Jan ०९, २०१७ १७:४६ Asia/Kolkata

हर धर्म को पहचानने के लिए उसके सिद्धांतों और मौलिक नियमों की जानकारी आवश्यक है।

ईश्वरीय धर्म इस्लाम के भी मज़बूत नियम व सिद्धांत हैं जिन पर आस्था रखना मुसलमान होने की निशानी है। इस्लाम धर्म का एक सिद्धांत प्रलय के दिन पर आस्था रखना है।

ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई की दृष्टि में प्रलय ईश्वर की बारगाह में हाज़िर होना है। इंसान अपनी वास्तविकता और दिल की आंतरिक स्थिति के साथ ईश्वर की बारगाह में हाज़िर होगा। वहां इंसान कोई भी चीज़ नहीं छिपा सकता। यहां तक इंसान अपनी वास्तविकता को स्वयं देखेगा और बुरे कर्मों के लिए स्वयं अपनी भर्त्सना करेगा। प्रलय के के बारे में जो आयतें हैं इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई उस पर ध्यान देने और उस पर चिंतन- मनन के लिए सबका आह्वान करते और कहते हैं” प्रलय से संबंधित आयतें दिल को दहला देने वाली हैं। मेरा सुझाव है कि हममें से हर एक प्रलय से संबंधित आयतों का अकेले अध्ययन करे। चूंकि इसकी हमें ज़रूरत है। यह वह चीज़ नहीं है जिसका इंसान पंजीकरण करे और उसका आंकड़ा पेश करे। प्रलय के बारे में कुरआन में सैकड़ों आयते हैं जिनमें प्रलय और उसमें मिलने वाले दंड की सूचना है। दोनों प्रकार की आयतें अंतरात्मा को हिला देने वाली हैं। कुरआन की जो शुभसूचनाएं हैं वह भी आकर्षक और उत्साह जनक हैं और कुरआन में जो आयतें प्रकोप की सूचना देती हैं वह भी दिल दहला देने वाली हैं वह इंसान के दिल को पिघला देती हैं। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे मआरिज की 11 से 14 तक की आयतों में कहता है” अपराधी ईश्वर के कड़े दंड से मुक्ति पाने के लिए यह तमन्ना करेगा कि काश वह अपने बेटे को भेंट चढ़ा सकता, अपने प्रियजनों और ज़मीन पर रहने वाले समस्त इंसानों की भेंट चढ़ा देता ताकि दंड से मुक्ति पा जाये किन्तु वह ऐसा नहीं कर पायेगा। ईश्वरीय दंड है मज़ाक नहीं है।“

इस आस्था की रोशनी में लोक का परलोक से संबंध है और यह लोक, परलोक की भूमिका है। पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया को परलोक की खेती बताया है। यह वह खेती है इंसान जो कुछ इसमें बोएगा वही परलोक में काटेगा। वरिष्ठ नेता इस बारे में महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते हुए फरमाते हैं” लोक-परलोक एक दूसरे से अलग नहीं हैं। यह संसार उस संसार से अलग नहीं है। यह संसार उस संसार की खेती है। खेती यानी क्या? क्या ऐसा हो सकता है कि फसल को खेत के अलावा कहीं और से काटा जाये? यही आपका जीवन, यही आपका व्यापार, यही आपका दर्स पढ़ना, यही आपके कार्यालय का कार्य, यही आपका राजनीतिक कार्य आपके परलोक का कार्य है। लोक, परलोक का एक टुकड़ा है। ये अच्छे कार्य हैं जिन्हें आप सदिच्छा से अंजाम देते हैं। यह अच्छाई है जो परलोक में आपको ईश्वर के समीप और आध्यात्मिक स्थान पर पहुंचायेंगी या खुदा न खास्ता बुरी नियत से, आत्म मुग्धता व घमंड की नियत से अंजाम देते हैं तो उस समय वह नरक में जाने का कारण बनेगा। प्रलय तो फसल काटने का दिन है और उस दिन हर इंसान के समस्त कर्मों की गहन समीक्षा होगी और इसी न्यायपूर्ण समीक्षा के परिणाम में स्वर्ग और नरक में जाने वाले अपने गंतव्य की ओर जायेंगे। तो सच में प्रलय का दिन बहुत बड़ा दिन है और उस दिन बड़ी घटनाएं घटेंगी।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई अपने भाषणों में प्रलय के दिन की महानता की ओर संकेत करते और दिल को हिला देने वाले बिन्दुओं का उल्लेख करते हैं। वरिष्ठ नेता फरमाते हैं। प्रलय को हमें नहीं भूलना चाहिये। प्रलय महान घटना है। हमें चाहिये कि प्रलय को हमेशा याद रखें और उससे डरें। सूरये शूरा की 18वीं आयत में ईश्वर कहता है” क़ुरैश के काफिर पैग़म्बरे इस्लाम से कहते थे कि तुम जिस नरक से हमें डराते हो वह कहां है? कुरआन कहता है जो ईमान रखते हैं वे प्रलय से डरते हैं। प्रलय वास्तव में इस प्रकार है। प्रलय से डरना चाहिये। प्रलय को नहीं भूलना चाहिये। यही हमारी सुरक्षा की रक्षक है।

