Apr ३०, २०१७ १०:११ Asia/Kolkata

योरोपीय सरकारों को उत्तरी अफ़्रीक़ा और मध्यपूर्व से पलायन की लहर का सामना है जिसके कारण योरोप में मानवतर का दावा करने वाले देशों में इन पलायनकर्ताओं की दर्दनाक स्थिति नज़रअंदाज़ हो गयी है।

अभी हाल में मानवाधिकार के समर्थक कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने लीबिया से पलायन करने वालों की दर्दनाक स्थिति का चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया है। योरोप में सबसे ज़्यादा जिन देशों से पलानकर्ता जा रहे हैं उनमें लीबिया भी है। रिपोर्टों के अनुसार, इन पलायनकर्ताओं की कुछ योरोपीय देशों में स्थिति बहुत ही दयनीय बनी हुयी है। पलायनकर्ता मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधीन अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने ताज़ा रिपोर्ट में बताया है कि मानव तस्करों ने लीबिया को दासों की मंडी बना दिया है। वे योरोप जाने वाले पलायनकर्ताओं को क़ैदी बनाकर उनसे ज़बरदस्ती काम लेते हैं। तस्करों के चंगुल से बच निकलने वाले कुछ पलायनकर्ताओं ने गवाही दी है कि पलायनकर्ताओं को ख़रीद कर उन्हें क़ैदी बनाया जाता था। मानव तस्कर पलायनकर्ताओं के परिजनों से संपर्क कर उनसे उनके क़ैदियों की रिहाई के लिए फिरौती मांगते थे। यूएनएचसीआर के अनुसार, इस समय पलायन लीबिया में एक चिंताजनक प्रक्रिया के साथ ही दासों की खुली मंडी का रूप अख़्तियार कर चुका है। इस रिपोर्ट में आया है, “पार्किंग या मैदानों में दासों का लेन-देन होता है। जो लोग दास बनते हैं उनसे कारख़ानों में काम लिया जाता है। इन पलायनकर्ताओं को कुपोषण, यौन दुराचार और हत्या जैसे ख़तरों का सामना है।” इस संदर्भ में अंतर्राष्ट्रीय पलायन संगठन आईओएम के प्रमुख उस्मान बेलबईसी कहते हैं, “अगर बाज़ार जाते हैं तो 200 से 500 डॉलर में एक पलायनकर्ता को अपने साथ ले जाइये वह आपका दैनिक काम करेगा। जब किसी पलायनकर्ता को ख़रीदा और वह आपके हवाले हो गया तो आप उसके मालिक हो गए। उनमें से बहुत से बाद में फ़रार हो जाते हैं, बहुत से क़ैद में रखे जाते हैं और बहुत से लोगों को ऐसी जगह पर क़ैद रखा जाता है जहां उनसे ज़बरदस्ती काम लिया जाता है। कुछ गवाहों के अनुसार, महिला पलायनकर्ताओं को यौन संबंध के लिए दासी के रूप में बेचा जाता है।” अंतर्राष्ट्रीय पलायन संगठन के आपात विभाग के प्रमुख मोहम्मद अब्दुल कबीर क़ैदी बनाए गए पलायनकर्ताओं की दयनीय स्थिति का इन शब्दों में वर्णन करते हैं, “स्थिति बहुत ही दर्दनाक है। जितना ज़्यादा गहराई में जाते हैं तो यह पाते हैं कि लीबिया पलायनकर्ताओं के लिए नरक समान है।”    

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लीबिया में शरणार्थियों की स्थिति बहुत ज़्यादा दयनीय बनी हुयी है। इन शरणार्थियों में बहुत से अफ़्रीक़ा के निर्धन संकट ग्रस्त देशों से लीबिया पहुंचे हैं। ये शरणार्थी इटली और लीबिया की सरकार के बीच हुयी सहमति के नतीजे में लीबिया पहुंचे हैं कि लीबिया की इस सरकार को संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन हासिल है। इटली और त्राबलस में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समर्थित सरकार के बीच फ़रवरी में सहमति हुयी! इसके नतीजे में मानव तस्करों से निपटने के लिए ट्रेनिंग पर आने वाले ख़र्च की आपूर्ति होती है। यह सहमति, अफ़्रीक़ा से यूरोप पलायन को रोकने के लिए मॉल्टा में योरोपीय संघ के राष्ट्राध्यक्षों के देशों के बीच हुयी सहमति के बाद हुयी। योरोपीय संघ के नेताओं ने एक बैठक में उस योजना पर सहमति जतायी जिसका लक्ष्य लीबिया से पलायनकर्ताओं की लहर को कम करना है। लीबिया की सरकार को इस योजना को लागू करने के बदले में तटवर्ती गार्ड की तैनाती पर आने वाले ख़र्च के रूप में 20 करोड़ यूरो मिलेगा। योरोपीय संघ और तुर्की के बीच हुयी सहमति के बाद, समुद्री मार्गों से यूनान पहुंचने का क्रम पिछले साल रुक गया। ये मार्ग उन अहम मार्गों में था जिनके ज़रिए पलायनकर्ता योरोप पहुंचते थे। इस समय योरोप पलायन करने का सबसे अहम साधन नौकाएं हैं जो लीबिया से इटली जाती हैं। यह वह जगह हैं जहां शरणार्थी निश्चिंत होकर अपनी गतिविधियां अंजाम देते हैं। लेकिन इस सहमति की मुख्य रूप से वे पलायनकर्ता बलि चढ़ रहे हैं जिनका कोई सहारा नहीं है। वे शरणार्थियों को पकड़ कर जेल या कैंपों में बहुत ही दर्दनाक स्थिति में रखते हैं। ऐसी स्थिति जो पूरी तरह अमानवीय है।

