ईरानी बाज़ार-11
ईरान तांबे की बेल्ट पर स्थित है और विश्व में पाए जाने वाले कुल तांबे का 3 प्रतिशत ईरान में मौजूद है।
पुरातत्वविदों का मानना है कि इंसान द्वारा सबसे पहली खोजी गई धातुओं में से एक तांबा है। हज़ारों साल पहले इंसान ने सिक्के, तलवार जैसे सैन्य उपकरण, आभूषण और तांबे से कुछ अन्य चीज़ों को बनाना सीखा। तांबे की खोज और उसके प्रयोग से मानव जीवन के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरूआत हुई।

तांबे को पहली बार कब इस्तेमाल किया गया, इसकी सही तारीख़ ज्ञात नहीं है। मिस्र के एक पिरामिड में तांबे से बनी पाइप लाइन की खोज से पता चलता है कि मिस्रियों ने हज़रत ईसा से हज़ारों साल पहले इस धातु का इस्तेमाल सीख लिया था। प्रथम मानव संस्कृति के स्थान मेसोपोटामिया के इलाक़े में पुरातत्वविदों के अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि इस इलाक़े में 10 हज़ार साल ईसा पूर्व तांबे का इस्तेमाल किया जाता था। मेसोपोटामिया के एक भाग में जिसे आज इराक़ के नाम से जाना जाता हैं, तांबे की एक वस्तु मिली है, जिसका संबंध 8 हज़ार साल ईसा पूर्व से है, जो विश्व में तांबे की सबसे पुरानी वस्तुओं में से एक है।
यूरोपीय लोग भी 4 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व तांबे से परिचित थे। इस संदर्भ में उस प्राचीन प्राकृतिक ममी का उल्लेख किया जा सकता है, जिसे ओयट्ज़ी या बर्फ़ीला पुरुष नाम दिया गया है, यह मम्मी 1991 में इटली और ऑस्ट्रिया की सीमा पर माउंट आल्प्स में मिली थी। बर्फ़ में मिलने वाली यह मम्मी 5300 साल पुरानी है, इसके साथ ही 99 प्रतिशत से अधिक शुद्ध तांबे की नोक वाली एक कुल्हाड़ी भी मिली है। लैटिन अमरीका की कुछ संस्कृतियों में जैसे कि माया, एज़्टेक और इंका के लोग सोने और चांदी के अलावा, तांबे का भी इस्तेमाल करते थे।
ईरान विश्व में तांबे की बेल्ट पर स्थित है। इसलिए यहां तांबे का प्रयोग भी काफ़ी पुराना है। प्राचीन तांबे की वस्तुओं और तांबे से मिश्रित धातुओं और प्राचीन भट्टियों से पता चलता है कि ईरानी प्राचीन काल से इन धातुओं का प्रयोग करते रहे हैं। क़ज़वीन के ज़ाग़े टीले से मिलने वाली तांबे की भट्टियों का इतिहास 5 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से संबंधित है। इससे पता चलता है कि इस इलाक़े में तांबे का इस्तेमाल काफ़ी पुराना है। काशान के सील्क टीले से भी तांबे के उपकरण मिले हैं, जो 6 हज़ार वर्ष ईसा पूर्व से संबंधित हैं। इस इलाक़े में मौजूद धातु की तलछट और यहां से मिलने वाली अन्य चीज़ों से पता चलता है कि इस इलाक़े के लोग, कच्ची धातुओं को पिघलाने और उसे सांचे में ढालने की तकनीक से परिचित थे। प्राचीन ईरान के बर्तनों और वस्तुओं को देश और विदेशों के संग्राहलयों में देखा जा सकता है।

