ईरानी बाज़ार -5
ईरान में क़ालीन उद्योग रचनात्मकता और सामूहिक प्रयास से वजूद में आने वाली कला के साथ साथ ईरानियों की राष्ट्रीय संस्कृति का प्रतिबिंबन भी है।
पूरे इतिहास में यह उद्योग ईरान की संस्कृति व कला के लिए सर के ताज की तरह चमकता रहा है।
‘ईरान के हाथ से बुने क़ालीन का विश्वकोष’ नामक किताब के लेखक डाक्टर हुसैन तजद्दुद इस किताब की प्रस्तावना में लिखते हैं, “प्राचीन समय से दुनिया ईरान को दो उत्कृष्ट चीज़ों के लिए जानती है एक शायरी और दूसरे क़ालीन। दूसरे शब्दों में ईरानी अभिरूचि और ईरानियों की एस्थेटिक्स में अभिरूचि अर्थ की दृष्टि से शायरी में और भौतिक व आकार की दृष्टि से क़ालीन में प्रतिबिंबित हुयी है। इसके साथ ही क़ालीन की कला को शायरी की कला पर यह विशिष्टता हासिल है कि शायरी एक व्यक्तिगत कला है जबकि हाथ का क़ालीन एक सामूहिक कला है।”

फ़ारसी भाषा में फ़र्श नमदा, चटाई और क़ालीन जैसी बिछने वाली चीज़ को कहते हैं। लेकिन आम ज़बान में जब फ़र्श कहते हैं तो इसका मतलब क़ालीन होता है जो रंग बिरंगे रूई, ऊन और रेशम के धागों से बुना जाता है और इस पर विभिन्न प्रकार के चित्र बने होते हैं। ईरान में क़ालीन उद्योग ईरान के सबसे पुराने उद्योग में से एक है। इस उद्योग ने अपने इतिहास में सूक्ष्मता, सुंदरता और बुनाई की शैली की दृष्टि से एक विकासशील प्रक्रिया को तय किया है। अनेक इतिहासकारों व पर्यटकों ने अपने लेख में ईरान के आज़रबाइजान, फ़ार्स, ख़ूज़िस्तान, इस्फ़हान जैसे क्षेत्रों में क़ालीन के कारख़ानों का उल्लेख किया है कि जिसमें क़ालीन के बुनकर पूरी रूचि के साथ क़ालीन की बुनाई में व्यस्त रहते थे। यूनानी इतिहासकार ज़ेनफ़ून अपनी किताब में कि जिसका फ़ारसी रूपान्तर ‘कोरूश का आचरण’ है, लिखता है कि ईरानी अपने बिस्तर को नर्म रखने के लिए बिस्तर के नीचे क़ालीन बिछाते हैं। ये सब बातें ईरान में क़ालीन उद्योग के विस्तृत पर मौजूद होने और लोगों के दैनिक जीवन में क़ालीन के इस्तेमाल का पता देती हैं। इस तरह से कि क़ालीन को ईरानी जनता के दैनिक जीवन की ज़रूरत में कहा जा सकता है। हाथ के बुने क़ालीन के बग़ैर एक ईरानी घर सुनसान लगता है और यह चीज़ एक राष्ट्र के संस्कृति व कला से प्रेम को दर्शाती है।
जैसा कि आरंभ में यह कहा कि क़ालीन उद्योग सामूहिक प्रयास का प्रतीक है। एक क़ालीन की बुनाई में विभिन्न प्रकार के लोगों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान होता है। जैसे क़ालीन की बुनाई में रंगरेज़, डिज़ाइनर, बुनकर, रफ़ूगर और नक़्शे ख़्वान अर्थात मैप रीडर का योगदान होता है।

