Aug ३१, २०१६ १४:४२ Asia/Kolkata

सागर या महासागर खारे पानी के विशाल भंडार होते हैं और यह महाद्वीपों के बीच जल सीमा होते हैं।

अधिकांश सागर महासागरों का ही भाग होते हैं और यह ज़मीन से निकट होते हैं। पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग पर अर्थात 36 करोड़ 10 लाख वर्ग किलोमीटर पर खारा पानी है, यह खारा पानी कुछ महासागरों और सागरों में बंटा हुआ है।

 

महासागर चार या पांच बड़े भागों में बंटे हुए हैं, लेकिन सागर कई हैं। विश्व के बड़े सागरों में भूमध्य सागर, बेरिंग सागर, कैरेबियन सागर और ओख़ोत्स्क सागर हैं। महासागरों की औसत गहराई 7.3 किलोमीटर है, जो क़रीब 1 अरब 34 करोड़ किलोमीटर घन पानी पर आधारित होता है। प्रतिवर्ष महासागरों का 33 लाख किलोमीटर घन पानी भाप बन जाता है और फिर पानी या बर्फ़ के रूप में बरसता है। परिणाम स्वरूप, लगभग 82 लाख 50 हज़ार किलोमीटर घन मीठा पानी ज़मीन के अंदर और लगभग 12 लाख 50 हज़ार किलोमीटर घन मीठा पानी झीलों और नदियों में जमा हो जाता है।

 

समुद्र और महासागर हवा में मौजूद कार्बन डाइआक्साइड को अपने अंदर समा लेते हैं और मौसम को संतुलित बनाते हैं। उदाहरण स्वरूप, पिछले 200 वर्षों में इंसानों द्वारा पर्यावरण में छोड़े जाने वाले कार्बन डाइआक्साइड का 50 प्रतिशत समुद्रों और महासागरों ने अपने अंदर समा लिया है।

 

इसी प्रकार यह पृथ्वी की जलवायु को संतुलित रखते हैं। अगर महासागर नहीं होते और पृथ्वी सूखी होती तो ग्रीन हाऊस गैसें पृथ्वी का तापमान बहुत अधिक बढ़ा देतीं। अगर पृथ्वी का वर्तमान वातावरण होता लेकिन महासागर नहीं होते तो सौर्य ऊर्जा से ज़मीन का तापमान 67 डिग्री सेंटीग्रेड‎ होता।

महासागर हमेशा गतिशील होते हैं, इसलिए वह गर्मी की ऊर्जा को पूरी पृथ्वी पर फैला देते हैं, परिणाम स्वरूप, गर्मियों में ज़मीन का सूखा हिस्सा ठंडा और सर्दियों में गर्म हो जाता है। दूसरे शब्दों में महासागर ज़मीन के तापमान को संतुलित रखते हैं।

 

इसी प्रकार समुद्र और महासागर, पानी और नाइट्रोजन के बहाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। समुद्र की गहराई में होने वाला बहाव तापमान और नमक के अंतर एवं अनुपात से प्राप्त होता है। समुद्र की सतह का बहाव हवा के बहने से पैदा होने वाली लहरों के टकारने और ज्वार-भाटा से उत्पन्न होता है। इसी प्रकार समुद्र की सतह का बहाव चांद और सूरज की ग्रेविटी का परिणाम होता है। इन सबके मार्ग का निर्धारण, पानी की सतह और गहराई से होता है और यह पृथ्वी के रोटेशन के कारण होता है।

 

