मार्गदर्शन- 57
एक समाज के कल्याण का एक महत्वपूर्ण बिन्दु उस समाज के लोगों का ज्ञान और ईमान से सुसज्जित होना है।
यदि कोई समाज ज्ञान और ईमान जैसे दो परों के साथ आगे बढ़ेगा तो वह एक संतुलित और कल्याणकारी समाज बनकर सामने आएगा। अंतिम ईश्वरीय किताब पवित्र क़ुरआन सबसे पहले पैग़म्बरे इस्लाम को पढ़ने का आदेश देता है। ईश्वर इस आसमानी किताब में क़लम की क़सम खाता है और उसने एक सूरे का नाम क़लम भी रखा है ताकि पूरी मानवता को यह बताए कि शिक्षा व प्रशिक्षण के मार्ग में लिखने और पढ़ने को ईश्वर के निकट बहुत बड़ा स्थान प्राप्त है। इस्लाम की दृष्टि में शिक्षा व प्रशिक्षण, जीवन की आवश्यकताओं का हिस्सा हैं और ज्ञान प्राप्त करना, ज्ञान की चरमसीमा पर पहुंचने की पहली सीढ़ी है।
इस्लाम धर्म में शिक्षा और प्रशिक्षण के महत्व के दृष्टिगत, वर्ष 1979 में ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के एक वर्ष बाद इमाम ख़ुमैनी ने बड़ी तेज़ी से साक्षरता आंदोलन के गठन का आदेश दिया। उन्होंने अपने संदेश में ईरानी जनता का ध्यान, इस राष्ट्रीय और सांस्कृतिक संकल्प की ओर आकर्षित कराया और कहा कि शिक्षा व प्रशिक्षण, ईश्वर की ऐसी उपासना है जिसका निमंत्रण ईश्वर ने हमको दिया है। इस आदेश के बाद साक्षरता आंदोलन ने एक व्यापक रूप धारण कर लिया और उसके बाद यह विषय इस्लामी क्रांति के पवित्रतम विषयों में गिना जाने लगा। बहुत से अध्यापकों और बुद्धिजीवियों ने देश में साक्षरता में वृद्धि का पक्का इरादा कर लिया और उन्होंने दूरस्थ और वंचित क्षेत्रों की यात्राएं की ताकि लोगों को लिखना पढ़ना सिखाएं और पूरे देश में साक्षरता फैल जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई साक्षारता विभाग में सक्रिय भाइयों और बहनों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि भाइयों और बहनों को जानना चाहिए कि वे संघर्ष की हालत में हैं, दूरस्थ क्षेत्रों और गावों की ओर जाते हैं, घरों के दरवाज़े खोलते हैं, मस्जिदों में बच्चों को पढ़ाया, बिना किसी लोभ के, शुक्रिया, बहुत अच्छा काम है, ज्ञान व साक्षरता को जो सबसे बेहतरीन तोहफ़ा है, लोगों को दिया, यह एक जेहाद और संघर्ष है।
उन्होंने अपने बयान में निरक्षरता को कलंक बताया और कहा कि एक मुस्लिम क्रांतिकारी समाज के लिए, इस काल में और इस परिश्रम के ज़माने में जब बड़ी शक्तियां लोगों की निरक्षरता और उनके अनपढ़ होने से लाभ उठाती हैं, निरक्षरता बहुत बड़ा कलंक है। हमको निरक्षर लोगों का अपमान नहीं करना चाहिए, स्वयं अनपढ़ लोगों को और उनके साथ पढ़े लिखे लोगों को प्रयास करना चाहिए ताकि कलंक को धो सकें।
वर्तमान समय में निरक्षरता विशेषकर इस्लामी देशों में बहुत बड़ी बुराई समझी जाती है क्योंकि पवित्र क़ुरआन में लिखने पढ़ने और ज्ञान की प्राप्ति को बहुत अधिक महत्व दिया गया है। दूसरी ओर इतिहास इस बात का साक्षी है कि अतीत में आधुनिक विज्ञान और ज्ञान इस्लामी समाज की देन हुआ करते थे और कैसे हो सकता है कि इस्लामी देश साक्षरता और पढ़ाई लिखाई पर ध्यान ही न दें।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इस्लामी जगत के गौरवपूर्ण अतीत के दृष्टिगत निरक्षरता को समाप्त करने के लिए गंभीर संघर्ष को एक इस्लामी ज़िम्मेदारी मानते हुए बल देखर कहते हैं कि जब दुनिया में ज्ञान, पाठ, शिक्षा और लिखाई पढ़ाई का कोई अस्तित्व नहीं था, तब हमारा इस्लाम और क़ुरआने मजीद इक़रा अर्थात (पढ़ो) से शुरु होता है और क़लम और लिखाई की क़सम खाता है और कुछ शब्द सिखाने के बदले युद्धबंदियों को छोड़ने का आदेश देता है, यह चौदह शताब्दी पहले बात है, इस्लाम और पैग़म्बरे इस्लाम के इसी कार्य के कारण अरब का जाहिल और अनपढ़ समाज, उस वक्त जब यूरोप में ज्ञान की कोई सूचना तक नहीं थी, बड़े बड़े विश्वविद्यालयों का स्वामी और फ़राबी, इब्ने सीना, मुहम्मद बिन ज़किरया राज़ी, अबू रैहान बीरूनी जैसे बुद्धिजीवियों से संपन्न था। अर्थात इस्लाम धर्म के उदय के काल में अज्ञानता और अनपढ़ता से संघर्ष और ज्ञान प्राप्ति का प्रोत्साहन, आज की सभ्य दुनिया से इस्लामी समाज को लगभग सात से आठ शताब्दी आगे कर देता है। अलबत्ता हम जहां से चले थे वहीं फिर पहुंच गये, मुसलमानों ने सुस्ती दिखाई, हमारा यह हाल हुआ, हम फिर से दोबारा आरंभ कर सकते हैं।
