मार्गदर्शन- 58
हमने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता की दृष्टि में शिक्षा और प्रशिक्षण के विषय पर चर्चा की थी और आपको बताया था कि इस्लामी शिक्षाओं में पहला स्थान प्रशिक्षण का है और उसके बाद शिक्षा का स्थान है।
इसका अर्थ यह है कि एक व्यक्ति जो प्रशिक्षित हो या स्वयं का उसने आत्म निर्माण किया हो, जितना भी ज्ञान उसने प्राप्त किया हो, उससे मानवता की सेवा के लिए लाभ उठाए क्योंकि बिना ईमान और आत्मनिर्माण के ज्ञान, मानवता के विरुद्ध प्रयोग होता है। इस प्रकार से पवित्र क़ुरआन ने अपनी कई आयतों में आत्मशुद्धि और आत्मा की पवित्रता को शिक्षा की प्राप्ति से पहले क़रार दिया है और कहा है कि पहले उनको पवित्र कीजिए और फिर पुस्तक और तत्वदर्शिता का ज्ञान दीजिए।
ईश्वर के अंतिम दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) ईमान के साथ ज्ञान के महत्व के बारे में कहते हैं कि जो कोई ईश्वर के लिए ज्ञान प्राप्त करता है, वह उसके किसी अध्याय तक नहीं पहुंचता कि किन्तु उससे पहले ही स्वयं को सबसे तुच्छ देखता है और लोगों से अधिक झुककर और विनम्र होकर मिलता है, ईश्वर से उसका भय बढ़ जाता है और धर्म के मामलों में अधिक से अधिक प्रयास करने लगता है, ऐसे ही लोग ज्ञान से लाभान्वित होते हैं, तो फिर इसको सीखना चाहिए। लेकिन यदि कोई ज्ञान को दुनिया के लिए या लोगों के निकट, या राजा महाराजा के निकट स्थान प्राप्त करने के लिए हासिल करना चाहता है वह किसी अध्याय तक नहीं पहुंच सकेगा, मगर यह कि स्वयं को सबसे महापुरुष समझे, लोगों के सामने अपनी बड़ाई दिखाए, ईश्वर से अधिक निश्चेत रहेगा, धर्म से बहुत दूर हो जाएगा, ऐसे लोगों को ज्ञान लाभ नहीं पहुंचाता। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि ऐसे ज्ञान की प्राप्ति से बचना चाहिए और स्वयं के विरुद्ध तर्क और प्रलय के दिल अपने लिए पछतावे और लज्जा का कारण नहीं बनना चाहिए।
इन सुझावों से इस परिणाम पर पहुंचा जा सकता है कि पवित्रता, धार्मिक प्रशिक्षण और आंतरिक आत्मनिर्माण, मनुष्य को ऊंचाईयों तक ले जाने वाले के पर की भांति हैं और इस उड़ान का दूसरा पर चिंतन मनन, सोच विचार और ज्ञान प्राप्त करना है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ज्ञान के बारे में कहते हैं कि ज्ञान, एक देश की प्रगति का बहुपक्षीय आधार है। एक बार मैंने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के हवाले से एक हदीस पढ़ी कि जिसमें कहा गया है कि ज्ञान, शक्ति और ताक़त है जिसने उसे पा लिया वह विजयी रहा और जिसने उसे गंवा दिया उस पर लोग विजयी रहेंगे। यह हदीस बयान करती है कि एक राष्ट्र और एक व्यक्ति के लिए ज्ञान व तकनीक, शक्ति का कारण है। जो भी यह शक्ति पा लेगा तो उसके हाथ खुले हुए होंगे और जो व्यक्ति ज्ञान की शक्ति को प्राप्त नहीं कर सकेगा, तो हमेशा दूसरों के हाथों के नीचे रहेगा और दूसरों के सहारे ज़िंदा रहेगा और वह दूसरों की कृपा पर आगे बढ़ेगा। विश्व के साम्राज्यवादियों ने जो ज्ञान की विभूति प्राप्त की है, उससे दुनिया में हर जगह ज़ोर ज़बरदस्ती करते हैं, अलबत्ता हम कभी भी ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं करेंगे किन्तु विकास और प्रगति के लिए ज्ञान हमारे लिए बहुत ही आवश्यक है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता युवाओं