मार्गदर्शन -53
20 सफ़र को इमाम हुसैन का चेहलुम होता है। यह वह दिन है जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ैदी बनाए गए परिजन सीरिया से मदीना पलटे।
इस दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र पर इकट्ठा हुए और उनके तथा उनके निष्ठावान साथियों की दर्दनाक शहादत का शोक मनाया। इस दिन जो लोग सबसे पहले कर्बला पहुंचे थे उनमें पैग़म्बरे इस्लाम के साथी जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथी अतिया बिन सअद औफ़ी भी थे।
जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी पैग़म्बरे इस्लाम के उन अनुयाइयों में हैं जो सबसे पहले ईमान लाए। वह बद्र नामक जंग में शामिल हुए थे। वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जन्म से पहले पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में रहे और उनके साथ मिलकर जेहाद किया। उन्होंने अपनी आंखों से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का बचपन और उनका पालन पोषण देखा था। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने बारंबार देखा था कि पैग़म्बरे इस्लाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को गोद में लेते, उन्हें गले लगाते, उनकी आंखों को प्यार करते, अपने हाथ से उन्हें खाना खिलाते व पानी पिलाते थे। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने पैग़म्बरे इस्लाम के मुंह से यह भी सुना था कि इमाम हसन और इमाम हुसैन स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं। जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी ने पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद इमाम हुसैन के महान व्यक्तित्व को अपनी आंखों से देखा था। जब उन्हें यह पता चला कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भूखा प्यास शहीद कर दिया गया तो वह मदीना से कर्बला के लिए रवाना हुए और इमाम हुसैन के परिजनों से मिल गए। इमाम हुसैन के परिजनों का कारवां जिसमें हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम भी थे और जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी व अतीया बिन सअद औफ़ी, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के क़ब्र के सबसे पहले दर्शन करने वालों में हैं। ये लोग चेहुलम के दिन इमाम हुसैन की क़ब्र के दर्शन के लिए पहुंचे थे। उसी के बाद से चेहलुम का दर्शन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालुओं की परंपरा बन चुकी है।
हर साल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रद्धालु उनकी क़ब्र के दर्शन के लिए जाते हैं और यह तादाद हर साल बढ़ती जा रही है। ये श्रद्धालु इमाम हुसैन के दर्शन के प्यासे और उनके मार्ग पर चलने वाले हैं। वे कर्बला जाते हैं ताकि चेहलुम के दिन शहीदों के सरदार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र का दर्शन कर सकें।
चेहलुम की अहमियत इसलिए है कि इस दिन आशूर के अभियान का पहला अंकुर फूटा। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा का पहला सोता जो सदियों से जारी है, चेहलुम के दिन फूटा था। आशूर के दिन के हुसैनी अभियान ने सबसे पहले लोगों के मन को चेहलुम के दिन अपनी ओर आकर्षित किया। इस दिन जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी का इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की क़ब्र के दर्शन के लिए जाना एक ऐसे आंदोलन का आरंभिक बिन्दु बना जो सदियों के बाद आज भी जारी है और यह अभियान दिन ब दिन अधिक वैभवशाली व आकर्षक बनता जा रहा है। इस अभियान ने आशूर की याद को दुनिया में जीवित कर दिया है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई चेहलुम के संबंध में कहते हैं, “हुसैनी आंदोलन का आकर्षण चेहलुम के दिन से शुरू हुआ। यही जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी को मदीना से कर्बला ले आया। यह वह आकर्षण है जो आज भी सदियां गुज़रने के बाद हमारे और आपके मन में बाक़ी है। जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की पहचान है उनके मन में कर्बला से श्रद्धा जीवित है। इमाम हुसैन की क़ब्र और उसकी मिट्टी से श्रद्धा उसी दिन से शुरू हुयी।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई कहते हैं कि अत्याचार के ख़िलाफ़ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के जारी रहने और उनकी शहादत के उद्देश्य को जीवित रखने में चेहलुम का बहुत बड़ा योगदान है वह भी ऐसी हालत में जब दुश्मन का दुष्प्रचार जारी था। वह इस बारे में कहते हैं, “चेहलुम के दिन पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की बुद्धिमत्ता से हुसैनी आंदोलन अमर हो गया। अगर शहीदों के परिजन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत जैसी घटनाओं की याद को बाक़ी रखने के लिए कोशिश न करते तो बाद की नस्लें शहादत की उपलब्धियों से ज़्यादा लाभान्वित न हो पातीं। ठीक है कि ईश्वर शहीदों को इस दुनिया में जीवित रखता है। वे इतिहास तथा लोगों के मन में जीवित हैं। लेकिन इस काम के लिए ईश्वर ने जो साधन हमें दिया है वह हमारा इरादा है। हम सही फ़ैसले से शहीदों की याद और शहादत के उद्देश्य को जीवित रख सकते हैं।”
वरिष्ठ नेता कहते हैं, “अगर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम क़ैद के दिनों में चाहे वह कर्बला में या कूफ़े और सीरिया के रास्ते में या ख़ुद सीरिया में और उसके बाद कर्बला के दर्शन, मदीना वापसी और उसके बाद के वर्षों में इन महान हस्तियों ने कर्बला की सच्चाई से पर्दा न उठाया होता, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के उद्देश्य और दुश्मन के अत्याचार को बयान न किया होता तो आशूर की घटना आज तक जीवित न होती।”
मुसलमानों का एक अहम कर्तव्य अत्याचारी सरकारों की ओर से दमन के ख़िलाफ़ आवाज़ और दुश्मन के नकारात्मक प्रचार से पर्दा उठाना भी है। यह वह पाठ है जो हम चेहलुम से सीखते हैं। अगर दुश्मन के दुष्प्रचार के मुक़ाबले में सत्य का प्रचार न हो तो दुश्मन प्रचार के क्षेत्र में हावी हो जाएगा। क्योंकि प्रचार का मैदान बहुत अहम होने के साथ साथ ख़तरनाक भी है। वरिष्ठ नेता अत्याचारी सरकार की ओर से थोपे गये घुटन के माहोल और उसके नकारात्मक प्रचार के मुक़ाबले में दृढ़ता के संबंध में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पर्दाफ़ाश करने वाले प्रचार की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, “जिस तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों को रुकावटों के सामने संघर्ष करना पड़ा उसी तरह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम और दूसरी हस्तियों को संघर्ष करना पड़ा। अलबत्ता कार्यक्षेत्र सैन्य नहीं बल्कि प्रचारिक व सांस्कृतिक था। अत्याचारी यज़ीदी तंत्र अपने प्रचार में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को बुरा कहते और यह दर्शाने की कोशिश करते थे कि हुसैन बिन अली ने इस्लामी शासन व न्याय तंत्र के ख़िलाफ़ दुनिया हासिल करने के लिए विद्रोह किया। कुछ लोग इस दुष्प्रचार पर यक़ीन भी करलेते थे। इमाम हुसैन की कर्बला के मरुस्थल में दुश्मन के हाथों दर्दनाक शहादत के बाद भी दुश्मन इसे अपनी जीत दर्शाने की कोशिश कर रहा था लेकिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के सही प्रचार ने सभी बातों से पर्दा उठाया। सत्य ऐसा होता है।”
वरिष्ठ नेता दुश्मन के दुष्प्रचार का पर्दाफ़ाश करने को मुसलमानों के अहम कर्तव्यों में गिनवाते हुए कहते हैं, “ठीक है हमारे पास उतना मज़बूत प्रचारिक तंत्र नहीं है जैसा साम्राज्य और ज़ायोनी मीडिया के पास है। उनके प्रचारिक नेटवर्क हमसे बहुत विशाल हैं। हम उनकी तुलना में सीमित हैं, लेकिन हम सत्य पर हैं और यही बात इस बात का कारण बनेगी कि जो बात हम कहेंगे उसका दुनिया भर में स्वस्थ मनों पर असर पड़ेगा।”
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई चेहलुम को मुसलमानों की ऐसी विशाल महासभा और एकता का प्रतीक मानते हैं जैसे से दुनिया के लोग हैरत में पड़ गए हैं। वरिष्ठ नेता कहते हैं, “आज इस्लामी जगत के लिए जो चीज़ सबसे ज़्यादा अहम है वह एकता है। हम मुसलमान एक दूसरे से बहुत दूर हो गए है। अफ़सोस कि मुसलमान संप्रदायों को एक दूसरे से दूर करने की नीति सफल रही। आज एकता की ज़रूरत है। अगर इस विशाल क्षेत्र के इस्लामी देशों के राष्ट्र मूल विषयों पर एक दूसरे के साथ हो जाएं, तो इस्लामी जगत तरक़्क़ी की चोटी पर पहुंच जाएगा। मूल विषयों पर एक दूसरे के साथ दिखाई दें। इसी दिखाई देने का भी असर पड़ेगा।”
वरिष्ठ नेता मुसलमानों के धार्मिक सभाओं व समारोहों में भाग लेने के संबंध में कहते हैं, “सिर्फ़ नमाज़ के वक़्त एक दूसरे के साथ खड़े होने से इस्लामी जगत का सम्मान बढ़ता है। हज की सभा भी इसी तरह है। इमाम हुसैन के चेहलुम में दसियों लाख लोगों के एकत्र होने की जो शियों से विशेष नहीं है, दुनिया भर में चर्चा हुयी। लोगों ने सम्मान किया, सराहना की। इसे दुनिया का सबसे बड़ा जनसमूह बताया। ये कौन लोग थे? वे लोग जो इस्लामी मामलों पर नज़र रखे हुए हैं।”
देखें कितना बड़ा आंदोलन हुआ। सिर्फ़ जब शरीर एक दूसरे के साथ होते हैं तब उसका इस पैमाने पर कवरेज होता है। हम अगर एक साथ हो जाएं। इस्लामी देश, मुसलमान राष्ट्र चाहे सुन्नी हों शिया हो, एक दूसरे के प्रति मन साफ़ रखें। एक दूसरे के प्रति भ्रान्ति न पालें, दुर्भावना न रखें, एक दूसरे का अपमान न करें, तो आप देखेंगे कि दुनिया में कितनी बड़ी घटना घटेगी। इस्लाम को कितना सम्मान मिलेगा। एक हो जाइये! एक हो जाइये!
अंत में वरिष्ठ नेता मुसलमानों के बीच एकता को नुक़सान पहुंचाने वालों को इस्लाम के दुश्मन के जासूसी केन्द्रों के तत्व बताते हुए कहते हैं, “आज सुन्नी समुदाय के बीच, शियों के बीच भी ऐसे तत्व सक्रिय हैं जो इन्हें एक दूसरे से दूर करते हैं। अगर इन सभी तत्वों के बारे में जांच करें तो आप इस्लाम के दुश्मनों के जासूसी केन्द्र तक पहुंच जाएंगे। जो ईरान के दुश्मन नहीं हैं, शियों के दुश्मन नहीं हैं बल्कि इस्लाम के दुश्मन हैं। वह शिया जिसका ब्रिटेन की एमआई सिक्स (MI-6) से संपर्क हो, वह सुन्नी जो सीआईए के लिए काम करे, वह न शिया है न सुन्नी। दोनों इस्लाम के दुश्मन हैं।”