Jan ०८, २०१७ १७:१६ Asia/Kolkata

हमने आपको इस्लाम के मूल स्तंभ समझे जाने वाले सिद्धांतों के बारे में बताया था और इस बात का उल्लेख किया था कि इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई की नज़र में एकेश्वरवाद और न्याय की क्या अहमियत है।

पैग़म्बरी को मानने का अर्थ है पैग़म्बरों या ईश्वरीय दूतों के सत्य पर होने पर आस्था रखना।  इसी प्रकार पैग़म्बरों के मानव जाति को ईश्वर तक पहुंचाने वाले मार्ग व उद्देश्य पर आस्था रखना है। इस्लाम के इस सिद्धांत के अनुसार, हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ईश्वर के अंतिम व सर्वश्रेष्ठ दूत हैं जिनके ज़रिए ईश्वर ने मानव समाज के लिए एक संपूर्ण धर्म इस्लाम के रूप में भेजा।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई पवित्र क़ुरआन की आयत के हवाले से ईश्वरीय दूतों की विशेषताओं के उल्लेख में कहते हैं, “ईश्वर पैग़म्बरों व मानव जाति का मार्गदर्शन करने वालों और उन लोगों की जिन्होंने मानव पीढ़ियों के मार्गदर्शन का बीड़ा उठाया था, ये विशेषताएं बयान करता है कि वे सही मार्ग दिखाने वाले व इमाम हैं। ईश्वर की ओर से उन पर भले कर्म करने के लिए वही नामक ईश्वरीय संदेश उतरता है। नमाज़ क़ायम करते हैं और जक़ात देते हैं और उनके लिए सबसे गर्व की बात यह है कि वे ईश्वर के बंदे हैं और अपने कर्म से मानव जाति को ईश्वर की बंदगी की शिक्षा देते हैं।”

इस्लामी हदीसों के आधार पर मुसलमानों का मानना है कि ईश्वर ने इंसान के मार्गदर्शन के लिए 1 लाख 24000 दूत भेजे। इन महापुरुषों तक ईश्वरीय संदेश विशेष तरीक़े से पहुंचता था जिसे वही कहते हैं और वे ईश्वरीय संदेश पर सबसे बेहतर ढंग से अमल करते थे। पवित्र क़ुरआन में इस बात का उल्लेख है कि कुछ पैग़म्बर ऐसे थे जिनके पास ईश्वरीय ग्रंथ भी था। हदीसों में हज़रत शीस, हज़रत इदरीस, हज़रत नूह और हज़रत इब्राहीम पर सहीफ़ा नामक विशेष ग्रंथ उतरने का उल्लेख है। इसी प्रकार चार मशहूर ईश्वरीय ग्रंथ हैं जिनके नाम हैं तौरैत, ज़बूर, इंजील और क़ुरआन। तौरैत हज़रत मूसा, ज़बूर हजरत दाऊद, इंजील या बाइबल हज़रत ईसा और क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार, बहुत से पैग़म्बर ऐसे थे जिनके पास किताब नहीं थी बल्कि वे दूसरों पैग़म्बरों का अनुसरण करते थे।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई नबुव्वत अर्थात पैग़म्बरी की अहमियत के बारे में कहते हैं, “पैग़म्बरी बहुत अहम विषय है। सभी दूत इसी उद्देश्य के लिए आए और वह उद्देश्य है एकेश्वरवादी समाज का गठन जो न्याय पर आधारित हो और इसके लिए इंसान के वजूद में ईश्वर की ओर से दी गयी सभी क्षमताओं का उपयोग करना है।”    

