तकफ़ीरी आतंकवाद-61
हमने आपको बताया था कि वहाबी विचारधारा में महिलाओं को किस नज़र से देखा जाता है।
आपको पता होगा कि वहाबी विचारधारा में महिला को उनके सामाजिक अधिकारों से वंचित रखा गया है। वह महिलाओं के लिए किसी भी प्रकार की स्वतंत्रता का पक्षधर नहीं है। दाइश, महिला को केवल भोग की वस्तु ही समझता है। वहाबी मुफ़्तियों के अनुसार महिला शैतान है, वह बुराई की जड़ है, वह शैतान का हथियार है, महिलाओं को सदैव घर में बंद रखा जाए, पुरूषों के लिए वह बहुत नुक़सानदेह है और बच्चों के पास महिलाओं से अधिक बुद्धि होती है। इस हिसाब से तकफ़ीरी विचारधारा महिला को पशु से भी तुच्छ समझती है। महिलाओं के बारे में तकफ़ीरी विचारधारा का दृष्टिकोण पूर्ण रूप से इस्लामी शिक्षाओं से विरोधाभास रखता है। इस्लाम, महिला को महत्व देता है और उसे सम्मान की दृष्टि से देखता है।
जहां पर पश्चिम में समानता के नाम पर महिला को भोग की वस्तु के रूप में पेश किया जा रहा है और इसी रूप में उसे प्रचारित किया जा रहा है वहीं पर विश्व के दूसरे भाग में इस्लाम के नाम पर महिलाओं को अपमानित किया जा रहा है। आतंकवादियों का एक गुट इस्लाम के नाम पर महिलाओं के साथ एसा व्यवहार कर रहा है जिसका इस्लाम खुलकर विरोध करता है। इस आतंकवादी गुट की महिला विरोधी गतिविधियां, किसी भी प्रकार से इस्लामी शिक्षाओं से मेल नहीं खातीं बल्कि पूर्ण रूप से उसके विरुद्ध हैं। महिलाओं के बारे में तकफ़ीरी विचारधारा की सोच से पता चलता है कि इसके अनुयाई कितने अमानवीय और भ्रष्ट हैं जो महिलाओं को जानवर से भी गिरा हुआ समझते हैं।
तकफ़ीरी विचारधारा के अनुसरणकर्ताओं विशेषकर दाइश नामक आतंकी अले ने इस बारे में सारी हदें पार कर दीं। ख़ूंख़ार आतंकवादी गुट दाइश के एक मुफ़्ती ने सन 2013 में पहली बार ’’ जेहादे निकाह ’’ नामक एक फ़त्वा दिया। इस प्रकार का फ़त्वा पूरे इस्लामी इतिहास में कहीं भी दिखाई नहीं देता। जेहादे निकाह नामक फ़त्वा सीरिया युद्ध के दौरान दिया गया। दाइशी मुफ़्ती ने इस फ़त्वे के माध्यम से महिलाओं और लड़कियों से यह मांग की थी कि वे सीरिया में आतंकवादी कार्यवाही करने वालों की यौन इच्छा पूरी करने के लिए वहां जाएं और उनसे निकाह करे। सीरिया में आतंकवादी एवं हिंसक कार्यवाही करने वालों को इस फ़त्वे में ’’ मुजाहिद ’’ कहकर संबोधित किया गया है अर्थात ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करने वाले। दाइशी मुफ़्ती ’’ मुहम्मद अलउरैफ़ी’’ के फ़त्वे के अनुसार सीरिया में बश्शार असद की सरकार के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष करने वाले मुजाहिद हैं और जो भी महिला या लड़की उनके साथ निकाह करेगी वह अपने लिए जन्नत का रास्ता स्वयं प्रशस्त करेगी। दाइशी मुफ़्ती के अनुसार जेहादे निकाह, कुछ घंण्टों का भी हो सकता है और कुछ दिनतं का भी यह सबकुछ दाइश के दृष्टिगत ’’ मुजाहिद ’’ की इच्छा पर निर्भर करता है।