इतिहास की दृष्टि से यह बात अभी तक स्पष्ट नहीं हो पायी है कि सबसे पहले किस राष्ट्र या जाति ने कब और कहां क़ालीन बुना, लेकिन यह बात साबित होती है कि सबसे पहले औरतों ने क़ालीन बुना है। पूरे इतिहास में क़ालीन की बुनकर ज़्यादातर औरतें होती थीं। वे चटाई और क़ालीन के साथ साथ पालतू जानवरों पर डालने वाला कंबल और झोले भी बुनती थीं।
ईरान का सबसे पुराने मशहूर क़ालीन का नाम ‘पाज़ीरीक’ क़ालीन है। यह क़ालीन रूसी पुरातनविद् रूदेनकोफ़ ने साइबेरिया में पाज़ीरीक घाटी में खुदाई के दौरान बरामद किया। इस घाटी में साका शासन श्रंख्ला के एक शासक की क़ब्र है। पाज़ीरीक क़ालीन रंग बिरंगे ऊन से बुना हुआ क़ालीन है। इस क़ालीन पर घुड़सवार, चरने की हालत में हिरण और बाज़ के सिर व शेर के धड़ वाले पौराणिक कहानियों के जानवरों के चित्र बुने हुए हैं। इसी प्रकार इस क़ालीन के किनारों पर फूल बने हुए हैं। कला क्षेत्र के माहिरों का कहना है कि पाज़ीरिक क़ालीन की बुनाई की कला यह दर्शाती है कि यह किसी ऐसे क्षेत्र का कारनामा है जहां क़ालीन की बुनाई के लिए कम से कम कई शताब्दियों की सांस्कृतिक व कलात्मक पृष्ठिभूमि मौजूद थी। इसी प्रकार इस क़ालीन से इस बात का भी पता चलता है कि पाज़ीरिक नामक क़ालीन की बुनाई से पूर्व कई शताब्दियों के दौरान ईरान के चौरस क्षेत्र में क़ालीन की बुनाई प्रचलित थी और ईरानी इस कला से परिचित थे। पाज़ीरीक क़ालीन 2400 साल से ज़्यादा समय तक साइबेरिया के बर्फ़ीली इलाक़े में पड़ा हुआ था इसलिए सुरक्षित रहा। लंदन न्यूज़ मैगज़ीन ने 11 जुलाई 1953 को इस क़ालीन के बारे में लिखा, “पाज़ीरीक में सबसे अहम बरामद होने वाली चीज़ एक क़ालीन है। विभिन्न प्रकार के चित्रों वाला यह क़ालीन, मक़बरे के पड़ोस में मिट्टी से घोड़ों के शव के साथ बरामद हुआ है जिसे इनमें से किसी एक घोड़े की ज़ीन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। इसकी बुनाई बहुत सूक्ष्म और सुदंर है। क़ालीन के किनारे पर पौराणिक कथाओं में वर्णित परवाले पशुओं की तस्वीर है। इसके बाद ईरानी घुड़सवारों की एक लाइन है जिसमें एक व्यक्ति घोड़े पर सवार है और उसके पीछे एक व्यक्ति घोड़े के मुंह को पकड़े हुए लिये जा रहा है। ये घुड़सवार अपने सिर पर ईरान के हख़ामनेशी शासन काल में प्रचलित विशेष टोपी पहने हुए हैं।”
रूदेन्कोफ़ ने अपनी इस खोज के बारे में 1953 में लिखी किताब में इस क़ालीन की विशेषताओं के उल्लेख के साथ इसे साफ़ तौर पर ईरानी क़ालीन बताया है। वह पारीज़ीक क़ानीन में बने चित्रों को तख़्ते जमशीद में हख़ामनेशी शासन में प्रचलित क़ालीन के चित्रों से समानता के मद्देनज़र साफ़ तौर लिखते हैं कि यह क़ालीन विशाल ईरान के तीन भाग माद, पार्त या प्राचीन ख़ुरासान व फ़ार्स में से किसी एक भाग में बुना गया है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पाज़ीरीक क़ालीन पार्त शासन काल के कलाकारों की कोशिशों का नतीजा है। उनका मानना है कि चूंकि हख़ामनेशी शासन में ईरान का पाज़ीरीक घाटी से सबसे निकट वाला भाग पार्त था और पार्त क्षेत्र के लोग घुड़सवारी में बहुत मशहूर थे, घुड़सवारों के सिर पर विशेष प्रकार की टोपी और पार्त क्षेत्र के उत्तरी मैदानी क्षेत्र में हिरण होते थे कि जिनके चित्र पाज़ीरीक क़ालीन पर बुने हुए हैं, इस दृष्टिकोण की पुष्टि होती है कि पाज़ीरीक क़ालीन पार्त शासन काल के कलाकारों की कोशिशों का नतीजा है। इस वक़्त पाज़ीरीक क़ालीन रूस के सेंट पीटर्ज़बर्ग शहर के आर्मिटेज म्यूज़ियम में रखा हुआ है।

