Nov ०९, २०१६ १५:०२ Asia/Kolkata

सूरए कौसर क़ुरआने मजीद का एक सौ आठवां सूरा है जो पैग़म्बर पर मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें तीन आयतें हैं।

ईश्वर की ओर से पैग़म्बर के लिए अत्यधिक विभूतियां, नमाज़ व ईश्वर की उपासना, क़ुरबानी और दरिद्रों की सहायता तथा पैग़म्बर के शत्रुओं की तबाही इस छोटे से सूरे में वर्णित विषय हैं।

ईश्वर ने लोगों के मार्गदर्शन के लिए पैग़म्बरों और उनके बाद इमामों को, जो अंतिम पैग़म्बर के उत्तराधिकारी हैं, इस संसार में उत्तरदायी बनाया है। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम इस संसार में ईश्वर के अंतिम पैग़म्बर हैं। उन्होंने अपने दायित्व के निर्वाह में अत्यधिक कठिनाइयां और यातनाएं सहन कीं। वे स्वयं कहते हैं कि किसी भी पैग़म्बर को मुझ जितनी यातनाएं नहीं दी गईं। इतनी अधिक यातनाओं के बावजूद उन्होंने एक क्षण के लिए भी एकेश्वरवाद और ईश्वरीय धर्म के प्रचार में ढिलाई नहीं की और कल्याण व सौभाग्य तथा उच्च शिष्टाचारिक गुणों की ओर लोगों का मार्गदर्शन करके संसार में एक महान परिवर्तन पैदा किया। उनसे पहले के पैग़म्बरों ने भी शुभ सूचना दी थी कि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के इस संसार में आने के बाद धर्म संपूर्ण और अमर हो जाएगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने ईदे ग़दीर के दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया और इस प्रकार अपनी पैग़म्बरी का दायित्व पूरा कर दिया।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की कोई संतान नहीं थी जिसके कारण क़ुरैश में उनके शत्रु उन्हें अबतर कहा करते थे जिसका अर्थ होता है ऐसा व्यक्ति जिसका वंश समाप्त हो गया हो। वे सोचते थे कि पैग़म्बर के इस दुनिया से चले जाने के बाद उनके सभी कार्यक्रम समाप्त हो जाएंगे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं है। वे यही सोच सोच कर ख़ुश होते रहते थे। ईश्वर ने इस अनादर के उत्तर में सूरए कौसर भेजा और इस तरह पैग़म्बर के शत्रुओं के मुंह पर ज़ोरदार थप्पड़ मारा और पैग़म्बर के पवित्र वंश को उनकी बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के माध्यम से आगे बढ़ाया। सूरए कौसर की आयतों का अनुवाद इस प्रकार है। (हे पैग़म्बर!) निश्चय ही हमने आपको अत्यधिक भलाई प्रदान की तो अपने पालनहार के लिए नमाज़ पढ़िए और (ऊंट की) क़ुरबानी दीजिए, निःसंदेह आपका शत्रु ही निर्वंश है।

आस बिन वाएल मक्के के अनेकेश्वादियों के सरग़नाओं में से एक था। एक दिन उसने पैग़म्बरे इस्लाम के मस्जिदुल हराम से निकलते समय उनसे मुलाक़ात की और कुछ देरतक उनसे बातें करता रहा। क़ुरैश के कुछ सरग़ना मस्जिद में बैठे हुए थे और दूर से ही यह दृश्य देख रहे थे। जब आस बिन वाएल मस्जिद में आया उन लोगों ने उससे पूछा कि तुम किससे बात कर रहे थे। उसने कटाक्ष करते हुए कहा कि उस अबतर या निर्वंश व्यक्ति से। उसी समय सूरए कौसर नाज़िल हुआ जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम को अत्यधिक भलाई की शुभ सूचना दी गई है। इस सूरे में कहा गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम के शत्रु ख़ुद ही निर्वंश होंगे और इस्लाम व क़ुरआन के कार्यक्रम कभी समाप्त नहीं होंगे। इस सूरे में जो शुभ सूचना दी गई थी उसने  एक ओर तो इस्लाम के शत्रुओं की आशाओं को निराशा में बदल दिया और दूसरी ओर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को सांत्वना दी जो अनेकेश्वरवादियों के कटाक्ष सुन कर दुखी हो गए थे।

