मार्गदर्शन- 45
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ऐसी महान हस्ती थीं कि जिसकी अच्छाइयों, ज्ञान, सदाचारिता, पवित्रता, बुराइयों से दूरी, दुश्मनों के मुक़ाबले में वीरता, कठिनाइयों के मुक़ाबले में धैर्य व टृढ़ता की सभी ने गवाही दी चाहे वह समर्थक हों, विरोधी हों, शिया हों या उनसे श्रद्धा न रखने वाले हों।
यह महान हस्ती जिस समय शहीद हुयी उनकी उम्र सिर्फ़ 28 साल थी।
दसवें इमाम हज़रत अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व उनके बेटे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम तक पहुंचा। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में कहा जाता है कि उनके व्यक्तित्व में जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व को संभालने की सारी विशेषताएं मौजूद थीं। वह अपने समय के सभी लोगों से बेहतर थे। ज्ञान, बुद्धि, वीरता, क्षमाशीलता व अच्छे आचरण की दृष्टि से सबसे बेहतर थे। उनके महान पिता हज़रत अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने बेटे की जान की रक्षा के लिए अपने निकटवर्तियों को सांकेतिक रूप में उनके उत्तराधिकारी बनने के बारे में सूचित कर दिया था।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम 8 रबीउल अव्वल सन 232 हिजरी क़मरी को मदीना में पैदा हुए। उन्होंने 22 साल की उम्र में इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला । यूं तो इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को भी अपने दौर में शासन की ओर से दबाव व सीमित्ता का सामना था लेकिन अपने से पहले दो इमामों की तुलना में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को अपेक्षाकृत कम घुटन भरे माहौल का सामना करना पड़ा। इसका एक कारण यह था कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के समय में पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अनुयायी इराक़ सहित इस्लामी जगत में शक्तिशाली हो चुके थे। ये लोग तत्कालीन शासकों के ख़िलाफ़ थे और किसी भी अब्बासी शासक को वैध नहीं समझते थे बल्कि उनका मानना था कि इस्लामी शासन की बागडोर पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के हाथ में होनी चाहिए क्योंकि ये हस्तियां ही ईश्वर की ओर जनता का सबसे बेहतर ढंग से मार्गदर्शन करने के योग्य हैं। उस समय पैग़म्बरे इस्लाम के ग्यारहवें उत्तराधिकारी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सबसे शानदार व्यक्तित्व के स्वामी थे इसलिए वे कम समय में लोगों के बीच सामाजिक व आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत अहम हस्ती बन कर उभरे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के जीवन काल को मूल रूप से तीन दौर में बांटा जा सकता है। पहला दौर 12 साल का है कि जिसके दौरान वे मदीना में रहे। दूसरा दौर 10 साल का है कि जिस दौरान वे सामर्रा में थे लेकिन उस समय तक जनता के मार्गदर्शन का दायित्व नहीं संभाला था और तीसरा दौर 6 साल का है कि इस दौरान आपने इमामत अर्थात जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम भी अपने पूर्वजों की तरह इस्लाम के आधारों को मज़बूत करने में व्यस्त रहे। उन्होंने अपने समय में मुसलमानों की आस्थी को मज़बूत करने का बीड़ा उठाया जो बहुत बड़ा काम है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम गुप्त रूप से पत्राचार के ज़रिए लोगों में धार्मिक आस्था का प्रचार व प्रसार करते थे। वह नेटवर्क जिसे सातवें इमाम हज़रत मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने तत्कालीन शासकों की ओर से दबाव के कारण क़ायम किया था और उनके बाद मज़बूत होता गया, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के दौर में नेटवर्क बहुत ही मज़बूत बन चुका था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इसी नेटवर्क के ज़रिए अपने दोस्तों व पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के अनुयाइयों से संपर्क में रहते और इस तरह शहरों और विभिन्न देशों में अपने प्रतिनिधियों के ज़रिए लोगों से संपर्क रखते थे । इस काम से तत्कालीन शासक क क्रोध बढ़ता जा रहा था क्योंकि उस समय समाज पर बहुत कड़े सुरक्षा नियम लागू किए गए थे। यही कारण था कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के काल में दो अब्बासी शासकों मोतज़ और मोहतदी अब्बासी ने उन्हें जेल में डाल दिया और उनकी हत्या के बारे में षड्यंत्र रचते रहे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर अब्बासी शासन की जेल में भी नज़र रखी जाती थी। अब्बासी शासकों ने जेल में भी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पीछे जासूस लगा रखे थे। अब्बासी शासकों में मोतज़ इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से ज़्यादा दुश्मनी करता था और उसी ने इमाम हसन अस्की अलैहिस्सलाम की हत्या का आदेश दिया था लेकिन इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने अपने गूढ़ ज्ञान के ज़रिय यह बता दिया था कि ऐसा नहीं हो पाएगा। इस तरह इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की हत्या का आदेश जारी होने के तीन दिन के भीतर ही मोतज़ को सत्ता से हटा कर क़म्ल कर दिया गया।