दाइश के मुती ’’ मुहम्मद अलउरैफ़ी ’’ के जेहादे निकाह फ़त्वे के बाद बहुत से शिया और सुन्नी धर्मगुरूओं ने इसका खुलकर विरोध किया। इन मुसलमान धर्मगुरूओं का मानना है कि जेहादे निकाह का फ़त्वा एक प्रकार से नैतिक भ्रगष्टाचार को बढ़ावा देने का साधन है जो इस्लाम, पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) की शिक्षाओं से खुला विरोधाभास रखता है। पूरे विश्व के मुसलमान धर्मगुरूओं के कड़े विरोध के बाद दाइश का मुफ़्ती अपना फ़त्वा वापस लेने पर मजबूर हुआ। व्यापक स्तर पर होने वाले विरोध के बाद दाइशी मुफ़्ती ’’ मुहम्मद अलउरैफ़ी ’’ ने घोषणा की कि उसने एसा कोई फ़त्वा दिया ही नहीं और यह मेरे विरुद्ध दुष्प्रचार है। हालांकि जेहादे निकाह का फ़त्वा देने के बाद उसने इसे इस्लामी बताया था।
दाइशी मुफ़्ती ’’ मुहम्मद अलउरैफ़ी ’’ द्वारा जेहादे निकाह फ़त्वा जारी करने के बाद कुछ देशों से लड़कियां सीरिया और इराक़ गयीं जिन्होंने आतंकवादियों की यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए उनके साथ समय व्यतीत किया। दूसरी ओर सीरिया तथा इराक़ में सक्रिय आतंकवादी गुटों ने इन देशों की महिलाओं पर जेहादे निकाह करने के लिए दबाव डाला।
दाइश के आतंकवादियों ने सीरिया में यह एलान किया कि वे लोग, जिनकी लड़कियां जवान हैं वे अपनी लड़कियों को हमारे हवाले करें ताकि हम उनके साथ जेहादे निकाह करें। दाइशी आतंकवादियों का कहना था कि जो हमारे इस आदेश का पालन नहीं करेगा वह वास्तव में ईश्वर का दुश्मन है और वह मरने के लिए तैयार रहे। इराक़ के मूसिल नगर को जब दाइश ने अपने नियंत्रण में लिया था तो उसने एलान किया था कि मूसिल में रहने वाली विधवाओं और उन महिलाओं को जेहादे निकाह के लिए तैयार रहना चाहिए जिनका तलाक़ हो चुका है। दाइश के अनुसार इस घोषणा के बाद मूसिल की इन महिलाओं के पास जेहादे निकाह के लिए अब केवल एक महीने का समय शेष है। इसके बाद दाइश के आतंकवादियों ने मूसिल में घर- घर जाकर जेहादे निकाह के लिए महिलाओं को ढूंढना शुरू किया । जिन महिलाओं ने जेहादे निकाह से इन्कार किया उनकी हत्या की गई। दाइश के एक आतंकवादी ’’ अबूअनस अल्लीबी ’’ ने इराक़ के फ़ल्लूजा नगर में जेहादे निकाह का विरतध करने वाली कम से कम 150 लड़कियों की हत्या की। दाइश का यह आतंकवादी , लड़कियों को ज़बरदस्ती जेहादे निकाह के लिए तैयार करता था और जो भी लड़की उसका विरोध करती थी उसकी वह हत्या कर देता था।
