मार्गदर्शन -49
इस्लामी क्रांति के विरष्ठ नेता कहते हैं कि शिष्टाचार वह मनमोहक हवा है यदि मनुष्य के समाज में पायी जाए तो मनुष्य उसमें सांस लेकर स्वस्थ्य जीवन बिता सकता है।
शिष्टाचार चुंबक की भांति लोगों के दिलों को अपनी ओर खींच लेता है और अच्छी नैतिकता वाले लोगों को सभी पसंद करते हैं और ऐसे लोगों के साथ रहने से मानो समाज में मनमोहक समीर बह रही हो और सुन्दर हवा का झोंका चल रहा हो। इस्लाम की कल्याण प्रदान करने वाली शिक्षाओं ने नैतिकता को एक मुस्लिम व्यक्ति की बहुत बेहतरीन विशेषता बयान किया है। पवित्र क़ुरआन पैग़म्बरे इस्लाम (स) की इस विशेषता के साथ प्रशंसा करता है और कहा है कि हे पैग़म्बर आप नैतिकता के शिखर पर हैं।
धर्म गुरुओं की ज़िंदगी भी शुरु से अंत तक इसी विशेषता से संपन्न होती है। वह सभी नैतिकता का निमंत्रण देते हैं और स्वयं भी इस संबंध में जीती जागती मिसाल होते हैं। अंतिम ईश्वरीय दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) को भेजे जाने का भी यही कारण था। उन्होंने अपने एक बयान में इस बात की ओर संकेत भी किया है कि मेरे भेजे जाने का लक्ष्य, नैतिकता को उसको शिखर तक पहुंचाना है। पैग़म्बरे इस्लाम का कहना है कि जान लो कि मैं नैतिकता को उसके शिखर तक पहुंचाने के लिए भेजा गया हूं। इस प्रकार से कि हम देखते हैं कि इस्लाम धर्म की समस्त शिक्षाओं में नैतिकता मिली हुई है और नैतिकता इस ईश्वरीय धर्म का एक महत्वपूर्ण बिन्दु और ध्रुव है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ का मानना है कि नैतिकता का अर्थ, धैर्य और विनम्रता, सब्र और प्रतिरोध, सच्चाई और मन की पवित्रता, साहस और त्याग है। वह समस्त गुण जिसे ईश्वर पसंद करता है, वह मनुष्यों से कहता है कि वह स्वयं को इन विशेषताओं से सुसज्जित करें। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि नैतिकता, धर्म की आत्मा है, मनुष्य का शिष्टाचार, हर इंसान के लिए उसकी धर्मपरायणता की आत्मा है। नैतिकता का सबसे उच्च दर्जा यही है, अर्थात मनुष्य धैर्यवान हो, सुशील हो, न्यायप्रिय हो, व्यक्तिगत रूप से अच्छा हो, लोगों का भला चाहता हो, लोगों की सेवा करने वाला हो, काम में व्यस्त हो, भले काम की पहल करने वाला हो, अग्रणी हो, आलस्य न करे, यही सब इस्लामी शिष्टाचार हैं।
सर्वोच्च शिष्टाचार से सुसज्जित होना और उसके चरणों तक पहुंचना कोई सरल कार्य नहीं है। समस्त ईश्वरीय दूत और पैग़म्बर को इसीलिए भेजा गया ताकि वह लोगों को परिपूर्णता और उच्च स्थान तक पहुंचने का मार्ग सिखाएं और उसको जानवरों जैसा जीवन बिताने के बजाए एक अच्छे जीवन यापन का तरीक़ा सिखाएं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता बल देते हैं कि एक बार में ही और बिना अभ्यास के नैतिक परिपूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती बल्कि आत्मनिर्माण और आत्मा का ख़्याल रखना बहुत आवश्यक है। वे मनुष्य में आत्मा की पवित्रता को नैतिक विशेषता प्राप्त करने की भूमिका बताते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 से यह परिणाम निकालते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर की ओर लोगों को बुलाकर और उनको इस्लाम धर्म की सुन्दर शिक्षाएं देकर उनके दिलों को नैतिक शिक्षाएं स्वीकार करने योग्य बना दिया। सूरए आले ईमरान की आयत संख्या 164 में पैग़म्बरे इस्लाम के दायित्व के बारे में इस प्रकार आया है कि निश्चित रूप से ईश्वर ने ईमान वालों पर एहसान किया है कि उनके मध्य उन ही में से एक रसूल भेजा है जो उन पर ईश्वरीय किताब की तिलावत करता है और उन्हें पवित्र बनाता है और क़ुरआन व तत्वदर्शिता की शिक्षा देता है यद्यपि यह लोग पहले से ही बड़ी खुली हुई गुमराही में थे। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस आयत का विवरण देते हुए कहते हैं कि पवित्रता या तज़किया, वही नैतिकता को चरम पर पहुंचाना है, इसकी बात शिक्षा से आगे है, यह वही नैतिक प्रशिक्षण है, आज हमको कम से कम इसी नैतिक प्रशिक्षण की आवश्यकता है, हम ईरानी समाज को इस्लामी समुदाय को और इस्लामी जगत को इसकी बहुत आवश्यकता है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई का मानना है कि इस्लामी राष्ट्र ने जब से धर्म को सरकार से और नैतिकता को प्रबंधन से अलग कर दिया , समस्याओं का शिकार हो गया।
