इस्लामी जगत-6
जैसाकि आप जानते हैं कि सैयद जमालुदीन, अपने काल के बहुत बड़े समाजसुधारक थे।
उन्होंने इस्लामी देशों में सुधार के लिए अनेक देशों का सफ़र किया ताकि इस्लामी जगत में एकता बने और अंधविश्वास से दूर शुद्ध इस्लामी विचार का प्रसार हो। उन्होंने मुसलमानों के बीच एकता क़ायम करने और उनके पिछड़ेपन को दूर करने के उद्देश्य से अथक प्रयास किये। सय्यद जमालुद्दीन असदाबादी इस्लामी जगत में विभिन्न मतों को एक दूसरे के निकट लाने तथा धार्मिक विचार में सुधार करने वालों के आगे आगे रहे हैं। उन्होंने इस्लामी जगत में एकता के लिए ख़ुद को समर्पित किया। असदाबादी का मानना था कि वास्तविक इस्लाम की शिक्षाओं से दूरी ही मुसलमानों के आपसी मतभेद और उनके पिछड़ेपन का मूल कारण है। वे कहते थे कि मुसलमानों के इस्लाम से दूर होने के दो मुख्य कारण हैं। एक इस्लाम की शिक्षाओं को हासिल न करना और दूसरे मुसलमानों के बीच अनैतिकता का बढ़ता चलन। उनका यह भी मानना था कि मुस्लिम राष्ट्रों के पिछड़ेपन का एक कारण कुरीतियों का प्रचलन तथा उनके समाज में भ्रष्ट विचारों का आम होना था। यह बातें मुसलमानों के बीच गंभीर मतभेदों का कारण बनीं हैं।
सैयद जमालुदीन का कहना था कि चौथी हिजरी क़मरी से मुसलमानों के बीच मतभेद उभरने आरंभ हुए। यह वह काल था जब विभिन्न प्रकार की विचारधाराएं, मुस्लिम समाजों में प्रविष्ट होना आरंभ हुईं जिनसे उनके भीतर शंकाएं उत्पन्न हुईं। इस प्रकार आस्था की दृष्टि से मुसलमानों के बीच शिथिलता आरंभ हुई। वे कहते हैं कि इसका दुष्परिणाम यह निकला कि देखने में तो मुसलमान एकमत और एकजुट दिखाई देते हैं किंतु उनके भीतर गंभीर मतभेद पाए जाते हैं। वे यह भी मानते हैं कि विदेशियों से संबन्ध बनाने के कारण उनकी इस्लामी पहचान समाप्त होने लगी और वे विदेशियों की तुलना में स्वयं को तुच्छ समझने लगे जिसके कारण उनमें पिछड़ापन पैदा हुआ।
सैयद जमालुदीन का कहना है कि मुसलमानों के पिछड़ेपन और मतभेदों का एक अन्य कारण, तानाशाही भी रही है। वे कहते हैं कि तानाशाही दो प्रकार से मुसलमानों की प्रगति, उनके विकास और एकता में बाधा रही है। एक कारण तो यह है कि तानाशाही सरकारें स्वयं को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से जनता के बीच मतभेद फैलवाती हैं क्योंकि जनता के एकजुट रहने से उनको ख़तरा रहता है। मतभेद फैलाकर तानाशाही, जनता के विकास को भी रोकती है। दूसरा कारण यह है कि तानाशाह को कभी भी जनमसर्थन प्राप्त नहीं होता इसलिए अपने आप को बाक़ी रहने के लिए वे दूसरों अर्थात विदेशियों का सहारा लेते हैं। इस प्रकार वे विदेशियों पर निर्भर हो जाते हैं और उनकी नीतियों को ही लागू करने पर बाध्य होते हैं। असदाबादी कहते हैं कि तानाशाही सरकारों की तुलना में लोकतांत्रिक सरकारें लोगों को एकजुट या संगठित करने में अधिक सक्षम होती हैं।
