Sep ०४, २०१७ १६:१८ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह हिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई, मुहर्रम और सफ़र के बारे में कहते हैं कि यह महीने, महान मानवीय और आध्यात्मिक उच्च आदर्शों को पुनर्जीवित करने के महीने हैं। 

इन महीनों के बारे में वे ईरानी राष्ट्र से सिफ़ारिश करते हुए कहते हैं कि मुहर्रम और सफ़र के महीनों में हमारे राष्ट्र को अपने भीतर निडर रहने, शत्रु से न डरने, ईश्वर पर भरोसा करने और ईश्वर के मार्ग में संघर्ष करने जैसी विशेषताओं को अधिक से अधिक मज़बूत करना चाहिए।  वे कहते हैं कि इमाम हुसैन की याद में मजलिसें इस लिए की जाती हैं कि हमारे दिल इमाम हुसैन और उनके महान मिशन से अधिक से अधिक निकट हो सकें।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों की याद मनाना कई आयामों से महत्व रखती है।  सबसे प्रमुख बात यह है कि पवित्र क़ुरआन ने इसे जीवित रखने पर बल दिया है।  पवित्र क़ुरआन कहता है कि उच्च मानवीय विशेषताओं और ईश्वर से प्रेम करने वाले महापुरूषों की याद को जीवित रखा जाए।  दूसरी बात यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों के कथनों में बारंबार करबला की घटना को जीवित रखने पर विशेष रूप में बल दिया गया है।  उन्होंने यह कार्य अपने जीवनकाल में स्वयं भी किया है।  वे स्वयं भी इमाम हुसैन की मजलिसों में भाग लेते और उनपर आंसू बहाते थे।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया करते थे कि इमाम हुसैन (अ) और करबला की घटना की याद को बाक़ी रखा जाए और इस बारे में शेर कहे जाएं।  वे इस बात को विशेष महत्व देते थे कि करबला जाकर इमाम हुसैन की क़ब्र की ज़्यारत की जाए।  इन बातों के दृष्टिगत यह कहा जा सकता है कि करबला की घटना की याद को जीवित रखने का संदेश पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से हमतक आया है जिसे हम अंजाम देने है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई करबला की घटना में इमाम हुसैन की छोटी बहन हज़रत ज़ैनब की महत्वपूर्ण एवं प्रभावी भूमिका का उल्लेख करते हैं।  इस संबन्ध में कहते हैं कि जिस समय आशूर के दिन जब हज़रत ज़ैनब को यह पता चला कि इमाम हुसैन को शहीद किया जा रहा है तो वे बिलखती हुई उस टीले पर पहुंचीं जहां से दिखाई दे रहा था कि शिम्र, इमाम हुसैन का गला काट रहा था।  एसी स्थिति में उन्होंने अपने नाना पैग़म्बरे इस्लाम (स) को संबोधित करते हुए कहा कि हे ईश्वर के दूत जिसको धरती और आसमानों के फ़रिश्ते सलाम करते हैं, देखिये आपके हुसैन का सिर, धड़ से अलग कर दिया गया।  इमाम हुसैन का पवित्र शरीर, करबला की ज़मीन पर पड़ा हुआ है।  उनके सिर कटे उस पवित्र शरीर पर धूल पड़ रही है जो ख़ून में डूबा हुआ है।  हज़रत ज़ैनब ने तेज़ आवाज़ में इमाम हुसैन पर किये जाने वाले अत्याचारों को बयान करना शुरू कर दिया।  उन्होंने उन अत्याचारों का बयान पूरी शक्ति के साथ ऊंची आवाज़ में किया जिन्हें छिपाने के प्रयास किये जा रहे थे।  इमाम हुसैन अलैहिस्लाम की बहन ने करबला की घटना का उल्लेख पूरी शक्ति के साथ हर जगत पर किया चाहे वह स्वयं करबला हो, कूफ़ा हो, शाम हो या फिर मदीना हो।  यह वही घटना है जिसका उल्लेख उसी समय से आरंभ हो गया था जब वह घट रही थी।  यह उल्लेख, विगत में होता आया है, आज भी जारी है और रहती दुनिया तक जारी रहेगा।  इसको कोई भी नहीं रोक सकता।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की याद में मजलिस करने का बहुत सवाब या पुण्य है।  इनको विशेष महत्व प्राप्त है और एसा किया जाना चाहिए।  वैसे तो मजलिसें करना बहुत अहम है किंतु इससे भी अहम इसमें बताई जाने वाली बाते हैं।  इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई इस बारे में कहते हैं कि इमाम हुसैन की मजलिसों में कुछ बातों पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए।  उनमे सर्वप्रथम इमाम हुसैन और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के प्रति स्नेह, लगाव या प्रेम को अधिक करें।  इसका मुख्य कारण यह है कि किसी के प्रति हार्दिक लगाव या स्नेह, बहुत महत्व रखता है।  दूसरी बात यह है कि करबला की घटना के बारे में हमें स्पष्ट और तार्किक दृष्टिकोण रखना चाहिए।

