हम और पर्यावरण-17
1987 में आक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा हमारा संयुक्त भविष्य शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई।
उस रिपोर्ट में लिखा हुआ था कि ज़मीन एक ही है, लेकिन दुनिया एक नहीं है, हमें सभी को जीवन बिताने के लिए एक बायोस्फ़ेयर की ज़रूरत होती है। इसके बावजूद, हम समाज और देश अपने कल्याण और अपनी सुरक्षा के लिए कोशिश करते हैं और इन कोशिशों के दूसरों पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में नहीं सोचता। पिछले कुछ दशकों के दौरान बड़े पैमाने पर ज़मीनों का बंजर होना, आक्सफ़ोर्ड की रिपोर्ट को सिद्ध करता है। इस प्रक्रिया से उत्पन्न होने वाली चिंताओं के परिणाम स्वरूप, पहली बार 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो शहर में यूनाइटेड नेशन्स कांफ़्रेंस ऑन इनवार्यमेंट एंड डेवलपमेंट का आयोजन हुआ और इस सम्मेलन में ज़मीन के बंजर होने का विषय गंभीरता के साथ पेश किया गया। इस सम्मेलन का 21वां एजेंडा बंजर होती हुई ज़मीनों के बारे में वास्तव में 21वीं शताब्दी में विश्व समुदाय का एजेंडा है।
इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ से मांग की गई है कि जंगलों की कटाई और उपजाऊ ज़मीन के बंजर होने के विषय से विश्व संकट के रूप में निपटना चाहिए, इस संदर्भ में राष्ट्र संघ ने जंगलों की कटाई और उपजाऊ ज़मीनों को बंजर होने से रोकने के लिए सरकारों की सतह पर एक कन्वेंशन के संकलन के लिए एक समिति की स्थापना की। इस समिति ने तीन वर्षों के दैरान विभिन्न बैठकों के बीद, जंगलों की कटाई के बारे में एक अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन का संकलन किया।
17 जून 1994 में राष्ट्र संघ के सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने ज़्यादा से ज़्यादा से लोगों और सरकारों का ध्यान खींचने के लिए जंगलों की कटाई और उपजाऊ ज़मीन के बंजर होने के ख़तरे से निपटने के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसका उद्देश्य विश्व के सूखे इलाक़ों पर मानव दबाव में कमी करना था। इस संधि का नाम जंगलों की कटाई और सूखे पर निंयत्रण का विश्व कन्वेंशन है। इस प्रकार, 21 वर्ष पहले विभिन्न क्षेत्रों मिट्टी, पानी, भूविज्ञान, जलवायु, वनस्पति विज्ञान और जलवायु के विशेषज्ञों जमा हुए ताकि विश्व संधि के संदर्भ में विश्व की सरकारों को चेतावनी जारी करें कि 5 अरब 16 करोड़ 90 लाख हेक्टेयर या दुनिया की कुल सूखी ज़मीन 13 अरब हेक्टेयर का 39.7 प्रतिशत भाग बंजर हो रहा है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिससे केवल कृषि के बुनियादी ढांचे और खाद्य पदार्थों को अरबों डॉलर का नुक़सान पहुंचेगा।
अब इस कन्वेंशन के सदस्य 190 से अधिक देश सूखे इलाक़ों के लोगों का जीवन स्तर बेहतर बनाने और ज़मीन को पुनः उपजाऊ बनाने के लिए सहयोग कर रहे हैं। मरुस्थलीकरण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के सचिवालय ने भी ज़मीनों को बंजर होने से रोकने के लिए स्थानीय लोगों को सहयोग के लिए प्रेरित किया है और विकसित एवं विकासशील देशों के बीच सहयोग बढ़ाने और तकनीक के हस्तानांतरण के लिए प्रयास किया है। जंगलों और रेगिस्तानों के किनारों पर कृर्षि की ज़मीन को बंजर होने से बचाने और हरियाली की सुरक्षा के लिए इस कन्वेंशन ने पौधे लगाने, दाना बोने, सिंचाई, निर्धारित अवधि के लिए चरागाहों में जानवरों को जाने से रोकने और प्राकृतिक वातावरण में संतुलन बनाए रखने का उद्देश्य निर्धारित किया है।
मरुस्थलीकरण के खिलाफ़ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ने नीचे से ऊपर की ओर का फ़ार्मूला पेश करके अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों में नया अध्याय खोला है। इस कन्वेंशन के दस्तावेज़ों में कई बार सहयोग विशेष रूप से महिलाओं के सहयोग पर बल दिया है। इस कन्वेंशन ने लोगों और अधिकारियों के बीच संपर्क तथा लोगों के बीच सहोयग में वृद्धि के लिए ग़ैर सरकारी संगठनों की भूमिका पर भी बल दिया है। इसी प्रकार इस कन्वेंशन ने अपने 2012-2015 के कार्यक्रम के 6 प्रमुख विषयों का उल्लेख किया है और विषय में कुछ एजेंडे बयान किए हैं। सार्वजनिक जानकारी में वृद्धि, नीति निर्धारण, शिक्षा, तकनीक, क्षमता में वृद्धि, स्रोतों की आपूर्ति और दिशा निर्देश इस कन्वेंशन की स्ट्रैटेजी है।
