मार्गदर्शन - 40
इमाम सज्जाद ने इस्लामी समाज में लोगों के आध्यात्मिक निर्माण के लिए अथक प्रयास किये।
इमाम सज्जाद के अनुसार करबला की त्रासदी का मुख्य कारण लोगों का नैतिक पतन था।
करबला की त्रासदी के बाद ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के कांधे पर था। वे इमा हुसैन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र थे। जिस समय तत्कालीन इस्लामी जगत कुरीतियों का शिकार होकर ग़लत परंपराओं को अपना रहा था और अज्ञानता के अंधकार के कारण लोग बुराई की ओर उन्मुख थे, इमाम सज्जाद ने बड़ी दूरदर्शिता के साथ समाज सुधार का काम शुरू किया। उस काल के शासन द्वारा लोगों में भय व्याप्त किया जा रहा था। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम पर तत्कालीन शासन की ओर से गहरी नज़र रखी जाती थी। ऐसे वातावरण में खुलकर लोगों का मार्गदर्शन करना संभव नहीं था। इन परिस्थितियों को देखते हुए इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने समाज सुधार के लिए सामान्य शैली से हटकर एक अलग शैली अपनाई। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना के माध्यम से लोगों का मार्गर्शन आरंभ किया। इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम जहां इस शैली से लोगों का मार्गदर्शन किया करते थे वहीं पर शुद्द इस्लामी विचारों को उनतक पहुंचाते थे। इस प्रकार उन्होंने उच्च, विचारों को लोगों तक बड़ी सरलता से पहुंचा दिया।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने करबला की दुखद घटना के बाद आशूरा के संदेश को करबला के चटियल मैदान तक सीमित नहीं रहने दिया। उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया कि करबला का संदेश वहीं पर दफ़्न हो जाए और लोगों को वास्तविकता का पता न चले। इमाम सज्जाद ने इस बात का पूरा प्रयास किया कि इमाम हुसैन के परिजनों के करबला से शाम के रास्ते में जहां भी संभव हो, करबला की घटनासे वे लोगों को अवगत करवाते रहे। इस बारे में उन्होंने हर अवसर से लाभ उठाया और करबला की वास्तविकता से लोगों को अवगत करवाया। उन्होंने शाम में यज़ीद के दरबार में खुलकर उन अत्याचारों का वर्णन किया जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों पर करबला में किये गए थे। इन बातों को उन्होंने बड़ी वीरता के साथ बयान किया।
शाम से मदीना वापसी के बाद इमाम सज्जाद ने नैतिकता पर आधारित अपनी दुआओं के माध्यम से लोगों का मार्गदर्शन शुरू किया। उन्होंने अंधकार से भरे ह्रदयों को प्रकाशमी बनाया। उनकी बातें लोगों के दिलों में बैठ जाया करती थीं। लोग उनकी बातों को सुनेन के इच्चुक रहते थे। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने अपनी दुआओं के माध्यम से लोगों का नैतिक मार्गदर्शन किया ताकि भटके हुए लोगों को सही मार्ग पर लाया जा सके।‘
कहा जाता है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अपना अधिक समय ईश्वर की प्रार्थना में व्यतीत करते थे। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इस बारे में बहुत कुछ कहा जा सकता है। वे कहते हैं कि ‘‘ इरशादे मुफ़ीद‘‘ नामक किताब में शेख़ मुफ़ीद ने एक कथन उडारित किया है। वे कहते हैं कि एक व्यक्ति का कहना है कि एक बार मैं इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित था। जब हम वहां पर बैठे थे तो इसी बीच हज़रत अली अलैहिस्सलाम का ज़िक्र निकल आया। इमाम सादिक़, हज़रत अली की विशेषताएं बताने लगे। जिन विशेषताओं का इमाम सादिक़ ने वर्णन किया उनमें से एक तक़वा या ईश्वरीय भय भी था। उन्होंने बताया हज़रत अली अलैहिस्सलाम में किस प्रकार का ईश्वरीय भय पाया जाता था। इमाम सादिक़ ने कहा कि हज़रत अली पूरी निष्ठा के साथ ईश्वर की उपासना किया करते थे। वे इस्लाम की ढाल थे और लोगों के लिए आदर्श थे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ज़ोहद या ईश्वरीय भय और उपासना की दृष्टि से पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में कोई भी इमाम अली के बराबर नहीं है। वे कहते हैं कि इमाम सज्जाद उनके बहुत निकट हैं।
