सीरिया संकट
सीरिया के बारे में जनेवा-5 वार्ता, आठ दिन के वार्तालाप के बाद समाप्त हो गई।
इस वार्ता के बारे में सीरियाई गठबंधन के प्रमुख बश्शार जाफ़री ने कहा कि वार्ता के दौरान चार प्रमुख विषयों पर चर्चा हुई। सरकार, संविधान, चुनाव और आतंकवाद। हमने इन विषयों पर विस्तृत चर्चा की। उन्होंने कहा कि हमने संयुक्त राष्ट्रसंघ के दूत के सुझाव के बारे में कुछ प्रश्न किये और सीरिया के बारे में उन्हें कुछ सुझाव भी दिये जो वे सामने वाले पक्ष तक पहुंचाते। जाफ़री ने कहा कि खेद की बात है कि उस ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिला। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण यह है कि हमारा सामने वाला पक्ष, न तो आतंकवाद से मुक़ाबले का इच्छुक है और न ही सीरिया संकट के समाधान में ही रुचि रखता है। बश्शार जाफ़री ने कहा कि वे केवल यह चाहते हैं कि सीरिया संकट समाप्त न होने पाए।
इसी बीच संयुक्त राष्ट्रसंघ के विशेष प्रतिनिधि स्टीफ़न डेमिस्तूरा ने जनेवा वार्ता के बारे में कहा कि वार्ता प्रभावी रही। उन्होंने बताया कि वार्ता के दौरान सभी पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि वे छठे चरण की वार्ता के लिए पुनः वियना आएंगे। उन्होंने कहा कि अगली वार्ता में अंतरिम सरकार, संविधान, चुनाव और आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष के बारे में चर्चा की जाएगी। इन बातों के बावजूद जनेवा-5 वार्ता के दौरान इसमें उपस्थित गुटों के बीच मतभेद बिल्कुल स्पष्ट थे। उधर सीरिया के कुर्दों की राष्ट्रीय परिषद ने एक बयान जारी करके घोषणा की है कि सीरिया सरकार के विरोधी गुटों द्वारा उनके प्रस्तावों और सुझावों को अनदेखा करने के कारण उसने जनेवा वार्ता में अपनी उपस्थिति विलंबित कर दी है।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने मार्च के अंत में इराक़ की अघोषित यात्रा की। वे पूर्व सूचना के बिना इराक़ की राजधानी बग़दाद पहुंचे। बग़दाद में एंटोनियो गोटरेस ने इराक़ी प्रधानमंत्री हैदर अलएबादी से भेंटवार्ता की। उन्होंने बताया कि इराक़ यात्रा का उनका उद्देश्य, इराक़ी पलायनकर्ताओं की स्थिति से अवगत होना है। राष्ट्रसंघ के महासचिव ने कहा कि हमारी प्राथमिकता यह है कि हर स्थिति में आम लोगों के जीवन की सुरक्षा की जाए। उन्होंने इराक़ी प्रधानमंत्री के साथ भेंट में इस बात पर बल दिया कि संयुक्त राष्ट्रसंघ, आतंकवादियों के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही करने का पक्षधर है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव की इराक़ यात्रा, यह दर्शाती है कि राष्ट्रसंघ, इराक़ की सरकार और जनता के साथ है। एंटोनियो गुटेरेस ने विश्व समुदाय से मांग की है कि इराक़ में आतंकवाद के प्रभावितों और वहां पर शांति स्थापित करने में उसकी सहायता की जाए। इराक़ यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्रसंघ के महासचिव ने इराक़ी कुर्दिस्तान के प्रमुख से भी भेंट की। उन्होंने अरबील में मसूद बारेज़ानी के साथ भेंटवार्ता में विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया।
29 मार्च को अरब संघ का 28वां शिखर सम्मेलन संपन्न हुआ। यह सम्मेलन जार्डन में हुआ था। अरब संघ के इस सम्मेलन की अध्यक्षता जार्डन के नरेश अब्दुल्लाह द्वितीय ने की। सम्मेलन की समाप्ति पर यह तय पाया कि इसका अगला शिखर सम्मेलन, संयुक्त अरब इमारात में आयोजित होगा। अरब संघ के 28वें शिखर सम्मेलन में इराक़, ओमान, अल्जीरिया, संयुक्त अरब इमारात और सीरिया ने भाग नहीं लिया। हालांकि सीरिया को इसका निमंत्रण ही नहीं दिया गया था।