ऐसा नहीं है कि ईरानी क़ालीन सिर्फ़ आर्मिटेज म्यूज़ियम की शोभा बढ़ा रहे हैं बल्कि दुनिया में कुछ दूसरे बड़े म्यूज़ियम भी हैं जिनकी शोभा ईरानी क़ालीन हैं। जैसा कि ईरान का अर्दबील क़ालीन इस समय लंदन के विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूज़ियम में रखा हुआ है। कई साल पहले द संडे टाइम्ज़ ने इस क़ालीन को दुनिया की 50 उत्कृष्ट कलाकृति में शामिल किया था। ‘अर्दबील क़ालीन’ 1539 में बुना गया। सुंदर चित्रों से सुशोभित यह क़ालीन एब्सट्रैक्ट कला के अद्वितीय नमूना होने के साथ साथ सफ़वी शासन काल के कलाकारों की कला क्षमता का भी बखान करता है।
विक्टोरिया एंड अलबर्ट म्यूज़ियम में एक और उत्कृष्ट ईरानी क़ालीन रखा हुआ है जो चेल्सी क़ालीन के नाम से मशहूर है। यह क़ालीन इसलिए चेल्सी क़ालीन के नाम से मशहूर है क्योंकि इसे चेल्सी के किंग्ज़ रोड के एक व्यापारी ने ख़रीदा था। इस क़ालीन पर नारंगी, हिरण, शेर, तेंदुआ और पेड़ों के बीच में अजगर के चित्र बने हुए हैं।

वियना के कला व उद्योग म्यूज़ियम में ईरान के सफ़वी शासन काल का कालीन का एक उत्कृष्ट नमूना रखा हुआ है। इस क़ालीन का नाम ‘शिकारगाह क़ालीन’ है। ‘शिकारगाह’ क़ालीन पूरी तरह रेशम के धागे से बुना हुआ है। इसे 16वीं ईसवी शताब्दी में सफ़वी शासक शाह अब्बास के दौर में बुना गया। इस क़ालीन पर ईरानी राजा के शिकार करने के दृष्य को दर्शाया गया है।
न्यूयार्क का मेट्रोपोलिटेन म्यूज़ियम दुनिया का एक दूसरा मशहूर म्यूज़ियम है। इसमें ईरान के पोलोन्ज़ी के नाम से मशहूर क़ालीन के दो जोड़े रखे हुए हैं। पोलोन्ज़ी क़ालीन ईरान में क़ालीन उद्योग के इतिहास के पुनर्जागरण काल में बुना जाता था। ईरान में सफ़वी शासन काल को क़ालीन के इतिहास में पुनर्जागरण का काल कहा जाता है। पोलोन्ज़ी क़ालीन पर ज़्यादातर कमल के फूल, शाखा और पत्तों के चित्र बने होते हैं। इस क़ालीन को पोलोन्ज़ी या पोलैंडी कहे जाने का एक कारण यह है कि इस प्रकार का क़ालीन पहली बार 1878 में पेरिस अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रदर्शित किया गया था। यह क़ालीन पोलैंड के राजकुमार चार्टोरिस्की की संपत्ति थी। चूंकि इस क़ालीन पर पोलैंड के शाही परिवार से विशेष चिन्ह से मिलता जुलना चिन्ह बना हुआ था, इसलिए यह क़ालीन पोलैंडी के नाम से मशहूर हुआ। इसके बाद 1930 में रीगल नामी व्यक्ति इस क़ालीन के पोलैंड के होने का दावा किया। उन्होंने क़ालीन पर बने डिज़ाइन के आधार पर उसे 18वीं शताब्दी से पहले बुना हुआ क़ालीन बताया लेकिन बाद में उनके अध्ययन और बोड तथा मार्टिन नामी लोगों के अध्ययन व ऐतिहासिक सुबूत से साबित हुआ कि ये क़ालीन ईरानी हैं और 17वीं शताब्दी में बुने गए थे। अब इस बात में कोई शक नहीं रह गया है कि ये क़ालीन अस्ल में ईरानी क़ालीन हैं। हालांकि आज भी इस प्रकार के क़ालीन के परिचय के लिए पोलैंडी शब्दावली का इस्तेमाल होता है।

पोलोन्ज़ी नामी ईरानी क़ालीन को न सिर्फ़ यह कि ईरान में राजाओं के महलों के लिए बुना जाता था बल्कि यूरोपीय अधिकारियों को उपहार स्वरूप भी भेजा जाता था। इस समय अमरीका में न्यूयार्क के मेट्रोपोलिटन म्यूज़ियम और क्लीवलैंड म्यूज़ियम आफ़ आर्ट, सेंट मार्को वेनिस गिरजाघर, म्यूनिख़ के रेज़िडंस पैलेस और डेनमार्क के रोज़ेनबर्ग क़िले में इस क़ालीन के नमूने मौजूद हैं।