कौसर का बड़ा व्यापक अर्थ है और इसे अत्यधिक भलाई के लिए प्रयोग किया जाता है लेकिन क़ुरआने मजीद के व्याख्याकारों का कहना है कि यह शब्द इस सूरे में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के लिए प्रयोग हुआ है। पैग़म्बर की बेटी सभी उच्च शिष्टाचारिक गुणों से सुसज्जित थीं। उन्होंने इस्लाम के प्रसार में अत्यंत प्रभावी भूमिका निभाई और पैग़म्बरे इस्लाम के शब्दों में वे लोक-परलोक की महिलाओं की सरदार हैं। कुछ लोगों ने कौसर का अर्थ पैग़म्बरी बताया है, कुछ ने क़ुरआने मजीद, कुछ ने पैग़म्बर के अनेक साथियों और क छ अन्य ने उनकी अत्यधिक संतान को जो सबकी सब उनकी बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के वंश से पैदा हुई। यह वंश न केवल यह कि पैग़म्बरे इस्लाम की संतान था बल्कि इसी वंश के लोगों ने उनके धर्म और इस्लाम की सभी मान्यताओं की रक्षा की और उन्हें आगामी पीढ़ियों तक पहुंचाया।

क़ुरआने मजीद के प्रख्यात सुन्नी व्याख्याकार फ़ख़्रे राज़ी अपनी किताब तफ़सीरे कबीर में कहते हैं। “सूरए कौसर का अर्थ यह है कि ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को एक ऐसा वंश प्रदान करेगा कि जो सदैव बाक़ी रहेगा। आप देखिए कि हज़रत फ़ातेमा के वंश से अधिक विभूतिपूर्ण कोई वंश है जिसमें (इमाम) बाक़िर, सादिक़ और रज़ा (अलैहिमुस्सलाम) जैसे लोग पैदा हुए हों? हालांकि बनी अब्बास और बनी उमय्या के शासन काल में बड़ी संख्या में हज़रत फ़ातेमा के वंश लोगों को शहीद किया गया लेकिन अब भी अधिकांश इस्लामी देशों में उनका वंश फैला हुआ है जबकि बनी उमय्या का कोई भी उल्लेखनीय आदमी संसार में बाक़ी नहीं बचा है।“ ईश्वर इस अनुकंपा और विभूति पर अपने प्रिय पैग़म्बर से कहता है कि वे अपनी उपासना में वृद्धि करें, नमाज़ अदा करें, क़ुरबानी करें और अपने दान दक्षिणा से लोगों को लाभान्वित करें।

सूरए काफ़िरून, सूरए कौसर के बाद क़ुरआने मजीद का एक सौ नवां सूरा है जो पैग़म्बर पर मक्के में नाज़िल हुआ और इसमें छः आयतें हैं। यह सूरा उस समय नाज़िल हुआ जब मुसलमानों की संख्या बहुत कम थी और काफ़िर बहुसंख्या में थे। काफ़िरों की ओर से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम अत्यधिक दबावा में थे और अनेकेश्वरवादी चाहते थे कि पैग़म्बर उनसे सांठ-गांठ कर लें लेकिन उन्होंने उनकी बात पूरी तरह से नकार दी और उन्हें निराश कर दिया।

वलीद बिन मुग़ैरा, आस बिन वाएल और हारिस बिन क़ैस जैसे क़ुरैश के अनेकेश्वादियों के कुछ सरग़नाओं के एक गुट ने कहा कि हे मुहम्मद! तुम हमारे धर्म का पालन करें तो हम भी आपके धर्म का पालन करेंगे और अपने सभी लाभों में आपको सहभागी बनाएंगे। एक साल आप हमारे देवताओं की उपासना करें और अगले साल हम आपके ईश्वर की उपासना करेंगे। पैग़म्बर ने उनके उत्तर में कहा कि मैं किसी को भी अनन्य ईश्वर का समकक्ष नहीं बना सकता। उन्होंने कहा कि कम से कम हमारे देवताओं का स्पर्ष करें और उन्हें पावन मानें तो हम भी आपकी पुष्टि करेंगे और आपके ईश्वर की उपासना करेंगे।

