Dec १८, २०१६ १३:४९ Asia/Kolkata

हवा इंसान के जीवन को जारी रखने के लिए ज़रूरी पांच तत्वों में से एक है।

हर व्यक्ति हर दिन लगभग 22000 बार सांस लेता है और हर दिन एक व्यक्ति को लगभग 15 किलोग्राम हवा की ज़रूरत होती है। इंसान के लिए यह मुमकिन है कि खाने के बिना 5 हफ़्ते और पानी के बिना 5 दिन ज़िन्दा रह सकता है लेकिन हवा के बिना 5 मिनट भी ज़िन्दा नहीं रह सकता। हम जिस हवा में सांस लेते हैं उसमें 4 गैसें मुख्य रूप से मौजूद होती हैं। ये चार गैसें नाइट्रोजन 78 फ़ीसद, ऑक्सीजन 21 फ़ीसद, आर्गान 0.9 फ़ीसद और कार्बन डाई ऑक्साइड 0.03 फ़ीसद वातावरण में होती हैं। हवा न सिर्फ़ प्राणियों बल्कि वनस्पतियों यहां तक कि माइक्रोब के ज़िन्दा रहने के लिए भी ज़रूरी होती है। हवा सूरज से ज़मीन की सतह पर पहुंचने वाली गर्मी को  बाक़ी रखती है और साथ ही सूरज की हानिकारक किरणों से बचाती है। लेकिन इंसान ने औद्योगिक क्रान्ति के आरंभ और हालिया शताब्दियों में विज्ञाव व उद्योग के क्षेत्र में अपनी प्रगति से हवा को दूषित करना शुरु किया। कारख़ानों की चिमनियों से निकलने वाली कॉर्बन गैस की बढ़ती मात्रा, इसी प्रकार कार से निकलने वाले धुएं, तेल के कुओं के और जंगलों में आग लगने के कारण हवा दूषित होती है जिससे ज़मीन पर रहने वाले प्राणियों की जान ख़तरे में पड़ती है।

विश्व स्वास्थय संगठन की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार, 2012 में लगभग 70 लाख लोगों की वायु प्रदूषण के कारण मौत हुयी। यह संख्या पूर्व अनुमान की तुलना में दुगुना थी। इन 70 लाख लोगों में 40 लाख से ज़्यादा लोगों की घरों में प्रदूषित हवा से मौत हुयी जैसे खाना पकाने वाले अनुचित चूल्हे और पकाने में इस्तेमाल होने वाले ईंधन। यह आंकड़े दर्शाते हैं कि पूरी दुनिया में 37 लाख से ज़्यादा लोगों की शहरों और गावों में वातावरण में दूषित हवा के कारण मौत हुयी। कुछ देशों में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या सड़क दुर्घटना में मरने वालों से ज़्यादा है। यह मौतें अस्थमा, ब्रांगकाइटिस, हार्ट अटैक, श्वसन तंत्र को प्रभावित करने वाली एलर्जी के कारण हुयीं। अलबत्ता कम उम्र के बच्चों और वृद्ध लोगों दूषित हवा से सबसे ज़्यादा नुक़सान पहुंचता है।        

इस समय दुनिया के बहुत से बड़े शहर इस समस्या से ग्रस्त हैं। विश्व स्वास्थय संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय शहरों में वायू प्रदूषण से लोगों की ज़िन्दगी 9 महीने से 2 साल तक कम हो रही है। इसी प्रकार एथेन्ज़ में जिन दिनों हवा बहुत दूषित होती है, उन दिनों मरने वालों की आम दिनों की तुलना में संख्या कई गुना ज़्यादा होती है। हंग्री में हर 17 में से एक मौत दूषित हवा और इसके साइट इफ़ेक्ट के कारण होती है। यह संख्या अमरीका में बड़े शहरों में 45 साल से ज़्यादा उम्र के लोगों के संबंध में अन्य उपनगरीय क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में 13 फ़ीसद ज़्यादा है। सबसे ज़्यादा दूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में कैंसर से होने वाली मौत की संख्या उन क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में 50 फ़ीसद ज़्यादा है जहां वायु प्रदूषण सबसे कम है।