वर्तमान समय में वह देश कि जो मरुस्थलीकरण के विस्तार से जूझ रहे हैं, वे राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर कन्वेंशन के कार्यक्रमों को लागू कर रहे हैं। हालांकि अभी भी अफ़्रीक़ा, एशिया, लैटिन अमरीका, कैरिबियन क्षेत्र, उत्तरी एवं केन्द्रीय भूमध्य सागर और पूर्वी यूरोप ज़मीनों के बंजर होने की समस्या से जूझ रहे हैं। प्रतिवर्ष 1 करोड़ 20 लाख हेक्टेयर ज़मीन अर्थात स्विट्ज़रलैंड के क्षेत्रफल का तीन गुना इलाक़ा, कि जिसमें 2 करोड़ टन अनाज पैदा हो सकता है, विश्व में मरुस्थल के विस्तार के कारण, बर्बाद हो रहा है। ज़मीन के इस विनाश के कारण, खाद्य पदार्थों की पैदावार में कमी, पानी की कमी और करोड़ों लोगों की भुखमरी और 2 अरब लोगों के प्रभावित होने का ख़तरा है।
जंगलों की कटाई और उपजाऊ ज़मीन के बंजर होने के परिणाम स्वरूप, केवल इकोसिस्टम के नष्ट होने का ख़तरा नहीं है, बल्कि हवा में धूल के कणों में वृद्धि और मिट्टी की उत्पादक क्षमता में कमी, जनसंख्या वाले केन्द्रों और सड़कों, टेलिकम्यूनिकेशन, बिजली की आपूर्ति जैसे बुनियादी ढांचे को भी निशाना बनाता है। इसलिए पूरे साहस के साथ कहा जा सकता है कि मरुस्थलीकरण एक वैश्विक समस्या है, जिसके पर्यावरण, ग़रीबी को उखाड़ फेंकने, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिरता और ठोस विकास जैसे मंद्दों पर विविध एवं गंभीर प्रभाव हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, मरूस्थलीकरण के विस्तार को केवल उसी समय रोका जा सकता है कि जब स्थानीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोगों के व्यवहार में बड़ा परिवर्तन हो। इन परिवर्तनों से हम ज़मीन से सही लाभ उठाकर विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य ज़रूरतों की आपूर्ति कर सकते हैं। इस प्रकार, वास्तविक अर्थ में मरुस्थलीकरण, एक बड़े उद्देश्य का केवल एक भाग है और वह है सूखे और मरुस्थलीकरण के विस्तार से प्रभावित देशों का स्थिर विकास। मरुस्थलीकरण जलवायु परिवर्तन के साथ स्थिर विकास के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसी लिए मरुस्थलीकरण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ने मरुस्थलीकरण एवं ज़मीन के बंजर होने को रोकने, सूखे के प्रभाव को कम करने एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिए सहयोग पर बल दिया है और प्रक्रिया इसी प्रकार से जारी है।
इस संदर्भ में ईरान तीसरा देश है, जिसने मरुस्थलीकरण के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र के कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किये हैं और औपचारिक रूप से उसे पारित करने के चरणों को 1996 में पूरा कर लिया है। इसके अलावा, ईरान ने मरुस्थलीकरण एवं सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए 2004 में एक कार्यक्रम बनाया, जिसमें विशेष रूप से हर स्तर पर स्थानीय लोगों की भागीदारी एवं फ़ैसले लेने तथा नीचे से ऊपर के फ़ार्मूले पर बल दिया है।
राष्ट्रीय कार्यक्रम की एक प्राथमिकता, बड़े पैमाने पर आर्थिक सहयोग मरुस्थलीकरण से मुक़ाबले की समति की कार्ययोजना है। इस संदर्भ में एशियाई इलाक़े में 6 विषयवस्तु के नेटवर्कों की स्थापना, कार्यक्रम को लागू करने के लिए क्षेत्रीय 6 देशों की ज़िम्मेदारी निर्धारित हो गई है। ईरान ने विषयवस्तु के नेटवर्क की ज़िम्मेदारी, चरागाहों के निर्देशन और हवा में उड़ने वाले धूल के कणों को कम करने की ज़म्मेदारी संभाली है। इस नेटवर्क का उद्देश्य जानकारी एकत्रित करना, क्षेत्रीय क्षमता में वृद्धि, चरागाहों का संचालन और सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर पशुपालन एवं उसका उत्पादन है।
निश्चित रूप से विश्व समाज इस प्रकार के क़दम उठाकर ज़मीन को नष्ट होने से बचा सकता है। ज़मीन को नष्ट होने से बचाकर खाद्य पदार्थों की सुरक्षा, देहाती इलाक़ों में भुखमरी में कमी और पर्यावरण संबंधित बड़ी चुनौतियों का मुक़ाबला किया जा सकता है। इसलिए ज़मीन को बंजर होने से बचाने के लिए एक वैश्विक प्रतिबद्धता की ज़रूरत है। आज मरुस्थलीकरण ने विश्व के कुछ इलाक़ों को प्रभावित किया है, ऐसी स्थिति में अगर प्राकृतिक स्रोतों एवं पर्यावरण की सुरक्षा के लिए गंभीर क़दम नहीं उठाये जायेंगे तो शायद विश्व के अन्य इलाक़ों को भी ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है।
आज यह बात साबित हो चुकी है कि जलवायु संबंधित चुनौतियां, ग्लोबल वार्मिंग और मरुस्थलीकरण विश्व वासियों के संयुक्त दुश्मन हैं। इसलिए समय रहते हुए समस्त देशों को चाहिए कि व्यापक एवं स्थिर समाधान खोजें और ज़मीन की सुरक्षा के लिए दृढ़ संकल्पित हो जाएं, इसलिए कि ज़मीन एक ऐसा स्रोत है, जिसका नवीनीकरण संभव नहीं है, इसलिए इस अमानत को सुरक्षित रूप से आने वाले नस्लों तक पहुंचाया जाना चाहिए।