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गांबिया के एक पलायनकर्ता कीता का कहना है, “वे लीबिया में लोगों के पैर में गोली मारते थे। लोगों के सिर पर गोली मारते थे। उनकी नज़र में इंसानों से ज़्यादा कुत्ते की अहमियत है। वहां जेलों में सिर्फ़ अश्वेत वर्ण के लोग दिखाई देंगे कि जिनकी हर दिन पिटाई होती है। उनके पास खाने को नहीं हैं। सिर्फ़ एक दिन में एक टाइम का खाना दिया जाता है। बहुत ही दर्दनाक दिन थे।”

डॉक्टर्ज़ विदाउट बॉर्डर्ज़ संगठन ने मानव तस्करों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए इतालवी व लीबियाई सरकार के बीच हुयी सहमति के अंजाम पर चिंता जताने के साथ ही कहा है कि लीबिया में विशाल मरुस्थल के दक्षिणी भाग में कैंपों में शरणार्थियों की स्थिति स्वास्थय रक्षा की दृष्टि से बहुत ही ख़राब हैं। इस संगठन की नज़र में ये कैंप इंसानों को रखने के भंडार कक्ष के समान हैं। डॉक्टर्ज़ विदाउट बॉर्डर्ज़ संगठन के महानिदेशक अर्जन हैन्कैंप इस बारे में कहते हैं, “दुर्व्यवहार व बल प्रयोग” के कारण पलायनकर्ताओं के पास तस्करों को समुद्र पार करने के लिए फिरौती देने या दास के रूप में ख़ुद को बेचने के बीच किसी एक को चुनना होता है। डॉक्टर्ज़ विदाउट बॉर्डर्ज़ संगठन के महानिदेशक का यह बयान उन पलायनकर्ताओं की दर्दनाक स्थिति के चरम को दर्शाता है जो लीबिया के कैंपों से ख़ुद को योरोप पहुंचाने के लिए अवसर की तलाश में रहते हैं।  

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योरोप जाने की चाह में भूमध्यसागर के थपेड़े खाते समुद्र का मार्ग चुनने वाले बहुत से शरणार्थी तट पर ही नहीं पहुंच पाते। अंतर्राष्ट्रीय पलायन संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, जारी वर्ष लगभग 32000 पलायनकर्ता योरोप पहुंचे हैं। इस दौरान योरोप पहुंचने से पहले ही 650 से ज़्यादा पलायनकर्ता रास्ते में ही मौत के मुंह में चले गए। उन पलायनकर्ताओं की संख्या हज़ारों में है जिन्हें योरोपीय देशों के तटरक्षक बल ने मौत के मुंह में जाने से बचाया। वे जब योरोप पहुंचते हैं तो उनके सामने बहुत कठिन स्थिति होती है क्योंकि योरोपीय सरकारों ने शरणार्थियों को स्वीकार करने के लिए बहुत कड़े नियम बनाए हैं। इन कड़े नियमों के कारण शरणार्थी जीवन गुज़ारने के लिए हर प्रकार का अपमान सहने के लिए तय्यार हो जाते हैं। जर्मनी में अभी हाल में शरणार्थी जवानों व नौजवानों के देह व्यापार में लिप्त होने की रिपोर्ट सामने आयी है। ये जवान मूल ज़रूरतों की आपूर्ति के लिए ऐसा करते हैं। इससे पहले यूनान में शरणार्थी जवानों के देह व्यापार करने की रिपोर्टें सामने आयी थीं। इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती  थी कि जर्मनी की मर्कल सरकार के शरणार्थियों को मदद करने के व्यापक प्रचार के बावजूद इस देश में शरणार्थी देह व्यापार करने पर मजबूर होंगे। योरोप में ‘प्रो आज़ोल’ मानवाधिकार संगठन के अधिकारी कार्ल कोप जवानों के देह व्यापारी के रूप में शोषण की ओर से सचेत कर चुके थे। बर्लिन में शरणार्थियों की समर्थक संस्था की सदस्य डायना हिंगिस इस बारे में कहती हैं, “जर्मनी में इस प्रक्रिया के जारी रहने से हैरत में हूं। यह ख़तरे की घंटी है।” टीवी चैनल आरबीबी इससे पहले मानवाधिकार संगठनों शरणार्थियों के अधिकारों के संरक्षक संगठनों के हवाले से रिपोर्ट दी थी कि बर्लिन में देह व्यापार करने वाले शरणार्थी जवानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इन राहत संस्थाओं का कहना है कि पिछले साल उनके संरक्षण में आने वाले जवानों की संख्या कई गुना बढ़ गयी है। राहत संगठनों का कहना है कि जवान शरणार्थियों के देह व्यापार में लिप्त होने के कारण में, पर्याप्त मात्रा में मदद न होने वाली योजनाओं की कमी और बालिग़ होने के बाद नौजवानों का वित्तीय मदद की लिस्ट से निकाला जाना भी है।

