मार्गदर्शन - 27
हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक ऐसी हस्ती के मालिक थे जिनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कहना था कि उनके गुण बयान करना मानव बुद्धि के परे है।
वरिष्ठ नेता हज़रत अली अलैहिस्सलाम की महान हस्ती के बारे में कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के आरंभ से अंत तक केवल ईश्वर के बारे में विचार किया और ईश्वर के मार्ग को चुना। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन का सारांश यह है कि वह न्याय प्रतिमूति, पवित्रता का प्रतीक, समानता और बराबरी का प्रतीक, दया का प्रतीक, युक्ति का प्रतीक, साहस के प्रतीक, मानवाधिकार का सम्मान करने वालों के प्रतीक और ईश्वर के समक्ष दासता के प्रतीक थे।
उनकी मुख्य विशेषताओं और गुणों के बारे में बहुत सारी बातें हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की नैतिक विशेषताएं और गुण इतने अधिक और व्यापक हैं कि उनमें से हर एक के बयान के लिए बहुत अधिक समय की आवश्यकता है। कहते हैं कि जब वह अपने किसी साथी या मित्र को नाराज़ देखते थे तो उसे हंसी मज़ाक़ द्वारा प्रसन्न कर देते थे ताकि उसका कुछ दुख दर्द कम हो। हज़रत अली की ख़ुशी का उस समय ठिकाना नहीं होता था जब एक नास्तिक मुसलमान हो जाता था, निर्धन लोगों को खाना पहुंचाते थे, दुखी दिलों को ख़ुश करते थे, दूसरों की समस्याएं दूर करते थे और अनाथ बच्चों को ख़ुश करते थे।
श्रोताओ इस कार्यक्रम में हम इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई की नज़र में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के गुणों को बयान करेंगे।
संगीत
ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करना, हज़रत अली की विशेषताओं में से एक है। हज़रत अली द्वारा ईश्वर के मार्ग में ख़र्च किए जाने के बारे में इतिहास में बहुत ही शिक्षाप्रद कहानियां मौजूद हैं। नमाज़ की हालत में निर्धन को अंगूठी देना तथा रात के समय निर्धनों के पास जाना और उनको खाना और खाल बांटना, ईश्वर के मार्ग में हज़रत अली द्वारा ख़र्च किए जाने के नमूनों के भाग हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करने के बारे में एक रिवायत मिलती है। तारीख़े बिलाज़री और फ़ज़ाएल अहमद नामक पुस्तक में सुन्नी धर्म गुरुओं के हवाले से बयान किया गया है कि पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद और 25 वर्ष के काल में जब उनके पास समय बहुत अधिक हुआ करता था, तो उन्होंने बंजर ज़मीनों को उपजाऊ बनाने और कुएं खोदने जैसे बहुत से काम किए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हाथों बहुत सी ज़मीनें उपजाऊ हुई थीं, स्वयं ही बेलचा उठाते थे और अपने हाथों से कुएं खोदते थे, धरती को उपजाऊ बनाते थे और उनकी आय भी बहुत अधिक थी। रिवायत में कहा गया है कि एक साल में चालीस हज़ार दीनार उनकी आय थी, जिसमें गेहूं और खजूर की खेती भी किया करते थे। एक वर्ष में चालीस हज़ार दीनार आय! उन्होंने एक वर्ष की आय चालीस हज़ार दीनार को दान कर दिया। मेरी बात को आप अपने मन में दोहराएं! हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी एक वर्ष की पूरी आय को ईश्वर के मार्ग में दान कर दिया। इसके अतिरिक्त उनके पास पैसे भी नहीं थे कि हम सोचे कि उससे जीवन व्यतीत कर सकते थे। रिवायत में आगे बताया गया है कि जिस दिन उन्होंने अपनी आय दान की, बाज़ार जाकर उन्होंने अपनी तलवार बेच दी। लोगों ने उनसे कहा कि हे अमीरल मोमेनीन! आज आपके पास चालीस हज़ार दीनार नक़द थे और आपने उन्हें दान कर दिया और अब आप अपनी तलवार बेच रहे हैं? उन्होंने कहा कि यदि रात के लिए कुछ खाने को होता तो मैं अपनी तलावर कभी न बेचता, यह कोई कहानी नहीं है, वास्तविता है, यह इस लिए है ताकि हम और आप शिक्षा प्राप्त करें और इससे सीखें।