मार्गदर्शन-8
ईश्वर से बातचीत, उससे दुआ मांगना, उससे आशा करना और एकांत में अपने पूरे वजूद से उसका आभास करना ऐसे अधितीय क्षण हैं, कि जिनका इंसान अपने जीवन में कई बार अनुभव करता है।
ईमान रखने वाले और ईश्वर से प्रेम करने वाले लोग, दुआ करके, उसके नाम का गुणगान करके और नमाज़ पढ़कर अपने दिलों को ईश्वर से निकट करते हैं।
ईश्वर का गुणगान करने और उसका नाम जपने की इन शैलियों में नमाज़ को विशेष महत्व प्राप्त है। ईरान की इस्लामी के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनई आत्मा और मन पर नमाज़ के आध्यात्मिक प्रभाव के बारे में कहते हैं, ईश्वर और बंदे के बीच नमाज़ से बेहतर निरंतर एवं हमेशा बने रहने वाला कोई माध्यम नहीं है। वे नमाज़ को दिल, ज़बान और शरीर के बीच समन्वय बताते हुए कहते हैं कि नमाज़ इबादत का संपूर्ण रूप है।
वरिष्ठ नेता के अनुसार, नमाज़ एक महान ईश्वरीय अनुकंपा है और धर्म का मज़बूत आधार है। लोगों के जीवन में इसका विशेष स्थान होना चाहिए। इसी कारण वे नमाज़ को विशेष महत्व देते हैं और अपनी दिनचर्या की इस प्रकार से योजना तैयार करते हैं कि कोई भी कार्य कितना भी महत्वपूर्ण क्यों न हो, नमाज़ का समय होते ही पहले नमाज़ पढ़ते हैं। उनका मानना है कि इंसान का पवित्र जीवन, ईश्वरीय धर्म की छत्रछाया में उस समय आएगा कि जब इंसान अपने दिलों को ईश्वर की याद से जीवित रखें और उसकी मदद से भ्रष्टाचार एवं बुराईयों के आकर्षण से मुक़ाबला करें और अपने भीतर एवं बाहर के समस्त बुतों को तोड़ डालें। यह स्थिति एवं अनुभव केवल नमाज़ की बरकत से ही हासिल होता है। उनका मानना है कि नमाज़ पढ़ने वाले जितना अधिक ध्यान केन्द्रित रखेंगे और ईश्वर का ज़िक्र करेंगे, उतना ही अहंकार, लालच, ईर्ष्या और बुराई के अंधेरे कम होंगे और जीवन के माथे पर कल्याण का प्रकाश उतना ही अधिक चमकेगा।
वरिष्ठ नेता के अनुसार, इंसान की कठिनाईयों की जड़ ईश्वर की ओर से मुंह मोड़ लेने और अपने व्यक्तिगत हितों तक सीमित होने में है। वे कहते हैं, नमाज़ इंसान को इन अंधेरों से मुक्ति दिलाती है और उसकी काम वासना एवं रोष को उत्कृष्ट वास्तविकता की ओर मार्गदर्शित करती है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार, नमाज़ की एक अन्य विशेषता चेतावनी है। उनका मानना है कि कभी कभी इंसान अपने व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में समस्याओं और कठिनाइयों के कारण ईश्वर से दूर हो जाता है। कभी कभी इच्छाओं, आनंद और सांसारिक गतिविधियों में इतना डूब जाता है कि ईश्वर से दूर हो जाता है और काफ़ी दूर चला जाता है। वे कहते हैं, इन समस्त स्थितियों में जो चीज़ इंसान को ईश्वर से निकट कर सकती है, वह नमाज़ है।
नमाज़ ईश्वर की ओर से एक अवसर है। ईश्वर ने इंसान को विशेष महत्व प्रदान किया है और उसे ख़ुद से बात करने योग्य बनाया है। अतः दुर्भाग्यपूर्ण है अगर इंसान इस उच्च मूल्य से लाभ न उठाए और उसकी उपेक्षा करे और ख़ुद को इस मूल्यवान अनुकंपा से वंचित कर ले। वरिष्ठ नेता इंसान पर नमाज़ के प्रभावों का उल्लेख करते हुए कहते हैं, जब आप नमाज़ पढ़ते हैं, तो आपको शांति प्राप्त होती है। आत्मा की बेचैनी और अशांति से मुक्ति प्राप्त होती है। जब आप अपने ईश्वर से दुआ मांगते हैं तो उस समय अपनी आत्मा की शुद्धि करते हैं, उससे गंदगी को दूर करते हैं।
वरिष्ठ नेता नमाज़ को प्रभावी दवाई बताते हैं। आध्यत्मिक भूमि प्रशस्त होने की स्थिति में यह दवाई इंसान को उत्कृष्टता प्रदान करती है और जागरुक करती है और सुस्ती एवं लापरवाही की स्थिति में उसके कान में कहती है कि जागते रहो। इसलिए नमाज़ को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैं, नमाज़ शक्ति प्रदान करने वाला और स्वस्थ रखने वाला एक सीरप है। उसे पूरी श्रद्धा के साथ पीना चाहिए। हालांकि वह नमाज़ प्रभावशाली है, जो अपने सही समय पर पढ़े जाने के साथ ही पूरे मन और ध्यान से पढ़ी जाए।