शोध से पता चला है कि वायू प्रदूषण का ख़तरनाक साइड इफ़ेक्ट प्रजनन तंत्र, गर्भाधारण, भ्रूण और नजवात पर पड़ता है। इसी प्रकार पुरुषों पर किए गए शोध के अनुसार, सीसा, सल्फ़र डाइऑक्साइड और हवा में मौजूद छोटे छोटे कणों के कारण पुरुषों में बाप बनने की सलाहियत ख़त्म हो जाती है। इसी प्रकार शोध दर्शाते हैं कि प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों में कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फ़र डाइऑक्साइड और पर्यावरण में मौजूद कणों का भ्रूण पर यह असर होता है कि पैदाइश के वक़्त कम वज़्न का बच्चा जन्म लेता है। इसी प्रकार इन तत्वों के कारण गर्भ में बच्चे का विकास रुक जाता है या गर्भ में ही भ्रूण की मौत हो जाती है। यह घटनाएं औद्योगिक क्षेत्रों और बड़े शहरों में ख़ास तौर पर जाड़े के मौसम में अधिक घटती हैं।

वायू प्रदूषण का असर वनस्पतियों पर भी पड़ता है। पर्यावरणविदों के शोध दर्शाते हैं कि हवा में मौजूद प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों के कारण वनस्पतियों के पत्तों में बने छिद्र बंद हो जाते हैं। इसी प्रकार प्रदूषण के कारण वनस्पतियों में मौजूद क्लोरोफ़िल ख़त्म हो जाता है जिसके नतीजे में पेड़ पौधों के लिए ज़रूरी पदार्थ मुहैया करने वाले पत्ते पीले रंग के हो जाते हैं। इस प्रकार पेड़ पौधों को विकास के लिए ज़रूरी पदार्थ नहीं मिल पाते। इसी प्रकार हवा को प्रदूषित करने वाले तत्वों से वनस्पतियों की कोशिकाएं मर जाती हैं। इसी प्रकार वायू प्रदूषण के कारण पेड़ की फ़ोटो सिन्थेसिज़ प्रक्रिया कम हो जाती है, पेड़ में पत्ते कम निकलते हैं। इसी प्रकार प्रदूषण के कारण पेड़ पौधौं में फूल और फल दोनों कम हो जाते हैं।

 विशेषज्ञों की नज़र में वायू प्रदूषण का मतलब है खुली हवा में हवा को दूषित करने वाले एक या कई तत्वों का इतनी मात्रा व समय के लिए मौजूद होना जो हवा की गुणवत्ता को इतना बदल दे कि न सिर्फ़ इंसान और दूसरे प्राणियों बल्कि शहरी ढांचों के लिए भी नुक़ुसानदेह हो।

जैसा कि इससे पहले इस बात की इशारा किया शहरी इलाक़ों में वायू प्रदूषण औद्योगिक क्रान्ति का नतीजा है जो 300 साल पहले शुरू हुयी और औद्योगिक व शहरी विकास के साथ ही इसका स्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। कोयला, तेल और गैस जैसे ऊर्जा के स्रोतों पर बढ़ती निर्भरता और इन पदार्थों के जलने से वजूद मे आने वाले पदार्थ प्राणियों में ख़ास तौर पर इंसान के लिए बहुत ख़तरनाक हैं। बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक से जब वायू प्रदूषण और पर्यावरण की बर्बादी के बीच संबंध का पता, औद्योगिक दृष्टि से विकसित देशों ने वायू प्रदूषण फैलाने वाले तत्वों को नियंत्रित करने के लिए शोध कार्यक्रम शुरु किए लेकिन अफसोस की बात है कि लगभग सभी विकासशील देशों ने इस विषय पर गंभीरता नहीं दिखाई इसलिए इन देशों के बड़े शहरों में वायु प्रदूषण दिन प्रतिदिन खतरनाक होता जा रहा है। वायू प्रदूषण चार तत्वों के प्रभाव में बढ़ता है और ये चार तत्व औद्योगिकीकरण का अंजाम हैं। ये चार तत्व हैं शहरों की संख्य बढ़ना, शहरों में रहने का रुझान बढ़ना, शहर में ट्रैफ़िक बढ़ना और तेज़ आर्थिक विकास व दूसरे क्षेत्रों में ऊर्जा का उपभोग बढ़ना।