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व के बारे में कहा जाता है कि वह बहुत ही अच्छे व्यवहार के जवान थे। जब बात करते थे तो लोग उनकी बातें सुनने में सम्मोहित हो जाते थे। उनके चेहरे से बहुत वैभव झलकता था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बहुत ही सुंदर ढंग से पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या करते थे और ऐसे शिष्यों को तैयार किया था जो क़ुरआन की आयतों की व्याख्या करने में निपुण थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम इस बात के मद्देनज़र कि कहीं लोग क़ुरआन की सही शिक्षाओं से दूर न हो जाएं, लोगों और ख़ास तौर पर अपने निकटवर्ती लोगों के बीच पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या की सही शैली बयान करते थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम बहुत कम लोगों के बीच आते थे और वे दूसरे इमामों की तुलना में गूढ़ बातों की भविष्यवाणी अधिक करते थे कि इसका कारण इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के दौर के विशेष राजनैतिक हालात थे।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तितत्व के बारे में बहुत सी बातें इतिहास में मिलती हैं। जैसे कि अब्बासी शासन काल में जेल में उनका व्यवहार बहुत ही मशहूर है। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इमामत के 6 साल सामर्रा में गुज़ारे : इस दौरान वे शासन तंत्र की गहरी निगरानी में रहते और इन 6 साल में 3 साल में जेल में क़ैद थे।
इस्लामी इतिहास में है कि तत्कालीन अब्बासी शासक ने दो ग़ुलामों को इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को यातना देने का काम सौंपा। लेकिन जब इन दोनों ग़ुलामों ने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के सुंदर व्यवहार को देखा तो उनसे बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने ख़ुद को सुधार लिया। जिस समय इन ग़ुलामों से इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि यह क़ैदी तो दिन में रोज़े रखता और रात भर ईश्वर की उपासना करता है और किसी से कोई बात नहीं करता।
इस तरह की एक और मिसाल अब्बासी शासक मोतमद अब्बासी के प्रधान मंत्री उबैदुल्लाह ख़ाक़न की है जो बहुत ही घमंडी व्यक्ति था लेकिन जब उसका सामना इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम से होता तो उनके सम्मान मं अपने स्थान से खड़ा हो जाता और उन्हें अपनी गद्दी पर बिठाता था और हमेशा यह कहा करता था कि सामर्रा में उनके जैसा किसी को न पाया। वह अपने समय के सबसे बुद्धिमान व बड़े संत हैं।
इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के कांधे पर एक अहम ज़िम्मेदारी ऐसी थी जो किसी इमाम के कांधे पर नहीं थी। वह ज़िम्मेदारी यह थी कि उन्हें समाज को इस बात के लिए तय्यार करना था कि मानवता के अंतिम मोकदाता हज़रत इमाम महदी लोगों के सामने प्रकट नहीं होंगे और समाज इमाम महदी के अदृष्य रहने की वास्तविकता को स्वीकार कर ले। इस उद्देश्य के लिए इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने सिर्फ़ अपने श्रद्धालुओं से सीधा संपर्क किया और दूसरी ओर इस बात पर बार बार देते थे कि हज़रत इमाम महदी जन्म लेंगे।
मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म इस प्रकार हुआ कि किसी को कुछ पता न चला और इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने भी अपने इस बेटे के जन्म की ख़बर को छिपाए रखा क्योंकि इस बात का ख़तरा था कि अगर इमाम महदी अलैहिस्सलाम के जन्म लेने की ख़बर शासन तंत्र तक पहुंच गयी तो वह उन्हें शहीद करने की कोशिश करेगा। उस समय अब्बासी शासन ने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर बहुत अधिका पाबंदी लगा दी थी। हर ओर घुटन का माहौल था। चूंकि यह बात आम हो चुकी थी कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम के वंश से होंगे और सभी लोग यह जातने थे कि शिया, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बेटे के जन्म लेने का इंतेज़ार कर रहे है, इस करणवश इमाम हसन अस्करी अलैहिसस्लाम पर बहुत गहरी नज़र रखी जा रही थी। हर ओर हर क्षण उनकी जासूसी हो रही थी। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने जीवन काल में अपने बेटे हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम को कभी भी लोगों के बीच नहीं लाए और इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के स्वर्गवास के बाद भी ज़्यादातर लोगों को यह बात पता ही नहीं थी कि हज़रत अमाम महदी अलैहिस्सलाम का जन्म हो चुका है।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामनेई इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जवानों के लिए ख़ास तौर पर बेहतरीन आदर्श बताते हैं। वह इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं, ’’ यह महान हस्ती, जिस समय शहीद हुयी , सिर्फ़ 28 साल की थी। शियों के वैभवशाली इतिहास में इस तरह के नमूने बहुत से हैं। हमारे समय के इमाम जो सभी प्रकार के सद्गुणों से संपन्न थे, जिस समय दुश्मन की ओर से दिए गए ज़हर से इस दुनिया से गए तो उनकी उम्र सिर्फ़ 28 साल थी। ऐसी हस्ती आदर्श है कि जिसके बारे में जवान महसूस करता है कि उसके सामने एक आदर्श मौजूद है। एक और महान इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम हैं जो 25 साल की उम्र में शहीद हुए। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम 28 साल की उम्र में शहीद हुए कि जिनकी महानता का सिर्फ़ हम ही नहीं बल्कि विरोधी व दुश्मन भी गुणगान करते हैं। ’’