इस्लाम की दृष्टि में एक समाज में निरक्षरता को समाप्त करना, ईश्वर के मार्ग में जेहाद और पवित्र काम समझा जाता है। इस्लाम की नज़र में शिक्षा देना और शिक्षा के लिए सेवाएं अंजाम देने को ईश्वरीय देन की संज्ञा दी गयी है। उसके बाद प्रशिक्षक और सक्रिय अध्यापक, साक्षर आंदोलन में जो दुनिया के विभिन्न वर्ग और आयु के लोगों को शिक्षा देते हैं, बहुत अधिक महत्व प्राप्त होता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता साक्षर आंदोलन में सक्रिय लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि साक्षर आंदोलन की दो विशेषताएं हैः एक यह है कि आप अनपढ़ लोगों को साक्षर करते हैं, यह उन कार्यों में से एक कार्य है जो साक्षरता आंदोलन में शामिल लोग अंजाम देते हैं। दूसरा यह है कि आप शिक्षा व प्रशिक्षा को देश के कोने कोने तक फैलाते हैं, यह एक विशेषता और एक अन्य नेकी है, यह साक्षारता के अलावा दूसरा काम है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता तो साक्षरता आंदोलन में सक्रिय लोगों के काम को बहुत बड़ी नेकी बताया और कहा कि मान लीजिए कि आप टीवी पर एक कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं ताकि सभी पढ़े लिखे हो जाएं, यह ठीक है किन्तु पढ़ाई की आत्मा जगाना, शिक्षा व प्रशिक्षा की आत्मा और उन लोगों को घरों से बाहर लाना और उनको क्लास में लाकर बिठाना, एक दूसरी ही चीज़ है। एक दूसरी ही अच्छाई है, इसमें भी साक्षरता आंदोलन की अच्छाईयां छिपी हैं, लोगों के घर घर जाकर दरवाज़ा खटखटाते हैं, उनसे अपील करते हैं, कभी कभी उनके हाथ भी जोड़ते हैं कि वह आकर कुछ पढ़ लें, उसके बाद बड़ी परेशानियों से कक्षा बनाते हैं, फिर भी उनमें जीत और सफलता की भावना नहीं होती, यह आपकी विशेषता है, यदि कुछ भी न होता, सिवाए यह कि आप अनपढ़ लोगों को अलिफ़ बेह सिखाएं यह भी स्वयं में एक अच्छा काम है।
साक्षरता आंदोलन की महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक देश के वंचित और दूरस्थ क्षेत्रों की क्षमताओं का पता लगाना है। जैसा कि साक्षरता, चिंतन मनन और ज्ञान के संसार में घुसने की चाबी है, लोगों को ज्ञान से सुसज्जित करके उनकी वैचारिक सोच को निखारा जा सकता है और उनके भीतर छिपी क्षमताओं को उजागर किया जा सकता है, उनका पालन पोषण करके देश के वैज्ञानिक आंदोलन को अधिक शक्ति के साथ बढ़ाया जा सकता है।
वरिष्ठ नेता साक्षरता आंदोलन की एक अन्य विशेषता, छिपी हुई क्षमताओं से अवगत होना बताते हैं। छोटे क्षेत्रों में बहुत अधिक क्षमताएं पायी जाती हैं, इन गांवों में हम एसे लोगों को जानते हैं जो अपार क्षमताएं रखते हैं, किन्तु यदि यह लोग साक्षर नहीं हुए तो उनकी क्षमताएं और योग्यताएं बाहर कैसे आएंगी? उनकी क्षमताएं धूल और मिट्टी के नीचे दबकर रह जाएंगी, जब आप इनको पढ़ा लिखा देंगे तो उनकी क्षमता सही रूप से उभर कर सामने आएगी। उसके बाद हम इन नगीनों को तराश सकते हैं और उसके बाद भारी क़ीमतों पर इन्हें बेच सकते हैं, यह ज्ञान की विभूतियां हैं।
हदीस मे बयान किया गया है कि पालने या झूले से लेकर क़ब्र तक ज्ञान प्राप्त करो। यह कोई आम सी बात नहीं है, बल्कि यह एक गाइड लाइन है जो रास्ता दिखाती है, हर व्यक्ति जो शिक्षा के मार्ग पर नहीं आता, वह इस मामले की ओर से निश्चेत रहता है और उसने इस हदीस की अनदेखी की है। उसने ज्ञान के अथाह सागर से स्वयं को दूर रखा बल्कि उसने समाज को पिछड़ा रखने में भी भूमिका निभाई है। इस्लाम जन्म से लेकर मौत तक ज्ञान प्राप्त करने पर बल देता है, इसके लिए कोई उम्र, कोई वर्ग, और कोई समय विशेष नहीं है।