Feb ०२, २०१६ १५:१५ Asia/Kolkata

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नाम का इंसान के व्यक्तित्व और व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि नाम का इंसान के व्यक्तित्व और व्यवहार पर गहरा प्रभाव पड़ता है और इससे इंसान के मन में ख़ुद अपने बारे में एक सोच पनपती है। यह एक ऐसा विषय है कि जहां धार्मिक ग्रंथों में इस पर विशेष ध्यान दिया गया है वहीं आधुनिक काल में इसने वैज्ञानिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। हालिया दशकों में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाले मनोवैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि नाम का इंसान के व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं ने नामों के कुछ अद्भुत मनोवैज्ञानिक आयामों से पर्दा उठाया है।

नाम का इंसान के सेल्फ़ कंसप्ट या आत्म अवधारणा पर सबसे गहरा प्रभाव पड़ता है। सैल्फ़ कंसैप्ट का विकास बच्चे के विकास के साथ साथ होता है। जो लोग बच्चे के जीवन में महत्वपूर्ण होते हैं वे मौखिक और ग़ैर मौखिक संदेशों द्वारा यह प्रभाव डालते हैं। मां-बाप सबसे महत्वपूर्ण संदेश प्रेषक होते हैं, लेकिन जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता है, अध्यापक, क्लासमेट्स और परिजन बच्चे की आत्म अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

 

 

एक प्रकार से लोगों का व्यवहार बच्चों के सैल्फ़ कंसैप्ट के लिए स्क्रिप्ट का काम करता है। अगर किसी लड़के के मन में उसकी अपनी बुरी छवि बन गई है या एक ऐसे लड़के की छवि बन गई है कि जो पढ़ाई में सफ़ल नहीं हो सकता, तो उसका व्यवहार इस छवि को प्रतिबिंबित करेगा। वह ख़ुद को बुरा लड़का समझता है, इसलिए वह इसी तरह का व्यवहार करेगा और बुद्धिमान होने के बावजूद पढ़ाई में असफ़ल रहेगा।

किसी भी व्यक्ति का नाम उसके सैल्फ़ कंसैप्ट के निर्माण की प्रक्रिया में प्रभावी होता है, इसलिए कि लोग नाम द्वारा जो संदेश देते हैं उससे इस छवि के निर्माण में सहायता मिलती है। शोध से यह साबित हो चुका है कि हमारे समाज में कुछ नामों को सामान्य तौर पर अच्छा समझा जाता है और उनके ज़बान पर आने से मन में एक सकारात्मक विचार उभरता है। इसी प्रकार, कुछ ऐसे नाम होते हैं कि जो बुरे समझे जाते हैं और उन्हें सुनकर मन में नकारात्मक छवि उभरती है।

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) एक दिन कहीं से गुज़र रहे थे, उसी समय एक महिला ने अपनी लड़की को आसिया कि जिसका अर्थ है पापी कहकर पुकारा। पैग़म्बरे इस्लाम यह नाम सुनकर ठिठक गए और उस महिला को समझाया कि अपने बच्चों के लिए बुरे नामों का चयन न करो। उन्होंने महिला से कहा कि वह अपनी लड़की का नाम बदल दे और फिर उसे इस बुरे नाम से न पुकारे।

जहां बुरे नाम का इंसान के व्यक्तित्व और सैल्फ़ कंसैप्ट के निर्माण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वहीं उसे उपहास और मज़ाक़ का पात्र भी बनना पड़ता है। ऐसे नाम कि जो समाज में अच्छे नहीं समझे जाते या अर्थहीन होते हैं, लोगों के मनोरंजन का कारण बन जाते हैं और लोग उस व्यक्ति को उसके नाम से चिढ़ाने लगते हैं। परिणाम स्वरूप, बच्चे अपने नामों को लेकर शर्मिंदा होने लगते हैं और उपहास का पात्र बनने के भय से वे दूसरे बच्चों के संपर्क में आने से बचने लगते हैं। इससे भी बुरी स्थिति जब होती है कि जब असंवेदनशील बड़ों को यह आभास होता है कि नाम या उपनाम चुटकुले की तरह है और वे उसे इस प्रकार प्रयोग भी करने लगते हैं। यद्यपि यह कृत्य स्वयं निंदनीय है, लेकिन यह बच्चे के व्यक्तित्व और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

 

 

यही कारण है कि इस्लाम ने न केवल बच्चों के नामांकरण को मां-बाप का प्रथम एवं महत्वपूर्ण कर्तव्य क़रार दिया है, बल्कि अच्छा नाम चयन करने पर बहुत बल दिया है।

 

 

नाम और आत्म अवधारणा के बीच मज़बूत संबंध के परिप्रेक्ष्य में शोधकर्ताओं ने नामों और मानसिक रोगों के बीच संबंधों की खोज की है। 20 वर्षों तक किए गए चार अलग अलग अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने पाया कि असामान्य और विचित्र नामों और मनोविकृति और न्युरोसिस जैसे मानसिक रोगों के बीच एक संबंध है।

इंसान के व्यक्तित्व और सैल्फ़ कंसैप्ट पर पड़ने वाले नामों के प्रभावों के अध्ययन से यह सपष्ट हो गया है कि मां-बाप को अपने बच्चों के नामों के चयन में काफ़ी सावधानी से काम लेना चाहिए और अगर वे ख़ुद अच्छा नाम चयन करने की योग्यता नहीं रखते हैं तो इसके लिए किसी जानकार व्यक्ति की सहायता लेनी चाहिए। इसी प्रकार विचित्र एवं असामान्य नामों से बचने के साथ साथ ही ऐसे लोगों के नाम का चयन करने से बचना चाहिए कि जो एक विशेष अवधि के लिए लोगों के सामने उभरते हैं और शीघ्र ही उनका रंग फीका पड़ जाता है।

 

 

उदाहरण स्वरूप, अमरीका और इराक़ के बीच युद्ध के दौरान इराक़े के पूर्व तानाशाह सद्दाम का नाम उभरकर सामने आने के बाद, कुछ सुन्नी मुसलमानों ने अपने लड़कों का नाम सद्दाम रखा। निश्चित रूप से ऐसा जिन लोगों ने किया वे सद्दाम शब्द के अर्थ से तो अनभिज्ञ थे ही उसकी तानाशाही प्रवृत्ति के बावजूद उसके अंजाम से भी अवगत नहीं थे। इसका नतीजा यह हुआ कि कल जिन लड़कों का नाम सद्दाम रखा गया था आज वे बड़े हो गए हैं और उन्हें इस नाम के कारण शर्मिंदा होना पड़ता है।

इसलिए अच्छा नाम चुनने की ज़िम्मेदारी मां-बाप की है और अगर मां-बाप से इस संदर्भ में कोई भूल चूक हो गई है तो जब भी वे अपनी इस ग़लती की ओर मुतवज्जेह हो जाएं इसमें सुधार कर लें।

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