हालीवूड में भेदभाव- 3
आपको यह बताया कि दो परिवार उत्तरी स्टोनमैन और दक्षिणी कैमरन के बीच अचछे पारिवारिक संबंध थे लेकिन अमरीका के भीतर जंग और दक्षिणी राज्यों में अश्वेतों के उदय के कारण इन दोनों परिवारों के संबंध प्रभावित होते हैं।
‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ यह दर्शाती है कि अश्वेत ग़ुलामी के पीड़ित दौर से मुक्ति मिलने से हासिल हुयी सामाजिक व राजनैतिक स्थिति का दुरुपयोग करते हैं और अपने अतार्किक व्यवहार से अपनी अयोग्यता को ज़ाहिर करते हैं। समीक्षा के क्रम में जिस दृष्य पर चर्चा करेंगे उसमें आप देखेंगे कि किस तरह श्वेतों का पक्ष लिया जाता और अश्वेतों का अपमान किया जाता है।

इस फ़िल्म के 126वें मिनट से शुरु होने वाले दृष्य में बेन कैमरन की बहन फ़्लोरा कैमरन को दिखाते हैं कि वह पहाड़ के दामन में पानी लेने जाती है। गस नामक अश्वेत सैनिक व लड़ाका अमरीकी गृह युद्ध के बाद कैप्टन बन चुका है और गश्त लगा रहा है। भारी भरकम शरीर, मोटे होंठ और उभरी हुयी आंखों वाला गस ऐसी हालत में फ़्लोरा के निकट होता है कि उसकी शर्ट के बटन खुले होते हैं। वह फ़्लोरा को शादी का प्रस्ताव देता है। फ़्लोरा डर जाती है और गस के बढ़े हुए हाथ को झटक कर फ़रार करती है। अश्वेत व्यक्ति उसका पीछा करते हुए कहता है, “श्रीमति रुक जाइये। मैं आपको कोई नुक़सान नहीं पहुंचाउंगा।” लेकिन फ़्लोरा मदद मदद चिल्लाते हुए फ़रार करती है।
श्वेत बेन कैमरन जब घर में अपनी बहन को नहीं पाता है तो पहाड़ के दामन की ओर बढ़ता है। वह अश्वेत गस के विपरीत बहुत ठाठ बाट में रहता है। बेन कैमरन पेड़ के लट्ठे के पास गिरी हुयी कोट को देख कर जो गस और फ़्लोरा में झड़प का सूचक दृष्य लगता है, अपनी छोटी बहन को तलाश करता है। फ़रार और पीछा करने का दृष्य एक साथ पैरलल एडिटिंग के ज़रिए दिखाया जाता है और धीरे धीरे फ़िल्म में मौजूद डर का सीन और डरावना हो जाता है। पैरलल एडिटिंग में दो अलग अलग दृष्य को एक स्क्रीन को दो भाग में बांट कर एक साथ दिखाया जाता है। फ़्लोरा के फ़रार और गस के उसका पीछा करने का एक साथ दृष्य और इसी तरह बेन कैमरन के ढूंढने का दृष्य दर्शक के मन में बेचैनी पैदा करने में प्रभावी दृष्य है। पैरलल एडिटिंग के ज़रिए हर अगले क्षण संघर्ष बढ़ता जाता है और दर्शक अपने मन में तनाव महसूस करता है और अपने आप से कहता है, “बेन जल्दी करो और अपनी बहन को इस काले देव के चंगुल से बचाओ।”
फ़्लोरा बेबसी में एक टीले के ऊपर पहुंचती है। अश्वेत गस भी उससे कुछ क़दम दूर खड़ा हो जाता है। फ़्लोरा कहती है, और दूर हट कर खड़े हो वरना में नीचे छलांग लगा दूंगी। इस क्षण बेन कैमरन दूर से फ़्लोरा को देख लेता और उसे आवाज़ देता है। गस, फ़्लोरा के निकट होने की कोशिश करता है कि उसका हाथ पकड़ ले। डरी हुयी फ़्लोरा ऊंचे टीले से छलांग लगा देती है। गस जब देखता है कि फ़्लोरा ज़मीन पर गिरी हुयी है तो वहां से फ़रार करता है। बेन फ़्लोरा तक पहुंचता है और उसे गोद में उठा कर एलाज के लिए घर ले जाता है। उसके बाद बेन कैमरन कू क्लक्स क्लैन नामक एक संगठन बनाता है जिसका लक्ष्य बदला लेना है। कू क्लक्स क्लैन के लड़ाके अश्वेत गस को ढूंढ निकालते और बिना किसी मुक़द्दमे के सूली पर चढ़ा देते हैं।