अरब संघ के 28वें शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र का विभिन्न देशों के कई गणमान्य लोगों ने विरोध किया है। मिस्र के एक सांसद कमाल अहमद ने कहा कि यह बड़े दुख की बात है कि सीरिया जैसे अरब देश को अरब शिखर सम्मेलन में निमंत्रित नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि सीरिया, संयुक्त राष्ट्रसंघ का सदस्य है और एक अरब देश भी है इसके बावजूद अरब संघ के सम्मेलन में उसे नहीं बुलाया गया। मिस्र के इस सांसद ने कहा कि एसे में कि जब हमारे दुश्मन हमको मिटाने के लिए एक हो रहे हैं हम अपने ही दोस्तों से अलग हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही खेद की बात है। इस बारे में लेबनाना के राष्ट्रपति का कहना है कि इस प्रकार से अरबों के बीच सहकारिता मुश्किल है। उधर अल्जीरिया के संसद सभापति अब्दुल क़ादिर बिन सालेह ने अरब संघ के ढांचे में सुघार की मांग की है।
अरब संघ के 28वें शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र में एक बात और महत्वपूर्ण रही कि इसमें कुछ एसे आरोपों को फिर दोहराया गया जिनको पिछले कई सालों से दोहराया जा रहा है। घोषणापत्र के अनुसार सीरिया संकट का समाधान कूटनैतिक मार्ग से ही संभव है। यह वह बात है जो पहले भी कई बार कही जा चुकी है किंतु अरब संघ के कुछ सदस्य विशेषकर सऊदी अरब, आरंभ से ही आतंकवादी गुटों का समर्थन करता रहा है। यह देश, सीरिया की वैध लोकतांत्रिक सरकार को गिराने के लगातार प्रयास कर रहा है। इस घोषणापत्र में इराक़ संकट के शांतिपूर्ण समाधान पर भी बल दिया गया। इसमें कहा गया है कि आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष, सराहनीय है। अरब संघ की ओर से यह बयान एसी स्थिति में जारी किया गया है जब इराक़ी अधिकारी कई बार यह बात कह चुके हैं कि कुछ अरब देश, आतंकवादी गुटों के खुले समर्थक हैं।
अरब संघ के 28वें शिखर सम्मेलन के घोषणापत्र में फ़िलिस्तीनियों के अधिकारों का भी उल्लेख मिलता है। इसमें कहा गया है कि फिलिस्तीनियों के स्वतंत्र देश की स्थापना को सुनिश्चित किया जाए।
उधर सीरिया में रहने वाले सैकड़ों फ़िलिस्तीनियों ने ज़मीन दिवस के अवसर पर इस्राईल विरोधी प्रदर्शन किये। प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी शासन डारा हथियाई गई फ़िलिस्तीनियों की संपूर्ण भूमियों की तत्काल स्वतंत्रता की मांग की। फ़िलिस्तीनी, 30 मार्च को ज़मीन दिवस मनाते हैं। इस वर्ष उन्होंने 41वां धरती दिवस मनाया। ज़ायोनी शासन ने 30 मार्च सन 1976 के दिन फ़िलिस्तीनियों की बहुत सी भूमि का अतिग्रहण करके पलायनकर्ता ज़ायोनियों को देदी थी। इसपर फ़िलिस्तीनियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दिखाई थी। 30 मार्च 1976 को फ़िलिस्तीनियों ने व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन किये थे। फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों पर इस्राईली सैनिकों ने हमला करके कम से कम 6 फ़िलिस्तीनियों की हत्या कर दी। इस हमले में 100 से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल हो गए। ज़ायोनी सैनिकों ने बड़ी संख्या में फ़िलिस्तीनियों को गिरफ़्तार किया था। यही कारण है कि फ़िलिस्तीनी प्रतिवर्ष 30 मार्च को धरती दिवस मनाते हैं। इस दिन वे इस्राईल विरोधी प्रदर्शन भी करते हैं।
फिलिस्तीन के केन्द्रीय सर्वेक्षण केन्द्र ने धरती दिवस के अवसर पर बयान जारी करके बताया है कि ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनियों की 27 हज़ार वर्ग किलोमीटर ज़मीन हथिया रखी है। इस बयान में कहा गया है कि ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनियों की 85 प्रतिशत पर क़ब्ज़ा कर रखा है। ज़ायोनी शासन ने 30 मार्च को फ़िलिस्तीनियों के विरोध प्रदर्शन को अनदेखा करते हुए अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्रों में अवैध कालोनी निर्माण कार्य को पुनः आरंभ करने की घोषणा की है। अवैध ज़ायोनी शासन के मंत्रीमण्डल ने इस बात पर सहमति जताई है कि अवैध कालोनियों का निर्माण जार्डन नदी के उत्तर में स्थित “अमीक शीलू” नामक क्षेत्र में किया जाएगा।