मार्गदर्शन-54
शिक्षा हासिल करना हर इंसान का स्वाभाविक व प्राकृतिक अधिकार है और दुनिया की हर संस्कृति और हर क्षेत्र में शिक्षा प्राप्त करने पर बल दिया जाता है।
शिक्षा- प्रशिक्षा का उद्देश्य उन क्षमताओं को फलदायक बनाने के लिए इंसान को तैयार करना है जो महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने उसे प्रदान की है। अतः शिक्षा व प्रशिक्षा के मध्य घनिष्ठ व अटूट संबंध है। एक बुद्धिमान व्यक्ति जानता है कि इंसान का जो जीवन है वह अत्यधिक उतार- चढ़ाव से भरा है और इनसे गुज़रने के लिए खुले नेत्रों की ज़रूरत है। सही रास्ते का चयन और जीवन के क़ानूनों का ध्यान रखना सही व योग्य मार्गदर्शक के चयन पर निर्भर है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो समस्त इंसानों को गुमराही का सामना होगा। पैग़म्बर और ईश्वरीय दूत इंसानों के सबसे पहले शिक्षक व मार्गदर्शक थे जिन्हें महान व कृपालु ईश्वर ने भेजा था ताकि वे इंसानों का पथप्रदर्शन सबसे अच्छे मार्गों की ओर करें। जीवन की समस्याओं के समाधान के साथ लोगों की शिक्षा- प्रशिक्षा आंरभ हो गयी और इंसानों को मुख्य ज़रूरत यानी शिक्षा- प्रशिक्षा की आज तक आवश्यकता है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई का इस महत्वपूर्ण चीज़ के बारे में मानना है कि शिक्षा- प्रशिक्षा का अर्थ इंसान और समाज को जीवन प्रदान करना है यानी अगर समाज के लोगों को सही तरह से शिक्षित व प्रशिक्षित किया जाये तो मानो उस समाज में प्राण फूंक दिया गया। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में शिक्षा व प्रशिक्षा का अर्थ इंसान के विकास के कारकों को उपलब्ध करना और उसे वांछित उद्देश्य तक पहुंचाने के लिए मार्ग प्रशस्त करना है। अगर ऐसा हो जाये तो अच्छा व वांछित समाज अस्तित्व में आयेगा।
वर्तमान समय के ईरान के प्रसिद्ध दार्शनिक, विचारक और बुद्धिजीवी शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी “तालीम व तरबीयत दर इस्लाम” नामक अपनी किताब में लिखते हैं” अगर किसी चीज़ को निखारना हो तो प्रयास किया जाना चाहिये ताकि उसके अंदर जो क्षमताएं व योग्यताएं हैं वे निखर आयें। इस आधार पर इंसान की प्रशिक्षा का अर्थ उसकी योग्यताओं व क्षमताओं को निखारना है। इंसान में ये योग्यताएं इस प्रकार हैं बौद्धिक क्षमता, नैतिक योग्यताएं, धार्मिक आयाम, कलात्मक व रचनात्मक पहलु या सौन्दर्य बोध आदि का पहलु।
यद्यपि समय की दृष्टि से शिक्षा, प्रशिक्षा से पहले है और जब तक प्रशिक्षक, प्रशीक्षा लेने वाले इंसान को आवश्यक जानकारी नहीं दे देता तब तक प्रशिक्षा संभव नहीं है परंतु दर्जे और महत्व की दृष्टि से शिक्षा, प्रशिक्षा के बाद है यानी पहले प्रशिक्षा है उसके बाद शिक्षा है और शिक्षा का प्रयोग, प्रशिक्षा के एक साधन के रूप में होता है।
इस्लामी शिक्षाओं में इस बिन्दु पर बहुत बल दिया गया है कि प्रशिक्षा का अर्थ आत्मशुद्धि है और वह शिक्षा से पहले है। शिक्षा- प्रशिक्षा के मध्य घनिष्ठ संबंध है और पवित्र कुरआन ने अनेक स्थानों पर इस शब्द का प्रयोग अलग अलग किया है परंतु कम से कम तीन आयतों में प्रशिक्षा का प्रयोग शिक्षा से पहले किया गया है। यही बिन्दु इस बात का कारण बना है कि महान धार्मिक हस्तियां भी आत्म निर्माण व आत्म शुद्धि को शिक्षा से पहले मानती हैं। धार्मिक दृष्टि से आत्म शुद्धि यानी आत्म निर्माण शिक्षा से पहले है।
