हम और पर्यावरण-26
वन दुनिया में जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग हैं।
लगभग एक तिहाई भूमि को जंगलों ने घेरा हुआ है। हालांकि पृथ्वी के केवल 6 प्रतिशत भाग पर जंगल हैं, जिनमें वनस्पतियों और जानवरों की क़रीब आधी प्रजातियां रहती हैं। इसी कारण वनों का विशेष महत्व है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैज्ञानिक रूप से वन कहलाने के लिए कम से कम 3 हज़ार वर्ग मीटर का क्षेत्रफल ज़रूरी है और यह पेड़ों की प्रजाति और पर्यावरण की परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वनों में वनस्पतियां और जंगली जानवर पाए जाते हैं।
वनों में उत्पादकों अर्थात वनस्पतियों, उपभोक्ताओं अर्थात जानवरों और अपघटन करने वाले सूक्ष्म जीवों के बीच पारस्परिक संबंध स्थापित है। वनों में विशेष रूप से सुरक्षित वनों में जैव विविधता अधिक होती है, यहां तक कि आज भी उनमें से अधिकांश की खोज नहीं हो सकी है। उदाहरण स्वरूप, अमाज़ोन के जंगल पृथ्वी पर रहने वाले 10 प्रतिशत जानवरों और वनस्पतियों का ठिकाना हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अमाज़ोन में 40 हज़ार प्रकार की वनस्पतियां, 427 प्रकार के सस्तन प्राणी, 1294 प्रकार के परिंदे, 378 प्रकार के रेंगनेवाला जीव, 427 प्रकार के द्विधा गतिवाले प्राणी और 3 हज़ार क़िस्म की मछलियां पायी जाती हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश वनों के विनाश की प्रक्रिया ने पृथ्वी की जलवायु को ऐसा नुक़सान पहुंचाया है जिसकी भरपाई संभव नहीं है और अब यह वनों के जीव जंतुओं को भी प्रभावित कर रही है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि खेती, पशुपालन और अन्य उद्देश्यों के लिए ज़मीन की सतह को बराबर करने से वनों के पेड़ों की आधी से अधिक प्रजातियां ख़तरे में हैं। प्रकृति को सुरक्षित रखने के अंतरराष्टीय संघ ने अमाज़ोन के जंगलों के बारे में इस ख़तरे के प्रति चेतावनी देते हुए कहा है कि अगर यह प्रक्रिया जारी रही तो 36 से 57 प्रकार की वनस्पतियों के विलुप्त होने का ख़तरा है। वैज्ञानिकों ने ब्राज़ील, पेरू, कोलम्बिया, वेनेज़ोएला, इक्वाडोर, बोलीविया, सूरीनाम, गिनी और फ़्रांस के 5 करोड़, 50 लाख वर्ग किलोमीटर के जंगलों पर शोध किया है।
इस शोध के अनुसार, लगभग 1500 प्रकार की वनस्पतियां और पेड़ जारी शताब्दी के मध्य तक विलुप्त हो जायेंगे। शिकागो के संग्राहलय के पर्यावरणविद् नाइजल पीटमैन का कहना है कि जिन पेड़ों के विलुप्त होने का ख़तरा है उनमें से ब्राज़ीली अख़रोट और खजूर के पेड़ हैं, जो अमाज़ोन के निवासियों को फल और जड़ी बूटियां उपलब्ध करवाते हैं। यह पेड़ जलवायु संतुलन में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे पहले होने वाले शोधों से पता चलता है कि अमाज़ोन के जंगलों में 12 प्रतिशत की कमी हो चुकी है और 2050 तक यह 28 प्रतिशत सिकुड़ जायेंगे।
लंदन के इम्पीरियल कालेज के वैज्ञानिकों के अध्ययन से भी इस बात की पुष्टि होती है कि ब्राज़ील में वनों के विनाश का अमाज़ोन के जंगलों पर नकारात्मक परिणाम पड़ रहा है। वे विलुप्त होने वाली प्रजातियों की संख्या के आंकड़ों के मद्देनज़र इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पिछले 30 वर्षों के दौरान जंगलों के विनाश के कारण 38 प्रकार के जानवरों की प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है। इनमें 10 प्रकार के सस्तन प्राणी, 20 प्रकार के परिंदे और 8 प्रकार के द्विधा गतिवाले प्राणी शामिल हैं। ऐसी स्थिति में कि जब कुछ प्रजातियां, सीधे रूप से पेड़ों के नष्ट से नष्ट हो जाती हैं, उनमें से कई अन्य प्रजनन में कमी और भोजन के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे धीरे विलुप्त हो जाती हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, वनों के विनाश के कारण, पूर्वी और दक्षिणी इलाक़ों को अन्य इलाक़ों की तुलना में अधिक ख़तरा है। इसके अलावा, अमाज़ोन के बीच से हाइवे के निर्माण से भी विभिन्न प्रकार की प्रजातियां तेज़ी से विलुप्त हो रही हैं। इम्पीरियल कालेज के वैज्ञानिकों के अध्ययन के मुताबिक़, अमाज़ोन में मौजूद प्रजातियों की मुक्ति के लिए 2020 तक जंगलों के विनाश में 80 प्रतिशत तक की कमी होनी चाहिए।
