हम और पर्यावरण-35
हमने यह बताया था कि वर्तमान युग में पाए जाने वाले कचरों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
इनमें से एक शहरी कचरा दूसरा औद्योगिक कचरा और तीसरा हानिकारक कचरा या परमाणु कचरा है।
वर्तमान समय में जिस ऊर्जा ने सबका ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है वह परमाणु ऊर्जा है। इस समय परमाणु ऊर्जा की उपयोगिता इतनी अधिक बढ़ चुकी हैं कि मानव जीवन में इसको नकारना लगभग असंभव हो चुका है। हालांकि परमाणु ऊर्जा के बहुत से लाभ हैं किंतु इसके कुछ नुक़सान भी हैं जिनमें से एक परमाणु कचरा है। इस समय इस बात पर चर्चा बहुत जटिल होती जा रही हैं कि परमाणु कचरे को किस प्रकार से नियंत्रित किया जाए ताकि वह पर्यावरण को दूषित न करने पाए। यदि परमाणु कचरे को सुरक्षित ढंग से ठिकाने न लगाया जाए तो इस कचरे से होने वाला रेडियोधर्मी रिसाव, पानी के माध्यम से धरती के भीतर प्रविष्ट हो जाता है जो बाद में बहुत घातक सिद्ध होता है। इससे मानव जीवन और पर्यावरण दोनों को बहुत अधिक नुक़सान हो सकता है। यही कारण है कि वर्तमान समय में रेडियोधर्मी कचरे का निपटारा एक विकट समस्या के रूप में सामने आया है।
रेडियोधर्मी रिवास, अब पूरे विश्व के लिए चिंता का विषय बन चुका है। हिरोशिमा पर की गई परमाणु बमबारी और रूस के चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना ने सिद्ध कर दिया है कि यदि केवल एक ग्राम संवर्धित यूरेनियम, प्रकृति या पर्यावरण में प्रविष्ट हो जाए तो इससे उत्पन्न विकिरण हजारों वर्षों तक समाप्त नहीं होते। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके दुष्प्रभावों की संभावना, चालीस लाख वर्षों तक बाक़ी रहने की पाई जाती है। हिरोशिमा में अब भी बहुत से लोग रेडियोधर्मी रिसाव के नुक़सान को भुगत रहे हैं। इसी प्रकार चेरनोबिल में होने वाले परमाणु विस्फोट के बाद आज भी कैस्पियन सागर के तटवर्ती क्षेत्रों में रहने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना है। चेरनोलोबिल दुर्घटना के बाद कैस्पियन सागर में कई जाति की मछलियों की नस्लें, सदैव के लिए समाप्त हो गईं। इसी प्रकार बहुत से पक्षी, जो कूच करके एक विशेष मौसम में कैस्पियन सागर के तट पर आया करते थे अब नहीं आते।
इन सभी ख़तरों के बावजूद इस समय ऊर्जा के उत्पादन का एक महत्वपूर्ण स्रोत, परमाणु बिजलीघर ही हैं जिनसे परमाणु कचरा बनता है। किसी परमाणु बिजलीघर में 8 मेगावाट बिजली पैदा करने में 30 ग्राम रेडियोएक्टिव कचरा बनता है। इसी मात्रा में अच्छी क्वालिटी के कोयले से बिजली बनाने से 800 किलोग्राम कार्बनडाई आक्साइड पैदा होती है। मात्रा की दृष्टि से यदि देखा जाए तो रेडियो एक्टिव पदार्थ का भार अधिक नहीं होता किंतु इससे मानव जीवन और पर्यावरण को होने वाली क्षति बहुत अधिक है। इसी बात के दृष्टिगत परमाणु कचरे की सुरक्षा करना अति आवश्यक है। ख़तरों की दृष्टि से परमाणु कचरे को तीन भागों में बांटा जा सकता है। इनमे से एक कचरा अन्य कचरों की तुलना में कम ख़तरनाक होता है। इससे होने वाला रेडियोधर्मिता का रिसाव कम समय तक रहता है। इस प्रकार के कचरे की विशेष निगरानी की आवश्यकता नहीं होती। इसके बावजूद इस तरह के परमाणु कचरे को आम कचरे की तरह नहीं समझना चाहिए। हालांकि परमाणु कचरे का भार अधिक नहीं होता किंतु उससे होने वाली हानि बहुत है इसीलिए इस बारे में बहुत अधिक सचेत रहने की आवश्यकता होती है।
परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने के लिए इस समय विभिन्न प्रकार की शैलियों का प्रयोग किया जा रहा है। अपनाई जाने वाली शैलियों में से एक यह है कि बहुत गहरा गढ़्ढा खोदकर परमाणु कचरे को उसमें दफ़्न कर दिया जाता है। जानकारों का कहना है कि इस प्रकार का काम करने से कुछ समय के बाद परमाणु कचरे से होने वाला नुक़सान लगभग समाप्त हो जाता हैं। कुछ देश, परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने के लिए अलग शैली अपनाते हैं। विश्व में कुछ देश एसे भी हैं जो अपने परमाणु कचरे को सीधे समुद्र में डाल देते हैं। सारी दुनिया के देश रेडियोधर्मी राख और कचरे का निपटारा, सागर में बहुत गहराई में जाकर या भूमि के अन्दर बहुत नीचे उसे दबाकर करते हैं।