न केवल इस्लाम बल्कि दुनिया का कोई भी धर्म इस बात की अनुमति नहीं देता है कि ख़ूंख़ार आतंकवादियों की यौन इच्छाओं की पूर्ति के लिए महिलाओं को मजबूर किया जाए, विशेषकर एसे लोगों के लिए जो मानव के रूप में दरिंदे हैं। इस्लाम में विवाह के लिए क़ानून मौजूद है। विवाह या निकाह का यह एसा क़ानून है जिसको शताब्दियों से मुसलमान मानते आए हैं। इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर किसी मुफ़्ती को इस बात का अधिकार नहीं है कि वह अपनी ग़लत धारण के आधार पर अपनी मर्ज़ी से कोई फ़त्वा दे र उसे इस्लामी घोषित कर दे। इस्लाम की दृष्टि में जेहादे निकाह पूर्ण रूप से अवैध और हराम काम है। जेहादे निकाह के हराम होने का सबसे बड़ा तर्क यह है कि जेहादे निकाह के अन्तर्गत कोई भी महिला कुछ घण्टों के लिए भी किसी आतंकवादी के पास रह सकती है और समय समाप्त होने के बाद वह किसी अन्य आतंकवादी की यौन इच्छा की पूर्ति करने चली जाए। शादी के बारे में इस्लामी क़ानून के अनुसार यदि कोई महिला अपने पति से अलग होती है तो उसे दूसरी शादी करने के लिए एक निर्धारित समय गुज़ारना ही होगा। एसे में यह कैसे संभव है कि एक महिला कुछ समय के लिए एक व्यक्ति से निकाह करे और कुछ ही घण्टों के बाद वह किसी अन्य पुरूष से शादी करले। यह बिल्कुल ग़लत है। इससे यह पता चलता है कि इस्लामी क़ानून के अनुसार यदि कोई महिला अपने पति से अलग हो जाए, चाहे उससे तलाक़ के बाद या उसकी मृत्यु के बाद, दोनों स्थितियों में दूसरी शादी करने के लिए महिला को एक निर्धारित समय गुज़ारना होगा जिसके बाद ही वह शादी कर सकती है। इस निर्धारित समय को धार्मिक भाषा में ’’ इद्दा’’ कहा जाता है। इद्दे की समय सीमा कम या अधिक तो हो सकती है किंतु समाप्त नहीं हो सकती। एसे में यह कैसे संभव है कि एक महिला कुछ घण्टे के लिए एक व्यक्ति से जिहादे निकाह करे और कुछ घण्टों के बाद दूसरे पूरुष से शादी कर ले।
’’ इद्दे ’’ की समय अवधि के बारे में कहा गया है कि यदि किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है तो उसे चार महीने का इद्दे का समय गुज़ारना होता है लेकिन जब तलाक़ के कारण अलगाव होता है तो महिला को लगभग तीन महीने का समय व्यतीत करना होता है। हालांकि इसके बारे में कुछ आंशिक नियम भी हैं जिनका उल्लेख यहां पर नहीं किया जा सकता किंतु यह बात निश्चित है कि निर्धारित समय गुज़ारे बग़ैर महिला दूसरी शादी नहीं सकती जबकि जेहादे निकाह में एसा कोई बंधन नहीं है। जिन मुसलमान धर्मगुरूओं ने जेहादे निकाह का खुलकर विरोध किया है उनका तर्क यही है कि इस प्रकार का काम खुला नैतिक भ्रष्टाचार है।
जेहादे निकाह के प्रबल विरोधियों में से एक , शेख़ अहमद उमर हाशिम भी हैं जो अलअज़हर की धर्मगुरूओं की परिषद के सदस्य हैं। वे कहते हैं कि जेहादे निकाह एसा विषय है जिसे न केवल मुसलमान बल्कि कोई भी इन्सान स्वीकार नहीं करेगा। उमर हाशिम कहते हैं कि जो भी ईश्वर द्वारा निर्धारित हराम को हलाल और हलाल को हराम करेगा वह मुसलमान ही नहीं है। अब सवाल यह पैदा होता है कि हत्या, लूट , बलात्कार और हिंसा पर उतारू हर दृष्टि से भ्रष्ट दाइशी आतंकवादियों का समर्थन पश्चिमी सरकारों की ओर से क्यों किया जा रहा है? अगले कार्यक्रम में हम इस विषय पर चर्चा करेंगे सुनना न भूलिएगा।