यह प्रक्रिया दुनिया के अन्य वनों के बारे में पायी जाती है। हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी जेम्सकोक के प्रोफ़ेसर विलियम लॉरेंस ने अफ़्रीक़ा से ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय वनों तक दुनिया के समस्त गर्म इलाक़ों का शोध किया, जिससे पता चलता है कि दुनिया जितनी अधिक गर्म होती रहेगी, विभिन्न जंगली प्रजातियां विलुप्त होती रहेंगी। गर्म लहरों में वृद्धि होने के कारण, बीमारियां फैल रही हैं, जिसके परिणाम स्वरूप वनस्पतियों की कुछ प्रजातियां सूख रही हैं, जंगलों में आग लगने से करोड़ों पेड़ जलकर राख हो जाते हैं। इस प्रकार, हवा में कार्बन डाइऑक्साइड गैस फैल जाती है और जानवरों की प्रजातियों की संख्या कम हो जाती है और उनकी संख्या में 30 प्रतिशत तक की गिरवाट आ जाती है। उदाहरण स्वरूप, अफ़्रीक़ा में अर्ध रेगिस्तानी इलाक़ों में और एशिया के कुछ भाग में जलवायु परिवर्तन के कारण 65 और 67 प्रतिशत जंगली जीवन नष्ट हो चुका है।
तापमान में वृद्धि के अलावा, जंगलों में जानवरों के विलुप्त होने का एक दूसरा कारण, धीरे धीरे इकोसिस्टम का विनाश है। इसका कारण, पर्यावरण का प्रदूषित होना या जंगलों को छोटा होना है। कभी कभी किसी शक्तिशाली शिकारी प्रजाति के इलाक़े में प्रवेश के कारण, जानवरों का जीवन ख़तरे में पड़ जाता है। किसी इलाक़े में प्रदूषण के कारण भी कोई एक जाति पूर्ण रूप से नष्ट हो जाती है, यह प्रकिया तेज़ी से या धीरे धीरे घट सकती है। इंसान ने वनों से छेड़छाड़ करके और उनके क्षेत्रफल को कम करके सामान्य से एक हज़ार से दस हज़ार गुना अधिक तक प्रजातियों के विनाश को तेज़ कर दिया है। इसलिए कि जंगल से संबंधित इकोसिस्टम को भी विनाश का ख़तरा है। साक्ष्यों से पता चलता है कि जहां कहीं भी जंगल नष्ट हो जाते हैं, वहां नदियां भी नष्ट हो जाती हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, विभिन्न प्रजातियों के विलुप्त होने से पैदा होने वाला एक ख़तरा, बीमारियों का फैलना है। शोधकर्ताओं के अनुमान के अनुसार, जब बफ़र प्रजातियां विलुप्त होती हैं तो बीमारियों में वृद्धि होती है। बफ़र वह प्रजातियां हैं, जो वैकल्पिक रूप से शिकार से जंगली शिकारी और इसके विपरीत परिवर्तित होती हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि सस्तन प्राणियों की छोटी प्रजातियों में कमी के कारण, जानवरों में वायरस ऊपर की ओर फैलता है। ऐसा वायरस जो इंसानों के फेफड़ों में संक्रमण का कारण बनता है। उदाहरण स्वरूप, अमरीका के ऑर्गन इलाक़े में सस्तन प्राणियों की विविधता में कमी के कारण यह वायरस चूहों में 2 से 14 प्रतिशत बढ़ गया है। हालांकि शोधकर्ताओं ने अपने शोध से यह परिणाम भी निकाला है कि जंगली जानवरों से सीधा संपर्क भी जो अवैध व्यापार में होता है, बीमारियों के जानवरों से इंसानों में फैलने का कारण बनता है।
इस प्रकार, इकोसिस्टम की सुरक्षा में वनों के महत्व को समझा जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ की वेबसाइट ने भी इकोसिस्टम की सुरक्षा में वनों के महत्व पर बल दिया है। यह ऐसी स्थिति में है कि जब अधिकांश विकासशील देशों में जंगल, परियोजनाओं की बलि चढ़ रहे हैं, इसलिए कि इन देशों के अधिकारियों का मानना है कि जंगल केवल पेड़ों का झुरमुट हैं और अगर उसमें से कोई पेड़ काट लिया जाए तो नया पेड़ लगाकर उसकी भरपाई की जा सकती है। हालांकि पेड़ की कटाई से एकोसिस्टम प्रभावित होता है और वनस्पतियों एवं जानवरों की प्रजातियां नष्ट हो जाती हैं। ऐसी प्रजातियां, जिनकी इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसलिए अगर हम इकोसिस्टम को सुरक्षित रखना चाहते हैं और दुनिया को अधिक गर्म होने से बचाना चाहते हैं, तो हमें वनों के विनाश पर अंकुश लगाना होगा। दूसरी स्थिति में हमारा जीवन प्रभावित होगा। वनों की सही और स्थिर व्यवस्था, स्थिर विकास का आधार है, इससे निर्धनता में कमी आएगी और पानी की कमी दूर होगी और दुनिया भर में स्वच्छ वातावरण उत्पन्न होगा।