को विशेषकर ज्ञान व प्रोदयोगिकी की प्राप्त के लिए प्रेरित करते हैं और युवावस्था को ज्ञान की प्राप्ति के लिए बेहतरीन अवसर बताते हैं। वे कहते हैं कि प्रिय युवाओं, देखिए ज्ञान का महत्व, पहली श्रेणी पर है, अर्थात यदि हम एक देश के लिए वैश्विक प्रतिष्ठा, सम्मान, कल्याण और शक्ति तथा वैज्ञानिक प्रगति चाहें तो हमें ज्ञान की माध्यम बनाना होगा, मैं यह नहीं कहता कि एक समाज के कल्याण के लिए ज्ञान पर्याप्त है, हम देखते हैं कि दुनिया में कुछ ऐसे देश भी हैं जो ज्ञान से तो संपन्न हैं किन्तु वह वास्तविक कल्याण के स्वामी नहीं हैं, बहुत अधिक समस्याओं में घिरे हुए हैं। निश्चित रूप से ज्ञान न केवल एक आवश्यक शर्त है, बल्कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण शर्त है और देश में इस पर काम होना चाहिए। इस आधार पर ज्ञान का महत्व पता है, अगर आज एक देश विज्ञान की दृष्टि से प्रगति नहीं करेगा, न तो उसकी अर्थव्यवस्था प्रगति कर पाएगी और न ही उसकी वैश्विक शक्ति में वृद्धि होगी और न ही जनता की जीवन शैली बेहतर बढ़ेगी।
इस बात के दृष्टिगत कि ईरान किसी ज़माने में बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं का पालना था, फ़ाराबी, इब्ने सीना, ज़करिया राज़ी और दूसरों ने ज्ञान के इस ध्वज को फहराया है। वरिष्ठ नेता का कहना है कि देश के पास विज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक प्रतिभाएं हैं और इतिहास भी इसका साक्षी है। वह जवानों से अपील करते हैं कि वे ज्ञान प्राप्त करके अपने ज्ञान के स्तर को ऊपर उठाकर पूरी तनमयता के साथ देश की सेवा करें और अपनी बहुआयामी क्षमताओं से देश की सहायता करें और उसको आगे बढ़ाएं।
हालिया दो तीन शताब्दियों से होने वाली अत्याचारी घटनाओं में से एक विज्ञान के क्षेत्र में एकाधिकार था। कुछ देशों ने वैज्ञानिक खोज के बाद दुनिया में उसके विस्तार और दूसरे लोगों को उससे लाभान्वित करने के बजाए, उउन आविष्कारों और खोजों को वर्चस्ववादी कार्यवाहियों और दूसरे देशों को कमज़ोर करने के लिए प्रयोग किया। वरिष्ठ नेता का मानना है कि पश्चिम में पैदा होने वाले वैज्ञानिक आधिपत्य, मानवता पर सबसे बड़ा अत्याचार था। वे कहते हैं कि मानवता पर होने वाले सबसे बड़े अपराधों में से एक यह था कि दुनिया में औद्योगिक क्रांति के दौरान, ज़ोरज़बरदस्ती के लिए ज्ञान एक साधन व उपकरण बन गया। ब्रिटेनवासियों ने जो औद्योगिक क्रांति के अग्रणियों में से थे, इस संभावना से दुनिया के साथ मिलकर चलने और राष्ट्रों के पैरों में बेड़ी डालने के लिए भरपूर लाभ उठाया, आप तो जानते हैं कि भारतीय उपमहाद्वीप में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के काल में, इस धन से मालामाल धरती का क्या हुआ? यह केवल भारतीय उपमहाद्वीप पर ही नहीं बल्कि पूरा पूर्वी एशिया क्षेत्र कई वर्षों तक, लगभग एक शताब्दी तक, इन लोगों के सैन्य बूट के नीचे रहा, और विज्ञान का जो हथकंडा इनके पास था, उसके माध्यम से वह राष्ट्रों पर वर्चस्व जमा बैठे, कितने लोग मारे गये, कितनी इच्छाएं कुचली गयीं, कितने अधिक राष्ट्र पिछड़ेपन का शिकार हो गये, कितने देश बर्बाद हो गये, इन्होंने विज्ञान के हथकंडे को ऐसा प्रयोग किया, यह विज्ञान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है, इसी प्रकार मानवता के साथ भी सबसे बड़ा विश्वासघात समझा जाता है।
वरिष्ठ नेता का यह मानना है कि पश्चिमी वर्चस्ववादी देशों ने यह मज़बूत इरादा कर लिया था कि यह वैज्ञानिक अधिपत्य न टूटने पाए किन्तु इस्लामी गणतंत्र ईरान ने हालिया दशकों में वैज्ञानिक मार्ग पर क़दम रखा और उसने महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धियां अर्जित कीं कि जिससे इस वैज्ञानिक अधिपत्य को बहुत अधिक नुक़सान पहुंचा।
इस वैज्ञानिक एकाधिकार को तोड़ने के लिए वैज्ञानिक संघर्ष की आवश्यकता होती है, इस अवसर पर इस्लामी देशों से यह अपेक्षा है कि वह अधिक से अधिक संघर्ष करें। इस्लाम की शिक्षाओं और आत्मा को शांति प्रदान करने वाली और अंधरे से उजाले में ले जाने वाली पवित्र क़ुरआन की आयतों व सूरों के दृष्टिगत अपेक्षा यह है कि मुस्लिम देश दूसरे से अधिक विज्ञान के मार्ग में प्रयास और संघर्ष करेंगे। मार्ग दर्शन और कल्याण और परिपूर्णता का मार्ग दिखाने वाली किताब पवित्र क़ुरआन ने सभी लोगों को चिंतन मनन और ज्ञान की प्राप्ति के निर्देश दिए हैं। पवित्र क़ुरआन की प्रकाशमयी आयतों ने बारंबार इस महत्वपूर्ण बिन्दु पर बल दिया है कि चिंतन मनन करने वालों की, उन लोगों से तुलना नहीं की जा सकती जो चिंतन मनन नहीं करते। चिंतन मनन, ज्ञान व तकन की प्राप्ति का बेहतरीन मार्ग है। चिंतन मनन करने वाले व्यक्ति, सामान्य रूप से खोज करने वाले व्यक्तित्व का स्वामी होता है और बहुत गहराई और सूक्ष्मता से ज्ञान सीखते हैं। पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतें, ज्ञान के महत्व और चिंतन मनन के महत्व पर बल देती हैं।
खेद की बात यह है कि अब तक बहुत से इस्लामी देशों में वैज्ञानिक चिंता पायी नहीं जाती और यह कहा जा सकता है कि ईरान के अलावा जो उसने इस्लमी क्रांति के बाद वैज्ञानिक प्रगति हासिल की, दूसरे अरब मुस्लिम देश बहुत धीमी रफ़्तार से इस मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता इस विषय से अपने दुख और अपनी अप्रसन्नता को व्यक्त करते हुए ज्ञान और तकनीक की प्राप्ति के लिए मुस्लिम देशों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि इस्लामी देशों को ज्ञान और तकनीक की दृष्टि से प्रगति करनी चाहिए। मैंने कहा कि पश्चिम और अमरीका ने विज्ञान की छत्रछाया में दुनिया के दूसरे देशों पर अपना वर्चस्व जमाया, उनके हथकंडों में से एक विज्ञान था, धन संपत्ति भी उन्होंने विज्ञान से प्राप्त कर ली, अलबत्ता बहुत अधिक पैसा उन्होंने धोखे, विश्वासघात और राजनीति से प्राप्त किया किन्तु विज्ञान भी प्रभावी रहा है, ज्ञान प्राप्त किया जाए, जब विज्ञान प्राप्त करेंगे, तो आपके हाथ मज़बूत होंगे, यदि आपके पास विज्ञान न हो तो जिनके मज़बूत हाथ होंगे वह आपके हाथ मरोड़ देंगे या जैसे चाहें आपको घुमाएंगे, अपने युवाओं को विज्ञान की ओर प्रेरित करें, यह काम संभव है, हमने ईरान में यह काम किया, क्रांति से पहले तक हम विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति करने वालों में अंतिम सीढ़ी पर थे कि हमें कोई नज़र उठाकर भी नहीं देखता था किन्तु आज क्रांति की विभूतियों और अनुकंपाओं, इस्लाम की अनुकंपाओं और धर्म की विभूतियों के कारण, दुनिया में जो लोग समीक्षाएं करते हैं उन्होंने कहा और उनके बयान दुनिया भर की पत्रिकाओं और समाचारों में छपे कि ईरान आज वैज्ञानिक दृष्टि से दुनिया में सोलहवें नंबर पर है।