ईश्वरीय पैग़म्बरों या दूतों में 5 दूत ऐसे हैं जिनका स्थान सबसे ऊपर है। ये पांच पैग़म्बर जो धर्म लाए वह विश्वव्यापी था और उनके पास ईश्वरीय ग्रंथ भी उतरा था। ये पांच बड़े पैग़म्बरों के नाम यह हैं, हज़रत नूह, हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम। इन पैग़म्बरों ने अपने दौर में ईश्वरीय संदेश को पहुंचाने में सबसे ज़्यादा कठिनाइयां सहन कीं किन्तु इन पांच पैग़म्बरों में सबसे ज़्यादा कठिनाई अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने सहन की।

सभी ईश्वरीय पैग़म्बर एक ही उद्देश्य के लिए दुनिया में आए यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अंतिम दूत के रूप में भेजे गए और क़ुरआन के रूप में मानव जाति के मार्गदर्शन की संपूर्ण किताब पेश की। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर धर्म की अहमियत और उसे पैग़म्बरे इस्लाम के ज़रिए भेजने की ओर इशारा करता है। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम से जिनके ज़रिए से उसने संपूर्ण धर्म भेजा, कहता है, उसने तुम्हारे लिए धर्म में वह रास्ता तय किया जिसकी नसीहत नूह को की थी और जिसके बारे में तुम्हें हे पैग़म्बर वही के ज़रिए बताया है और जिसकी नसीहत इब्राहीम, मूसा और ईसा को भी की है कि धर्म को क़ायम करो और उसमें फूट पैदा न होने पाए।

वह हस्तियां जिन पर ईश्वरीय संदेश वही उतरता था, बहुत बड़ी शिक्षक थीं। इस बारे में आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं, “इंसानों के लिए ज़रूरी है कि उन्हें शिक्षा मिले और उनका आत्मोत्थान भी हो ताकि यह धरती और इस पर बसा विशाल मानव समाज एक स्वस्थ परिवार के रूप में परिपूर्णतः तक पहुंचे और इस संसार की विभूतियों से लाभ उठाए। सभी पैग़म्बरों का यही उद्देश्य था। हर पैग़म्बर ने शिक्षा और प्रशिक्षा के महान दायित्व को जितना समय के अनुसार का निभाया।”

कुछ पैग़म्बर ख़ास तौर पर 5 बड़े पैग़म्बर बड़े उद्देश्य के साथ पैग़म्बर नियुक्त हुए थे। वे उस दौर में चमके जब मानव जाति नाना प्रकार के भगवान को पूजती और समाज में व्याप्त बुराइयां उसे पतन की ओर ले जा रही थी। उन्होंने एकेश्वरवाद, न्याय, प्रेम, भ्रष्टाचार और अत्याचार से दूरी पर आधारित अपनी शिक्षा दुनिया वालों तक पहुंचायी। पैग़म्बर मनुष्य के अस्तित्व में निहित प्रवृत्ति को उभारना, न्याय की स्थापना और एकेश्वरवादी समाज का निर्माण करना चाहते थे ताकि ऐसे समाज में इंसान अपनी पूरी क्षमता को इस्तेमाल कर सके जो ईश्वर ने उसे दी हैं। इसी प्रकार ख़ुद और समाज को न्याय और परिपूर्णतः के शिखर तक पहुंचाए।                

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई पवित्र क़ुरआन की कुछ आयतों के मद्देनज़र करते हैं कि पैग़म्बर को इसलिए भेजा गया था कि वे लोगों को शिक्षा दें और उनकी आत्मशुद्धि करें। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के बक़रा नामक सूरे की आयत नंबर 129 में ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम के दायित्व के बारे में कहता है, “वह उन्हें किताब और तत्वदर्शिता सिखाए और उनका आत्मोत्थान करे।” इसी प्रकार पवित्र क़ुरआन के आले इमरान सूरे की आयत नंबर 164 में ईश्वर कहता है, “उनका आत्मोत्थान करे और उनको किताब व तत्वदर्शिता सिखाए।”

जैसा कि आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई बल देते हैं कि अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम लोगों को डराने और शुभ सूचना देने के लिए भेजे गए। उन्होंने मानव समाज के सामने एक नया मार्ग व क्षितिज खोला।