उसी समय सूरए काफ़िरून नाज़िल हुआ और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम मस्जिदुल हराम में आए जहां क़ुरैश के कई सरग़ना एकत्र थे। पैग़म्बर ने इस सूरे को आरंभ से लेकर अंत तक उनके सामने पढ़ा। जब उन्होंने इस सूरे का संदेश सुना तो पूरी तरह से निराश हो गए। सूरए काफ़िरून की आयतों का अनुवाद है। (हे पैग़म्बर!) कह दीजिए कि काफ़िरो! जिनकी तुम उपासना करते हो मैं उनकी उपासना नहीं करता और न तुम भी उस (ईश्वर) की उपासना करने वाले नहीं हो जिसकी मैं उपासना करता हूँ और न मैं उनकी उपासना करने वाला हूँ जिनकी तुमने उपासना की है और न तुम उस की उपासना करने वाला हो जिसकी मैं उपासना करता हूँ (तो जब ऐसा है तो) तुम्हारे लिए तूम्हारा धर्म है और मेरे लिए मेरा धर्म!

इस सूरे में अनेकेश्वरवादियों द्वारा जिन चीज़ों की उपासना की जाती है उससे विरक्तता की बात दोहरा कर कही गई है ताकि एकेश्वरवाद और अनेकेश्वरवाद को स्पष्ट रूप से अलग कर दिया जाए और अनेकेश्वरवादी इस ओर से निराश हो जाएं कि मुसलमान उनके समक्ष घुटने टेक देंगे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का आशय यह था कि मुसलमान कभी भी अनेकेश्वरवाद और मूर्ति पूजा की ओर उन्मुख नहीं होंगे और इसी तरह अनेकेश्वरवादी भी अपनी हठधर्मी, पूर्वजों के अंधे अनुसरण और मूर्ति पूजा के कारण मिलने वाले अवैध लाभों के दृष्टिगत अनेकेश्वरवाद छोड़ कर एकेश्वरवाद की ओर नहीं आएंगे।

वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम ने एकेश्वरवाद और अनेकेश्वरवाद के साथ को असंभव बताया और मूर्ति पूजा करने वालों को इस संबंध में निराश करने के लिए बल देकर कहा कि न तो मैं उस चीज़ की उपासना करूंगा जिसकी तुमने उपासना की है और न ही तुम उस ईश्वर की उपासना करने वाला हो जिसकी मैं उपासना करता हूँ। क़ुरआने मजीद के अनुसार शिर्क या अनेकेश्वरवाद का अर्थ, किसी को ईश्वर जैसा, उसका सहभागी या उसका समकक्ष ठहराना है। चूंकि एकेश्वरवाद के मानने वाले अनेकेश्वरवाद से विरक्त हैं और किसी को भी तत्वदर्शी व युक्तिकर्ता रचयिता जैसा नहीं समझते इस लिए वे अनेकेश्वरवाद को बड़ी पथभ्रष्टता व अत्याचार मानते हैं जो अक्षम्य है।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की ओर से अनेकेश्वरवाद से किसी भी प्रकार की सांठ-गांठ न करने पर बल सभी मुसलमानों के लिए आदर्श है कि उन्हें किसी भी स्थिति में इस्लाम के मामले में शत्रुओं से सौदा नहीं करना चाहिए और जब भी वे इस प्रकार की ग़लत मांग करें और अपनी मांग को निरंतर दोहराते रहें तब भी उन्हें पूरी दृढ़ता के साथ अपनी नीति की घोषणा करनी चाहिए ताकि वे निराश हो जाएं और अपनी बात छोड़ दें। एक अन्य बात यह है कि सभी का पूज्य अनन्य ईश्वर है अतः मुसलमानों को केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और इसी स्थिति में उन्हें मोक्ष व कल्याण प्राप्त होगा।

 

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