उस काल में इस कार्य में दक्ष व्यक्ति तांबे के टुकड़ों को शीट में बदलने के लिए भट्टी इत्यादि का प्रयोग करते थे। पिघले हुए तांबे को सांचे में उंडेला जाता था और उसे कूटकर शीट में परिवर्तित किया जाता था। यह कार्य हथोड़े द्वारा दो लोग अंजाम देते थे, जिसके बाद विभिन्न साइज़ों और रूपों में बर्तन बनाए जाते थे। समय बीतने के साथ साथ और वैज्ञानिक प्रगति के कारण तांबे की प्रक्रिया और उससे बनने वाली चीज़ों में बुनियादी परिवर्तन हो गया। आज तांबे के बर्तन बनाने के लिए इलैक्ट्रिक मशीनों का प्रयोग किया जाता है। हालांकि अभी भी किसी दक्ष उस्ताद के हाथ से बने हुए उत्पाद, डिज़ाइन और सुन्दरता के दृष्टिगत अपना अलग स्थान रखते हैं। जो लोग ईरान के कुछ ऐतिहासिक शहरों जैसे कि किरमान, यज़्द, इस्फ़हान और काशान के बाज़ारों में जाते हैं, वह तांबे के वरक़ या शीट को कूटने की आवाज़ सुन सकते हैं।
अध्ययन के मुताबिक़, विश्व में पाए जाने वाले कुल तांबे का 3 प्रतिशत ईरान में मौजूद है। ईरान में तांबे की खानें, उत्तर पश्चिम से लेकर दक्षिण पूरब तक देश के विभिन्न इलाक़ों में फैली हुई हैं। ईरान का ऐतिहासिक प्रांत किरमान, खदानों का महत्वपूर्ण ध्रुव माना जाता है, इसे ईरान की खानों का स्वर्ग भी कहा जा सकता है। यह प्रांत ईरान के दक्षिण पूरब में स्थित है और देश का सबसे बड़ा प्रांत है। भूविज्ञान के अनुसार, इस प्रांत के विभिन्न इलाक़े धातुओं और ग़ैर धातुओं की खानों से संपन्न हैं, उदाहरण स्वरूप तांबा, अयस्क, लीड, क्रोमाइट, फॉस्फ़ेट, चूना पत्थर, ज़िंक, जिप्सम, क्वार्ट्ज़, संगमरमर, ग्रेनाइट और कोयला।
किरमान तांबे की खानों से समृद्ध प्रांत है और इसके लिए यह विश्व प्रसिद्ध है। सरचश्मे किरमान नामक खान, विश्व की खुली हुई बड़ी खानों में से एक और मध्यपूर्व की सबसे बड़ी खुली हुई खान है। यह खान ज़ागरस पर्वतीय श्रृंखला के केन्द्रीय इलाक़े में स्थित है। इस खान में तांबे के अलावा, मोलिब्डेनम और सोना भी मौजूद है। अध्ययनों से पता चलता है कि यह ईरान की सबसे पुरानी तांबे की खान है, जिससे देश में तांबे की कुल खपत का 50 प्रतिशत, प्राप्त होता है।

सरचश्मे कॉम्पलैक्स, विश्व के सबड़े बड़े औद्योगिक कॉम्पलैक्सों में से एक है। इस कॉम्पलैक्स में धातुओं को गाढ़ा करने, पिघलाने और उन्हें रिफ़ाइंड करने का कार्य किया जाता है। प्रसिद्ध मीमंद भू-साइट के निकट स्थित होने के कारण और धातुओं के विभिन्न प्रक्रियाओं से गुज़रने को देख सकने के कारण, पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यह एक बेहतरीन पर्यटन साइट है।
ईरान में तांबे की एक अन्य खुली हुई खान, पूर्वी आज़रबाइजान प्रांत में स्थित सूनगून है। यह खान बहुमूल्य खनिजों और शुद्धता के कारण, देश की महत्वपूर्ण पूंजी है। खनिजों के विशेषज्ञों के अनुसार, सूनगून खान दुनिया की बड़ी खानों में से एक थी और एक अनुमान के मुताबिक़, इस खान में देश में पाये जाने वाले तांबे का 40 प्रतिशत तांबा है।
विशेष विशिष्टताओं के कारण, तांबे को दुनिया भर में महत्वपूर्ण धातुओं में से माना जाता है। इस लाल रंग की धातु की एक विशेषता उसका लचीलापन है और विभिन्न स्वरूपों में ढल जाना है। उसमें ज़ंग नहीं लगता है और बायोलौजिकल प्रदूषणों से यह धातु सुरक्षित रहती है। यह धातु इलेक्ट्रिसिटी के प्रवाह और दूरसरंचार के लिए एक अच्छा कंडक्टर है, इसके अलावा निर्माण कार्यों, मोटर पार्ट्स और सैन्य उपकरणों के लिए भी उचित है। तांबे के अधिक उपयोग और उसके मिश्रण से बनने वाली धातुओं के विभिन्न उद्योगों में प्रयोग के कारण, विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था के विकास में इस धातु की अहम भूमिका है।

तांबे के आर्थिक मूल्यों के कारण, ईरान में प्रयास किया जा रहा है कि इससे संबंधित प्रक्रियाओं जैसे कि धातु को गाढ़ा बनाने, पिघलाने, रिफ़ाइंड करने और सांचे में ढालने के कार्यों को विकसित किया जाए। इसी प्रकार, देश भर में तांबे की खानों की खोज और उनके उपयोग के लिए अध्ययन किए जा रहे हैं।

ईरान में केबल और वायर बनाने के कारख़ानों, तांबे के मिश्रण से बनाई जाने वाली धातुओं के उत्पाद, सैन्य उपकरणों, हीट एक्सचेंजर, निर्माण उपकरणों और हैंडिक्राफ़्टस में तांबे का काफ़ी प्रयोग होता है। घरेलू ज़रूरतों के अलावा, तांबे के उत्पादों को चीन, भारत, ताइवान, तुर्की और संयुक्त अरब इमारात भी निर्यात किया जाता है।