ईश्वर की उपसना में हज़रत अली और अमाम सज्जाद के बीच पाई जाने वाली समानता का उल्लेख करते हुए वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का कहना है कि एक दिन मेरे पिता इमाम मुहम्मद बाक़िर , अपने पिता इमाम सज्जाद के पास गए। जब वे उनके कमरे में पहुंचे तो देखा कि ईश्वर की उपासना करते करते उनके पिता की स्थिति ऐसी हो गई है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। जब इमाम बाक़ीर ने यह देखा तो उन्हें बहुत दुख हुआ। वे कहते हैं कि कमरे पहुंचते ही जब मैंने अपने पिता को इस स्थिति में देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं सका और रोने लगा। मेरे रोने की आवाज़ से मेरे पिता समझ गए कि मैं रो रहा हूं। इमाम बाक़िर कहते हैं कि जब उन्होंने मेरा यह हाल देखा तो मुझको वास्तविकता समझाने के लिए मुझसे कहा कि जाओ कमरे से वह किताब लेते आओ जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम की उपासना र उनकी दुआओं के बारे में विस्तार से लिखा है। इमाम बाक़िर कहते हैं कि मैं गया और वह किताब लेकर अपने पिता इमाम सज्जाद के पास आया। मेरे पिता ने वह किताब उठाई और उसमें से कुछ पढ़ा फिर उसे ज़मीन पर रख दिया। किताब को ज़मीन पर रखने के बाद उन्होंने कहा कि कौन है जो हज़रत अली जैसी इबादत कर सके? यहां पर सोचने की बात यह है कि वह इमाम सज्जाद जिनकी एक उपाधि, सैयदुस्सज्जाद या ज़ैनुल आबेदीन अर्थात उपासना की शोभा थी, वह इमाम यह कह रहा है कि हज़रत अली की तरह कौन इबादत कर सकता है? इसका अर्थ यह है कि इतनी अधिक उपासना के बावजूद इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम , हज़रत अली की तुलना में स्वयं को बहुत कम मानते थे। उनके हिसाब से उनकी उपासना और हज़रत अली की उपासना में बहुत अंतर था।
इमाम ज़ैनुलआबेदीन की दुआओं का एक संकलन हैं जिसे ‘‘ सहीफ़ए सज्जादिया‘‘ के नाम से जानते हैं। इसमें उनकी मूल्यवान दुआएं हैं। इस किताब को पढ़कर मन को शांति प्राप्त होती है। शताब्दियां गुज़र जाने के बावजूद इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआओं में आज भी ताज़गी और आकर्षण पाया जाता है। जो इन्हें पढ़ता है वह इसमें खो जाता है। उनकी दुआओं का यह संकलन आज भी रास्ते से भटके हुए लोगों का मार्गदर्शन कर रहा है।
इमाम सज्जाद के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु की ओर संकेत करते हैं। वे कहते हैं कि सहीफ़ए सज्जादिया का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि इमाम सज्जाद ने बहुत ही गहराई से अपने अस्तित्व का आत्म मंथन किया था। इस प्रकार के गहरे आत्ममंथन से मनुष्य , परिपूर्णता के एसे चरण पर पहुंच जाता है जहां पर पहुंचना बहुत ही कठिन होता है। वे कहते हैं कि इसका अर्थ यह है कि मनुष्य, गहरे आत्म मंथन से चरणबद्द ढंग से परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ऐसे लोग वास्तव में आध्यात्म के उच्च चर पर होते हैं जिन्हें लोगों की केवल अच्छाइयां ही दिखाई देती हैं।
वे कहते हैं कि इसके विपरीत वे लोग जो अपनी कमियों, ग़लतियों और बुराइयों को अनदेखा करते रहते हैं, जो घमण्डी होते हैं वे ईश्वर को भुला बैठते हैं और कभी भी परिपूर्णता तक नहीं पहुंच पाते। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन की महानता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ऐसा व्यक्ति जिसे उपासना की शोभा की संज्ञा दी जाए और जो अपना अधिकांश समय ईश्वर की उपासना में ही व्यतीत करे, ऐसा व्यक्ति एकांत में ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे ईश्वर, मैं अपनी कमियों के बारण मेरे सामने लज्जा का आभार करता हूं मैं अपने अन्तर्मन से असहमत किंतु तुसझे सहमत हूं। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ऐसे महान लोग सूर्य की भांति होते हैं जिनकी केवल किरणों को ही देखा जा सकता है।