मार्गदर्शन -60
ईरान में वैज्ञानिक विकास और ख़ास तौर पर पिछले दशक में जो वैज्ञानिक विकास हुआ है वह किसी से छिपा नहीं है।
मानो अमरीका की ओर से लगायी गयी अन्यायपूर्ण पाबंदियों के कारण ईरानी राष्ट्र के सामने एक स्वर्णिम अवसर मुहैया हुआ और ईरान के जवान वैज्ञानिक इस अंधकारमय दौर में सितारों की भांति चमके और और अपनी वैज्ञानिक खोजों से ईरान का क्षेत्र सहित दुनिया में नाम रौशन किया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई कहते हैं, "हालिया दशकों में हमारी वैज्ञानिक प्रगति एक सच्चाई है। कुछ ने इसका लोहा माना तो कुछ ने इसका इंकार किया। यह एक सच्चाई है कि हमारे यहां दुनिया के अवसत वैज्ञानिक विकास की तुलना में तेरह गुना तेज़ी से वैज्ञानिक विकास हो रहा है।"
9 अप्रैल 2006 को दुनिया ईरान के आधुनिक परमाणु प्रौद्योगिकी से संपन्न होने की ख़बर सुनकर हैरत में पड़ गयी थी। इस हैरत की वजह यह थी कि इससे पहले तक दुनिया के सिर्फ़ कुछ विकसित देशों के पास ही यह प्रौद्योगिकी थी इसलिए ईरान के नई पीढ़ी के सेन्ट्रीफ़्यूज के साथ इस प्रौद्योगिकी से संपन्नता की ख़बर दुनिया के सामने हैरत की बात थी। इस ख़बर की घोषणा और उसकी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए की ओर से पुष्टि से ईरान दुनिया में युरेनियम संवर्धन की पौद्योगिकी से संपन्न देश के रूप में पहचाना जाने लगा। देश परमाणु क्षेत्र में इस महासफलता के जश्न में डूब गया और ईरान के राष्ट्रीय कैलेन्डर में एक दिन को परमाणु प्रौद्योगिकी दिवस निर्धारित किया गया।"
इस महासफलता के बाद इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कहा, "आज देश के जवान वैज्ञानिकों का आश्चर्य में डालने वाला एक और कारनामा परमाणु पदार्थ का संवर्धन करना है जो दुनिया की गुप्त प्रौद्योगिकी में से एक है कि जिन पर बड़ी शक्तियों ने एकाधिकार जमा रखा है। ईरान के जवान वैज्ञानिकों ने परमाणु विज्ञान के क्षेत्र में अपने कारनामे से वास्तव में ईरानी राष्ट्र की दीर्घकालिक ऊर्जा ज़रूरत को सुनिश्चित बना दिया है कि यह ज्ञान हाथ से जाने न पाए और इस क्षेत्र से पीछे हटना शत प्रतिशत नुक़सानदेह है।"
ईरानी वैज्ञानिकों ने परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यह कारनामा ऐसी हालत में अंजाम दिया जब दुनिया के अहम वैज्ञानिक केन्द्रों ने ईरानी छात्रों व वैज्ञानिकों के लिए अपने द्वार बंद कर रखे थे। लेकिन वरिष्ठ नेता की ओर से आत्म विश्वास व साहस के लिए प्रेरणा और ‘हम कर सकते हैं’ के नारे पर भरोसा इस बात का कारण बना कि परमाणु क्षेत्र में जवान वैज्ञानिक यह कारनामा अंजाम दें। वरिष्ठ नेता इस संदर्भ में एक अमरीकी द्वारा लिखे गए एक लेख का हवाला देते हुए कहते हैं कि इस लेख में ध्यान देने योग्य बिन्दुओं का उल्लेख है। वरिष्ठ नेता कहते हैं, "मैंने एक लेख पढ़ा जो एक अमरीकी अख़बार से उद्धरित है कि जिसमें आया है कि परमाणु मामले में ईरान अजूबा है।" इस लेख में आया है कि चीन ने परमाणु क्षेत्र में प्रगति के लिए किससे मदद ली। भारत और पाकिस्तान ने यह प्रौद्योगिकी किससे ली लेकिन जब बात ईरान की आती है और यह सवाल होता है कि ईरान ने यह प्रौद्योगिकी किससे हासिल की? तो इस लेख में लेखक लिखता है, "किसी से नहीं"। इस लेख में आगे आया है कि ईरान ने ऐसी हालत में परमाणु प्रौद्योगिकी हासिल की कि उस पर पाबंदी लगी हुयी थी, उसे परमाणु क्षेत्र में प्रगति करने का मौक़ा नहीं देते थे और उसके ख़िलाफ़ लामबंदी भी करते थे। लेखक हमारे परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या का भी उल्लेख करते हैं। ये वे बाते हैं जो हमारे दुश्मन कह रहे हैं। यह लेख वॉशिंग्टन पोस्ट में प्रकाशित हुआ है।
जी हां उच्च चोटियों पर पहुंचना सिर्फ़ नारों व बातों से मुमकिन नहीं होता बल्कि उसके लिए लक्ष्य का निर्धारण, उस दिशा में लगातार क़दम उठाना और निरंतर प्रयास करना पड़ता है तब जाकर महासफलता हासिल होती है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के शरह नामक सूरे की आयत 5 और 6 में ईश्वर दो बार बल देकर कहता है, "निश्चित रूप से हर कठिनायी के बाद आसानी है। हां निश्चित रूप से हर कठिनायी के बाद आसानी है।"
वरिष्ठ नेता इसी आयत को मद्देनज़र रख कर विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति करने और देश के विकास में वैज्ञानिक प्रगति करने के लिए प्रेरित करते हैं। वरिष्ठ नेता अपने भाषण में बारंबार इस बिन्दु पर चर्चा करते हैं कि ईरान के जवान वैज्ञानिक जिस क्षेत्र में कोशिश करेंगे बड़ी वैज्ञानिक सफलताएं हासिल करेंगे।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई परमाणु क्षेत्र के बारे में कहते हैं, "जिस क्षेत्र में आप अपनी ओर से कोशिश करेंगे दुश्मन समझ जाएगा कि पाबंदी लगाना निरर्थक व मूर्खतापूर्ण काम है। इसकी सीधी मिसाल 20 फ़ीसद संवर्धित यूरेनियम पदार्थ की है कि जिसकी हमें तेहरान के शोध बिजली केन्द्र के लिए बहुत ज़रूरत थी। देश का भंडार ख़त्म होने को था, यह बिजली घर बंद हो जाता, इस केन्द्र में उत्पादित होने वाले रेडियो आइसोटोप लोगों को न मिल पाता, देश के अधिकारी कोशिश में लग गए कि 20 फ़ीसद संवर्धन करना है।" दुनिया के शक्तिशाली देश और उनमें सबसे आगे अमरीका ने 20 फ़ीसद संवर्धन के मार्ग में रुकावटें खड़ी कीं। यह घटना भी सुनने लायक़ है। उन्होंने क्या किया। हम इसे ख़रीदने के लिए तय्यार थे। वे नाना प्रकार के बहाने बनाते थे यहां तक कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उसे 20 फ़ीसद संवर्धित युरेनियम का ख़ुद ही उत्पादन करना होगा। लेकिन उन्हें यह यक़ीन नहीं हो रहा था कि ऐसा हो पाएगा। 20 फ़ीसद उत्पादित होने पर भी उन्हें यक़ीन नहीं हो रहा था कि इससे ईंधन का उत्पादन हो पाएगा अर्थात ईंधन का रॉड बन पाएगा। इस काम को भी इस्लामी गणतंत्र के जवान वैज्ञानिकों ने अपनी प्रतिभा से कर दिखाया। अब जब सबको समझ में आ गया कि इस्लामी गणतंत्र परमाणु प्रौद्योगिकी से संपन्न हो चुका है और उसने इसका एक उत्पाद बनाया है और उसे इस्तेमाल कर सकता है, वे हमसे विनती करते हैं कि ये चीज़ हम उनसे ख़रीदें। दूसरा कहता है हमसे ख़रीद लीजिए, कह रहे हैं कि हम आपको बेचने के लिए तय्यार हैं, आप उत्पादन न करें, दुनिया के ऐसे ही रूप हैं।
इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित हर स्वाधीन व्यवस्था के ख़िलाफ़ दुनिया की छोटी बड़ी ताक़तों की ओर से दबाव व बहानेबाज़ी इस व्यवस्था के मज़बूत व कमज़ोर बिन्दुओं के अधीन है। जहां आप कमज़ोर होंगे, उनकी ओर से बहानेबाज़ी बढ़ जाएगी, जहां आप मज़बूत होंगे, आप अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं, वे आपके साथ सम्मान जनक व्यवहार अपनाएंगे, अधिक तर्कपूर्ण बात करेंगे। यह सभी मुश्किलों के हल की कुंजी है।
ईरान के परमाणु क्षेत्र में प्रगति करने के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान के दुश्मनों में ख़ास तौर पर अमरीका और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन का व्यवहार ऐसा न था जिस पर हैरत जतायी जाए। उन्होंने बड़ा सख़्त दृष्टिकोण अपनाते हुए ईरान पर परमाणु हथियार के निर्माण का इल्ज़ाम लगाया। हालांकि अमरीका ने न सिर्फ़ यह कि सबसे ज़्यादा परमाणु बमों का भंडार लगा रखा है बल्कि अब तक वह दोबार इस महाविनाशकारी बम का इस्तेमाल भी कर चुका है। हिरोशीमा और नागासाकी में परमाणु बमबारी और उसके विनाशकारी परिणाम की बात किसी से ढकी छिपी नहीं है।
आज के दौर की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि अमरीकी सरकार जिसके पास परमाणु हथियार सहित दूसरे महाविनाशकारी हथियार सबसे ज़्यादा हैं और उसने उनका इस्तेमाल भी किया है, आज परमाणु अप्रसार का ध्वज वाहक बनना चाहती है। उसने और उसकी पश्चिमी घटक सरकारों ने अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन को परमाणु हथियार दिए और इस संवेदनशील क्षेत्र के लिए बड़े ख़तरे पैदा कर दिए हैं लेकिन यह धूर्त समूह स्वाधीन देशों द्वारा परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए प्रयोग को सहन नहीं कर पा रहा है। यहां तक कि यह समूह रेडियो आइसोटोप सहित दूसरे शांतिपूर्ण इस्तेमाल के लिए परमाणु ईंधन के उत्पादन का बहुत विरोध कर रहा है। ये समूह परमाणु हथियारों के उत्पादन के ख़तरे को बहाना बनाकर पेश कर रहा है। इस्लामी गणतंत्र ईरान के बारे में भी वे जानते हैं कि वे झूठ बोल रहे हैं। हम परमाणु हथियार नहीं बनाना नहीं चाहते इसलिए नहीं कि ऐसा करने से अमरीका नाराज़ होगा बल्कि हमारी आस्था इससे रोकती है। हमारी आस्था है कि परमाणु हथियार मानवता के ख़िलाफ़ अपराध के समान है, इसलिए इनका निर्माण नहीं होना चाहिए और दुनिया में जितने परमाणु हथियार हैं, सबको ख़त्म होना चाहिए।
आधुनिक व परमाणु प्रौद्योगिकी की प्राप्ति परमाणु अप्रसार संधि के सदस्य देशों का मूल अधिकार माना गया है कि ईरान भी इस संधि का हिस्सा है। इस संधि के अनुसार, जिन देशों के पास आधुनिक परमाणु प्रौद्योगिकी है, उनका कर्तव्य है कि वे सदस्य देशों की असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी की प्राप्ति में मदद करें। इस मदद के बदले में संबंधित देश इस बात के लिए प्रतिबद्ध होंगे कि परमाणु हथियार की प्राप्ति की कोशिश नहीं करेंगे।
अंत में यह कि आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई की नज़र में यह ईरानी राष्ट्र का अधिकार है कि उसने परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में जो उपलब्धि हासिल की है उसकी रक्षा करे और इस क्षेत्र में और प्रगति करे।
इस उपलब्धि के बारे में वरिष्ठ नेता के वक्तव्य से कार्यक्रम का अंत कर रहे हैं। "हमारा यह कहना कि परमाणु ऊर्जा या दूसरे शब्दों में परमाणु प्रौद्योगिकी, ईंधन चक्र की प्राप्ति और युरेनियम संवर्धन की संभावना का बना रहना हमारा मूल अधिकार है, इसका अर्थ यह है कि अगर आज हमने इस राष्ट्र के लिए इसकी आपूर्ति न की तो कल यह राष्ट्र विरोधियों और दुश्मनों की ओर हाथ फैलाने पर मजबूर होगा। अगर आज ईरानी राष्ट्र ने परमाणु प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षा हासिल न की तो कई साल बाद जब ये जवान रोज़गार के क्षेत्र में सक्रिय होंगे, जिस दिन ईरानी राष्ट्र की आबादी दसियों लाख बढ़ चुकी होगी, उस दिन राष्ट्र अपनी मूल ज़रूरत को हासिल करने के लिए दूसरों और संभवतः दुश्मन की ओर हाथ फैलाने के लिए मजबूर होगा। उस वक़्त राष्ट्र के सम्मान के बदले में उसे थोड़ी सी चीज़ देंगे। हमने ज़ोर ज़बरदस्ती को क़ुबूल नहीं किया और ईरानी राष्ट्र को यह बात समझ लेनी चाहिए कि देश के अधिकारी इसे स्वीकार नहीं करेंगे और नाचीज़ भी किसी क़ीमत पर इस धौंस धमकी से दबने वाला नहीं है।"