सबसे बड़े प्रदूषण फैलाने वाले तत्व इंसानी गतिविधियों से पैदा होते हैं जो वायू प्रदूषण का कारण बनते हैं। वायू प्रदूषण कार्बन बोनो ऑक्साइड, सल्फ़र ऑक्साइड, मिथेन और नाइट्रोजन ऑक्साइड गैसों से सबसे ज़्यादा फैलता है। इसके अलावा हवा में मौजूद कण भी शहरों में प्रदूषण फैलाते हैं। हवा में मौजूद कड़ तरल और ठोस रूप में होते हैं। यह इतने छोटे होते हैं कि माइक्रोस्कोप से दिखाई देते हैं। कभी कभी इतने छोटे होते हैं कि माइक्रोस्कोप से भी नहीं दिखाई देते। ये कण इतने ख़तरनाक होते हैं कि इंसान के फेफड़ों में चले जाते हैं बल्कि कुछ कण तो इंसान के ख़ून में मिल जाते हैं जिसके नतीजे में इंसान श्वसन तंत्र और दिल की बीमारियों का शिकार हो जाता है। इसी प्रकार ये कण मिट्टी और पानी पर भी बैठ जाते हैं और इस प्रकार पानी के स्रोतों और मिट्टी को दूषित करते हैं।  

बड़े शहरों में वायु प्रदूषण का एक कारण ज़मीन की सतह पर ओज़ोन गैस का स्तर भी है। ईंधन का इस्तेमाल करने वाले साधनों से निकलने वाली गैसों और सूरज की किरणों से प्रतिक्रिया से ओज़ोन वजूद में आती है। यह गैस इंसान के लिए ज़हर है। यह गैस जब हवा ठहरी हो और मौसम गर्म हो तो सूरज के चमकने से और पैदा होती है। ज़मीन की सतह पर मौजूद ओज़ोन और ज़मीन की सतह से कई किलोमीटर ऊपर वायुमंडल में मौजूद अच्छी ओज़ोन को एक नहीं समझना चाहिए। ज़मीन की सतह से कई किलोमीटर ऊपर वायुमंडल में मौजूद ओज़ोन सूरज की अल्ट्रावॉयलट किरणों को अवशोषित कर हमारी रक्षा करती है।

आज कल हवा की गुणवत्ता को टेस्ट करने के लिए एक्यूआई नामक मानदंड का इस्तेमाल करत हैं। यह शून्य से 500 तक वायु प्रदूषण का वर्गीकरण करता है। यह इंडेक्स मुख्य रूप से ज़मीन की सतह पर ओज़ोन के स्तर और हवा में मौजूद छोटे-छोटे कण के स्तर का पता लगाता है। यह भी मुमकिन है कि इसमें सल्फ़र डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की मात्रा को भी मद्देनज़र रखा जाए। अगर एक्यूआई 100 से ज़्यादा दिखा रहा है तो इसका अर्थ है कि वायु प्रदूषण ज़्यादा है। यही कारण है कि जिस क्षेत्र में एक्यूआई 100 से ज़्यादा होता है तो लोगों को वायू प्रदूषण से दूर रहने के लिए ज़रूरी चेतावनी जारी की जाती है।