इन बातों के दृष्टिगत जो लोग करबला की घटना का वर्णन करते हैं या जो कवि इस बारे में अपनी कविताएं कहते हैं उन्हें केवल सुनी हुई बातों पर भरोसा न करते हुए इस बारे में पहले ठीक से अध्ययन करना चाहिए।  इमाम हुसैन की शहादत के संबन्ध में ऐसी कई पुस्तके हैं जिनमें इस घटना का विस्तार से वर्णन मौजूद है।  वक्ताओं और कवियों को पहले उनका ठीक से अध्धयन करना चाहिए।  बड़े खेद के साथ कहना पड़ता है कि कुछ वक्ता इस बारे में केवल वे बातें ही कहते हैं जिन्हें उन्होंने कहीं सुना होता है।  उसी को आधार मानकर वे करबला के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं।  इस प्रकार के लोग कभी-कभी अतिश्योक्ति का शिकार हो जाते हैं।  वरिष्ठ नेता उन लोगों को संबोधित करते हुए जो मजलिसें पढ़ते हैं कहते हैं कि आप इस प्रकार की मजलिस पढ़े कि सुनने वालों में इमाम हुसैन और उनके साथियों के प्रति स्नेह और प्यार, अधिक से अधिक बढ़े।  इन मजलिसों में हुसैनी संदेश को लोगों तक पहुंचाया जाए।  इमाम हुसैन और उनके साथियों के बलिदान को सबको बताया जाए।  करबला की हृदय विदारक घटना में स्वयं इतना अधिक आकर्षण है कि यदि उसको वैसे ही बयान किया जाए जैसे वह घटना घटी है तो यह इंसान को बेचैन कर देगी।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि करबला की घटना में प्रेम की बहुत भूमिका है।  वे कहते हैं कि प्रेम और स्नेह के माध्यम से करबला को उचित ढंग से समझा जा सकता है।  इस बारे में वे ईश्वरीय दूतों के अभियान का उल्लेख करते हैं।  वे कहते हैं कि पैग़म्बरों ने जब ईश्वरीय शिक्षाओं का प्रचार आरंभ किया और लोग उनके निकट हुए तो लोगों की निकटता प्रेम के आधार पर ही थी।  वे कहते हैं कि इसके बहुत से उदाहरण पैग़म्बरे इस्लाम के जीवनकाल में हमें मिल जाएंगे।  न जाने कितने लोग पैग़म्बर से प्रेम के कारण उनके निकट हुए और इस्लाम में शामिल हो गए।  इस प्रकार से पता चलता है कि किसी अभियान या आन्दोलन का पहला चरण प्रेम से आरंभ होता है।  इस प्रकार से इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि करबला की हृदय विदारक घटना को उचित ढंग से समझने के लिए पहले स्नेह, प्रेम या लगाव की आवश्यकता है तर्क की नहीं।

 

 

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