इसी प्रकार, समुद्र के पानी के घनत्व में भिन्नता उसमें गति का कारण होता है और उससे महासागरों में बहाव पैदा होता है। महासागरों के अंदर ऐसे बहाव होते हैं, जिन्हें समुद्री बहाव कहते हैं। यद्यपि इसके विभिन्न कारण होते हैं, लेकिन इसमें हवाओं की अहम भूमिका होती है। जिस स्थान पर दो समुद्री बहाव एक दूसरे से अलग होते हैं, वहां गहराई का पानी सतह पर आता है। उदाहरण स्वरूप, भूमध्य सागर में भाप बनने का अनुपात उस पानी से अधिक है जो नदियों और बारिशों से इसमें गिरता है। परिणाम स्वरूप पानी की इस कमी को पूरा करने के लिए एटलस महासागर का पानी भूमध्य सागर की ओर बहता है, जिससे एक समुद्री बहाव उत्पन्न होता है। समुद्री बहाव के रुकने से जीव जंतुओं के जीवन का बहाव रुक जाएगा।

 

महासागरों विशेषकर उनके तल के बारे में इंसान की जानकारी कुछ वर्षों पहले तक उतनी ही थी, जितनी अन्य उपग्रहों को बारे में। यहां तक कि आज खगोल शास्त्री जो कुछ चंद्रमा की सतह के बारे में जानते हैं वह उससे अधिक है जो भूविज्ञानी समुद्र की निचली सतह के बारे में जानते हैं। यह अचरज है कि अब तक क़रीब 12 लोग चांद की सतह पर क़दम रख चुके हैं, लेकिन महासागर के सबसे गहरे बिंदु तक केवल दो ग़ोताख़ोर जाकर वापस लौटे हैं।

 

50 वर्षों से यूनेस्को की सरकारों के बीच महासागर की जानकारी से संबंधित परिषद समुद्री ज्ञान और अध्ययन के विस्तार के लिए प्रयासरत है लेकिन इसके बावजूद अभी तक कुछ महासागरों की खोज नहीं हो सकी है और इस वास्तविकता से इनकार नहीं किया जा सकता। शोधकर्ताओं ने यह जानकारी प्राप्त कर ली है कि समुद्र की गहराई में जीवन मौजूद है। लगभग एक शताब्दी पहले तक यह माना जाता था कि समुद्र में जीवन केवल उसकी सतह तक सीमित है। 1840 में ब्रितानी वैज्ञानिक फ़ुरबिर ने 2100 मीटर की गहराई से स्टारफ़िश निकाली थी। 1860 में इस बात का पता चला कि टेलीग्राफ़ का केबिल जो भूमध्य सागर में 1600 मीटर की गहराई से गुज़रता था, मोतियों और अन्य प्रकार की समुद्री चीज़ों से ढक गया था। हालिया वर्षों में हाइड्रोफोन द्वारा साबित हो गया है कि टिक टिक, ख़र ख़र और समुद्र की गहरायी से समुद्री जीवों की सैकड़ों अन्य आवाज़ें इतनी अधिक आती हैं कि लगता है कि वहां ज़मीन के सबसे अधिक शोर शराबे वाले इलाक़ों से भी अधिक शोर है।

 

वैज्ञानिकों का मानना है कि जीवन में समुद्र और महासागरों का विशेष महत्व है। निश्चित रूप से जीवन के पहले संकेत समुद्र में ज़ाहिर हुए थे और संख्या के लिहाज़ से अभी भी जीवन का बड़ा भाग समुद्र में है। शोध के अनुसार, महासागरों में क़रीब 2 लाख 30 हज़ार प्रकार के जीव रहते हैं। हालांकि अभी तक महासागरों की गहरायी के महत्वपूर्ण भाग की खोज नहीं हो सकी है, एक अनुमान के मुताबिक़, जीव जंतुओं की इससे भी अधिक संख्या उस भाग में रहती है और पृथ्वी पर रहने वाले 7 अरब इंसानों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 

सीधे तौर पर करोड़ों लोग भोजन की प्राप्ति, यात्रा और अन्य कार्यों के लिए समुद्र या महासागरों पर निर्भर हैं। प्रति चार लोगों में से एक आवश्यक प्रोटीन समुद्र से हासिल करता है। विश्व की आधी आबादी तटों के 50 किलोमीटर की सीमाओं में रहती है। विश्व का 90 प्रतिशत व्यापार समुद्र के रास्ते से होता है। टेक्नौलॉजी के विकास के साथ साथ गहरे पानियों और तटवर्ती इलाक़ों में आर्थिक गतिविधियां बढ़ रही हैं।