शब्द कोष में आत्म शुद्धि का अर्थ आत्मा और माल की शुद्धि, सुधार, ईश्वरीय भय और फसल का अधिक होना है। वास्तव में उसके पवित्र होने से ही सही अर्थों में प्रगति व अधिक होना संभव होता है जिस तरह से बहुत पेड़ों व झाड़ियों की कटाई से उनकी शाखें अधिक हो जाती हैं और बेहतर ढंग से बढ़ती हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई पवित्र कुरआन के सूरये आले इमरान की आयत नंबर 164 की ओर संकेत करते हैं जिसमें महान ईश्वर कहता है” वह उन्हें पवित्र करता है और ज्ञान व तत्वदर्शिता की शिक्षा देता है।“
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि क़ुरआन भी आत्मशुद्धि का उल्लेख पहले करता है। यह शायद इस बात का सूचक है कि आत्म शुद्धि का स्थान श्रेष्ठ है। वरिष्ठ नेता शिक्षकों व प्रशिक्षकों से सिफारिश करते हुए कहते हैं” आप अपने संबोधकों की आत्म शुद्धि करें उनकी प्रशिक्षा करें।“
वरिष्ठ नेता कहते हैं कि यह आत्म शुद्धि व प्रशिक्षा उसी प्रकार होनी चाहिये जैसाकि हमने कहा। वरिष्ठ नेता अपनी बात के समर्थन में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के उस कथन को पेश करते हैं जिसमें आपने फरमाया है कि जो व्यक्ति अपने आपको दूसरे का मार्गदर्शक बनाना चाहता है उसे चाहिये कि दूसरों को शिष्टाचार सिखाने से पहले खुद शिष्टाचार सीखे। वरिष्ठ नेता कहते हैं यह काम कठिन है। इस कठिन कार्य को भी अंजाम दिया जाना चाहिये। यह वही नैतिक प्रशिक्षा है। आज हमें इस प्रशिक्षा की अत्यंत आवश्यकता है। हम ईरानी लोगों को, इस क्षेत्र के इस्लामी समाज को और समस्त इस्लामी जगत, बड़े इस्लामी राष्ट्र और मुसलमान समाजों को। यह हमारी पहली आवश्यकता है।“
आत्मा शुद्धि, आत्म निर्माण और प्रशिक्षा, शिक्षा ग्रहण करने से पहले है। इस विषय के महत्व के बारे में ईरान की इस्लामी व्यवस्था के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी कहते हैं” ईश्वर ने कुरआन में जो आत्म शुद्धि को पहले बयान किया है उससे ज्ञात होता है कि आत्म शुद्धि ज्ञान व तत्व दर्शिता से पहले है। ऐसा ही है। अगर एक राष्ट्र के लोग आत्म शुद्धि कर ले तो वह राष्ट्र प्रगति करेगा।“
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी आगे कहते हैं” महत्वपूर्ण प्रशिक्षा है। अकेले ज्ञान का कोई लाभ नहीं है। अकेला ज्ञान हानिकारक है। कभी यह वर्षा जो ईश्वरीय दया है जब फूलों पर पड़ती है तो उससे सुगंध उठती है और जब गन्दी जगहों पर पड़ती है तो उससे दुर्गन्ध उठती है। ज्ञान भी ऐसा ही है। अगर ज्ञान प्रशिक्षित दिल में जाता है तो उसकी सुगंध समूचे ब्रह्मांड में फैलती है और अगर ज्ञान ऐसे दिल में प्रविष्ट हो जो प्रशिक्षित न हो या खराब दिल में प्रविष्ट हो तो यह ब्रह्मांड को दूषित करेगा।“
स्वर्गीय इमाम खुमैनी का मानना था कि सबसे पहले इंसानों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिये और वे अपनी आत्मा व दिल को पापों के मोर्चे से दूर कर लें और तुच्छता व अनैतिकता से पवित्र हो जाने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त करना आरंभ करना चाहिये।
