मार्गदर्शन - 3
हमने बताया था कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के बाद लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व उनके पवित्र परिजनों पर है और यह धरती कभी भी इमाम और मार्गदर्शक से ख़ाली नहीं होती।
मुसलमानों की आस्थाओं के अनुसार इस समय पैग़म़्बरे इस्लाम के वंश के अंतिम इमाम, हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलसाम हैं जो लोगों की नज़रों से ओझल हैं और प्रकट होने के बाद संसार को न्याय से भर देंगे।
इस्लामी शिक्षाओं में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के वंश के इमाम पापों और हर प्रकार की बुराई से पवित्र हैं और लोगों का नेतृत्व, स्वामित्व और अभिभावकता उनके ज़िम्मे है। वस्तुतः लोगों पर विलायत या अभिभावकता ईश्वर के लिए है और उसने यह अधिकार पैग़म्बर को भी दिया है। पैग़म्बर के बाद यह अधिकार उनके वंश के अन्य मार्गदर्शकों तक पहुंचा है और वही सच्चे इस्लाम को आगे बढ़ाने वाले हैं। क़ुरआने मजीद ने भी स्पष्ट रूप से इस अहम विषय की ओर संकेत किया है। सूरए निसा की आयत नंबर 59 में कहा गया है। हे ईमान लाने वालो! ईश्वर, उसके पैग़म्बर और अभिभावकता का अधिकार रखने वालों का आज्ञापालन करो।
इमाम या अभिभावक, इस्लामी समाज के मार्गदर्शन की दृष्टि से पैग़म्बरे इस्लाम के ही समान है बस यह अंतर है कि पैग़म्बर, धार्मिक आदेशों को ईश्वर के विशेष संदेश वहि के माध्यम से प्राप्त करके लोगों के समक्ष पेश करते है जबकि इमाम इन धार्मिक शिक्षाओं का लोगों के समक्ष वर्णन करते हैं और हर काल में उन्हें सही मार्ग दिखाते हैं। स्पष्ट है कि ऐसा व्यक्ति जिसके संपूर्ण आज्ञापालन का आदेश ईमान वालों को दिया गया है, उसे हर प्रकार की बुराई और ग़लती से पवित्र होना चाहिए। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनेई विलायत या अभिभावकता के महत्व के बारे में कहते हैं कि धर्म का सबसे बुनियादी मामला, विलायत का है क्योंकि यह एकेश्वरवाद का चिन्ह व छाया है। विलायत का अर्थ है कि इस्लामी समाज में शासन ईश्वर का अधिकार है और उससे पैग़म्बर और पैग़म्बरे इमामों को प्राप्त होता है।
विलायत पर आधारित सरकार, वास्तविक इस्लामी मत में शासन की सबसे अच्छी शैली है। इस शासन में “वली” या अभिभावक वही होता है जो मुसलमानों के मामलों के संचालन के लिए सबसे उचित होता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी इस ईश्वरीय पद के लिए सबसे उपयुक्त थे। वे सद्गुणों और परिपूर्ण विशेषताओं के स्वमी थे, ईमान में सबसे आगे, ज्ञान में सर्वश्रेष्ठ और पैग़म्बर से सबसे निकट थे। आयतुल्लाह सयैद अली ख़ामेनेई, मुसलमानों की अभिभावकता के लिए ईश्वर की ओर से नियुक्ति के महत्व के बारे में कहते हैं कि इंसान के मामलों का संचालन, मानवीय नहीं बल्कि एक ईश्वरीय मामला है और इंसानों के सभी मामलों से भिन्न है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ग़दीर की ऐतिहासिक घटना और इस महान नियुक्ति में शासन को विलायत के नाम से पेश किया।
मुसलमानों की विलायत और उनके नेतृत्व का मामला इतना अहम है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को ईश्वर की ओर से आदेश मिला कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपने वली और उत्तराधिकारी के रूप में लोगों के सामने पेश करें। पैग़म्बरे इस्लाम की दसियों स्पष्ट हदीसें उनके बाद मुसलमानों की इमामत के लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नियुक्ति को सिद्ध करती हैं। इनमें से हदीसे सक़लैन और हदीसे मंज़िलत जैसे हदीसों को पैग़म्बर के बहुत से सहाबियों ने बयान किया है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ग़दीर की घटना के महत्व के बारे में, जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम को पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया, कहते हैं। सरकार के गठन, विलायत और देश के संचालन का मामला, धर्म के बुनियादी मामलों में से है और पैग़म्बरे इस्लाम इतनी महानता के साथ, लोगों की आंखों के सामने अपनी इस ज़िम्मादारी को इस प्रकार से अदा करते हैं कि शायद उन्होंने किसी भी अनिवार्य आदेश को इस प्रकार लोगों तक नहीं पहुंचाया होगा। न नमाज़ को, न ज़कात को, न रोज़े को और न ही जेहाद को। उन्होंने विभिन्न वर्गों और क़बीलों के लोगों को मक्के और मदीने के बीच एक चौराहे पर एक महत्वपूर्ण काम के लिए रोका और फिर ईश्वर की ओर से यह अहम संदेश पहुंचाया कि जिसका मैं अभिभावक और स्वामी हूं, उसके अली अभिभावक और स्वामी हैं।