जी हां, शुद्ध इस्लाम, वह इस्लाम है जिसका निकासी द्वार मनुष्य की नैतिकता है, न हिंसा और भय। इस्लाम धर्म की पवित्र व उच्च शिक्षाएं व्यक्तिगत और सामाजिक आत्मनिर्माण में सहायता करती हैं न कि हिंसा, जो इस्लाम के नाम पर वहाबी और दाइश के आतंकवादी करते हैं। जब हम इस महान धर्म की शिक्षाओं से दूर हो जाएंगे तो हमारे भाग्य में अनैतिक समाज ही होगा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में बल देकर कहते हैं कि नैतिकता नहीं जब अनैतिकता का राज हो जाएगा, लालच, आंतरिक इच्छाओं के पालन, अज्ञानता, संसारिक मायामोह, ईर्ष्या, द्वेष, कंजूसी और दूसरों के बारे में बुरी सोच पैदा हो जाएगी। जब यह बुरी बातें बीच में आ जाती हैं जो जीवन बहुत ही कठिन हो जाता है, वातावरण तंग हो जाता है और मनुष्य से स्वच्छ सांस लेने की शक्ति छिन जाती है।
वे पश्चिमी समाज को एक अनैतिक समाज की स्पष्ट निशानी बताते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि आज पश्चिमी समाज में वासताओं की ओर रुझहान का तर्क प्रचलित है, हम यह कहना चाहते हैं कि क्योंकि समलैंगिकता को फैला रहे हैं? उनका कहना है कि यह एक मानवीय रुझहान है, यह उनका तर्क है, यही वह चीज़ है जो इच्छाओं व वासताओं के क्षेत्र में किसी भी प्रकार की रेड लाइन के सामने नहीं टिकती और आगे बढ़ती ही जाती है, मामला क्रूरता तक पहुंच जाता है, लोगों की हत्याएं करते हैं, निर्दोष की जान लेते हैं और बिना किसी अपराध के राष्ट्रों का दमन करते हैं। यह वही अज्ञानता है जो आज पायी जाती है, आधुनिक अज्ञानता।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता जनता के सभी वर्गों से मांग करते हैं कि वह आत्मनिर्माण की दिशा में क़दम बढ़ाएं। उनका मानना है कि हम वही कच्चा माल हैं कि यदि हमने स्वयं पर काम किया तो इस कच्चे माल से एक अच्छा रुप बना सकते हैं। चूंकि मनुष्य के दिल में जवानी की बहार होती है इसीलिए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता जवानों को इस आयु में आत्म निर्माण का अह्वान करते हैं। वह युवाओं से कहते हैं कि युवा आत्म निर्माण करें, वैज्ञानिक आत्म निर्माण, नैतिक, धार्मिक और अध्यात्मिक आत्म निर्माण के साथ शारीरिक और आत्मिक आत्म निर्मण करें और अपनी आत्मा तथा आशा को देश की रक्षा के लिए बचाए रखना चाहिए क्योंकि यह बहुत बड़ी पूंजी है।
नैतिकता, सरकारी अधिकारियों, पदाधिकारियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी करनी और कथनी पर जनता नज़र रहती है और एक प्रकार से उसी को वह आदर्श बना लेते हैं। स्पष्ट सी बात है कि यदि अधिकारी और उच्चाधिकारी नैतिक मूल्यों से संपन्न होंगे तो वह बेहतरीन समाज की स्थापना कर सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस महत्वपूर्ण विषय के दृष्टिगत अधिकारियों को सलाह देते और प्रतिनिधियों से कहते हैं कि आप सांसदों के लिए जिन्होंने अपने क़ानून में इस्लामी नैतिकता का ध्यान रखा है, बेहतर है कि व्यवहारिक रूप से शिष्टाचारिक और ज्ञान संबंधी बैठकें करें, काम करते करते मनुष्य थक जाता है, ख़ाली हो जाता है, इस काम की गर्मागर्मी में कुछ ईश्वर के लिए करें, कुछ ईश्वर के निकट पहुंचने के लिए करें, ऊपर जाएं, कुछ हल्के हों और फिर वापस लौटें, मैं कभी एक उदाहरण देता था कि यह पानी जो आसमान से बरसता है, पवित्र है किन्तु बाद में तालाबों, नदियों और समुद्र में प्रदूषित हो जाता है, प्रदूषित होने के बाद फिर वह भाप में परिवर्तित हो जाता है, ऊपर जाता है और फिर पवित्र हो जाता है, वापस लौटता है, हम भी ऊपर चलें पाक हों और फिर वापस आएं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार के बारे में कहते हैं कि लोगों के साथ उनका व्यवहार बहुत अच्छा था, लोगों के बीच वह हमेशा ख़ुश रहते थे, जब अकेले होते थे जब उन पर जो दुख और दर्द से वह ज़ाहिर होते थे, अपने दुख दर्द को कभी लोगों के सामने नहीं दिखाते थे, उनके सामने हमेशा ख़ुश रहते थे। सभी को सलाम करते थे और यदि किसी ने उनको दुख पहुंचाया होता था तो उनके चेहरे से दुख दिखता था किन्तु कभी ज़बान से शिकवा नहीं करते थे। वह किसी को इस बात की अनुमति नहीं देते थे कि उनकी उपसथिति में किसी को बुरा कहा जाए और कोई बुराई करे। वह भी किसी को कभी भी बुरा भला नहीं कहते थे और किसी की बुराई नहीं करते थे। बच्चों से बहुत अधिक प्यार और स्नेह करते थे, महिलाओं के लिए दयालु के और कमज़ोरों के साथ अच्छा व्यवहार करते थे।