बच्चों और नौजवानों के देह व्यापार करने पर मजबूर होने के आयाम बहुत व्यापक हैं। इनमें से बहुत से नौजवान व बच्चे लापता हो चुके हैं कि जिनके बारे में कोई ख़बर नहीं है। जर्मनी के अपराध विभाग के प्रवक्ता ने जनवरी 2016 में कहा था कि 4749 बच्चों व नौजवानों का पता नहीं है कि वे कहां और किस हालत में हैं जो बिना अभिभावक के जर्मनी में शरण लेने आए थे। उनके अनुसार, इन शरणार्थियों में 471 की उम्र 13 साल से कम है। 4287 शरणार्थियों की उम्र 14 से 17 साल के बीच है। इनमें से 31 लोगों की उम्र 18 साल से ज़्यादा है। इससे पहले योरोपीय पुलिस संगठन योरोपोल ने ख़बर दी थी कि 2 साल पहले 10000 शरणार्थी बच्चे योरोप पहुंचने से पहले लापता हो चुके हैं। योरोपोल के अनुसार, इटली और स्वीडन में क्रमशः 5 और 1 हज़ार है। बच्चों के अधिकारों के संरक्षक संघ के प्रमुख हैंस हेल्गर्ज़ ने 2 फ़रवरी को जर्मन अख़बार ‘फ़्रैंकफ़र्टर रोन्दशाव’ से इंटरव्यू में कहा, “ये बच्चे अपनी विशेष परस्थिति के कारण अपराधियों के हाथों बड़ी आसानी से शिकार हो जाते हैं और बड़ी आसानी से उनका शोषणा हो सकता है।”

योरोपोल ने एक रिपोर्ट में बताया कि जो दुष्ट मानव तस्करी और शरणार्थियों को भगाने में लिप्त हैं, वे बच्चों, नौजवानों और महिलाओं को दास बनाने या उनका यौन शोषण करने की कोशिश करते हैं। इन दिनों सबसे ज़्यादा असुरक्षित लोग शरणार्थी हैं। वे अच्छी ज़िन्दगी नहीं बल्कि ज़िन्दा रहने की उम्मीद में योरोप पलायन करने का क़दम उठाते हैं। लेकिन योरोपीय सरकारें इस मामले को सुरक्षा की दृष्टि से देखती हैं न कि मानवीय दृष्टि से। इन सरकारों ने शरण लेने वाले पलायनकर्ताओं के साथ अपने अमानवीय व्यवहार का औचित्य दर्शाने के लिए इसे सुरक्षा का नाम दे रखा है और शरणार्थियों को योरोप की पहचान के लिए ख़तरा दर्शाने का प्रयास कर रही हैं। वे ऐसी सुरक्षा नीति अपनाना चाहती हैं जिससे शरणार्थियों के पलायन करने के आरंभिक बिन्दु से योरोप तक का सफ़र सख़्त से सख़्त हो जाए। शरणार्थियों के योरोप सफ़र के मार्ग को कठिन बनाने का एक रास्ता यह है कि उन तमाम अपराधों पर आंखे मूंद ली जाए जो शरणार्थियों के साथ उनके देश से योरोप पहुंचने के बीच उनके साथ होते हैं।