पैग़म्बर समाज में हमेशा नहीं रहते जबकि समाज को हर दौर में विश्वसनीय मार्गदर्शक की ज़रूरत होती है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बुनियादी विषय की व्याख्या करते हुए कहते हैं, “इन मार्गदर्शकों का इस्लाम ने पहले से प्रबंध किया कि पैग़म्बरे इस्लाम की नस्ल से मासूम हस्तियां एक के बाद एक आएं, लोगों का मार्गदर्शन करें। समाज का कई नस्लों व कई शताब्दियों तक शुद्ध क़ुरआनी शिक्षाओं की ओर मार्गदर्शन करें और वास्तव में इस्लामी विचार, नैतिकता व व्यवहार को इस्लामी समाज में प्रचलित करें। अलबत्ता उसके बाद भी लोगों के बीच अंतिम ईश्वरीय मार्गदर्शक, जिसे हुज्जते ख़ुदा कहते हैं, ज़िन्दा रहेगा क्योंकि दुनिया व मानव समाज हुज्जते ख़ुदा या ईश्वरीय मार्गदर्शक के बिना बाक़ी नहीं रह सकते।”

यहीं से धर्म के एक और स्तंभ की अहमियत स्पष्ट होती है जिसे इमामत कहते हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में कहते हैं, “इमामत का अर्थ है समाज का विभिन्न प्रकार के संचालन की शैली के मुक़ाबले में सबसे अच्छे ढंग से संचालन करना। ये विभिन्न प्रकार की शैलियों का स्रोत इंसान की कमज़ोरी, इच्छाएं और विशिष्टता पाने की चाह है। इस्लाम ने इमामत के रूप में मानव समाज के कल्याण का नुस्ख़ा पेश किया। यह कि एक इंसान ऐसा हो जिसका मन ईश्वरीय मार्गदर्शन से भरा हो, धार्मिक शिक्षाओं को समझता हो। अर्थात सही मार्ग का चयन कर सके, कार्य संपादन की शक्ति हो, अपनी जान, व्यक्तिगत इच्छा और जीवन को अहमियत न दे बल्कि उसकी नज़र में मानव समाज का जीवन व कल्याण अहमियत रखता हो कि जिसे हज़रत अमीरुल मोमेनीन अली अलैहिस्सलाम ने 5 साल से कम अवधि की अपनी ख़िलाफ़त के दौर में व्यवहारिक रूप से पेश किया। हज़रत अमीरुल मोमेनीन की 5 साल से कम ख़िलाफ़त ऐसा नमूना व आदर्श है जिसे मानव समाज कभी नहीं भूल सकता। शताब्दियों के बाद भी उनके कारनामे को याद किया जाता है।”

पवित्र क़ुरआन के निसा नामक सूरे की 59वीं आयत में ईश्वर कहता है, “हे वे लोगो! जो ईमान लाए हो ईश्वर, उसके पैग़म्बर और उलिल अम्र का आज्ञापालन करो।”

इस आयत में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के आज्ञापालन के साथ साथ उलिल अम्र के आज्ञापालन का आदेश दिया है। उलिक अम्र पैग़म्बरे इस्लाम की नस्ल से वही मासूम इमाम हैं जिनका आज्ञापालन मुसलमानों का कर्तव्य है। अंतिम ईश्वरीय धर्म यानी इस्लाम के आने से पहले वाले सभी पैग़म्बरों की शिक्षाएं परिपूर्ण हुयीं और मानव समाज के सामने सबसे व्यापक रूप में शिक्षाएं पेश हुयीं। इस धर्म की मुख्य शिक्षाएं पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनकी नस्ल से इमामों के आज्ञापालन को स्वीकार करने पर टिकी हुयी हैं और इस तरह सभी कल्याण व मोक्ष के मार्ग तक पहुंच सकते हैं।