हालांकि इंसान की गतिविधियों ने महासागरों और समुद्रों पर अनेक नकारात्मक प्रभाव डाले हैं। उदाहरण स्वरूप, मछुआरों की अत्यधिक एवं ग़ैर क़ानूनी गतिविधियों से समुद्री इकोसिस्टम को बहुत नुक़सान पहुंच रहा है। मछलियों का अत्यधिक शिकार समुद्रों और महासागरों के लिए एक ख़तरा है। प्रतिवर्ष 10 करोड़ टन मछलियां समुद्र से पकड़ी जाती हैं, उनकी कुछ क़िस्मों का शिकार हद से ज़्यादा है। यह ग़ैर क़ानूनी शिकार इतना अधिक है कि अगर यह जारी रहा तो 2050 तक मछलियों की कुछ क़िस्में विलुप्त हो जायेंगी।

 

पहले ऐसा समझा जाता था कि समुद्र और महासागर इतने विशाल हैं कि इंसान उन्हें नुक़सान नहीं पहुंचा सकता लेकिन दुर्भाग्यवश फ़ौस्सिल ईंधन का इस्तेमाल जैसी बढ़ती हुई इंसानों की गतिविधियों के कारण जंगल समाप्त होते जा रहे हैं और कृर्षि कम होती जा रही है, हवा में दिन प्रतिदिन कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। महासागर क्योंकि इन गैसों को सबसे अधिक अपने अंदर समा लेते हैं, इसलीए वह इन गैसों से भर चुके हैं। परिणाम स्वरूप, महासागरों के पानी का तापमान बढ़ गया है और उसमें तेज़ाबियत पैदा हो गई है।

 

तापमान में इस प्रकार का परिवर्तन विशेषकर पानी की तेज़ाबियत से बहुत से समुद्री जानवरों का जीवन ख़तरे में हैं। उदारहण के तौर पर कुछ समुद्री जीवों का ख़ोल अर्थात शैल कैल्शियम कार्बोनेट से बना होता है, तेज़ाबी पानी में वह नर्म हो जाता है और कभी कभी तो पूर्ण रूप से पानी में घुल जाता है। इसी प्रकार, समुद्री दूध पिलाने वाले जानवर जैसे कि नीली व्हेल को तेज़ाबी पानी में भोजन की कमी का सामना करना पड़ता है।

धरती के गर्म होने के कारण, ध्रुव में जमी बर्फ़ की परतें नर्म पड़ गई हैं और वह ध्रुवीय भालूओं का भार सहन नहीं कर सकतीं। सैलमन मछली की संख्या ध्यान योग्य रूप में कम हो गई है। इसलिए कि इस प्रकार की मछलियां ठंडे पानियों में रहती हैं और समुद्र का पानी गर्म होने के कारण ये मछलियां ठंडे पानियों की ओर चली जाती हैं। जानवरों के अलावा, इंसान भी समुद्रों और महासागरों के दूषित होने से कठनियाई में हैं। धरती का तापमान बढ़ने और बर्फ़ के पिघलने के कारण, कुछ इलाक़ों में समुद्र और महासागरों की सतह बढ़ रही है, इसी कारण तटवर्ती इलाक़ों में रहने वालों को अचानक आने वाले भीषण तूफ़ानों का सामना है।

 

इसके अलावा, आज समुद्रों और महासागरों में बड़ी मात्रा में कचरा डाला जा रहा है। उदाहरण स्वरूप, ब्रिटेन में उत्तरी समुद्र का 45 प्रतिशत प्रदूषण, यूरोपीय देशों से संबंधित है, जो इस समुद्र में गिरने वाली राइन नदी के मार्ग में स्थित हैं। इस प्रकार की परिस्थितियों के कारण, समुद्री इकोसिस्टम, तटवर्ती इलाक़े और उनकी अर्थव्यवस्था को सबसे अधिक नुक़सान पहुंच रहा है।