मार्गदर्शन- 42
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम मूसा काज़िम (अ.स.) ने विभिन्न अत्याचारी शासकों के दौर में ज़िंदगी बिताई।
विषम परिस्थितियों के हिसाब से उनका काल, उनसे पहले वाले इमामों की तुलना में कठिनाइयों से अधिक भरा दौर था। अपने जीवन के उतार– चढ़ाव भरे काल में इमाम मूसा काज़िम ने कठिन परिस्थितियों के बावजूद ईश्वरीय शिक्षाओं का प्रचार– प्रचार करना नहीं छोड़े। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का जीवनकाल राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से बहुत संवेदनशील काल था। उस समय के अत्याचारी शासकों ने लोगों की हत्याएं करके बहुत से जनआंदोलनों का दमन कर दिया।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम सज्जाद या इमाम ज़ैनुल आबेदीन के काल के बाद इमाम मूसा काज़िम का कल सबसे कठिन था। उन्होंने बनी अब्बास, मंसूर, हारून, महदी और हादी के शासनकाल में जीवन व्यतीत किया। इमाम मूसा काज़िम के काल में अब्बासी शासन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हो रही थी। इसी दौरान वैचारिक दृष्टि से वातावरण बहुत ही जटिल हो चुका था क्योंकि नए – नए विचार इस्लामी जगत में प्रविष्ट हो रहे थे जिससे लोगों के लिए वास्तविकता को समझना बहुत कठिन हो चुका था। अब्बासी शासकों के काल में जिन क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की गयी वहां से प्राप्त होने वाली धन – संपत्ति इन शासकों की शक्ति में वृद्धि का कारण बनी। इसी प्रकार उस समय समाज में बहुत से मतों की गतिविधियां ज़ोर पकड़ रही थीं। एसे में धर्म और संस्कृति के रूप में हर रोज़ एक नई आस्था समाज में प्रविष्ट हो रही थी जिसे अब्बासी सरकारों का समर्थन प्राप्त था। ऐसे वातावरण में शासक वर्ग, जनता की इस समस्या का दुरूपयोग करते हुए उनपर अपना वर्चस्व बढ़ा रहे थे। ऐसे माहौल में सही इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार और प्रसार लगभग असंभव हो चुका था। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस घुटन भरे माहौल में इस्लामी शिक्षाओं को प्रसारित किया।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यह वह दौर था जिसमें शासकों का वर्चस्व इतना बढ़ चुका था कि कवि, वक्ता , कलाकार और ज्ञानी सब लोग शासकों की सेवा में व्यस्त हो चुके थे। ऐसे में तत्कालीन शासक को अपने शासन के लिए किसी ओर से कोई ख़तरा नहीं रह गया था। इस प्रकार के माहौल में तत्कालीन शासकों के लिए यदि कोई चीज़ ख़तरा बन सकती थी तो वह, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का वुजूद था।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के काल में अब्बासी शासकों की नीति यह थी कि जितना भी हो सके पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों और उनके समर्थकों को रास्ते से हटाया जाए। मंसूर अब्बासी ने इमाम मूसा काज़िम के बहुत से समर्थकों की हत्या कर दी और एक अज्ञात स्थल पर उनके शवों को डाल दिया। यह बात मंसूर की मृत्यु के बाद पता चली थी। मंसूर अब्बासी जिस काल में निश्चित होकर अपनी सत्ता का संचालन कर रहा था उसी दौर में जब इमाम काज़िम की इमामत का पता चला तो वह बहुत चिंतित हो गया। अब यह किया जाने लगा कि जिसपर भी इमाम के साथ संपर्क का शक होता था उसे भी हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाता था। उस काल में इमाम के मानने वाले बहुत ही ख़तरनाक माहौल में छिपकर जीवन व्यतीत कर रहे थे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के जो 35 वर्ष व्यतीत किये उनके बारे