सच बात तो यह है कि फ़िल्म ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ सिनेमा की भाषा में ख़ास तौर पर पैरलल एडिटिंग के ज़रिए दर्शक को यह समझाना चाहती है कि अश्वेत लोग बर्बर, गंदे, उजड और औरतों के रसिया होते हैं और वे श्वेत लोगों के साथ वैवाहिक संबंध बनाने के योग्य नहीं हैं क्योंकि श्वेत लोग सभ्य, साफ़ सुथरे और विनम्र होते हैं। यहां तक कि पहाड़ के दामन और जंगल में घूमना भी श्वेत लोगों के लिए ख़तरे से ख़ाली नहीं है क्योंकि पहाड़ का दामन और प्रकृति बर्बर अश्वेत लोगों के रहने का स्थान हैं और वे श्वेत लोगों को नुक़सान पहुंचाते हैं।
‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ के 166वें मिनट में शुरु होने वाले दृष्य में हम देखते हैं कि बेन कैमरन के परिवार वाले, कू क्लक्स क्लैन संगठन के सरग़ना, कैमरन परिवार के दामाद अर्थात फ़िल स्टोनमैन के साथ अश्वेतों की एक झोपड़ी में क़ैद हो गए हैं। अश्वेत कैमरन परिवार के खेत में काम करने वालों और कैमरन परिवार के सेवकों को जान से मारने के बाद उन्हें भी क़ैदी बनाकर मारना चाहते हैं। कैमरन के खेत पर अश्वेत लोगों के हमले की ख़बर बेन कैमरन तक पहुंचती है तो वह कू क्लक्स क्लैन गुट के सदस्यों को इकट्ठा करके खेत की ओर रवाना होता है। अश्वेतों का विनाश करता है। कैमरन के परिवार और दूसरे लोग जो डर के मारे झोपड़ी में छिपे होते हैं, बाहर निकलकर आज़ादी व सुरक्षा महूसस करते हैं।
कुछ मिनट पहले गस द्वारा फ़्लोरा का पीछा करने और उसके भागने के सीन की ही तरह कैमरन के परिवार को मुक्ति दिलाने वाले सीन में भी पैरलल एडिटिंग का इस्तेमाल हुआ है ताकि अश्वेत गुट और श्वेतों के गुट कू क्लक्स क्लैन के बीच अंतर को दर्शाया जा सके। खेत पर हमला करने वाले अश्वेत गुट और खेत की ओर जाने वाले कू क्लक्स क्लैन गुट की तस्वीरों को फ़ास्ट कटिंग की शैली में पैरलल एडिटिंग में दिखाया जाता है। इस पैरलल एडिटिंग का लक्ष्य यह दिखाना है कि श्वेत के मिज़ाज में विकास करना और अश्वेतों के मिज़ाज में तबाही फैलाना है। पैरलल एडिटिंग का लक्ष्य दर्शक में बेचैनी बढ़ाने के साथ यह दर्शाना है कि अश्वेतों के चंगुल में फंसे श्वेतों को बचाने के लिए सिर्फ़ एक रास्ता सही समय पर कू क्लक्स क्लैन का पहुंचना है। दृष्य को बहुत जल्दी जल्दी दिखाया जाता है ताकि जीवन और मौत के बीच संघर्ष का तनाव बढ़ जाए। पैरलल एडिटिंग की तकनीक कू क्लक्स क्लैन को मुक्तिदाता दर्शाने में प्रभावी रही और उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण दर्शाती है।
फ़िल्म ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ यह दर्शाती है कि दास प्रथा का अंत और अश्वेतों को आज़ाद करना एक ग़लती थी। यह फ़िल्म यह संदेश देती है कि मानो सारी सामाजिक उथल पुथल के लिए अश्वेत ज़िम्मेदार हैं और समाज की मुक्ति सिर्फ़ और सिर्फ़ उन्हें हाशिए पर ढकेलने और श्वेतों के हाथों उन्हें नियंत्रित किए जाने से ही मुमकिन है। अश्वेत तबाही फैलाते हैं और यह कू क्लक्स क्लैन गुट और श्वेत लोग हैं जो समाज और देश में सुव्यवस्था, सुरक्षा व शांति ला सकते हैं। ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ फ़िल्म बुराइयों को अश्वेतों और अच्छाइयों को श्वेतों से जोड़ती है। मिसाल के तौर पर श्वेतों के हाथों हुए निर्माण के मुक़ाबले में अश्वेत के हाथों हुयी तबाही को दिखाया जाता है। ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’ फ़िल्म पैरलल एडिटिंग के ज़रिए बारंबार यह दिखाती है कि अश्वेत स्वाभाविक रूप से बुरे और और श्वेत स्वाभाविक रूप से अच्छे होते हैं। इस फ़िल्म में अश्वेतों का सही चित्रण नहीं किया गया है। उन्होंने जो पूरे इतिहास में पीड़ाएं झेली हैं, उसे नहीं दिखाती बल्कि उनकी उन विशेषताओं को चित्रित करती है जिनका संबंध बल और शरीर से है।
‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’फ़िल्म में श्वेत और अश्वेत दोनों पहचान एक दूसरे को ख़ारिज करती और एक दूसरे की दुश्मन दिखायी गयी हैं। इस फ़िल्म में श्वेत और अश्वेत के बीच सामाजिक असमानता को वैध दर्शाने और अश्वेतों के मुक़ाबले में श्वेत के वर्चस्व को स्वाभाविक दर्शाने की कोशिश की गयी है। इस फ़िल्म में अल्पसंख्यक अश्वेतों को दिखाया गया है कि उन्हें जो थोड़ा सा मौक़ा मिलता है, उसमें वे समाज में सुव्यवस्था, सुरक्षा और शांति क़ायम नहीं कर सकते। सिनेमा को सामाजिक आयाम से देखने से लगता है कि यह फ़िल्म श्वेत शासन व्यवस्था को योग्य और अश्वेत शासन व्यवस्था को अयोग्य दर्शाना चाहती है। फ़िल्म अपनी विशेष ट्रिक से यह समझाना चाहती है कि समाज का बेहतर होना सत्ता पर श्वेतों के पहुंचने से मुमकिन है। यह फ़िल्म यह कहना चाहती है कि समाज की भलाई श्वेतों के सत्ता में पहुंचने और अश्वेतों को सत्ता से हटाने में निर्भर है। अश्वेत दूसरे दर्जे के नागरिक हैं और उन्हें क़ानून बनाने और श्वेतों के साथ शादी करने का अधिकार नहीं है। ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’फ़िल्म अश्वेतों को श्वेतों और समाज का दुश्मन दिखाती है ताकि दर्शक को यह समझाए कि श्वेतों का अश्वेतों पर वर्चस्व स्वाभाविक सी चीज़ है और इसे ऐसा ही रहना चाहिए वरना बुराई पैदा होगी।
‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’के निर्देशक डेविड ग्रीफ़िथ ने अश्वेतों के बारे में अपने दौर के प्रचलित दृष्टिकोण को सिनेमा की ज़बान में चित्रित किया है क्योंकि यह फ़िल्म अमरीका के पुनर्निर्माण के बारे में वही बात कहती है जिसका उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशकों और बीसवीं शताब्दी के आरंभिक दशक में इतिहासकार व राजनेता प्रचार करते थे। जैसा कि भूतपूर्व अमरीकी राष्ट्रपति वुड्रो विल्सन ने अपनी किताब ‘हिस्ट्री ऑफ़ अमेरिकन पीपल’ की पांचवी जिल्द में जो दृष्टिकोण पेश किया है वही दृष्टिकोण ग्रीफ़िथ ने ‘द बर्थ ऑफ़ ए नेशन’फ़िल्म में चित्रित किया है। सच तो यह है कि ग्रीफ़िथ ने अपनी फ़िल्म और विल्सन ने अपनी किताब से इस नस्लभेदी विचार का प्रचार किया है कि समाज के विकास व कल्याण का सिर्फ़ एक रास्ता है और वह यह कि श्वेत सत्ता पर काब़िज़ रहें और अश्वेत उनके अधीन रहें।