Oct १६, २०१७ १६:२८ Asia/Kolkata

शिक्षक व प्रशिक्षक समाज को गतिशील बनाने और उसे दिशा प्रदान करने वाले हैं।

वे न केवल शिक्षा देते हैं बल्कि सोच को रूप देते हैं और उससे भी ,,,महत्वपूर्ण यह है कि उनका आचरण छात्रों के लिए व्यवहारिक आदर्श होता है। इसी कारण इस्लामी शिक्षाओं में शिक्षक को पैग़म्बरों का वारिस समझा जाता है और वह उच्च स्थान का स्वामी होता है।

एक बच्चा 7 साल से लेकर 17 साल तक शिक्षक व प्रशिक्षक की देखरेख में शिक्षा ग्रहण करता है। यानी हर व्यक्ति कम आयु में अपने व्यक्तित्व के निर्माण के लिए शिक्षा व प्रशिक्षा केन्द्रों की निगरानी में होता है। तो शिक्षा प्रशिक्षा के केन्द्र बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इन केन्द्रों को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। वह इन केन्द्रों के महत्व के बारे में कहते हैं अगर कोई देश भौतिक इज्ज़त और आध्यात्मिक कल्याण प्राप्त करना चाहता है, राजनीतिक आधिपत्य, और वैज्ञानिक प्रगति करना चाहता है, सांसारिक जीवन को आबाद करना चाहता है और हर अभिलाषा को प्राप्त करना चाहता है तो उसे चाहिये कि वह एक बुनियादी व आवश्यक कार्य की भूमिका के रूप में शिक्षा केन्द्रों पर ध्यान दे। क्यों? क्योंकि इन समस्त कार्यों के लिए मानवीय श्रम बल की आवश्यकता है। मानवीय श्रम बलों का निर्माण भी मुख्यरूप से शिक्षा व प्रशिक्षा के माध्यम से होता है। इस प्रकार से कि अगर शिक्षा प्रशिक्षा के हमारे केन्द्र सही तरह से काम करें और समय का सही ढंग से उपयोग करें तो वह इस बात का कारण बनेगा कि जिस युवा का निर्माण यहां होगा बहुत कम संभावना रहेगी कि उसके जीवन की आगामी घटनाओं में बुनियादी परवर्तिन उत्पन्न हों। अगर युवा का अच्छी तरह से प्रशिक्षण हो तो वह थोड़े से बदलाव के साथ जीवन को उसी रूप में जारी रखेगा। ,,,,,,

शिक्षा व प्रशिक्षा केन्द्रों का महत्व, इंसान के महत्वपूर्ण होने के कारण है। इंसान सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। अपनी उम्र का सबसे बेहतरीन समय वह शिक्षा केन्द्रों व स्कूलों में बिताता है। शिक्षा केन्द्र बच्चों के अमानतघर हैं जहां उन्हें शिक्षा व प्रशिक्षा दी जाती है और यह भारी व मूल्यवान अमानत है। इस आधार पर शिक्षा व प्रशिक्षा के केन्द्र की जिसका मूल आधार शिक्षक होता है, जिम्मेदारी है कि वह शिक्षकों व छात्रों के लिए बेहतरीन स्थिति उपलब्ध कराये ताकि उसमें अच्छी तरह से शिक्षा- प्रशिक्षा की जा सके। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस बारे में बल देकर कहते हैं" हम चाहते हैं कि जो व्यक्ति शिक्षा व प्रशिक्षा केन्द्रों से 13 साल के बाद,,,, बाहर निकलता है वह नैतिक, वैचारिक और धार्मिक विशेषताओं से सुसज्जित हो हम इस प्रकार का व्यक्ति चाहते हैं।

 

 

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