सैयद जमालुदीन का मानना था कि अगर मुसलमानों में राजनीतिक जागरूकता बढ़े और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष को वे धार्मिक कर्तव्य के रूप में स्वीकार करते हुए इस संघर्ष को आगे बढ़ाएं तो इससे उनमें एकजुटता उत्पन्न हो सकती है। अपने एक लेख में वे लिखते हैं कि इस्लामी शासक को न्यायपूर्ण ढंग से शासन करते हुए भ्रष्ट विदेशियों से मित्रता करने से बचना चाहिए। वे कहते हैं कि मुसलमानों की दुरदशा का एक अन्य कारण उनका अपना दुरव्यवहार और स्वयं को सार्वजनिक कार्यक्रमों से अलग रखना है। सैयद जमालुदीन जो, मुसलमानों के बीच एकता क़ायम करने के उद्देश्य से कड़ा संघर्ष कर रहे थे, कई स्थानों पर उन्होंने इस्लामी देशों के सत्ताधारी तानाशाहों की कड़ी आलोचना की है।
असदाबादी का मानना है कि जातीय मतभेद और सांप्रदायिकता दोनो ही मुसलमानों की एकता के मार्ग की बहुत बड़ी बाधाए हैं। वह इनकी कड़े शब्दों में निंदा करते हैं। वे केवल मौखिक रूप से इसके विरोधी नहीं थे बल्कि व्यवहारिक रूप में इन बातों का विरोध किया करते थे। शायद यही कारण है कि उन्होंने कभी अपने पंथ का उल्लेख नहीं किया और यह बात उनकी मृत्यु के बाद भी स्पष्ट नहीं हो सकी। सैयद जमालुदीन असदाबादी का कहना था कि राष्ट्रवादी भावनाओं और जातीय मतभेदों का इस्लाम में कोई स्थान नहीं है और यह बातें इस्लामी शिक्षाओं से विरोधाभास रखती हैं। इस्लामी जगत को आगे बढ़ाने के लिए जमालुद्दीन असदाबादी का यह मानना था कि इस्लामी जगत को अपने भीतर झांकना होगा और सही इस्लाम की ओर लौटना होगा जो हर प्रकार के अंधविश्वास व बिदअत को नकारता है। उनका मानना था कि इस्लामी देशों में लोकतांत्रिक सरकारों के आने से मुसलमानों के बीच एकता स्थापित करने में बहुत सहायता मिल सकती है।
वे विदेशी वर्चस्ववाद को मुसलमानों की कमज़ोरी का एक महत्वपूर्ण कारक मानते थे। उनका कहना था कि विगत में आपस में एक साथ रहने वाले मुसलमान वर्चस्ववादियों की मतभेद फैलाने वाली नीतियों के कारण अब कितने बदल गए हैं और पिछड़ते चले जा रहे हैं। वे कहते थे कि वर्चस्ववादियों का मुख्य काम मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करना है। वर्चस्ववादियों के प्रति वे बहुत ही संवेदनशील थे। उनका मानना था कि विभिन्न हथकंडों से पश्चिमी साम्राज्यवाद, इस्लामी देशों पर क़ब्ज़ा करना चाहता है। वे कहते थे कि केवल एकता के हथियार से ही साम्राज्यवादियों का मुक़ाबला किया जा सकता है। यही कारण है कि वे अपने भाषणों में कहा करते थे कि साम्राज्यवाद की ओर से उनके अजेय रहने का दुषप्रचार मुसलमानों को प्रभावित नहीं कर सकता क्योंकि यह एक हथकंडे के अतिरिक्त और कुछ नहीं है और इसपर एकता के माध्यम से विजय प्राप्त की जा सकती है।
सैयद जमालुदीन का मानना था कि इस्लामी देशों पर पश्चिम के चौतरफा हमले के समय देश को साम्राज्यवाद के हवाले करने वाले शासक ही दोषी नहीं हैं बल्कि वे भी दोषी हैं जो साम्राज्यवाद से मुक़ाबले की क्षमता रखते हैं किंतु सामने नहीं आते। उन्होंने अपने लेखों में इस बात पर बारंबार बल दिया है कि मुसलमानों को विकास से दूर रखने में पश्चिम की बहुत बड़ी भूमिका है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सैयद जमालुद्दीन असदाबादी के अनुसार मुस्लिम समाज, अपने यहां फैली कुरीतियों को दूर करके विकास के मार्ग में पश्चिम की ओर से क़ायम की गई बाधाओं को हटाते हुए चहुमुखी विकास करने में पूरी तरह से सक्षम हैं।