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई की नज़र में हज़रत अली अलैहिस्सलाम की एक अन्य विशेषता उनकी निष्ठा है। उनका कहना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम काम केवल ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने और अपने ईश्वरीय व इस्लामी दायित्वों पर अमल करने के लिए ही करते थे। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता हज़रत अली अलहैस्सलाम की शुद्ध निष्ठा के बारे में कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बचपन में और युवा काल में ही जब उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम से इस्लाम सीखा और कठिनाईयां सहन की, तभी से निष्ठा का प्रदर्शन करने लगे। उन्होंने ईश्वर के लिए ठाट बाट भरे जीवन से मुंह मोड़ लिया और तेरह वर्षों तक पैग़म्बरे इस्लाम की छत्रछाया में रहकर संघर्ष करते रहे। उसके बाद एक दिन जब मक्के के अनेकेश्वरवादियों ने पैग़म्बरे इस्लाम की रात के अंधेरे में हत्या की योजना बनाई तो आप निडर होकर उनके बिस्तर पर सो सो लेट गये और पैग़म्बरे इस्लाम मक्के से मदीना नगर की ओर पलायन कर गये । पैग़म्बरे इस्लाम के बिस्तर पर हज़रत अली का सोना, उन कार्यों में से है यदि कोई चिंतन मनन करे तो उसे पता चलेगा कि यह सबसे बड़ा त्याग और बलिदान है जो एक व्यक्ति दे सकता है। अर्थात इस बिस्तर पर सोने वाले की मौत निश्चित थी। रात का अंधेरा, क्रोधित और सशस्त्र दुश्मन, दीवार के पीछे घात लगाए पैग़म्बरे इस्लाम की हत्या का पक्का इरादा कर चुके थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस रात पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि यदि मैं आपके बिस्तर पर सो जाऊं तो क्या आपकी जान बच जाएगी। उन्होंने कहा, हां, फिर मैं सो जाऊंगा, उस रात केवल निष्ठा ही थी जो विराजमान थी। इन परिस्थितियों में जिसे अपनी परवाह होती है, वह अपनी स्थिति से लाभ उठाने के प्रयास में रहता है किन्तु उसी समय उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की जान की परवाह थी। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता उनकी निष्ठा के एक अन्य प्रकाशमयी आयाम को उजागर करते हुए कहते हैं कि युद्धों में, ओहद नामक जब कुछ लोगों के अलावा सभी लोग पैग़म्बरे इस्लाम को छोड़कर फ़रार हो गये थे, हज़रत अमीरुल मोमनीन ने पैग़म्बरे इस्लाम की रक्षा की, ख़ंदक़ के युद्ध में जब हर कोई अम्र इब्ने अब्दवद का सामना करने से कतरा रहा था,आपने कई बार स्वेच्छा से स्वयं को पेश किया। ख़ैबर के युद्ध में, आयते बराअत के मामले में, पैग़म्बरे इस्लाम के बाद, सक़ीफ़ा में पैग़म्बरे इस्लाम का उतराधिकारी चुने जाने के मामले में, दूसरे ख़लीफ़ा के निधन के बाद गठित परिषद में, इन समस्त मामलों में हज़रत अमरीरुल मोमनीन ने केवल और केवल ईश्वरीय प्रसन्नता को दृष्टि में रखा और पूरी निष्ठा के साथ उस चीज़ का चयन किया जो केवल इस्लाम और मुसलमानों के हित में हो और उसमें किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। जब उन्होंने ख़िलाफ़त