मार्गदर्शन-5
अंतिम ईश्वरीय धर्म इस्लाम मानवता के सामने तत्वदर्शिता व आत्मज्ञान से भरपूर शिक्षा पेश करता है।
आत्मज्ञान उस प्रकाश के समान है जिससे इंसान सही मार्ग को देखता है और इसी से इंसान ईश्वर की बंदगी और उसके सामिप्य का आनंद प्राप्त करता है।
पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की शिक्षाएं संपूर्ण पैकेज हैं कि जिनके ज़रिए आत्मज्ञान के जोश मारते हुए सोतों तक पहुंचा जा सकता है और अपने मन को ईश्वरीय प्रकाश से भरे हौज़ में धुला और हर प्रकार के पाप से पवित्र किया जा सकता है। पवित्र मन उस उपजाउ भूमि की तरह है जिसमें ईश्वरीय पहचान का बीज तेज़ी से उगता है और उससे मानवता, अध्यात्म व परिपूर्णतः फल निकलता है।
पैग़म्बरे इस्लाम सलल्ल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ऐसे दौर में भेजे गए जब मानवता अज्ञानता के अंधेरे में पूरी तरह कुचली जा रही थी। उन्होंने अपने शिष्टाचार से इंसान के सामने सत्य के द्वार को खोला। जो आत्मज्ञान व ईश्वरीय पहचान पवित्र क़ुरआन, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की बातों में छिपे हैं किसी दूसरे धर्म में नहीं हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनई इस बारे में कहते हैं, “ईश्वर की ओर से हमे दी गयी सबसे बड़ी, अच्छी, मूल्यवान व प्रभावी अमानत, ईश्वरीय पहचान है।”
आत्मज्ञान देने वाले स्रोतों में पवित्र क़ुरआन गहरी ईश्वरीय पहचान व शुद्ध ज्ञान का मूल स्रोत व उबलते हुए सोते की तरह है कि इस स्वच्छ सोते में डुबकी लगाकर इंसान अपनी आत्मा को उच्च मूल्यों से सजा सकता है।
वरिष्ठ नेता इंसान पर पवित्र क़ुरआन के प्रभाव के बारे में कहते हैं, “पवित्र क़ुरआन से लगाव से हम उसमें छिपे ज्ञान से अधिक परिचित होंगे। क़ुरआन तत्वदर्शिता, ज्ञान और जीवन देने वाली किताब है। राष्ट्रों व जातियों का जीवन क़ुरआन की शिक्षाओं को समझने और उस पर अमल करने पर निर्भर है। पवित्र क़ुरआन हमें भौतिक व आध्यात्मिक दोनों तरह की प्रगति देता है।”
अलबत्ता क़ुरआन की शिक्षाओं को समझने के चरण हैं। वरिष्ठ नेता के शब्दों में, “क़ुरआन की शिक्षाओं की समझ उसके शब्दों और अनुवाद पर विचार करने से आती है। अर्थात जब हम क़ुरआनी शिक्षाओं की बात करते हैं तो इसका अर्थ यह नहीं है कि इसमें सात परते हैं जिस तक कोई नहीं पहुंच सकता। जी हां बहुत उच्च स्तरीय अर्थ मौजूद हैं जिस तक हम जैसे लोग मुमकिन है न पहंच सकें किन्तु बहुत सी आत्मज्ञान की बातें जो हम जैसे आम लोग समझ सकते हैं और फ़ायदा उठा सकते हैं, इस शर्त के साथ कि उस पर ध्यान दें। बहुत सी हदीसे हैं कि पवित्र क़ुरआन के विदित और निहित रूप हैं। इसमें रहस्य और गहरायी है। उस समुद्र की तरह है जो दिखने में समुद्र है और उसमे पानी भी है किन्तु सिर्फ़ यही विदित रूप नहीं है बल्कि गहरायी है। उस गहरायी में सच्चाई है। किन्तु हम इसी विदित रूप से भी फ़ायदा उठा सकते हैं सिर्फ़ इस शर्त के साथ चिंतन मनन करें।”
ईश्वर ने हर इंसान के वजूद में ईश्वरीय पहचान को हासिल करने की क्षमता दी है। ईश्वरीय पहचान उन चमकते हुए मोतियों की तरह है जो बहुत मेहनत करने वाले ग़ोताख़ोर के ही हाथ लगते हैं।
जो व्यक्ति ईश्वर से डरे, क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के निर्देश में चिंतन मनन करे तो वह ईश्वरीय पहचान के सागर से बहुत से मोती हासिल कर सकता है। अल्लामा तबातबायी, इमाम ख़ुमैनी, मीरज़ा जवाद आक़ा मलिकी तबरीज़ी और इस तरह के लोगों ने चिंतन-मनन और इस्लामी शिक्षाओं पर अमल करके ईश्वरीय सच्चाई की ऊंचाई को हुआ और बंदगी के मार्ग को बहुत अच्छे ढंग से तय किया।
ईश्वरीय पहचान हासिल करने का एक महत्वपूर्ण स्रोत दुआएं हैं। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई कहते हैं, “पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के हवाले से वर्णित दुआओं से हम तक पहुंचने वाली एक विभूति यह है कि ये दुआएं ईश्वरीय पहचान से भरी हुयी हैं। अगर कोई इन दुआओं को पढ़े और समझे तो ईश्वर से मन से लगाव हासिल करने के साथ साथ आत्मज्ञान का बड़ा भाग भी हासिल करेगा।”
पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से हम तक पहुंचने वाली दुआएं न सिर्फ़ इंसान को ईश्वर के निकट करती हैं बल्कि इंसान को बहुत बड़ा पाठ सिखाती हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई इस बारे में बल देते हैं, “पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से हम तक पहुंचने वाली दुआओं में इस्लामी ज्ञान के बड़े पाठ छिपे हुए हैं। अगर आप सहीफ़ए सज्जादिया का अध्ययन करें तत हर दुआ में इस्लामी व क़ुरआनी शिक्षाओं का मूल्यवान पाठ मौजूद है। सहीफ़ए सज्जादिया की अबु हमज़ा सुमाली नामक दुआ, इफ़्तेतहा नामक दुआ या पवित्र रमज़ान की बाक़ी दुआएं, गुरुवार की रात और शुक्रवार के दिन की दुआएं और वे सभी दुआएं जो पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से हम तक पहुंची हैं, एकेश्वरवाद के बारे में इस्लामी शिक्षाओं, पैग़म्बरी, अधिकार, सामाजिक स्थित, नैतिकता, हुकूमत और इसी प्रकार इंसान की ज़रूरत की सभी चीज़ों के बारे में हैं।”
आत्मज्ञान के दूसरे मूल्यवान स्रोत में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों की तत्वदर्शिता से भरी बाते हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का मानना है, “इस बात में शक नहीं कि मानव सभ्यता व ज्ञान, इंसानों के बीच अच्छा व्यवहार, अच्छी आदतें और इसी तरह की दूसरी चीज़ें कि जिनका विदित रूप से धर्मों से संबंध न हो किन्तु उनकी जड़ें धर्मों व ईश्वरीय पहचान से जुड़ी हुयी हैं और इन सब में सबसे ऊपर पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी है।”
वरिष्ठ नेता की नज़र में आत्मज्ञान में कर्बला की घटना व इमाम हुसैन के आंदोलन के प्रभाव की अनदेखी नहीं की जा सकती। कर्बला के शहीदों को अपने इमाम और सत्य के मार्ग की गहरी पहचान थी इसलिए उन्होंने अपनी जान इस्लाम के मार्ग में न्योछावर कर दी। वरिष्ठ नेता ने आशूरा की घटना में निहित आत्मज्ञान के कुछ पहलुओं की ओर इशारा करते हुए कहा है, “कर्बला की शहीदों की अहमियत इस बात में है कि उन्होंने जितनी कठिन स्थिति की इंसान कल्पना कर सके, उस स्थिति में सत्य की रक्षा की। हज़रत अब्बास की महत्व, जेहाद, बलिदान, निष्ठा और अपने समय के इमाम की पहचान, उनके धैर्य व दृढ़ता, प्यासे होते हुए भी पानी न पीने में है। इंसान इस मैदान में ऐसी स्थिति में जाए कि उसके साथ दूध पीता बच्चा भी हो, बी वी भी हो, मां भी हो, इन सबकी जान ख़तरे में हो किन्तु इसके बावजूद उसका संकल्प पर असर न पड़े। इन सब चीज़ों से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, हज़रत अब्बास, हबीब इबने मज़ाहिर और हज़रत जौन सहित कर्बला के दूसरे शहीदों की अहमियत पता चलती है।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने बल दिया कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की शिक्षाओं सहित इस्लामी शिक्षाओं को मुसलमान और ग़ैर मुसलमान समाज को उनकी दैनिक ज़रूरत के अनुसार पेश किया जाए।
आत्मज्ञान की प्राप्ति इसलिए अहम है क्योंकि आत्मज्ञान ही इंसान के व्यवहार और चरित्र को नियंत्रित करता है ताकि वह वासनाओं और क्रोध का ग़ुलाम न हो जाए और मानव समाज का संचलान स्वार्थी लोगों के हाथ में न पहुंचे। इस बारे में वरिष्ठ नेता बहुत ही अहम बिन्दु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं, “आप मानव पीड़ाओं के बारे मे सोचें, निर्धनता, वंचित्ता, भेदभाव, भ्रष्टाचार, अज्ञानता, पक्षपात का स्रोत क्या है? मानव समाज में जनसंहार, जंग, अत्याचार, नृशंसता कहां से आती है? इन सबकी जड़ यह है कि इंसान को अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं है और वासनाओं, क्रोध, आत्ममुग्धता, पैसों के भंडारण के ग़ुलाम हैं। दुनिया में जहां भी ये चीज़े मानव समाज में प्रचलित हुयीं वहां निर्धनता, जंग, भेदभाव, भ्रष्टाचार और फ़ित्ना ने अपना डेरा डाल लिया। इस्लाम इसका इलाज करना चाहता है। इस्लाम कहता है कि मानव जाति अपने संकल्प व अधिकार को निर्धनता, नृशंसता और आत्ममुग्धता के हवाले न करे बल्कि उसे बुद्धि और ईश्वरीय भय के हवाले करे। ईश्वर ने मानव जाति को संकल्प व अधिकार की शक्ल में सबसे बड़ी विभूति प्रदान की है।”