मार्गदर्शन -44
इतिहास में पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों के अच्छे व्यवहार व आचरण की बहुत सी घटनाओं का उल्लेख मिलता है।
इमाम मुहम्मद तक़ी ने 8 साल की आयु से ही विद्धानों से शास्त्रार्थ करना आरंभ कर दिया था।
इमाम जवाद अलैहिस्सलाम ने उस काल में विद्धानों से बहस की जब इस्लामी समाज में बहुत से विचार पनप रहे थे। उस काल में बहुत सी पुस्तकों का अरबी भाषा में अनुवाद हो चुका था और विभिन्न प्रकार की विचारधाराएं समाज में फैल रही थीं। उन्होंने बहुत ही कम आयु में विद्धानों से बहस करनी आरंभ कर दी थी। वे अपने पिता और पूर्वजों की ही भांति पूरे विश्वास के साथ विद्धानों के सवालों के जवाब दिया करते थे। लाख प्रायासों के बावजूद मामून और मोतसिम अब्बासी , इस ईश्वरीय मशाल को नहीं बुझा सके।
इतिहास में मिलता है कि अब्बासी ख़लीफ़ा, जनता में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की लोकप्रियता से भयभीत हो गया था। वह इस सोच के साथ इमाम मुहम्मद तक़ी (अ) को विद्धानों के साथ शास्त्रार्थ करने के लिए विवश करता था ताकि उनकी पराजय हो और लोगों में इमाम की बदनामी होऔ इस प्रकार वह चाहता था कि जनता में इमाम की जो लोकप्रियता है उसे कम किया जाए।
अपने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मामून ने उस काल के 70 वर्ष की आयु के एक विद्धान, यहया बिन अकसम से इमाम मुहम्मद तक़ी के मुक़ाबले में पेश किया ताकि उनका अपमान किया जा सके। लेकिन होता इसके विपरीत था। इमाम के मुक़ाबले में आने वाला हर विद्धान , उनके सामने परास्त हो जाता और हर बार मामून का वार ख़ाली जाता। इसके कारण वह बहुत क्रोधित रहता था। जब लोग यह देखते कि साठ – सत्तर साल के विद्धान के सवालों का जवाब दस साल का एक बच्चा बड़ी दृढ़ता के साथ दे रहा है तो उनको बहुत आश्चर्य होता और वे इमाम की सराहना करते।
इमाम जवाद ने 17 वर्षों तक इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभाला।
उन्होंने अपने पिता और पूर्वजों की ही भांति इस्लामी शिक्षाओं का व्यापक स्तर पर प्रचार व प्रसार किया। इमाम मोहम्मद तक़ी (अ) ने कई दक्ष और कुशल शिष्यों का प्रशिक्षण किया। 25 वर्ष की आयु में मोतसिम अब्बासी ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद कर दिया।
इमाम ने सन 220 हिजरी में अपने पिता इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद इमामत का दायित्व संभाला था। उस समय उनकी आयु 8 वर्ष थी। इमाम अली नक़ी के इमामत के काल में अब्बासी शासन अपने पतन के दौर में था। अब्बासी शासकों का भोग- विलास और उनके क्रियाकलापों के कारण लोगों में इन शासकों के प्रति घृणा उत्पन्न होने लगी। इसके विपरीत इमाम के व्यवहार से लोग उनकी ओर बहुत बड़ी संख्या में आकृष्ट होते जा रहे थे। लोगों के दिल उनकी बातों को सुनने के लिए सदैव तैयार रहते थे। इस प्रकार से उनके मानने वालों की संख्या में दिन- प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही थी।