स्वीकार की, 25 वर्ष के काल में जब वह ख़िलाफ़त से दूर रहे, ख़लीफ़ाओं से उनका सहयोग, इस्लाम के लिए उनके काम में, रणक्षेत्र और कार्य में उनकी उपस्थिति, संघर्ष और इस्लामी व्यवस्था की सेवा, जनता की शिक्षा में, समाज के लोगों के प्रशिक्षण में, उसके बाद अपनी ख़िलाफ़त के कार्यकाल में विभिन्न धड़ों से उनके टकराव में जिनमें से हर एक का अपना अलग ही नारा था और जिनकी विशेषताएं अलग थीं, दूसरे अन्य अवसरों पर, अली इब्ने अबी तालिब, वही अली इब्ने अबी तालिब हैं जो ईश्वर को पसंद करते हैं और पैग़म्बरे इस्लाम का चयन करते हैं, ईश्वर के नेक बंदे। यह वह चीज़ है जिसके कुछ भाग को हमको और आपको अपने कर्म और जीवन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सीखना चाहिए और उस पर अमल करना चाहिए।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम में एकत्रित समस्त मानवीय विशेषताओं के अतिरिक्त, उनमें सबसे अधिक जो विशेषता पायी जाती थी वह उनका न्यायप्रेम था। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि समस्त ईश्वरीय दूत न्याय की स्थापना करने और लोगों को ईश्वर से निकट करने के लिए भेजे गये थे और लोगों के मध्य ईश्वरीय क़ानूनों को लागू करने की ज़िम्मेदारी इस्लामी अधिकारियों की है। इस संबंध में वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यदि अमीरूल मोमनीन के जीवन और उनके पांच वर्षीय शासन काल की घटना पर नज़र डालें तो समझ में आता है कि शासन काल के दौरान जो चीज़ उनके लिए सबसे अधिक समस्या का कारण बनी है वह उनका न्याय प्रेम था।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता हज़रत अली के न्याय प्रेम को इस प्रकार बयान करते हुए कहते हैं कि अत्याचारियों से किसी भी प्रकार का समझौता न करना, अत्याचार ग्रस्त लोगों से सहृदयता, अत्याचारियों से अत्याचार ग्रस्त लोगों का हक़ दिलवाने में सहायता करना, वह चीज़ें हैं जिन्हें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन, उनके शब्दों और नहजुल बलाग़ा के भाषणों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस अर्थपूर्ण शब्द पर ध्यान दें। ईश्वर की सौगंध यदि रात कांटों पर जाग कर गुज़ारू, या मेरे शरीर को ज़ंजीरों में बांध कर ज़मीन पर घसीटा जाए तो मेरे लिए यह सबसे अधिक लोकप्रिय और पसंदीदा है कि मैं ईश्वर और उसके दूत से प्रलय के दिन ऐसी हालत में मुलाक़ात करूं कि कुछ लोगों पर अत्याचार करूं और दुनिया में कुछ लोगों का हक़ मारूं ।
अर्थात यदि जीवन के सबसे कठिन चरण में हूं तब भी संभव नहीं है कि मैं किसी पर भी तनिक अत्याचार करूं, देखिए यह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के न्याय की निशानी और प्रतीक है।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई बल देते हैं कि अमीरुल मोमेनीन ने जब से ख़िलाफ़त की ज़िम्मेदारी स्वीकार की तब से लेकर जब मस्जिद में नमाज़ की हालत में उनके सिर पर हमला किया गया, कभी भी एक क्षण के लिए वह वास्तविकता और सच्चाई से दूर नहीं रहे, हज़रत अली ने एक क्षण के लिए भी न्याय में लापरवाही नहीं की, उनके प्राचीन दोस्त उनका साथ छोड़ गये, उनको निराशा हुई और वह उनसे अलग हो गये, उनके विरुद्ध युद्ध छेड़ दिया, कल तक उनकी प्रशंसा करने वालों ने जब उनके न्याय को देखा तो वह उनके ख़ून के प्यासे हो गये किन्तु बुरा कहने वाले उनके मज़बूत रास्ते को नहीं रोक सके और उसके बाद वह इसी रास्ते में शहीद भी हो गये।