वरिष्ठ नेता का मानना है कि नमाज़ी को नमाज़ की हालत में पूर्ण रूप से सजग रहना चाहिए और नमाज़ को ईश्वर से मुलाक़ात के रूप में देखना चाहिए। वे कहते हैं, नमाज़ पूरे ध्यान के साथ पढ़ी जानी चाहिए, इसलिए कि नमाज़ वह है कि जो ईश्वर की याद और ज़िक्र से भरपूर हो, नमाज़ वह है कि जिसमें इंसान अपने ईश्वर से बात करे और उसे अपना दिल सौंप दे, नमाज़ वह है कि जो हमेशा इंसान को इस्लाम की उच्च शिक्षाएं सिखाती रहे। ऐसी नमाज़ इंसान को महत्वहीनता, उद्देश्यहीनता और कमज़ोरी से मुक्ति दिलाती है, उसकी आंखों में जीवन की आशा जगाती है, उसे साहस प्रदान करती है और उसके मन को पापों से मुक्ति प्रदान करती है। यही कारण है कि जो नमाज़ हर स्थिति में यहां तक कि रण क्षेत्र में और जीवन की कठिनाईयों में अपना महत्व नहीं खोती है। इंसान को हमेशा नमाज़ की ज़रूरत है और कठिनाईयों में इसकी अधिक ज़रूरत है।
नमाज़ का असामान्य प्रभाव केवल नमाज़ पढ़ने वाले पर ही नहीं होता है, बल्कि उसके आसपास का वातावरण भी इससे प्रभावित होता है। वरिष्ठ नेता का मानना है कि पूर्ण श्रद्धा एवं ध्यान के साथ पढ़ी जाने वाली नमाज़ सबसे पहले नमाज़ी के मन और दिल पर प्रभाव डालती है उसके बाद, धीरे धीरे उसके आसपास के वातावरण को स्वर्ग में परिवर्तित कर देती है और इंसान के लिए समृद्धि लाती है। इसीलिए समस्त ईश्वरीय धर्मों में नमाज़ पढ़ना धर्म का मूल नियम और ईमान की सबसे स्पष्ट निशानी है और इस्लाम की नमाज़ सबसे सुन्दर एवं संपूर्ण नमाज़ है।
हां, नमाज़ ऐसी ख़ुशबू है कि जो न केवल पढ़ने वाले को सुगंधित बना देती है, बल्कि उसके इर्द गिर्द के माहौल का ख़ुशबू से भर देती है। अगर समाज में वास्तविक नमाज़ियों की संख्या अधिक होगी तो उस समाज में मार्गदर्शन की ख़ुशबू चारो ओर फैल जाएगी और दिल ईश्वरीय प्रसन्नता की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हो जायेंगे।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि नमाज़ की स्थापना करना, सज्जनों के शासन की पहली निशानी है। सज्जनों के शासन में नमाज़ की स्थापना मूल उद्देश्य है और शासन नमाज़ के आधार पर स्थिर होता है। उनका मानना है कि इस्लामी समाज में नमाज़ की स्थापना होना ज़रूरी है और समस्त लोगों को इसके लिए प्रयास करना चाहिए और इस प्रकार संतुष्टि एवं स्थिरता प्राप्त करनी चाहिए।
नमाज़ के विषय पर ईरान में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाले सम्मेलन के नाम अपने संदेश में वरिष्ठ नेता क़ुरान की एक आयत की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहते हैं, ज़मीन के किसी भाग में ईश्वरीय शासन की स्थापना के साथ ही मोमिनों के कांधों पर कुछ अहम ज़िम्मेदारियां आ जाती हैं, क़ुरान ने नमाज़ को विशेष महत्व प्रदान किया है और उसे सूचि में सबसे ऊपर रखा है और कहता है, वे लोग कि अगर हम उन्हें ज़मीन पर शक्ति प्रदान करें तो वे नमाज़ की स्थापना करते हैं। अगर लोगों के बीच नमाज़ की स्थापना की मूल भूमिका नहीं होती और वह बड़े उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए इस्लामी शासन का मज़बूत स्तंभ नहीं होती तो इस प्रकार से नमाज़ के महत्व पर बल नहीं दिया जाता।
वास्तविकता यह है कि नमाज़ प्रशिक्षण में अहम भूमिका रखती है और वह मोमिनों को आश्चर्यचकित हार्दिक शांति प्रदान करती है, नमाज़ पढ़ने वाले में श्रद्धा और ईश्वरीय भय एवं उस पर भरोसे की ज्योति जागती है और नमाज़ पवित्र एवं आध्यात्मिक वातावरण उत्पन्न करके नमाज़ी को गुनाहों और पापों से बचाती है। नमाज़ के ज़िक्र और शब्दों में विभिन्न प्रकार के पाठ छुपे हुए हैं। यह एक व्यक्तिगत धार्मिक ज़िम्मेदारी से बढ़कर वास्तव में व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस संदर्भ में वरिष्ठ नेता कहते हैं, इबादतों द्वारा जो कुछ हमें प्राप्त होता है, वह अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुत अधिक है। हमें ईश्वर का शुक्र करना चाहिए कि उसने हमारे लिए नमाज़ और रोज़े की व्यवस्था की, हमें इसकी सुविधा प्रदान की कि इनसे लाभान्वित हों।