हम और पर्यावरण-16
अनेक पर्यावरणविदों का मानना है कि ईरान और इराक़ की सीमा पर मेसोपोटामिया के तालाबों के सूखने से मध्यपूर्व में हवा में धूल के कण शामिल हुए हैं, इसलिए कि तालाबों की एक अहम भूमिका, हवा में नमी को बढ़ाना और धूल के कणों को उड़ने से रोकना है।
पिछले 4 दशकों के दौरान, मेसोपोटामिया के तालाबों के साथ छेड़छाड़ के कारण 90 प्रतिशत तालाब नष्ट हो चुके हैं और गर्द और धूल के केन्द्र में परिवर्तित हो गए हैं।
हालिया दशकों में होने वाले शोध कार्यों से पता चलता है कि ईरान और इराक़ की सीमा पर स्थायी बड़े तालाब हौरुल अज़ीम के सूखने से, जो मेसोपोटामिया का बाक़ी बचने वाला सबसे बड़ा तालाब था, धूल के कण मध्यवपूर्ण का एक बड़ा संकट बन गए हैं।
हुवैज़ा या हौरुल अज़ीम विशाल तालाब 1 लाख 18 हज़ार हेक्टेयर क्षेत्रफल पर फैला हुआ है। यह ख़ुज़िस्तान प्रांत के पश्चिम में करख़े नदी के अंतिम छोर पर आज़ादगान जंगल के सीमावर्ती इलाक़े में स्थित है। ईरान और इराक़ की सीमाओं में इस तालाब के सूखने से हवा में धूल के कणों में वृद्धि हो गई है।
धूल के इन कणों पर होने वाले शोध से पता चलता है कि हालिया दिनों में दक्षिणी और पश्चिमी ईरान में जो गर्द और धूल थी, वह तालाबों से उठी थी, न कि रेगिस्तानी इलाक़े से। इसलिए कि इस धूल में पानी में पायी जाने वाली एक प्रकार की काई मौजूद थी। इसके अलावा धूल के इन कणों में ओस्ट्राकॉड नामक ज़ोप्लांक्टॉन भी शामिल थे। फ़ार्स खाड़ी क्षेत्रीय पर्यावरण संस्था द्वारा उपग्रह से ली गई तस्वीरों से भी पता चलता है कि हवा में धूल के कणों का कारण मेसोपोटामिया का नष्ट होने वाला इलाक़ा है, जो कुछ ही समय पहले तक मध्यपूर्ण का एक बड़ा तालाब था और आज रेगिस्तान में बदल चुका है।
फ़ार्स खाड़ी क्षेत्रीय पर्यावरण संस्था में ईरान के स्थायी प्रतिनिधि हसन मोहम्मदी का कहना है कि मेसोपोटामिया के तालाबों के सूखने का कारण, इराक़ और तुर्की द्वारा दजला और फ़ुरात नदियों पर बड़े बड़े बांधों का निर्माण है, जिसके परिणाम स्वरूप इलाक़े में धूल भरी आंधियां चलती हैं।
इससे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ के पर्यावरण कार्यक्रम यूएनईपी ने भी इससे संबंधित त्रासदी उत्पन्न होने की चेतापनी दी थी। यूएनईपी की रिपोर्ट में उल्लेख था कि नई सहस्राब्दी की शुरूआत में मेसोपोटामिया के ताबालों का विनाश विश्व की सबसे बड़ी पर्यावरण त्रासदियों में से है। बांधों का निर्माण और जलनिकासी का जाल बिछाने के कारण, विश्व के बेहतरीन ताबाल, जो एक समय ख़्वाबों की जन्नत के नाम से प्रसिद्ध थे और विश्व में विविध जीवन का एक महत्वपूर्ण केन्द्र माने जाते थे, आज एक रेगिस्तान में बदल चुके हैं।
यूएनईपी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इन तालाबों का विनाश, इंसानों की गतिविधियों के कारण उत्पन्न होने वाली भयानक त्रासदियों में से एक है, जिसके परिणाम हमेशा बाक़ी रहेंगे। मेसोपोटामिया के 90 प्रतिशत तालाबों का विनाश, एक ऐसी तबाही का नमूना है, जो क्षेत्रीय युद्धों और लड़ाईयों में वृद्धि, प्रदूषण में वृद्धि, स्थानीय समाजों के लिए चुनौती, प्राचीन धरोहरों और वनस्पतियों एवं जीव जंतुओं के विनाश और पर्यावरण शरणार्थियों की संख्या में वृद्धि एवं मानवाधिकारों के लिए चुनौती का कारण बन सकता है।
यद्यपि आम लोग मेसोपोटामिया के तालाबों के विनाश के लिए इराक़ के पूर्व तानाशाह सद्दाम के शासन को ज़िम्मेदार मानते हैं, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, मेसोपोटामिया के तालाबों में 1990 से 1995 के बीच अधिक बदलाव देखने में आया, इस प्रकार से कि हौरुल अज़ीम तालाब का एक बड़ा भाग 5 वर्ष की अवधि में नष्ट हो गया और केवल 30 प्रतिशत भाग बाक़ी बचा, इसमें तुर्क सरकार की भूमिका ध्यान योग्य है। राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के मुताबिक़, दजला और फ़ुरात पर सबसे अधिक तुर्की ने बांध बनाए हैं और इन महत्वपूर्ण नदियों का पानी रोका है। इराक़ और सीरिया में तालाबों और झीलों के सूखने का एक