में हमारे पास विस्तार से कुछ नहीं है। क्योंकि इस दौरान वे अधिकांश जेलों में रहे इसलिए वहां के हालात के बारे में हमें बहुत कुछ पता नहीं है बल्कि हम उन बातों को सुनकर यह अनुमान लगा सकते हैं कि उनके साथ क्या हुआ होगा? इनमें से एक बात यह है कि इमाम मूसा काज़िम की इमामत के काल में कई अब्बासी शासकों ने राज किया और हर एक ने इमाम पर कड़ी नज़र रखी और उनको जेलों में रखा। ऐसी परिस्थिति में इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम ने लोगों की राजनीतिक और सामाजिक जानकारी में वृद्ध की और अब्बासी शासकों के व्यवहार को इस्लामी मूल्यों के विरुद्ध बताया। अब्बासी ख़लीफ़ा हारून नहीं चाहता था कि लोग इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज्ञान के अथाह सागर से लाह उठायें इसलिए वह इमाम के साथ बहुत कठोर व्यवहार किया करता था। अब्बासी शासकों ने इमाम के मार्ग में जो बाधाएं उत्पन्न कर रखी थीं उनके बावजूद इमाम मूसा काज़िम ने लोगों के मार्गदर्शन में अपनी ज़िम्मेदारी के निर्वाह में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया ताकि ईश्वरीय शिक्षाएं हर प्रकार की बुराई से सुरक्षित रह सकें।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के जीवन के बारे में पढ़ने के बाद शायद कुछ लोगों के मन में यह विचार आए कि उन्होंने ख़ामोशी के साथ कई जेलों में जीवन बिताया और बाद में शहीद कर दिये गए। वे कहते हैं कि वास्तव में एसा नहीं है। वास्तविकता यह है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का जीवन, सतत संघर्ष का दौर है जिसके दौरान यातनाएं सहने के बावजूद ईश्वरीय शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाया गया। हर प्रकार की रोक और प्रतिबंधों के बावजूद लोगों तक इस्लामी संदेश पहुंचाए गए। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इस्लामी जगत में जो भी इमाम मूसा काज़िम का समर्थक था वह उन्हें दिलोजान से चाहता था और हर प्रकार की पाबंदियों के बावजूद उनसे संपर्क साधने की कोशिश करता था।
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के काल के शासक, उन्हें अपने लिए बहुत ही गंभीर ख़तरा समझते थे, उनको पता था कि इमाम के चाहने वाले पूरे इस्लामी जगत में फैले हुए हैं। यह शासक, इमाम के प्रभाव को रोकने के लिए हर प्रकार का हथकण्डा अपनाते थे। वे लोग इमाम के व्यक्तित्व से भयभीत रहा करते थे। हालांकि इन शासकों ने इमाम को जेल में क़ैद कर रखा था किंतु इसके बावजूद वे उन्हें अपने लिए सबसे बड़ा ख़तरा समझते थे।
हारून ने इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम को जेल में डालकर यह सतचा था कि कुछ दिनों तक जेल में रहने के बाद वे मेरी बात मानने लगेंगे। जब उसने देखा कि कोई परिणाम नहीं निकल रहा है तो उसने उनपर दबाव बनाना शुरू किया जब उसका भी कोई परिणाम सामने नहीं आया तो फिर यह सोचा कि लालच देकर उनसे अपनी बात मनवा लेंगे। हर तरह से प्रयास करने के बावजूद शासक, इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से अपनी बात मनवा नहीं सके। इमाम को दी जाने वाली यातनाओं के बारे में बनी अब्बास का एक समर्थक एवं अति क्रूर व्यिक्ति संदी बिन शाहिक कहता है कि उसने अपने घर के एक बहुत ही अंधकारमय तहख़ाने में बंदी बनाया था। वह इमाम पर बहुत सख़्ती किया करता था।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम को क़ैदख़ाने में भी डराने, या लालच के बहुत प्रयास किये गए किंतु इमाम ने ईश्वर पर भरोसा करते हुए प्रतिरोध किया परिणाम यह है कि आज इस्लाम और क़ुरआन सुरक्षित है।