इमाम अलीनक़ी अलैहिस्सलाम के मन में अपने दादा हज़रत अली की ही भांति ईश्वरीय भय था। अब्बासी शासकों ने इमाम को बहुत तकलीफ़ें दीं जिन्हें उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के इमामत के काल में अब्बासी शासन के 6 शासकों ने शासन किया। इन शासकों में मुतवक्किल ने इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम को अधिक यातनाएं दीं। उसने इमाम पर नज़र रखने के लिए अपने कुछ लोग तैनात किये थे जो इमाम की हर गतिविधि पर नज़र रखते थे। उसने इमाम कत मदीने से सामर्रा बुलवाया था ताकि उनपर अधिक से अधिक नज़र रखी जा सके। मुतवक्किल पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से दुश्मनी रखती था। वह अहलेबैत के मानने वालों पर अत्याचार करता, उन्हें मारता- पीटता और उनको यातनाएं दिया करता था। उसने इमाम के चाहने वाले बहुत से लोगों को शहीद करवा दिया। इमाम अली नक़ी ने क़ुम, दमदान, मदीने, मक्के, यमन , मिस्र और इराक़ में अपने प्रतिनिधि नियुक्त किये थे। उनके यह प्रतिनिधि, इमाम के चहने वालों तक इमाम के संदेश पहुंचाया करते थे।
इमाम हादी या इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की राजनीतिक शैली के बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम और उनके काल के शासकों के बीच संघर्ष में अंतत: विजय इमाम की ही हुई। उन्होंने कहा कि यह बात पूरे विश्वास के साथ कही जा सकती है कि अब्बासी ख़लीफ़ा के मुक़ाबले में इमाम को छिपी और खुली दोनों प्रकार की सफलताएं मिलीं।
इमाम हादी या इमाम अली नक़ी के काल में एक-एक करके 6 शासक आए और एक-एक करके चले गए। इन अब्बासी शासकों में अन्तिम शासक ’’मोतज़’’ था। उसीने इमाम हादी को शहीद करवाया। इमाम की शहादत के कुछ ही समय बाद वह भी मर गया। इन शासकों की मौतें बहुत ही अपमानजनक स्थिति में हुईं। कोई अपने पुत्र के हाथों मारा गया तो किसी को उसके भाई ने मार डाला। इस प्रकार वे लोग मारे गए। इमाम हादी अलैहिस्सलाम के काल में विदित रूप में शियाइज़्म को सफलता हाथ लगी और वह बहुत तेज़ी से फैला।
इस्लाम क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने अपनी आयु के 20 साल सामर्रा में बिताए। वहां पर उनकी ज़मीन थी। इमाम के काल में सामर्रा, एक सैनिक छावनी बन चुका था।
इसके बावजूद सामर्रा में ऐसे बहुत से शिया थे जो इमाम के संदेशों को ख़तों के माध्यम से इमाम के चाहने वालों तक पहुंचाते थे। इस प्रकार से इमाम के मानने वालों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई। इमाम हादी ने इस प्रकार के काम अपने काल के ख़तरनाक और अति संवेदनशील दौर में किये।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस ओर संकेत करते हैं कि इमाम हादी ने बहुत ही ख़तरनाक परिस्थितियों में बड़ी संख्या में शियों का प्रशिक्षण किया । वे कहते हैं कि इमाम हादी अलैहिस्सलाम की शहादत के बारे में एक हदीस से पता चलता है कि उनके काल में सामर्रा में ध्यानयोग्य शिया एकत्रित हो चुके थे और तत्कालीन शासन उनको पहचानने में असमर्थ था। इन लोगों ने एक ऐसा नेटवर्क कर लिया था जिसको पकड़ने में शासन के तत्व भी विफल रहे और वह अपना काम जारी रखे हुए था।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता अंत में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के बारे में एक बिंदु की ओर संकेत करते हुए कहते हैं कि इन महान लोगों के एक दिन का संघर्ष इतना अधिक महत्वपूर्ण होता है जो बाद के कई वर्षों तक अपना प्रभाव बाक़ी रखता है। उनके एक दिन का काम वर्षों तक लोगों को प्रभावित करता है। इन महान लोगों ने अपने जीवन की आहूति देकर धर्म की रक्षा की है। उन्ही के बलिदान से आज धर्म जीवित है।