महत्वपूर्ण कारण, तुर्की की जीएपी परियोजना है। इस परियोजना के तहत तुर्की 2023 तक दजला और फ़ुरात पर 22 बांधों और 19 बिजली उत्पादन संयंत्रों का निर्माण करेगा। इस परियोजना के तहत अब तक 21 प्रतिशत निर्माण कार्य पूरा हो चुका है। प्राप्त दस्तावेज़ों के अनुसार, फ़ुरात नदी पर तुर्की द्वारा बनाए गए बांधों की भंडारण क्षमता इस नदी के कुल पानी का डेढ़ गुना है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दजला और फ़ुरात में गिरने वाले पानी की मात्रा 48 अरब घन मीटर है। इसमें से तुर्की 32 अरब घन मीटर पानी के भंडारण की क्षमता रखता है। हालांकि 98 प्रतिशत इराक़ की ज़रूरत के पानी की और 86 प्रतिशत सीरिया की ज़रूरत के पानी की आपूर्ति दजला और फ़ुरात नदियों से ही होती है। जानकार सूत्र भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि तुर्की की इस परियोजना में 80 प्रतिशत निवेश इस्राईल ने किया है, जिसके परिणाम स्वरूप, उत्तरी सीरिया और इराक़ की ज़मीनें सूख गई हैं।
इन परियोजनाओं के कारण दजला और फ़ुरात के पानी से लाभ उठाने वाले देशों के बीच तनाव भी उत्पन्न हुआ है। उदाहरण स्वरूप, तुर्की और सीरिया के बीच तनाव उत्पन्न हुआ इसी तरह सौरा बांध के निर्माण से इराक़ और सीरिया के बीच तनाव उत्पन्न हुआ। 1973 से 2000 के बीच ईरान और इराक़ में मेसोपोटामिया के तालाबों की राष्ट्र संघ द्वारा उपग्रहों से ली गई तस्वीरों और उनकी तुलना से इस परियोजना से पर्यावरण को पहुंचने वाले नुक़सान की पुष्टि होती है, इस क़दम के परिणाम स्वरूप इलाक़े में एक त्रासदी ने जन्म लिया है। ऐसी त्रासदी कि जिसने ईरान और इराक़ में हौरुल अज़ीम, हौरुल हम्र और हौरे मरकज़ी की अनउदाहरणीय सुन्दरता को नष्ट कर दिया और ऐसा इलाक़ा जहां बाबिल और सूमरी सभ्यताओं समेत असंख्यक सभ्यताओं ने जन्म लिया, क़रीब 5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल रेगिस्तान में बदल गया। 2001 से अब तक इस इलाक़े में धूल भरी आंधियों में 10 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। इन धूल भरी आंधियों ने इलाक़े के करोड़ों लोगों के लिए समस्याएं उत्पन्न कर दी हैं और जीवन कठिन बना दिया है।
निःसंदेह मध्यपूर्व में धूल भरी आंधियों पर निंयत्रण के लिए होने विभिन्न केन्द्रों के बीच सहयोग की ज़रूरत है। विगत में तीन देशों, ईरान, इराक़ और सऊदी अरब ने संयुक्त रूप से धूल भरी आंधियों पर निंयत्रण के लिए क़दम उठाए थे, उदाहरण स्परूप, यह देश इन इलाक़ों में मल्च या पलवार पर आने वाले ख़र्च को साझा करते थे और विशेष मौसम में इन इलाक़ों को मल्च किया जाता था। मल्च चिपकने वाला एक प्रकार का तेल उत्पाद है, जिसे रेगिस्तानों में रेत और धूल के कणों को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
लेकिन इराक़ युद्ध और 2000 के दशक में इन सरकारों के दृष्टिकोणों में परिवर्तन के कारण, इस काम को भुला दिया गया, जिसके नतीजे में इलाक़े में धूल भरी आंधियों में वृद्धि हो गई। इसके बाद भी कूटनीतिक स्तर पर कुछ समझौतों के बावजूद, दर्भाग्यवश इन देशों विशेष रूप से उन देशों के बीच जो इन धूल भरी आंधियों का स्रोत हैं, गंभीर सहयोग नहीं हो सका है। हालांकि यह धूल भरी आंधियां अब मध्यपूर्व के देशों में पर्यावरण के लिए गंभीर चुनौती और बड़ा ख़तरा हैं। अब अगर इनके समाधान के लिए कोई उपाय नहीं खोजा गया तो निकट भविष्य में इन देशों की सरकारों को स्वास्थ्य पर बहुत अधिक बजट ख़र्च करना होगा। इस संकट के क्षेत्रीय होने के कारण, इस समस्या का सामना करने वाली सरकारों के बीच संयुक्त सहयोग ज़रूरत है।
इस प्रकार के संकटों जैसे कि उत्तर दक्षिणी एशिया के संकट से निपटने के अनुभवों से पता चलता है कि पर्यावरण की समस्याओं के समाधान के लिए संयुक्त सहयोग की ज़रूरत होती है। इसलिए कि पर्यावरण समस्याएं सीमाओं में सीमित नहीं रहती हैं। इसलिए धूल भरी आंधियों से मुक़ाबले के लिए पड़ोसी देशों के बीच होने वाले समझौतों का क्रियान्वयन और संयुक्त सहयोग के लिए प्रस्ताव तैयार करना प्रभावी हो सकता है।