आज की दुनिया में दुनिया परस्ती इतनी अधिक हो गयी है कि मानो परलोक और हिसाब- किताब है ही नहीं। कुछ अज्ञानी व नासमझ लोगों ने इस नश्वर संसार को भोग- विलास और सत्ता का स्थान समझ रखा है मानो परलोक ही नहीं है और मरने के बाद हमारा जीवन समाप्त हो जायेगा परंतु जो भी प्रलय के बारे में अधिक चिंतन- मनन करेगा वह समझ जायेगा कि इस बात को स्वीकार करना भी तर्क रहित है और इंसान की बुद्धि इस बात को स्वीकार नहीं करेगी कि महान ईश्वर ने इतने बड़े संसार की रचना अकारण की है क्या इस बात को स्वीकार किया जा सकता है कि इस दुनिया में कुछ लोग दूसरे लोगों के साथ असंख्य अपराध व अत्याचार करते हैं और कुछ दूसरे अन्याय और निर्धनता में जीवन व्यतीत करते हैं और अंत में मौत आने से क्या उनके जीवन का अंत हो जायेगा।? क्या अन्याय व अत्याचार का कोई बदला व दंड नहीं है? क्या पीड़ित लोगों का कोई सहायक नहीं है? क्या अच्छे कर्मों और परोपकार का कोई प्रतिदान नहीं है?

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामनेई पवित्र कुरआन की शिक्षाओं और इस्लामी रवायतों के आधार पर इन प्रश्नों का उत्तर देते हैं। वरिष्ठ नेता प्रलय के दिन को कर्मों के साक्षात रूप में ज़ाहिर होने का दिन बताते और फरमाते हैं” यह हमारे पाप, हमारी ग़लतियां और उनका साक्षात रूप में प्रापट होना ही प्रलय का दंड हैं। अगर हम यहां अत्याचार करते हैं, अगर पीठ पीछे दूसरों की बुराई करते हैं, अगर हम अपनी सीमा पार कर जाते हैं, अगर हम अपने दायित्वों की सीमा का उल्लंघन करते हैं तो इनमें से हर एक का परलोक में एक रूप होगा जो बरज़ख और प्रलय के दिन अपने विशेष रूप में प्रकट होगा और यही ईश्वरीय दंड है।“

यहां इस बात का उल्लेख ज़रुरी है कि मरने के बाद और प्रलय से पहले का जो समय होता है उसे बरज़ख कहते हैं।

