मार्ग दर्शन- 31
तीसरे ख़लीफ़ा उसमान की मौत के बाद मुसलमानों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बैअत की और हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने लोगों को बहुत अधिक आग्रह के कारण शासन संभाल लिया।
यह एसा दौर था कि कुछ लोग पिछली ख़ेलाफ़तों में पैसे जमा करके धनवान हो गए थे। एसे लोगों को भय सता रहा था कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन में न्याय पर अमल होगा तो कहीं उन्हें सज़ा न दी जाए। यही कारण था कि वह लोग शुरू ही से हज़रत अली अलैहिस्सलाम के विरोध पर उतारू हो गए। इसके अलावा भी कुछ लोग एसे भी थे जो द्वेष और जलन के कारण और अपना स्थान ख़तरे में पड़ जाने के डर से विरोध का बिगुल बजा रहे थे। लेकिन बैअत करने वालों ने इस प्रतिज्ञा के साथ कि वह हज़रत अली का हर हाल में समर्थन करेंगे उन्हें शासन संभालने के लिए तैयार कर लिया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई का मानना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सरकार के मज़बूत और बुनियादी स्तंभ कई एक हैं। सबसे पहला स्तंभ है ईश्वर की धर्म की पूर्ण प्रतिबद्धता और ईश्वरीय शिक्षाओं के लागू किए जाने पर आग्रह। ईश्वर के धर्म की शिक्षाओं और नियमों को लागू करना हज़रत अली अलैहिस्सलाम के लिए इतना महत्वपूर्ण था कि वह किसी भी स्थिति में अपने इस ध्येय से विचलित नहीं होते थे।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस बारे में एक रोचक मिसाल देते हुए कहते हैं कि भीषण युद्ध के दौरान एक व्यक्ति हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास जारक एकेश्वरवाद के बारे में एक प्रश्न पूछता है। उसने सवाल किया कि क़ुल हुवाल्लाहो अहम में अहद का क्या मतलब है? यह सवाल ईश्वर के अस्तित्व के बारे में नहीं उसके एक विशेषण के बारे में है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास मौजूद लोगों ने उसको डांटना शुरू कर दिया कि यह इस प्रकार के सवाल करने का समय है? हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि नहीं मैं पहले इस सवाल का जवाब दूंगा। हम तो ईश्वर और एकेश्वरवाद के लिए ही युद्ध कर रहे हैं। अर्थात हज़रत अली अलैहिस्सलाम का युद्ध, उनकी राजनीति, उनकी मोर्चाबंदी तथा शासन के दौरान उनके द्वारा अपनाए गए सारे नियम केवल इस लिए थे कि समाज में धर्म प्रचलित है और उसके नियम लागू हों।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई की नज़र में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन का दूसरा महत्वपूर्ण स्तंभ था न्याय की स्थापना। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का संघर्ष इस बात के लिए था कि समाज में पूर्ण न्याय की स्थापना हो। पूर्ण न्याय का अर्थ यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम किसी भी विषय और किसी भी नीति को न्याय पर प्राथमिकता नहीं देते थे। वह हर क्षेत्र में हर व्यक्ति को न्याय दिए जाने पर अडिग रहते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का प्रयास था कि समाज में आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय, सामाजिक न्याय और शिष्टाचारिक न्याय की स्थापना हो।
न्याय की स्थापना और अत्याचार व अन्याय से दूरी के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम का दृष्टिकोण इस तरह ईश्वर पर केन्द्रित और व्यक्तिगत इच्छाओं से दूर है कि वह अपने एक ख़ुतबे में कहते है कि क्या आप मुझसे यह कह रहे हैं कि अपनी विजय के लिए इस्लामी समुदाय के बारे में जिसका मैं अभिभावक हूं अत्याचार का रास्ता अपनाऊं? ईश्वर की सौगंध जब तक ज़िंदा हूं और दिन और रात मौजूद हैं, सितारे उदय और अस्त हो रहे हैं हरगिज़ एसा काम नहीं कर सकता। इस सुंदर वाक्य के बारे मे इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि देखिए यह तसवीर कितनी सुंदर है। आपसे लोग कहते हैं कि राजनीति के मैदान में, चुनाव के मैदान में, युद्ध के मैदान में आप जीत सकते हैं लेकिन इसके लिए आपको यह अत्याचार करना होगा। एसे में आप क्या करेंगे? हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मुझे एसी विजय नहीं चाहिए। मुझे पराजय हो जाए तो भी कोई हरज नहीं है लेकिन मैं अत्याचार नहीं करूंगा। आपने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के न्याय के पूरे में जो बातें सुनी हैं वह सब उनके इसी पूर्ण न्याय की ओर इशारा हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जीवन में न्याय की स्थापना अन्याय से लड़ने के अर्थ में है। इस अर्थ में कि यदि अत्याचार समाप्त हो जाए तो न्याय की सुगंध हर ओर फैल जाएगी। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का मानना है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम भेदभाव को बहुत बड़ा अत्याचार मानते थे। चाहे यह भेदभाव नियमों को लागू करने के बारे में हो या आदेशों के बारे में। वह भेदभाव ख़त्म करने के लिए समान रूप से न्याय लागू करते थे। अर्थात वह अपने अत्यंत क़रीबी लोगों को भी अन्य लोगों पर प्राथमिकता नहीं देते थे और यदि ज़रूरत पड़ जाए तो दंडित करने में भी संकोच नहीं करते थे।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम का 5 साल का शासनकाल इस्लाम के इतिहास में बहुत छोटा सा कालखंड है लेकिन इसी छोटे से कालखंड को जो चीज़ अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है वह व्यवहारिक रूप से न्याय की स्थापना है। यह एक आदर्श नमूना है जिसे सामने रखकर अमल करने की ज़रूरत है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह आदर्श पेश कर दिया है कि यदि न्याय की स्थापना के कारण इस्लामी शासक को सतत कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो भी पीछे नहीं हटना चाहिए। अर्थात न्याय का रास्ता हरगिज़ नहीं छोड़ना चाहिए।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शासन का एक और स्तंभ था तक़वा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस बारे में कहते हैं कि तक़वा का मतलब यह है कि इंसान अपने हर कर्म और हर क़दम की गहरी निगरानी करे और सत्य व न्याय के रास्ते से हरगिज़ न हटे। यही तक़वा है। यानी हम अपने ऊपर कड़ी निगरानी रखें। किसी भी पैसे को हाथ लगाने से पहले बहुत सावधानी बरते, किसी इंसान की इज्ज़त उछालने में सावधान रहे, विकल्पों के चयन में सावधान रहे, किसी को दूर भगाने में सावधान रहे, बात करने में सावधान रहे कि कुछ भी सत्य के अलावा मुंह से न निकल जाए। अर्थात कड़ी निगरानी होनी चाहिए। आप नहजुल बलाग़ा को शुरू से आख़िर तक देखें तो यह हर जगह तक़वा के लिए प्रेरित करती दिखाई देगी।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की नज़र में तक़वा का महत्व इतना अधिक है कि यदि तक़वा न हो तो इंसान ईश्वर के धर्म को लागू नहीं कर सकता। हज़रत अली अलैहिस्सलाम तक़वा का आदर्श रूप हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता साग्रह कहते हैं कि सबको तक़वा पर बहुत अधिक ध्यान देना चाहिए। उनका कहना है कि दामन पर दाग़ सबसे बड़ा दर्द है। यदि इंसान का दिल गुनाह से दूषित हो जाए तो वह सत्य और तथ्य को नहीं समझ पाता एसे में वह सत्य की मंज़िल की ओर कैसे सफ़र कर सकता है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने धर्म की प्रतिबद्धता, तक़वा पर अमल और न्याय की स्थापना के रूप में बड़ा उज्जवल उदाहरण पेश किया है जिसे सभी इस्लामी सरकारें अपना सकती हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस सरकार को अनुदाहरणीय मानते हैं। इसी तरह हज़रत अली का चापलूसी से लोगों को मना करना, राष्ट्र कोष की सुरक्षा, राष्ट्र कोष से अपने लिए एक पाई भी न लेना, अपने कर्मचारियों को इस बात की अनुमति न देना कि वह पद का दुरुपयोग करते हुए राष्ट्र कोष से फ़ायदा उठाएं इस तरह हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शासन शैली के अन्य पहलू मूल्यवान उदाहरण हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता बयान करते हैं कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने अफ़सर अशअस इब्ने क़ैस को पत्र लिखा कि गवर्नरी तुम्हारे लिए रोटी कमाने का माध्यम नहीं बल्कि तुम्हारी गर्दन पर एक अमानत है और तुम अपने वरिष्ठ की निगरानी में हो। तुम्हें लोगों पर अत्यचार करने का अधिकार नहीं है और न ही कोई बड़ा काम करने का उस समय तक अधिकार है जब तक तुम्हें यह यक़ीन न हो जाए कि वह काम कर ले जाओगे। तुम्हारे हाथ में ईश्वर का धन है और तुम उसी के ख़ज़ान्ची हो। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि इस्लामी व्यवस्था में किसी को भी मिलने वाला पद बहुत ऊंची नीयत के साथ स्वीकार किया जाता है। उनका कहना है कि इस्लामी व्यवस्था में कोई भी शासक सत्ता को धन जमा करने और विलासितापूर्ण जीवन बिताने का माध्यम नहीं समझना चाहिए।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय सरकार की स्थापना के लिए अथक प्रयास किए जिसमें समाज ईश्वरीय नियमों के पालन की ओर आगे बढ़े। अलबत्ता इस मार्ग में उन्हें बहुत से दुशमनों का सामना करना पड़ा। इन दुशमनों ने बड़ी रुकावटें डालीं और हज़रत अली अलैहिस्सलाम पर अत्याचार किए।