स्वर्गीय इमाम खुमैनी अपने महत्वपूर्ण भाषण में प्रशिक्षित न किये गये धर्मगुरूओं व विद्वानों की ओर संकेत करते हुए कहते हैं” जिस धर्मगुरू को प्रशिक्षित न किया गया हो यानी उसकी आत्म शुद्धि न की गयी हो तो उसकी हानि व ख़तरा एक अज्ञानी से बहुत अधिक है। अज्ञानी अगर भ्रष्ट भी हो तो स्वयं भ्रष्ट है परंतु अगर धर्मगुरू व विद्वान भ्रष्ट हो जाये तो वह ब्रह्मांड को भ्रष्ट कर देगा देश को खराब कर देगा। इसी कारण आत्म शुद्धि शिक्षा देने और शिक्षा अर्जित करने से पहले है।“
अंत में इस प्रकार निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परिवर्तन और विभिन्न रूपों में ढ़ल जाने की योग्यता इंसान के अंदर मौजूद है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने इंसान को इस प्रकार पैदा किया है कि वह जानकारी और अपने मन से अपने रास्ते का चयन कर सकता है और जिस रास्ते का चयन उसने किया है उसी के वैचारिक और सांस्कृतिक सांचे में अपने व्यक्तित्व को ढ़ाल सकता है। अगर इंसान के अंदर परिपूर्ण और परिवर्त होने की क्षमता न होती तो नैतिक शिक्षा और प्रशिक्षा के ज्ञान आदि सभी अर्थहीन हो जाते किन्तु जिन इंसानों ने स्वयं की आत्म शुद्धि करके अपने दिल को पवित्र बना लिया वे उस मूल्यवान मटके की भांति हैं जिसके लिए पहले मिट्टी को अच्छी तरह गूंधा गया फिर वह सुन्दर मटका या गुलदान बनने के लिए तैयार हो गयी।
जिन लोगों ने आत्मा शुद्धि कर ली है वास्तव में उन्होंने सत्य व सही बातों को स्वीकार करने के लिए अपनी आत्मा को तैयार कर लिया है। जिन लोगों ने आत्मा शुद्धि कर ली है वे दूसरे इंसानों को लाभ पहुंचाने के लिए ज्ञान अर्जित करते हैं जबकि बहुत से विद्वानों व वैज्ञानिकों ने अपने वैज्ञानिक आविष्कारों में मानवता की अनदेखी कर दी है। जैसाकि इस समय हम देख रहे हैं कि बहुत से वैज्ञानिक अपने ज्ञान का प्रयोग मानवता को मिटाने के लिए कर रहे हैं। यहीं कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में आत्म शुद्धि को ज्ञान अर्जित करने से अधिक महत्व प्राप्त है।
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई की दृष्टि में जिस व्यक्ति की प्रशिक्षा व आत्म शुद्धि इस्लामी शिक्षाओं की क्षत्रछाया में हुई हो उसमें इस प्रकार की विशेषता पाइ जायेगी। वरिष्ठ नेता कहते है” इस्लाम इस प्रकार इंसान का प्रशिक्षण करता है। ईश्वर की सेवा में नम्र, अपने धार्मिक भाइयों के साथ कृपालु व दलायु होता है और उनके साथ इस्लामी बंधुत्व स्थापित करता है किन्तु अहंकारियों और अत्याचारियों के मुकाबले में पहाड़ की भांति मजबूती से डटा रहता है। यह वही इस्लामी राष्ट्र के विकास का चरण है। अंकुरित होता है विकास करता है ऊंचाई प्राप्त करता है, मज़बूत होता है। खुद जिन लोगों ने यह भूमि प्रशस्त की है वे आश्चर्य करते हैं। यह ईश्वरीय शक्ति है जो इंसानों को इस प्रकार परवान चढ़ाती है। जब अहंकारी दुश्मन, इस्लाम की छत्रछाया में पले बढ़े मुसलमान इंसान को देखता है तो सीधी सी बात है कि वह क्रोधित व अप्रसन्न होगा। हमें चाहिये कि इस प्रकार अमल करें। आत्म शुद्धि व आत्म निर्माण करें। अपने आपको कुरआन के अनुसार बनायें। दोस्तों, दुश्मनों, विरोधियों और अहंकारियों के साथ अपने व्यवहार को कुरआनी कार्यक्रम के अनुसार बनायें। महान ईश्वर ने वादा किया है कि जो लोग इस प्रकार चलेंगे उन्हें वह प्रतिदान देगा। लोक में भी परलोक में भी। दुनिया में इज़्ज़त है। इस दुनिया में ईश्वरीय नेअमतों से समृद्धता है जो उसने इंसानों के लिए उपलब्ध किया है और परलोक में ईश्वरीय प्रसन्नता व स्वर्ग है।