वेन्शन की सदस्यता ग्रहण करनी चाहिए और यदि ऐसा नहीं हुआ तो दुनिया दिन प्रति दिन और अधिक तालाबों की बर्बादी की साक्षी रहेगी। अलबत्ता इसी मध्य दुनिया के तालाबों की रक्षा और उसके प्रबंधन के संबंध में देशों और जनता की जागरूकता बढ़ाने के लिए एनजीओज़ की कार्यवाहियां, बहुत प्रभावी रही हैं।
तालाबों को पर्यावरण के लिए अतिमहत्वपूर्ण समझा जाता है। तालाब इसी प्रकार जलवायु को संतुलित करने, पक्षियों के लिए सुरक्षित स्थल, बाढ़ नियंत्रित करने, भूमिगत पानी को होने वाली आवश्यकताओं को पूरा करने, पानी के खारेपन को रोकने, तटवर्ती रेखा की रक्षा, मिट्टी के बिखराव को रोकने, सेडिमेंट की सुरक्षा अर्थात प्राकृतिक रूप से टूट फूट से जमा होने वाले पदार्थ का कहा जाता है जो विभिन्न आकार के टुकड़ों पर आधारित होते हैं तथा प्रभावी व लाभदायक खाद्य पदार्थों की रक्षा करने के लिए होते हैं। इस आधार पर आवश्यकता इस बात की है कि दुनिया के हर भाग में कुछ ऐसी योजनाएं प्रस्तुत की जाएं जो प्रकृति से समन्वित हों और उसकी रक्षा की परिधि में हों। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम दिन प्रतिदिन पर्यावरण और अपने सुन्दर ग्रह के एक भाग को तबाह होते देखेंगे और एक दिन ऐसा आएगा जब धरती का एक बड़ा भाग रहने के योग्य नहीं रहेगा और मरुस्थल में परिवर्तित हो जाएगा।