इस्लाम की सही पहचान रखने वाला शासक एक प्रकाशमान दीपक की तरह है जो लोक-परलोक के मामलों में लोगों का मार्गदर्शन करता है और समाज को ईश्वर की बंदगी के मार्ग पर ले आता है। अलबत्ता लोग ईश्वर की ओर से नियुक्त शासक के प्रकाश से उसी समय लाभ उठा सकते हैं जब वे उसके निकट एकत्रित हों और उसके आज्ञापालन की सौगंध खाएं। लेकिन अगर वे उसे अकेला छोड़ दें और अपनी इच्छा के अनुसार आगे बढ़ना चाहें तो समाज सही दिशा में आगे नहीं बढ़ेगा और अन्याय तथा धर्म से दूरी का प्रचलन होने लगेगा। इसी लिए इतिहास में हम देखते हैं कि चूंकि अत्याचारी शासकों ने इमामों से विलायत और शासन का अधिकार छीन लिया था इस लिए समाज, मार्गदर्शन के पथ से हट गया और अन्याय व अत्याचार फैल गया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ईश्वर की ओर से नियुक्त इमाम के शासन और अन्य सरकारों के अंतर के बारे में कहते हैं। ईश्वर की ओर से जिसे लोगों पर शासन के लिए नियुक्त किया जाता है वह सुलतान या सम्राट नहीं होता। इस्लाम में शासन, इस दृष्टि से ध्यान योग्य है, जिस सरकार का प्रस्ताव इस्लाम ने दिया है वह अपने आप में सबसे बड़ी जनाधारित सरकार है। मानवीय संस्कृति में, अर्थात पूरे इतिहास के स्वतंत्रताप्रेमियों की संस्कृति में, बुरी सरकार के नाम पर कोई भी चीज़ विलायत में नहीं है। तानाशाही, अपनी इच्छा और लोगों के हित में फ़ैसला करने का इस्लामी विलायत में कोई स्थान नहीं है। विलायत का अर्थ होता है पवित्र लोगों का शासन, ऐसे लोगों का शासन जो अपनी आंतरिक इच्छाओं के विरोधी और भले कर्म करने वालों हों।
ईश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्ति या वली की ओर से सरकार के गठन का लक्ष्य लोगों के बीच इस्लामी आदेशों और शिक्षाओं का प्रचलन है। ऐसे समाज के लोग वली या ईश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्ति से बैअत करके या उसके आज्ञापान की सौगंध खा कर शासन उसके हाथ में देते हैं और न्याय, संपन्नता और शिष्टाचार पर आधारित जीवन से लाभान्वित होते हैं और एक स्वस्थ समाज का गठन करते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई इस्लाम की दृष्टि में विलायत के अर्थ के बारे में कहते हैं। विलायत का शाब्दिक अर्थ है दो चीज़ों का एक दूसरे से निकट होना। उदाहरण स्वरूप जब दो रस्सियों को मज़बूती से एक दूसरे के साथ बट दिया जाए और उन्हें सरलता से एक दूसरे से अलग करना संभव न हो तो उसे अरब में विलायत कहते हैं। विलायत का अर्थ है दो चीज़ों का एक दूसरे से मज़बूती से जुड़ा होना। विलायत का वास्तविक अर्थ है गहरा संपर्क, जुड़ाव और एक दूसरे में बटा होना, यही कारण है कि आप देखते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम जो इस्लामी विलायत का प्रतीक और वली का संपूर्ण उदाहरण हैं, कभी भी लोगों के साथ संपर्क और जुड़ाव से दूर नहीं थे। न उस समय जब उन्हें व्यवहारिक रूप से शासन से अलग कर दिया गया और विलायत के उनके अधिकार को छीन लिया गया और न ही किसी दूसरे काल में। वे किसी भी समय में लोगों से अलग-थलग नहीं थे बल्कि पूरी तरह लोगों से जुड़े हुए थे।
विलायत या इस्लामी अभिभावकता, इस्लाम धर्म के सबसे अहम आधारों में से एक है और उसका पालन हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है। इस्लाम का कोई भी वाजिब या अनिवार्य कर्म विलायत की तरह नहीं है। ईश्वर ने वली के आज्ञापालन को पैग़म्बर के आज्ञापालन जैसा बताया है और पैग़म्बर के आज्ञापालन को अपना आज्ञापालन बताया है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं। उसकी सौगंध जिसने मुझे पैग़म्बर बना कर भेजा, अगर किसी के पास सत्तर पैग़म्बरों जितने भी कर्म हों और वह हमारी विलायत को न मानता हो तो ईश्वर न तो उसकी तौबा स्वीकार करेगा और न ही कोई प्रायश्चित।