इस्लामी रवायतों में आया है कि तक़वा अर्थात ईश्वर से भय रखने वाला सदाचारी और मोमिन व्यक्ति बिजली की भांति सेरात नामक पुल से तेज़ी से गुज़र जायेगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में फरमाते हैं” प्रलय के दिन कुछ लोगों के चेहरे हंसते हुए होंगे और वे खुशहाल और प्रसन्न चित्त होंगे। ये कौन लोग हैं? ये वे लोग हैं जो दुनिया में सेरात पुल से गुज़र गये हैं जिसकी वास्तविकता, व अस्ली रूप प्रलय में ज़ाहिर होगा। यह पुल उपासना, तक़वा और सदाचारिता का पुल है। अगर यहां पर हम इस पुल से सही, सूक्ष्म और विचलित हुए बिना गुज़र सकते हैं तो वहां सेरात पुल से गुज़रना आसान होगा। उन मोमिनों की भांति जो बिजली की तरह गुज़र जायेंगे। इसके बाद वरिष्ठ नेता सूरे अंबिया की 101 से 103 तक की आयतों की तिलावत करते हैं जिसका अनुवाद इस प्रकार है बेशक वही लोग हैं जिनसे हमने पहले से अच्छे वादे किये हैं। उन्हें नरक से दूर रखा है। वे नरक की आग की नहीं सुनेंगे और स्वर्ग में जो कुछ वे चाहेंगे वह उसमें है। बड़ा भय उन्हें दुःखी नहीं करेगा।“

फज़ये अकबर अर्थात सबसे बड़ा भय जिसका इंसान को सामना करना पड़ सकता है। मोमिन इसी भौतिक शरीर और आत्मा के साथ प्रलय के दिन होगा और वहां पर वह दुःखी नहीं होगा और वह सेरात पुल से गुज़र जायेगा।

प्रलय पर ईमान का इंसान के प्रशिक्षण में बहुत गहरा प्रभाव है। उसका सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव यह है कि वह इंसान को पापों से रोकता है और उसके ईमान में वृद्धि करता है। जो इंसान प्रलय पर विश्वास रखता है उसके अंदर ज़िम्मेदारी का आभास पैदा होता है और वह इंसान को ईश्वरीय दायित्वों के निर्वाह में मज़बूत करता है। प्रलय पर विश्वास रखने का दूसरा महत्वपूर्ण व रचनात्मक प्रभाव यह है कि वह समाज में भौतिक और आध्यात्मिक संतुलन को बनाए रखता है। समाज में नैतिक गुणों के बढ़ने से विभिन्न प्रकार की बुराइयों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। प्रलय पर विश्वास है जो इंसान को उन कार्यों को अंजाम देने के लिए प्रोत्साहित करता है जिन्हें ईश्वर पसंद करता है। प्रलय के दिन पर आस्था का अद्वितीय प्रतिदान है जो इंसान के अंदर त्याग-परित्याग की भावना को उत्पन्न करता है और वह परोपकार के लिए इंसान का प्रोत्साहन करता है परंतु इस विश्वास को एक आयामी नहीं होना चाहिये कि वह भौतिक जीवन को इंसान के लिए कटु बना दे। इंसान का अलग- थलग हो जाना, समाज से दूरी बना लेना और उपासना व प्रार्थना करने के बहाने वैध आनंदों से दूरी करना वे कार्य हैं जिन्हें इस्लाम पसंद नहीं करता है। परलोक के लिए दुनिया को छोड़ देना ऐसे समाज के अस्तित्व में आने का कारण बनेगा जिसमें विकास नहीं होगा और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों ने कभी भी अपने जीवन में इस प्रकार की शैली को नहीं अपनाया। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामनेई इस बारे में कहते हैं” इस्लाम इंसान को दो आयामी प्राणी मानता है। लोक– परलोक वाला। यह महत्वपूर्ण विशेषता है। अगर एक सभ्यता, एक संस्कृति और एक विचार धारा इंसान को एक आयामी मानती है और इंसान की भलाई को केवल उसके भौतिक जीवन में समझती है तो निश्चित रूप से उसके और इस्लाम के विकास का तर्क, पूर्णरूप से भिन्न होगा कि इस्लाम इंसान को दो आयामी मानता है। पैग़म्बर और ईश्वरीय दूत लोक- परलोक दोनों चाहते हैं। परलोक की सोच में इंसान की दुनिया की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। इसी प्रकार दुनिया के चक्कर में परलोक की उपेक्षा नहीं की जानी चाहिये। यह बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु है। अगर आप ने परलोक के लिए दुनिया को छोड़ दिया तो आप इस परीक्षा में फेल हो गये और अगर लोक के लिए परलोक को छोड़ दिया तो भी इस परीक्षा में फेल हो गये। यह मापदंड है।