इसी बीच एक विचार यह भी आया था कि इस परमाणु कचरे को अंतरिक्ष में रखा जाए लेकिन मामला बेहद ख़र्चीला व जोखिम भरा होने के कारण इस विचार को त्याग दिया गया। ईपीए अर्थात पर्यावरण की सुरक्षा से संबन्धित नियमों के अनुसार परमाणु कचरे से उत्पन्न विकिरण, हजारों वर्ष तक समाप्त नहीं होता। इस विकिरण से मनुष्य की सेहत और पर्यावरण पर पड़ने वाले घातक परिणाम सामने आ रहे हैं। ईपीए के अनुसार जिन क्षेत्रों में परमाणु कचरा दफ़्न किया जाए उन क्षेत्रों में कम से कम दस हज़ार वर्षों तक परमाणु कचरे से होने वाली क्षति की सुरक्षा की क्षमता पाई जाती हो क्योंकि वैज्ञानिकों के अनुसार इनका प्रभाव हज़ारों वर्षों बाद जाकर समाप्त होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि परमाणु कचरे का ख़तरा कम से कम दस हज़ार वर्षों तक बना रहता है। अमरीका, ब्रिटेन और फ़्रांस जैसे देशों ने अपने परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने के लिए “मख़ज़न संगी” अर्थात स्टोन टैंक शैली को अपनाया है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि वर्तमान समय में परमाणु विशेषज्ञों के सामने जो महत्वपूर्ण समस्या है वह परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने का विषय है। यह विषय इतना महत्वपूर्ण है कि अब वह राजनैतिक समस्या में परिवर्तित हो चुका है। बहुत से औद्योगिक देश अपने परमाणु कचरे से पीछा छुड़ाने के लिए इस कचरे को दूसरे देशों में दफन करवा रहे हैं जिसके कारण इसकी क्षति का भगुतान उन लोगों को करना पड़ता है जिनके देश में यह कचरा दफ़्न किया जा रहा है।
इस समय निर्धन देशों के लिए ग़ैर क़ानूनी ढंग से परमाणु कचरे का निर्यात, एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में परिवर्तित हो चुका है। औद्योगिक देशों में परमाणु कचरा उत्पन्न करने वाली कंपनियां, क़ानूनों की अवहेलना करते हुए इस कचरे को अपने देश से बाहर भिजवा देती हैं और इससे होने वाले नुक़सान से स्वयं को सुरक्षति रखते हुए निर्धन देशों की जनता को असुरक्षित कर देती हैं। ख़तरनाक परमाणु कचरे का व्यापार इतना विस्तृत हो चुका है कि यूरोपीय देशों की कुछ बंदरगाहें, इस कचरे को ठिकाने लगाने के केन्द्रों में बदल चुकी हैं। इन यूरोपीय बंदरगाहों पर अफ्रीकी और एशियन देशों तक कचरा पहुंचाने के लिए बोलियां लगाई जाती हैं। इन बंदरगाहों पर बड़ी संख्या में दलाल मौजूद होते हैं जो इसी कार्य के लिए विशेष हैं। इन यूरोपीय बंदरगाहों में “उत्रादम” बंदरगाह का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है।
विश्व के कुछ शासन अपना परमाणु कचरा बड़ी ही ढिठाई के साथ दूसरे देशों में दफ्न करने के लिए भेज देते हैं। उदाहरण स्वरूप कुछ समय पूर्व ज़ायोनी शासन ने अपना परमाणु कचरा बिना किसी अनुमति के दक्षिणी लीबिया के तटवर्ती क्षेत्र पर फेंक दिया। इस बारे में लीबिया के नौसेना प्रमुख ने तुर्की की अनातोली समाचार एजेन्सी को दिये अपने इन्टरव्यू में कहा था कि देश के तटरक्षक बलों ने एक संदिग्ध जहाज़ को भारी संख्या में बड़े-बड़े पैकेटों को फेकते हुए देखा। जब इस मामले की जांच की गई तो पता चला कि बड़ी दक्षता से परमाणु कचरे की पैकिंग करके उन्हें लीबिया के तटवर्ती क्षेत्र पर फेक दिया गया था। उन्होंने कहा कि इस हिसाब से इस्राईली अपराधी हैं जिन्होंने लीबिया के तटवर्ती क्षेत्रों में परमाणु कचरा डालकर वहां के पर्यावरण को दूषित किया है। इसके बाद ही फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्री ज़हनी अलवहीदी ने भी कहा था कि ज़ायोनी शासन ने नाबलुस नगर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर विषैले पदार्थों के साथ ही साथ लगभग 80 टन परमाणु कचरा वहां पर छोड़ दिया।
उल्लेखनीय है कि इस प्रकार की कार्यवाहियां एसी स्थिति में जारी हैं कि जब इस बारे में अन्तर्राष्ट्रीय मौन के कारण विश्व के निर्धन देश, परमाणु कचरे के क़ब्रिस्तान में बदलते जा रहे हैं। इसके कारण जहां एक ओर निर्धन देशों की जनता को स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं का सामना है वहीं पर यह विषय, वहां के पर्यावरण को भी गंभीर क्षति पहुंचा रहा है। इन बातों से यह सिद्ध होता है कि मानवाधिकारों की सुरक्षा और पर्यावरण की सुरक्षा जैसे खोखले नारे, झूठे दावों के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं।