हम और पर्यावरण- 50
हमने आपको बताया था कि पवित्र क़ुरआन में पर्यावरण की रक्षा के बारे में बहुत कुछ कहा गया है।
ईश्वर कहता है कि सृष्टि में जो कुछ है उसकी रक्षा करने का दायित्व पूरे मानव समाज पर आता है। हमको इसकी रक्षा के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
पहले पर्यावरण के बारे में संक्षेप में हम यह कहना चाहते हैं कि हरियाली, पेड़-पौधों और वनस्पतियों के नष्ट होने से वायुमण्डल में विषाक्तता बढ़ती जा रही है। वर्तमान समय में वातावरण बहुत ही विकृत एवं प्रदूषित होता जा रहा है। प्रदूषण से होने वाली क्षति से केवल मानव स्वास्थ्य के लिए ही नहीं बल्कि अन्य जीव-जन्तुओं के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो गया है। वायु प्रदूषण के कारण वायुमण्डल की बहुत ऊपरी परत प्रभावित हुई है जिसे ओज़ोन कहते हैं। इसके कारण ऐसे हानिकारक तत्व आ गए जिनसे त्वचा और स्वास्थ्य संबन्धी नाना प्रकार की बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। आए दिन ऐसी-ऐसी बीमारियाँ पैदा हो रही हैं जिनके बारे में पहले न तो कहीं पढ़ा गया और न कहीं सुना गया। वर्तमान समय में यह बीमारियां, दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही हैं। अब हमें यह बात समझनी होगी कि पर्यावरण प्रदूषण का स्वरूप, चाहे कोई भी हो परन्तु उससे होने वाली क्षति का भुगतान मानव सामज को ही करना होगा।
इस्लामी शिक्षाओं में वृक्षारोपण या पेड़ लगाने तथा वातावरण को हराभरा रखने पर बल दिया गया है। एक कथन में यहां तक कहा गया है कि जहां तक संभव हो पेड़ लगाया करो। इस कार्य को इस्लाम में सदक़ा देने या अति पुण्य काम बताया गया है। महापुरूषों के कथनों में कहा गया है कि शुद्ध वातावरण, शुद्ध जल और हरियाली के बिना जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन है। इसके अतिरिक्त यह बात भी कही गई है कि प्रकृति की जो अनुकंपाएं मौजूद हैं उनसे उचित लाभ उठाने के साथ ही उनकी सुरक्षा भी की जाए। पेड़ लगाने और उसकी देखभाल के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि जो किसी पेड़ की सिंचाई करता है वह एसा है जैसे उसने किसी प्यासे मोमिन को पानी पिलाया। इस्लाम की शिक्षाओं में कहा गया है कि पेड़ लगाना, उनकी देखभाल करना, नहर खोदना, कुंए बनाना, पुल बनाना, लोगों को शिक्षित करना और इसी प्रकार के विकास के काम एसे हैं जिनका सवाब इन कामों के करने वाले को अपनी मौत के बाद भी मिलता रहता है।
इस्लाम में जहां पर पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लोगों को विभिन्न प्रकार से प्रेरित किया गया है वहीं पर इसके विनाश से सबको रोका गया है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि पेड़ न काटो क्योंकि एसा करने से ईश्वर के प्रकोप का सामना करना पड़ेगा। वृक्षारोपण के महत्व के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि यदि कोई व्यक्ति पेड़ लगाए या खेती करे और उसके इन कामों से मनुष्य तथा पशु-पक्षी सभी लाभ उठाएं तो यह काम एसे सदकर्म जैसा है जिसका सवाब, उस व्यक्ति को लंबे समय तक मिलता रहेगा। हमारे महापुरुषों ने भी वृक्षारोपण पर बहुत बल दिया है बल्कि कई ने तो अपने जीवन में स्वयं यह काम किया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने मदीने में खजूर के बहुत से बाग़ लगाए। उनमें से अधिकांश को उन्होंने ईश्वर की राह में वक़फ़ कर दिया। हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) ने इस्लाम के सैनिकों से कहा था कि वे पेड़ों को न काटें, खेतों को आग न लगाएं यहां तक कि जानवरों की भी हत्या न करें। शिया धर्मगुरूओं का मानना है कि दुश्मन के खेतों को आग लगाना और उनके पेड़ों को काटना जाएज़ नहीं है। इन बातों से पता चलता है कि इस्लाम में पर्यावरण की सुरक्षा को कितना महत्व दिया गया है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) धरती के सम्मान पर भी बल देते हैं। उनका कहना है कि धरती को किसी भी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचानी चाहिए क्योंकि वह हमको अन्न देती है। अन्नदाता को ईश्वर ही है किंतु यह अन्न हमको धरती के माध्यम से दिया जाता है। यही कारण है कि किसी को भी धरती को नुक़सान पहुंचाने का अधिकार नहीं है।
पर्यावरण की सुरक्षा के साथ ही साथ इस्लाम का आदेश है कि पशु-पक्षियों को नुक़सान न पहुंचाया जाए। इस्लामी कथनों के अनुसार पशु-पक्षियों को अकारण मारना नहीं चाहिए। पशुओं की हत्या पर रोक के साथ ही कहा गया है कि पशुओं के शवों को क्षत-विक्षत नहीं करना चाहिए। इस कृत्य की बहुत निंदा की गई है। एक हदीस में कहा गया है कि जो किसी पशु के शव को क्षत विक्षत करता है उसपर धिक्कार है। इस्लाम में पक्षियों के घोसलों को तोड़ने से भी रोका गया है। पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि पक्षियों के घोंसलों को न तोड़ों और उनपर हमला न करो।
इन सभी बातों से यह समझ में आता है कि मनुष्य को सृष्टि में मौजूद चीज़ों से लाभान्वित होने का तो अधिकार है किंतु उसे क्षति पहुंचाने का अधिकार बिल्कुल नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि इस्लामी शिक्षाओं की दृष्टि में मनुष्य धरती पर सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसका कर्तव्य है कि वह धरती पर विकास और तरक़्क़ी के काम करे तथा विध्वंस एवं नुक़सान पहुंचाने वाले कामों से रुके। इन कामों से उसे इसलिए भी रुकना चाहिए कि सृष्टि में पाई जाने वाली चीज़ों में से कोई भी चीज़ किसी की निजी संपत्ति नहीं है। धरती, पेड़-पौधे, पानी, हवा या अन्य कोई भी चीज़ किसी इन्सान की संपत्ति नहीं है बल्कि यह ईश्वर की देन है और ईश्वर ही उसका मालिक है। इसीलिए किसी को ही इन चीज़ों को क्षति पहुंचाने का कोई अधिकार नहीं है। उसका दायित्व है कि वह पर्यावरण की रक्षा करने और पर्यावरण को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों के मार्ग में बाधा बने।
इन्ही बातों के दृष्टिगत सरकारों का कर्तव्य है कि वे पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रयासरत रहे और जो भी पर्यावरण को क्षति पहुंचाए उससे कड़ाई से निबटे। आज मनुष्य जैसे-जैसे विकास के पथ पर आगे बढ़ता जा रहा है वैसे-वैसे पर्यावरण क्षतिग्रस्त होता जा रहा है। विकास के कारण जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण बहुत तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। इसको नियंत्रित करने की आवश्यकता है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य का पूरा जीवन प्रकृति पर आश्रित है। एसे में यदि प्रकृति को ख़तरा उत्पन्न होता है तो पूरी मानवजाति को उससे ख़तरा होगा। मनुष्य यदि पर्यावरण के प्रति लापरवाह होगा तो उसके बहुत ही गंभीर परिणाम पूरी मानवता को भुगतने होंगे। आधुनिक युग में बहुत से देशों में एसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं जो पर्यावरण को होने वाली क्षति का दुष्परिणाम है। एसे में हमको पर्यावरण के प्रति लापरवाह नहीं होना चाहिए। हमको इसके प्रति बहुत अधिक संवेदनशील रहना चाहिए क्योंकि पर्यावरण का विनाश, पूरी मानवता के विनाश के अर्थ में है।